वातावरण को अनुकूल बनाने में श्री यंत्र का सहयोग पं. रमेश शास्त्री किसी भी जातक को अधिक सफल एवं सबल होना है, तो उसके आसपास के वातावरण का अनुकूल होना आवश्यक होता है। ऐसे में यदि भौतिक, अथवा वैज्ञानिक पद्धति से वातावरण को प्रभावित करना पड़े, तो यह महंगा एवं कठिन होगा। यदि इसी वातावरण का सुधार रत्नों के श्री यंत्र की स्थापना से किया जाए, तो वह कम खर्चीला एवं अधिक लाभकारी होगा। ज्योतिषीय सामग्रियों में श्री यंत्र का बहुत महत्व है। यह बात भी सर्वविदित है कि ’श्री’ की आकांक्षा हर किसी को होती है। श्री यंत्र धन से संबंधित तो है ही, साथ ही मानसिक शक्ति, सामंजस्य एवं एकता तथा सफलता का भी लाभ देता है। श्री यंत्र के आकार, धातु, पाषाण से उसके न्यूनाधिक लाभकारी होने का निर्णय किया जाता है। सुमेरु श्री यंत्र को पाषाण (पत्थर, अथवा रत्न) में निर्मित किया जाए, तो उसकी गुणवत्ता बढ़ जाती है। भले ही इसका मूल्य अधिक हो, पर शास्त्रों में इसकी महिमा प्रबल बताई गई है। जातक के न चाहने पर भी कई ऐसे लक्ष्मी दोष लग जाते हैं, जिनके कारण उनके जीवन में धन, स्वास्थ्य एवं प्रसिद्धि की हानि होती जाती है, अथवा इनको पाने में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यदि श्री यंत्र सुमेरु, अर्थात पर्वताकार हो तथा किसी रत्न से निर्मित हो, तो उसकी गुणवत्ता कोटि गुणा अधिक हो जाती है। अतः ज्योतिषीय सामग्री की शृंखला में संगसितारा एवं मरगज के श्री यंत्र को सर्वोपरि मान सकते हैं। रत्न होने के कारण इनका मूल्य, अन्य की अपेक्षा, अधिक हो सकता है। फिर भी सामथ्र्य के अनुसार, छोटा-बड़ा जो भी हो सके, प्राप्त कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा तथा स्थापना कर उसे अनुकूल करने के लिए नियमित रूप से उसकी पूजा अर्चना करनी चाहिए। संगसितारे का श्री यंत्र वातावरण में फैली नकारात्मक ऊर्जा को कम करता है तथा मरगज का श्री यंत्र जातक को मनोवांछित लाभ देता है। मरगज एवं संगसितारे से और भी अनेक ज्योतिषीय सामग्रियों का निर्माण होता है, परंतु श्री यंत्र उनमें प्रमुख है। यह श्री यंत्र, जन्मपत्रिका के किसी भी दोष का शमन कर के, जातक को सफल एवं सबल बनने में मदद करता है। श्री यंत्रों का उपयोग कोई भी जातक कर सकता है। जो जातक बौद्धिक कार्यों से जुड़े होते हैं, श्री यंत्र उनकी थकान, पीड़ा एवं मानसिक व्यथा को कम करता है। इसे घर, व्यवसाय, कार्यालय, गाड़ी, आदि में लगा कर लाभ पाया जा सकता है। जीवन में अनेक बार लक्ष्मी संबंधी दोष लग जाते हैं। इन दोषों का शमन करने में यह श्री यंत्र सहायक होता है। छात्रों को इसके उपयोग से अधिक अंक प्राप्त होते हैं तथा अध्ययन में मन लगता है। मूर्ति पूजा करने वाले जातक यदि इसे सम्मुख रख कर अपना कोई भी मंत्र जप करते हैं, तो सहस्रों गुणा अधिक लाभ मिलता है। कहा जाता है कि समय से पूर्व एवं भाग्य से पहले जातक को कुछ नहीं मिल पाता। परंतु ज्योतिषीय सामग्री एवं रत्नों से बने श्री यंत्र की स्थापना मात्र से उसे भाग्य से अधिक एवं समय से पूर्व भौतिक सुख एवं आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति होने लगती है। अवसाद, हताशा, बेचैनी, चिंता आदि से जातकों को यह श्री यंत्र लाभ प्रदान करता है। इसके उपयोग से शरीर में जैव रासायनिक प्रक्रिया का संतुलन बना रहता है तथा मानसिक रोगी को यह राहत प्रदान करता है। जातक के जीवन में बाह््य क्रिया-कलापों का संबंध समाज एवं परिवार से होता है, जबकि आंतरिक क्रिया-कलापों का संबंध किसी ईश्वरीय सत्ता से होता है। अतः ईश्वरीय सत्ता को अनुकूल एवं श्री यंत्र जातक के आंतरिक जगत को ऊर्जावान बनाता है तथा सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा देता है। रत्न निर्मित यह श्री यंत्र दुर्लभ है। इसकी पूजा-प्रतिष्ठा सहज तथा नियम सरल हैं। यदि कोई जातक इसे स्थापित मात्र करे, तो भी यह सकारात्मकता प्रदान करता है। सहयोगी बनाने हेतु कोई धार्मिक एवं ज्योतिषीय उपाय करना होता है। यह जब किसी जातक को स्वास्थ्य आदि की पीड़ा होने वाली होती है, तो उसके पूर्व उसके नजदीकी वातावरण में हलचल एवं कंपन-स्पंदन आदि शुरू हो जाते हैं। श्री यंत्र प्रतिकूल स्पंदन एवं कंपन को रोकता है, जिससे स्थिति जातक के अनुकूल हो जाती है तथा पीड़ा से उसकी रक्षा होती है। व्यापारिक संस्थान आदि में इसे स्थापित करने से यह मानसिक व शारीरिक शक्ति एवं भौतिक समृद्धि के लिए अपनी ऊर्जा एवं स्पंदन बिखेर कर, वहां के क्षेत्र को समृद्ध एवं सबल बनाता है। इस श्री यंत्र की स्थापना से वास्तु एवं ग्रहों के अशुभ परिणामों से बचा जा सकता है। जिन जातकों में निराशा, सुस्ती आदि अधिक होती है, उन्हें इसके द्वारा लाभ होता है और वे धीरे-धीरे आशावादी एवं चैतन्यता की ओर अग्रसर होने लगते हैं। निर्धनता को शीघ्र दूर करने के लिए यंत्र के सम्मुख शुद्ध मन से, सिद्ध लक्ष्मी स्तुति, कनक धारा, श्री सूक्त, महागौरी स्तोत्र आदि का पाठ करने से, लक्ष्मी की वृद्धि होती है और जातक को सबलता मिलती है। श्री यंत्र के सम्मुख किसी भी मंत्र का जप तथा किसी भी देवता की पूजा की जा सकती है। यह श्री यंत्र जातक को अपार लाभ देता है, जो देखा तो नहीं जा सकता, परंतु अनुभव अवश्य किया जा सकता है। सावधानी एवं रखरखाव: इस श्री यंत्र को ऐसी जगह स्थापित करना चाहिए, जहां वातावरण शुद्ध एवं सात्विक हो। साथ ही यह गिर कर टूट न जाए, इसका भी ध्यान रखना चाहिए। किसी विशेष परेशानी एवं पीड़ा के समय इसका बार-बार स्पर्श एवं नमन करना चाहिए। इसकी पूजा अर्चना श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करनी चाहिए। यदि यह गिर कर टूट जाए, तो श्री सूक्त का 16 पाठ कर के, इसे विसर्जित कर चाहिए। विसर्जित करने के पश्चात पुनः दूसरे श्री यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। यदि किसी के पास और भी श्री यंत्र हों, तो भी इसे स्थापित किया जा सकता है। इसके उपयोग से एक ओर अनेक लाभ होते हैं तथा दूसरी ओर यह हानि से बचाता है। अतः इस श्री यंत्र का उपयोग कोई भी जातक कर सकता है। इसके उपयोग से किसी भी प्रकार की हानि अथवा अनिष्ट की संभावना समाप्त हो जाती है।