मानव जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता पं. राजेन्द्र शर्मा ‘राजेश्वर’ काल अर्थात समय का प्रभाव जड़ और चेतन सभी पदार्थों पर पड़ता है। इसलिए हमारे ऋषि-मुनि आचार्यों ने जन्म से अंत्येष्टि तक सभी संस्कारों तथा अन्य मांगलिक कार्यों के लिए मुहूर्त का विधान किया है और उसे आवश्यक बताया है। मुहूर्त को पांचवां वेद और मनुष्य का तीसरा नेत्र कहा गया है। मनुष्य यदि इसका उचित उपयोग करे, तो अपने जीवन को निरापद, भयमुक्त और सुखमय बना सकता है। ब्रह्मांड में फैले सभी ग्रह गतिशील हैं। अपने अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण ये ग्रह कभी एक दूसरे के नजदीक आते हैं तो कभी दूर चले जाते हैं। इसी तरह ये ग्रह पृथ्वी के निकट भी आते हैं और उससे दूर भी चले जाते हैं। जब कोई ग्रह पृथ्वी के निकट आता है, तो उसका पृथ्वीवासियों पर विशेष प्रभाव पड़ता है और जब वह पृथ्वी से दूर चला जाता है, तो प्रभाव क्षीण हो जाता है। तात्पर्य यह कि इनकी गति और शुभाशुभ स्थिति पर ही मानव जीवन निर्भर करता है। इसी आधार पर ज्योतिष और भविष्य शास्त्र का निर्माण हुआ व इसी आधार पर व्यक्ति के भविष्य का आकलन किया जाता है। ग्रहों की स्थिति और ज्योतिष की सम्यक् गणना से किसी व्यक्ति के जीवन में घटने वाली घटनाओं का पता लगाया जा सकता है और उनसे बचने के उपाय बताए जा सकते हैं। एक विशेष क्षण में विशेष ग्रहों की स्थिति और उसके मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को मुहूर्त कहते हैं। यदि उचित और उपयुक्त मुहूर्त में कोई कार्य किया जाए तो उसके परिणाम अनुकूल हो सकते हैं। इससे ग्रहों की कृपा और देवताओं की अनुकूलता भी प्राप्त होती है। इसलिए हमारे शास्त्रों में विवाह, यज्ञोपवीत, यात्रा, व्यापार आरंभ तथा अन्य शुभ कार्यों के लिए मुहूर्त की व्यवस्था की गई है। प्रत्येक कार्य के लिए अलग-अलग ग्रहों के संबंध देखे जाते हैं और उनसे निर्मित क्षणों को मुहूर्त के रूप में स्पष्ट किया जाता है। वराह मिहिर के अनुसार प्रत्येक क्षण (सेकेंड) अपने आप में मूल्यवान होता है और प्रत्येक क्षण का अपने आप में अलग महत्व होता है। यदि इनका उचित उपयोग किया जाए तो वांछित फल की प्राप्ति हो सकती है। प्रश्न पूछा जा सकता है कि क्या आज के युग में भी मुहूर्त विश्लेषण की सार्थकता और आवश्यकता है? इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि युग भले ही बदल गया हो, पर मानव अपने मूल स्वरूप में विद्यमान है। उसका स्वभाव, उसके सुख दुख, जीवन के प्रति उसकी चिंताएं, उसके जीवन के क्रियाकलाप आदि जैसे पहले थे वैसे ही आज भी हैं। इसलिए पूर्व की भांति ही मुहूर्त विश्लेषण की सार्थकता और आवश्यकता आज भी है। यह विज्ञानसम्मत है। इसमें विज्ञान भी बाधक नहीं है, बल्कि वह स्वयं स्वीकार करता है कि प्रत्येक क्षण अपने आप में महत्वपूर्ण होता है और उस क्षण को पहचानना ही जीवन की पूर्णता है। उस क्षण का उपयोग करना ही बुद्धिमानी है। इस तरह मुहूर्त की अपनी वैज्ञानिकता और महत्ता है। भारतीय ज्योतिष में दिशा-शूल, योगिनी, चंद्र आदि का उल्लेख है। इन सारे तथ्यों को ध्यान में रखकर ही शुभ कार्य प्रारंभ करना चाहिए।