भारतवर्ष के सनातन देवी-देवताओं में विघ्नहर्ता मंगलदाता गणेश को प्रथम पूजनीय देव के रूप में स्वीकार किया गया है। प्रायः प्रत्येक धर्मग्रन्थों, पुरा-साहित्यों व काव्य कृतियों में इनका प्रारम्भिक गुणगान समाज में गणेश की प्रतिष्ठा प्रभविष्णु को रेखांकित करता है। गणेश की धारणा शिव शक्ति पुत्र के रूप में की जाती है अर्थात् इन्हें परम तत्व के निरपेक्ष एवं गत्यात्मक दोनों रूप में समझा जाता है। धर्मशास्त्रों में वर्णित भगवान् जिन अनन्त नित्य चिन्मय पंच रूपों में (पंच देवता) हमारे सामाजिक संस्कारों में प्रमुखता के साथ पूजित होते हैं उनमें श्री गणेश जी की महिमा जगत् प्रसिद्ध है। पूजन-दर्शन, भजन-अर्चन व जप-तप के अलावा श्री गणपति की सान्निध्य संतति का एक कर्म श्री गणेश सहस्त्र नाम का श्रवण व वाचन भी है जिनके सभी हजार नाम श्री गणेश जी की लीला व रूप स्वरूप का स्पष्ट व्याख्यान करते हैं। ज्ञातव्य है कि श्री गणेश सहस्त्रनाम के 11 नाम श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान की प्रख्यात नगरी गया से पूर्णतया सम्बद्ध हैं इसी कारण गया तीर्थ को श्री गणेश की आदि भूमि कहा गया है। श्रीगणेश सहस्त्रनाम के जो 11 नाम गया से सम्बन्धित हैं उनका क्रमानुसार उल्लेख निम्न प्रकार है: 687- ऊँ गयासुर शिरच्छेत्रे नमः 688- ऊँ गयासुर वरप्रदाय नमः 689- ऊँ गया वासाय् नमः 690- ऊँ गयासुर नामाम् नमः 691- ऊँ गयावासिन नमस्तकृताय नमः 692 ऊँ- गया तीर्थ फलाध्यक्षाय नमः 693 ऊँ- गया यात्रा फल प्रदाय् नमः 694 ऊँ- गया मयाय् नमः 695 ऊँ- गया क्षेत्राय् नमः 696 ऊँ- गयाक्षेत्र निवासकृते नमः 697 ऊँ- गयावासी स्तुताय नमः श्री गणेश सहस्त्रनाम में वर्णित गया तीर्थ से जुड़े इन 11 नामों के अध्ययन अनुशीलन से स्पष्ट होता है कि युगों-युगों से आबाद रहे गया तीर्थ का श्री गणपति से अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। सम्पूर्ण भारतीय तीर्थों में गया को पितृतीर्थ कहा गया है और नीति शास्त्र के वाक्यानुरूप ‘सायं माता पिता ज्ञानं’ पिता के ज्ञान के स्वरूप माने गये हैं। अतः बुद्धि ज्ञान के देवता गणेश गया के आदि देव के रूप में आदि अनादि काल से पूजित हैं। मंदिरों की नगरी गया में श्री गणेश के ऐसे कितने ही प्राच्य स्थान हैं जिनका गया अथवा बिहार में ही नहीं बाहर में भी सुनाम है। गया के त्रिपर्वतों में एक श्री रामशिला पर्वत के पादखंड में रामकुण्ड के ठीक सामने विराजमान रामशिला ठाकुरबाड़ी मंदिर में मंूगा के गणेश जी की अनूठी प्रतिमा है जिसका उल्लेख कितने ही कृतियों में हुआ है। इसके अलावा मंगलेश्वर गणेश, पंच गणेश, गौरी-गणेश, एकलिंगी-गणेश, तांत्रिक गणेश, सिद्धि विनायक, कोटिश्वर-गणेश, वागेश्वरी के गणेश, भैरोस्थान के गणेश, श्री संतान गणपति, बाल गणपति, सूर्यकुण्ड के गणेश, ब्राह्मणी घाट के गणेश, मनोकामना मंदिर के गणेश, गोदावरी काशी खण्ड के गणेश आदि गया के प्राचीन गणपति पूजन स्थल हैं। इस सन्दर्भ में मगध सांस्कृतिक केन्द्र सह गया संग्रहालय में प्रदर्शित शिलास्तम्भ के गणेश का वर्णन आवश्यक हो जाता है जिसकी संप्राप्ति 40 के दशक में चैक क्षेत्र से हुई थी। इतिहास गवाह है कि युगपिता ब्रह्मा ने जब सृष्टि के सफल संचालनार्थ गयासुर के पवित्रतम् शरीर पर यज्ञ किया उसकी शुरुआत गणपति ने अपने एकादश रूपों के साथ की हो इसी कारण विद्वानों का वर्ग 11 नामों की इन्हीं 11 रूपों का स्पष्ट दर्शन स्वीकारते हैं। विवरण मिलता है कि गणपति की आदि भुमि इस कलियुग मे रत्नसारपुर है जिसके पैतृक रत्न में गया का प्रमुख स्थान है अतः गया का सम्बन्ध गणेश से स्वतः सिद्ध हो जाता है। गयागजो गयादित्यों गायत्री च गदाधरः । गया गयाशिरश्चेव षट् गया मुक्तिदायिका।। (वायु. 112/60) अर्थात गया के छः मुक्ति दायक तत्वों में गयागज प्रथम स्थान पर आसीन है जिसका सम्बन्ध गणपति से जोड़ा जाता है। गया में अवस्थित विश्व प्रसिद्ध पालन पीठ माता मंगला गौरी के दिव्य मंत्र ‘ऊँ मां ऊँ’ में प्रथम ऊँ का आशय गणपति से ही है। यही कारण है कि यहां ऊँकार स्वरूप गणेश विद्यमान हैं। आज भी गया तीर्थ का प्रधान कर्म कृत्य श्राद्ध पिण्डदान में भी गणपति के प्रथम पूजन का विधान है और तो और गया तीर्थ के मूल विप्र गयापाल भी गणपति के प्राच्य उपासकों में एक हैं। गया तीर्थ के चातुर्दिक विराजमान धार्मिक, ऐतिहासिक व पुरातत्व स्थलों कौआडोल पर्वत पर गणेश का अंकन में भी गणेश के उत्कृष्ट व दुर्लभ मूत्र्त शिल्प के दर्शन होते हैं। इन स्थलों में काँवर, काली कंकाली, अगन्धा, मोंक, दुब्बा, रौना, देवकली, धुरियाँवा, कनौसी, गुनेरी, डबूर, कुर्किहार, मकपा, नेऊरी, वाटी, पलुहड़, उतरेण पाली राजन, कोंची, सालेरा, मेन, विशुनपुर, डेमा व गुलरिया चक का नाम लिया जा सकता है। सचमुच गया की भूमि ज्ञान की भूमि है, बुद्धि की भूमि है, सिद्धि की भूमि है जिसकी धर्मानुरूप परम्परा अति प्राच्य काल से दृष्टिगत् है। अतः ऋद्धि-सिद्धि के दाता गणेश से गया का नाम स्वतः जुड़ जाता है। अस्तु! ऊपर वर्णित तथ्य स्पष्ट करते हैं कि गया गौरी के लाल, शिवनन्दन स्वामी गणेश से अभिन्न रूप से जुड़ा है जो पितृ श्राद्ध के लिए दूर देश तक प्रसिद्ध है और इस बार यहां पितृ पक्ष मेले की शुरूआत विश्वकर्मा पूजा के दिन से अर्थात् 17 सितम्बर से हो रही है।