कुछ सरल व महत्वपूर्ण मुहूर्त प्रेम प्रकाश विद्रोही सुखमय और सफल जीवन हर व्यक्ति की कामना होती है। यही कारण है कि लोग उपनयन, विवाह, गृहारंभ, गृह प्रवेश आदि तथा अन्य शुभ कार्यों का आरंभ मुहूर्त निकलवार कर करते हैं। मुहूर्त क्या है? चैबीस घंटों या साठ घटियों का एक दिन और रात होती है। विद्वानों ने 48 मिनटों या घड़ियों का एक मुहूर्त माना है। महर्षियों ने काल के मुख्य अंक 5 माने हैं। वर्ष, मासो दिनं लग्न मुहूर्Ÿाश्चेति पंचकम्। कालस्या गानि मुख्यानि प्रबलान्युŸारोŸारम्।। लग्नं दिन भवं हंति मुहूर्Ÿाः सर्वदूषणम्। तस्मात् शुद्धि मुहूर्Ÿास्य सर्वकार्येषु शस्यते।। वर्ष, मास, दिन, लग्न मुहूर्त ये उŸाम बली हैं। आभिजिन्मुहूर्त को विजय मुहूर्त भी कहा जाता है। नारद पुराण में कहा गया है कि स्थानिक समय के अनुसार दोपहर के 11 घंटे 36 मिन से 12 घंटे 25 मिनट के मध्य यह मुहूर्त होता है। सूर्योदय के बाद चैथे लग्न को विजय या आभिजन्म लग्न माना जाता है। इस मुहूर्त में किया गया हर कार्य सफल हाते ा ह।ै ‘‘दिन मध्यगते सूर्यमुहूर्Ÿोत्यभिजित्प्रभुः। चक्रमादायगोविंद सर्वदोषान्निकन्तात।। (ज्योतिषसार संग्रह) शुभ चैघड़िया मुहूर्त यह आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन शुभ मुहूर्त मिलें ही। इसीलिए व्यापारीगण चैघड़िया मुहूर्तों का प्रयोग कर लाभ उठाते हैं। लाभ, अमृत, शुभ व चंद्र चैघड़िया शुभ माने जाते हैं। होरा मुहूर्त ‘‘कालहोरेतो विख्यात, सौम्ये सौभाग्य फल प्रदा। सूर्य शुक्र बुधाश्चन्द्रोमन्दजीव कुजाः क्रमात। यो वारो यत्र दिवसे तवाहि गणे यत्क्रमात। शुभ ग्रहस्थ सुखदो मुहूर्Ÿाोनिष्ट दुःखदः। गुरु विवाहे लाभेन शुक्रोबौधे सौम्यः सर्व कार्ये चंद्रः। कुजे युद्धं राजसेवारवौच मंदे विŸाचोति होरा क्रमाद्धै। यस्य ग्रहस्थ वारेषु कर्म कितत्प्रकीर्तिम्। तस्य ग्रहस्थ हो रायां सर्व कर्म विधीयते।। अर्थात आवश्यकतानुसार होरा मुहूर्त पूर्ण शुभ फलदाता हैं। सात वारों के सात होरा होते हैं, जो 24 घंटों में घूमकर कार्यों में सफलता प्रदान करते हैं। प्रत्येक होरा एक घंटे का होता है। अपनी राशि के स्वामी ग्रह के शत्रु ग्रहों के होरा में यात्रा, विवाह, युद्ध व मुकदमे का त्याग करना चाहिए। राहुकाल कार्य की सफलता हेतु राहु काल का त्याग करना चाहिए। दक्षिण भारत में इसकी विशेष मान्यता है। शुभ मुहूर्त से लाभ: शुभ मुहूर्त में कार्यारंभ करने से सफलता सुगमता से प्राप्त होती है। कुयोग में यदि शुभ योग आ जाएं तो वे अशुभ योगों का फल क्षीण कर देते हैं। कुछ मुहूर्त स्वयंसिद्ध या अबूझ होते हैं। इनमें काम करने पर चंद्र, देवशयन, दुष्ट या क्षय तिथि का विचार नहीं किया जाता है। ग्रामीण लोग इन्हें अनपूछ मुहूर्त मानकर शुभ काम करते हैं। अक्षय तृतीया, नवीन संवत्, फुलेरादोज, भड्डलनी नवमी, शीतला षष्ठी, वैशाखी (पंजाबी) आदि ऐसे ही मुहूर्त हैं। मुहूर्Ÿा गणपति, ज्योतिः प्रकाश, ज्योतिर्विदाभरण व मुहूर्Ÿा चिंतामणि आदि ग्रंथों में मुहूर्तों का विशद उल्लेख है।