अस्पताल हेतु वास्तु के नियम डाॅ. पुनीत शर्मा अक्सर देखने में आता है कि चिकित्सक स्थान के अनुरूप अस्पताल की आंतरिक संयोजन व्यवस्था रखते हैं। किंतु यदि यह संयोजन वास्तु के नियमों और सिद्धांतों को किंचित ध्यान में रखकर किया जाए, तो अस्पताल की प्रगति तो होगी ही, उसमें आने वाले मरीजों का स्वास्थ्य भी शीघ्र अनुकूल होगा। यहां अस्पताल की समुचित प्रगति हेतु 10 अति महत्वपूर्ण वास्तु नियम प्रस्तुत हैं। अस्पताल हेतु 10 वास्तु नियम प्रवेश द्वार: प्रवेश द्वार की भुजा की संपूर्ण लंबाई नाप कर उसके 9 हिस्से कर लें। यदि प्रवेश द्वार पूर्व में बनाना हो, तो ईशान कोण से 2 हिस्से छोड़कर शेष 2 हिस्सों में, दक्षिण दिशा में हो, तो आग्नेय कोण से 2 हिस्से छोड़कर शेष 2 हिस्सों में, पश्चिम दिशा में बनाना हो, तो र्नैत्य कोण से 3 हिस्से छोड़कर शेष 2 हिस्सों में और उत्तर दिशा में बनाना हो, तो वायव्य कोण से 2 हिस्से छोड़कर शेष 3 हिस्सों में बनाएं। इस प्रकार निर्मित प्रवेश द्वार वास्तुसम्मत होता है, जिससे होकर सकारात्मक ऊर्जा गृह में प्रवेश करती है। इससे उन्नति के द्वार शीघ्र खुलते हैं। प्रवेश द्वार के ठीक सामने, अंदर, विघ्न-विनाशक भगवान श्री गणेश जी मूर्ति स्थापित करें। रिसेप्शन: रिसेप्शन का निर्माण दक्षिण दिशा में किया जा सकता है। किंतु ध्यान रहे, रिसेप्शनिस्ट का मुख उत्तर दिशा की ओर हो। स्थान की उपलब्धता के अनुसार रिसेप्शन उत्तर दिशा में भी बना सकते हैं। ऐसी स्थिति में रिसेप्श्निस्ट का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए। रिसेप्शन में काउंटर पर या कोई उपयुक्त स्थान देखकर वहां ‘¬’ लिखवाएं। मरीजों का वेटिंग लाॅज: मरीजों वेटिंग लाॅज उत्तर दिशा तथा वायव्य कोण के समीप बनाया जा सकता है। व्यवस्था कुछ इस प्रकार होना चाहिए कि मरीजों का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रहे। यहां दीवार पर गायत्री मंत्र लिखवाना अत्यंत लाभकारी होता है। वेटिंग लाॅज का रंग सफेद होना चाहिए है। दवाखाना: दवाखाना यथासंभव उत्तर दिशा में होना चाहिए। गोदाम की आवश्यकता हो, तो उसका निर्माण दक्षिण में कर सकते हैं, किंतु ऐसी स्थिति में भी दवाखाना उत्तर दिशा में ही होना चाहिए। डाॅक्टर के बैठने की दिशा डाॅक्टर यदि एक हो, तो उसे दक्षिण दिशा या दक्षिण-पश्चिम में बैठना चाहिए। यदि एक से अधिक हों, तो वरिष्ठता के आधार पर दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण, पश्चिम और अन्य दिशाओं का चयन करें। डाॅक्टर उत्तर की ओर तथा मरीज पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें। विकल्प के रूप में इसके विपरीत डाक्टर पूर्व की ओर मुंह करके तथा मरीज उत्तर की ओर मुंह करके बैठ सकते हैं। डाॅक्टर के कक्ष में भयानक दृश्यों वाले फोटो के स्थान पर मनोहारी सरल चित्र लगाएं। बीम के नीचे न बैठें। कमरे में प्रकाश व हवा का संचार अच्छा होना चाहिए। आॅपरेशन कक्ष: आॅपरेशन कक्ष अस्पताल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कक्ष होता है। अतः इसकास निर्माण प्रयत्नपूर्वक उपयुक्त स्थान पर ही करना चाहिए। आॅपरेशन कक्ष का संयोजन इस प्रकार से हो कि इसमें सभी यंत्र-संयंत्र दक्षिण दिशा में हों, किंतु आटोक्लेव आदि आग्नेय कोण में चाहिए। डाॅक्टर आॅपरेशन करते समय पूर्व या उत्तर की तरफ मुंह करके खड़े हों। यदि डाॅक्टर अधिक हों तो मुख्य डाॅक्टर अनिवार्य रूप से पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करें। सीढ़ियां व रैंप: स्ट्रेचर के लिए रैंप व सीढ़ियों का निर्माण दक्षिण दिशा में करना चाहिए। निर्माण के समय ध्यान रहे कि ये दोनों क्लाॅकवाइज हों। सीढ़ियां विषम संख्या में हों। एक तल से दूसरे तल पर पहुंचने पर सीढ़ी या रैंप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर उन्मुख होकर खुलें। जेनरेटर व विद्युत व्यवस्था जेनरेटर या विद्युत उपकरण सदैव आग्नेय कोण में रखें, जीने के नीचे नहीं। पानी की टंकी के पास भी विद्युत उपकरण नहीं रखने चाहिए। जेनरेटर ईशान कोण में कदापि न रखें। जल व्यवस्था: अस्पताल में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था अत्यधिक आवश्यक होती है। इसके लिए वेटिंग रूम के पास उत्तर की दिशा उपयुक्त होती है। किंतु, ध्यान रहे, यहां जल जमाव या गंदगी न रहे, अन्यथा उन्नति में बाधा आएगी। इस स्थान पर टाॅयलेट का निर्माण भी नहीं करवाना चाहिए। पेयजल हेतु उत्तर दिशा से ईशान कोण तक का भाग भी उत्तम होता है। कूड़ादान: साफ-सफाई में कूड़ेदान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वास्तु के अनुसार कूड़ेदान दक्षिण दिशा में रखने चाहिए। ध्यान रहे, ये ढके रहें तथा सीढ़ियों के नीचे न हों। कूड़ेदान लंबे समय तक भरे नहीं होने चाहिए। इनकी सफाई रोज होनी चाहिए। इस तरह किसी अस्पताल की वांछित उन्नति के लिए उसका निर्माण ऊपर वर्णित नियमों के अनुरूप करना चाहिए।