बृहस्पति
बृहस्पति

बृहस्पति  

व्यूस : 8386 | सितम्बर 2013
बृहस्पति, ऋषि अंगीरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित थे। सभी प्रकार की कठिनाइयों के रहते हुए भी वे देवताओं के लिए सभी धार्मिक व पवित्र कर्मकांड, यज्ञादि कुशलतापूर्वक करने में सक्षम थे। दैत्य, देवताओं को कष्ट देना चाहते थे। उनके यज्ञादि में बाधा डालकर उन्हें निराधार करना चाहते थे, इन परिस्थितियों में बृहस्पति अपने शक्तिशाली मंत्रों के द्वारा दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते थे। दैत्य उनके भय से देवताओं के निकट आने का प्रयास नहीं कर पाते थे। बृहस्पति ने असाध्य आराधना द्वारा भगवान शंकर को प्रसन्न किया। भगवान शंकर ने प्रसन्न हो उन्हें देवगुरु का पद तथा ग्रह का स्थान प्रदान किया। बृहस्पति के जन्म की कथा बहुत ही सरल और स्पष्ट है। इसमें कुछ भी नाटकीय और उत्तेजक नहीं है जो बृहस्पति की उपलब्धियों को रेखांकित करे। बृहस्पति एक ऐसा व्यक्तित्व है जो अपनी पूर्ण क्षमता से ध्यान, निरीक्षण द्वारा संसार को समझना चाहते हैं, वह इसके लिए किसी दूसरे पर निर्भर न रहकर अपने स्वयं के अनुभव से ही यह सब जानने को आतुर रहते हैं। वह अथक प्रयास द्वारा सभी स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करने को प्रयासरत हैं। यदि उस ज्ञान का वास्तव में कोई महत्व है तो वह कहीं भी और किसी से भी ज्ञान प्राप्ति में नहीं हिचकते। बृहस्पति का तो समस्त व्यक्तित्व ही विभिन्न मार्ग से ज्ञान प्राप्त करने तथा सभी ऋषियों को पूर्णता के साथ पूरी गहराई तक समझने पर ही निर्भर है। यह एक बहुत ही लंबा और जटिल मार्ग है तथा इसमें बहुत बार गहरे अंधकार से होकर गुजरना पड़ता है, जहां दूर-दूर तक भविष्य में भी कोई प्रकाश की किरण दृष्टिगोचर नहीं होती। विकास का क्रम मुख्यतः दो सिद्धांतों पर निर्भर करता है। यदि किसी को हर प्रकार की कठिनाई के रहते हुए भी पहाड़ की चोटी पर चढ़ाई करनी है अथवा धारा के विपरीत जाकर नदी के उद्गम तक के मार्ग को खोजना है और वह अपनी पूर्ण क्षमता और साहस के साथ उस कार्य में लग जाता है जिससे मार्ग में पड़ने वाली प्रत्येक कठिनाई उसके व्यक्तित्व को नये आयाम प्रदान करती है तथा लक्ष्य की प्राप्ति उसके व्यक्तित्व में लक्ष्यसिद्धि का आयाम जोड़कर महत्वपूर्ण बना देती है। संस्कृत में बृहस्पति को गुरु भी कहते हैं। ज्ञान का स्रोत भी असीम है तथा उसकी सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। किंतु फिर भी कुछ सरलता के लिए इसे हम दो दिशाओं में विभाजित करते हैं। एक है सांसारिक ज्ञान जिससे न्याय के लिए एक विशेष प्रकार की मानसिक तैयारी की आवश्यकता रहती है तथा दूसरा है आध्यात्मिक अथवा आत्मज्ञान जो अन्य अनुभूति के मार्ग पर चलकर ही पाया जा सकता है। सांसारिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए बृहस्पति ने सभी प्रकार के शास्त्रों और विद्याओं का गहन अध्ययन किया तथा आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए अपने भीतर की ज्ञान यात्रा कर परम सत्य का ज्ञान अर्जित किया। शिष्य तो सदा ही अपनी सभी जिज्ञासाओं के लिए गुरु की ओर देखते हैं तथा उसमें अपनी सभी जिज्ञासाओं और समस्याओं का उत्तर व मार्गदर्शन चाहते हैं, फिर देवताओं के गुरु हैं जो स्वयं ही ज्ञान के पुंज हैं। ज्ञानी जनों की जिज्ञासाओं को सहज ही शांत नहीं किया जा सकता, वह तो सदा ही उचित मार्गदर्शन की खोज में रहते हैं, अतः बृहस्पति का कार्य सरल नहीं है। उन्हें सर्वोच्च गुरु होने के लिए ज्ञान के क्षेत्र में सदा अग्रसर रहना पड़ता है तथा सभी प्रकार के ज्ञान के संग्रह में सदा संलग्न रहना होता है। जन्मकंुडली के विभिन्न भावों में बृहस्पति का प्रभावः प्रथम भाव यदि प्रथम भाव में बृहस्पति हो तो जातक को दीर्घायु प्रदान करता है। वह धनी, न्यायप्रिय, शांत, शांतिप्रिय तथा शासन द्वारा सुविधा पाने वाला होता है। यदि बृहस्पति बाधित अथवा नीच राशि में हो तो जातक शारीरिक रोग वाला तथा अधिक भोजन करने की आदत के कारण मोटा होना, जुए का शौकीन तथा कामुक आनंद में रुचि रखने वाला होता है। वहीं उच्च का बृहस्पति व्यक्ति को विद्व ान, परिवार में उन्नति करने वाला, लोभ रहित, उदारमना, धार्मिक तथा समाज में सम्मानपूर्वक स्थान पाने वाला होता है। आत्मविश्वासी, धैर्यवान तथा जीवन के आठवें वर्ष में सम्मान अथवा प्रोत्साहन पाने वाला होता है। द्वितीय भाव द्वितीय भाव का बृहस्पति व्यक्ति को संपत्तिवान, स्वादिष्ट व्यंजनों का प्रेमी, कुशल वक्ता, अधिकार में आनंद लेने वाला तथा सौभाग्यशाली बनाता है। प्रसन्नचित्त, पारिवारिक सुखों का भागी, जीवन के अधिकारिक पद पाने वाला तथा निजी प्रयास द्वारा अच्छा धन कमाने वाला होता है। परंतु यदि बृहस्पति बाधित हो तो ऋणी तथा जीवन साथी से सुख न पाने वाला होता है। आयु का 27वां वर्ष जीवन में विशेष महत्व रखता है। तृतीय भाव बृहस्पति के तृतीय भाव में होने पर व्यक्ति साहसी, जीवन साथी के प्रभाव में, पड़ोस से मधुर संबंध तथा अनेक मित्रों वाला होता है। अध् िाक परिश्रम के बिना भी जीवन में सौभाग्य का भागी होता है। शास्त्रों में रुचि रखने वाला तथा विभिन्न तीर्थयात्राओं पर जाने वाला होता है। बाधित बृहस्पति भाई-बहनों से सुख में कमी तथा जीवन में विभिन्न बाधाओं का कारक होता है। आयु के 20वें वर्ष का जीवन में विशेष महत्व होता है। चतुर्थ भाव यदि बृहस्पति जातक की कुण्डली में चतुर्थ भाव में हो तो वह प्रख्यात, भाग्यवान, सम्मानित, शांतिप्रिय तथा युद्ध और विवाद में विजयी होता है। वृद्धावस्था वैभवपूर्ण, बहुत संपदा बनाने वाला परदेश में भाग्योदय तथा अतिधार्मिक होता है किंतु बृहस्पति के बाधित होने पर मातृ पक्ष द्वारा समस्याओं का भागी तथा मानसिक शांति से दूर रहता है। यदि बृहस्पति उच्च का हो तो बहुत धन संपत्ति वाला तथा पिता से अधिक प्रसिद्ध होता है। आयु का 22वां वर्ष जीवन में परिवर्तनकारी होता है। पंचम भाव पंचम भाव में बृहस्पति जातक को आज्ञाकारी संतान, बुद्धिमत्ता, सौभाग्य तथा वैभवपूर्ण जीवन प्रदान करता है। बाधित बृहस्पति संतान के विषय में चिंता, रहस्यवाद में रुचि, सट्टेबाज तथा जीवन में अपने भाग को न पाने वाला बनाता है। वहीं नीच का बृहस्पति व्यक्ति को नास्तिक भी बना सकता है। उसकी माता की आयु को पांचवें व सातवें वर्ष में कष्ट का भागी बनाता है। षष्टम् भाव षष्टम् भाव में बृहस्पति जातक को विरोधियों पर विजयी, कामुक, आलसी तथा मोटापे की ओर अग्रसर बनाता है। वह अपरिचित नगरों और देशों में घूमता है। सामान्यतः अच्छा स्वास्थ्य का लाभ उठाने वाला तथा निजी प्रयास से धनार्जन करने वाला होता है किंतु भाग्य नौकरी में ही चमकता है। जीवन में वाहन सुख, लाटरी व सट्टे में रुचि रखता है। माता से पूर्ण सुख का लाभ नहीं मिलता। शिक्षा में बाधा तथा जीवन साथी के कारण अपनों से दूर रहता है। आयु के 40वें वर्ष में विरोधियों का सामना तथा धन की हानि की संभावना रहती है। सप्तम भाव सप्तम् भाव में बृहस्पति जातक को बुद्धिमान और समझदार जीवन साथी प्रदान करता है। पिता व गुरु से नहीं बन पाती। वह अच्छे स्वभाव का तथा ज्ञानी जनों से नित संबंध रखने वाला होता है। सुंदर स्थान में रहने वाला, अपने बड़ों के हित में लगने वाला तथा विवाह के बाद भाग्योदय होता है। न्यायिक सेवा में वह बहुत ख्याति प्राप्त करता है। पिता से सदा बेहतर करता है। शासन से समर्थन प्राप्त करता है। जीवन में सुंदर वस्तु तथा तीर्थयात्रा में रुचि लेने वाला होता है। सामान्यतः उच्च का बृहस्पति, जल्दी विवाह तथा उसके बाद भाग्योदय का कारक होता है। अष्टम भाव अष्टम् भाव में बृहस्पति गुप्त विद्याओं के ज्ञान तथा ध्यान उपासना के लिए उत्तम होता है। जातक अपच का रोगी तथा विभिन्न व्याधियों से पीड़ित हो सकता है। आर्थिक स्थिति से असंतोष, विनम्र, आलसी, दुखी तथा संयमी और उदासीन लोगों की संगत करने वाला होता है। यदि बृहस्पति उच्च का हो तो पैतृक धन तथा अप्रत्याशित रूप से लाभ होने को नकारा नहीं जा सकता। किंत नीच का बृहस्पति कमजोर स्वास्थ्य प्रदान करता है। जीवन के 21वें वर्ष में वह शारीरिक कष्ट से पीड़ित हो सकता है। नवम भाव नवम् भाव जातक को धार्मिक, विश्वासपात्र तथा ज्ञानी जनों द्वारा सम्मानित करवाता है। वह बुद्धि मान, राष्ट्रवादी, गणित व अध्यात्म में रुचि रखने वाला, तीर्थ भ्रमण का प्रेमी तथा विदेश में वास करने वाला हो सकता है। बृहस्पति के कमजोर होने पर भी बुरे कामों से दूर रहने वाला। जीवन के 16वें से 23वें वर्ष के बीच भाग्योदय होता है। वह धार्मिक, ज्योतिष में रुचि रखने वाला, विश्वसनीय, अपने धर्म के प्रति निष्ठावान, कुशल वक्ता तथा वाद-विवाद में सदा विजयी होने वाला होता है। दशम भाव दशम् भाव में बृहस्पति जातक को ज्ञानवान, उदार हृदय, धार्मिक, विद्रोही को जीतने वाला तथा जीवन के लक्ष्य पर ध्यान रखने वाला बनाता है। वह प्रसिद्ध, भाग्यवान, सम्मानित तथा समाज में उच्च स्थान का भागी होता है तथा शासन अथवा धार्मिक संस्थान द्वारा सम्मानित किया जाता है। न्याय के क्षेत्र से जुड़े होने पर प्रसिद्ध न्यायविद् होता है किंतु सदा यात्रा करने वाला तथा पुत्र के कारण दुख का भागी होता है। आयु के 10वें अथवा 29वें वर्ष में भाग्य की विशेष कृपा उसे प्राप्त होती है। एकादश भाव एकादश भाव में बृहस्पति अन्य ग्रहों को जातक के हित में कार्य करने का कारक होता है। वह गुणवान मित्रों और विद्वानों की संगति करने वाला होता है। सभी से आदर पाने वाला, उदार, कलाओं में रुचि रखने वाला, ऐशोआराम का शौकीन तथा सरकार द्वारा सम्मानित किया जाता है। संतान के जन्म के बाद भाग्योदय होता है। अति बुद्धिमान तथा जीवन में बहुत कमाने वाला होता है। वह धार्मिक होता है तथा जीवन का 24वां वर्ष उसके लिए विशेष भाग्यशाली होता है। द्वादश भाव द्वादश भाव में बृहस्पति व्यक्ति को भ्रमित, कम अक्ल, भ्रमणशील, नास्तिक व क्रूर हृदय बना देता है। वह धार्मिक रीतियों पर अपव्यय करता है तथा धन संग्रह नहीं कर पाता। वह महत्वाकांक्षी, प्रदर्शन प्रेमी होता है तथा निकट संबंधियों से उसकी नहीं बन पाती। विवाह भी तनाव और उलझनों का कारण होता है किंतु आयु के 30वें वर्ष में मित्रों की सहायता से भाग्योदय होता है। उच्च का बृहस्पति जातक को आत्मज्ञान के मार्ग पर सहायक होता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.