वास्तुशास्त्र का उद्गम
वास्तुशास्त्र का उद्गम

वास्तुशास्त्र का उद्गम  

व्यूस : 8034 | दिसम्बर 2009
वास्तुशास्त्र का उद्गम मानव शरीर पांच तत्वों से बना है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले इन तत्वों के प्रभाव पर गहन शोध किया और प्रकृति तथा इन तत्वों की लाभप्रद ऊर्जा की प्राप्ति हेतु अनुपम सूत्रों एवं सिद्धांतों की रचना ‘वास्तुशास्त्र’ के रूप में की। परंतु, आस्थावान एवं योग्य शिष्यों के अभाव में, गुरु शिष्य परंपरा द्वारा हस्तांतरित होने वाला यह ज्ञान कालांतर में इतिहास के पन्नों में सिमट गया। सौभाग्यवश पिछले कुछ दशकों पूर्व हमारे देश के कतिपय शोधकर्ताओं ने इन विलुप्त स्मृतियों को खोज निकाला और उनका परीक्षण, प्रयोग एवं विश्लेषण पुनः आरंभ किया। परिणाम अद्भुत और विलक्षण मिले, फलतः जनमानस में इस शास्त्र का आशातीत प्रचार-प्रसार हुआ। यह मानव जाति का सौभाग्य है कि भारत वर्ष के महान महर्षियों एवं विद्वानों द्वारा रचित ये सूत्र एवं सिद्धांत आज पुनः उपलब्ध हैं। किंतु, वहीं यह दुर्भाग्य भी है कि आज भवन निर्माण के क्रम में लोग अक्सर प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करते हैं और फलस्वरूप विभिन्न वास्तु दोषों के शिकार हो जाते हैं। वास्तु दोष क्या है? किसी भी स्थान के आकार, आकृति या आंतरिक सज्जा के वास्तु नियमों के अनुरूप न होने पर, वहां पंचतत्वों की लाभप्रद ब्रह्मांडीय ऊर्जा का असंतुलन या अभाव हो जाता है। यही वास्तु दोष है। साधारण लगने वाला यह असंतुलन मनुष्य के जीवन में उथल पुथल मचा देता है और इसका निवारण न करने पर उसे जीवनपर्यंत कष्टों, बाधाओं एवं व्याधियों का सामना करना पड़ता है। कैसे हो वास्तु दोष का निवारण? किसी भूखंड पर किसी भी तरह का निर्माण करने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि वह वास्तुसम्मत है या नहीं। यदि नहीं हो, तो योग्य वास्तुविद के परामर्श के अनुसार उपयुक्त उपाय अपनाकर उसे वास्तुसम्मत कर लेना चाहिए। क्या उपयुक्त वास्तु भाग्य बदल सकता है? एक प्रश्न अक्सर पूछा जाता है कि क्या वास्तुसम्मत भवन निर्माण से भाग्य को बदला जा सकता है? यह स्वाभाविक भी है। इसके उत्तर में यहां यह स्पष्ट कर देना समीचीन है कि वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप भूमि, भवन एवं वस्तुओं का प्रयोग कर मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा एवं शक्ति को अपने अनुकूल बना सकता है। वास्तुसम्मत निर्माण एवं उसमें परिवर्तन के फलस्वरूप, पंचतत्वा की ऊर्जा का समुचित संचार मनुष्य के मस्तिष्क एवं शरीर में होने लगता है। फलतः उसके निर्णय एवं कर्म भी शुभ और सही होने लगते हैं, जिससे उसके भाग्य के उसके अनुकूल होने की संभावना प्रबल हो जाती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप भवन निर्माण या उसमें परिवर्तन कर भाग्य को बदला जा सकता है। वास्तु दोष निवारण एवं परिणाम साधारणतः लोग वास्तु-दोष सुधार के पश्चात्, तुरंत किसी चमत्कार की अपेक्षा करने लगते हैं, जो उचित नहीं है। किसी स्थान पर वास्तु सुधार के पश्चात्, वहां व्याप्त दीर्घकालीन नकारात्मक ऊर्जा के उन्मूलन में कुछ समय अवश्य लगता है। नकारात्मक ऊर्जा के उन्मूलनके पश्चात ही सुखद परिणाम प्राप्त होने लगते हैं, जो चिरकालिक होते हैं। जहां तक व्यावसायिक एवं आर्थिक कठिनाइयों एवं असफलताओं का प्रश्न है, सुधार के तुरंत बाद स्थिति का खराब होना प्रायः रुक जाता है और सूक्ष्म रूप से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगते हैं। फिर धीरे-धीरे प्रगति एवं सफलता का मार्ग प्रशस्त होने लगता है। परंतु देखा गया है कि स्वास्थ्य, अध्ययन, स्वभाव, अदालती मामलों, वैवाहिक जीवन, पारिवारिक परिस्थिति आदि के सुधार में कुछ अधिक समय लगता है। अक्सर देखने में आता है कि वास्तु विशेषज्ञ एक ही निरीक्षण में संपूर्ण सुधार एक साथ करने का निर्देश देकर चले जाते हैं। ऐसे में दोषों की गंभीरता एवं गृहस्वामी की अनेकशः विवशताओं के कारण, सभी सुझावों का आनन-फानन में कार्यान्वयन संभव नहीं होता। फलतः अधिकांश लोग असमंजस की स्थिति म आवश्यक सुधार भी नहीं करवा पाते और समस्याएं ज्यों की त्यों बनी रह जाती हैं। वस्तुतः किसी भवन, फ्लैट, दुकान, कार्यालय या उद्योग में वास्तु दोषों के निवारण से सकारात्मक ऊर्जा का संचार आसानी से होने लगता है, जिसका सीधा असर वहां के लोगों की मानसिकता पर पड़ता है। इसके फलस्वरूप अन्य दोषों का सुधार भी स्वतः होने लगता है। इस तरह पंचतत्वों की पूर्ण समानुपातिक ऊर्जा के स्थायी प्रवाह के परिणामस्वरूप स्थिति सहज और सुखद हो जाती है। यहां यह स्पष्ट कर देना उचित है कि भूखंड और भवन में व्याप्त वास्तु दोषों का निवारण अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार करना चाहिए। साथ ही किसी विद्वान ज्योतिषी के मार्गदर्शन में शास्त्रोक्त विधि से आस्थापूर्वक ग्रह-शांति का कार्य किसी योग्य व्यक्ति से कराना चाहिए। कुछ अति प्रभावशाली वास्तु टिप्स ईशान दिशा को सदैव शुद्ध, स्वच्छ तथा अन्य दिशाआंे की अपेक्षा नीचा रखें। इस दिशा में लाल या नारंगी रंग का इस्तेमाल न करें। उŸार-पूर्व के दरवाजे और खिड़कियों को प्रातःकाल खोलकर रखें ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा एवं सूर्य की किरणों का प्रवेश हो सके। दक्षिण-पश्चिम की दिशा को सदैव अन्य दिशाओं की अपेक्षा भारी एवं ऊंचा रखें। अपराह्न से सूर्यास्त तक दक्षिण-पश्चिम के दरवाजे और खिड़कियों को बंद रखें अथवा उन्हें परदे से ढक दे। घर या कार्यालय में जंगली पशु-पक्षी, उदास स्त्री, युद्ध एवं समुद्र मंथन के चित्र और शो-पीस कदापि न लगाएं। नदी, पहाड़, झरने आदि के चित्र भी वास्तुसम्मत स्थान पर ही लगाएं अन्यथा वे अनर्थकारी हो सकते हैं। अनावश्यक वस्तुओं एवं उपकरणों का जहां-तहां अंबार न लगाएं। ये सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में गतिरोध उत्पन्न करके कठिनाई एवं बाधा खड़ी करते हैं। वातावरण में व्याप्त शब्द-प्रदूषण को दूर करने हेतु रोज सुबह वैदिक मंत्रों का जप एवं प्रार्थना अवश्य करें अथवा उनका टेप या सीडी सुनें। ईशान में पूजागृह की स्थापना को लेकर भ्रमित न हों। पूजागृह उŸार एवं पूर्व में भी अत्यंत फलदायी होते हैं। फर्श और सीढ़ियों पर लक्ष्मी जी के चरण, स्वास्तिक तथा ¬ के स्टीकर कदापि न लगाएं। बंद घड़ियां कदापि न रखें, इनका रुका हुआ समय सौभाग्यवृद्धि में रुकावट पैदा करता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.