अपनी प्रापर्टी का आप स्वयं बनें वास्तुकार
अपनी प्रापर्टी का आप स्वयं बनें वास्तुकार

अपनी प्रापर्टी का आप स्वयं बनें वास्तुकार  

व्यूस : 9234 | दिसम्बर 2009
अपनी प्राॅपर्टी के आप स्वयं बनें वास्तुकार विनय गर्ग आप अपनी जमीन-जायदाद, प्राॅपर्टी व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के वास्तुकार स्वयं बन सकते हैं। यदि आप कुछ मूलभूत तथ्यों को ध्यान में रखें और कुछ मूलभूत सिद्धांतों को जान लें, तो आप स्वयं वास्तुकार बनकर निरीक्षण व उपाय कर सकेंगे। जब भी कोई वास्तुकार किसी जगह वास्तु के लिए जाता ह,ै तो उसे निम्न परिस्थितियों में वास्तु निरीक्षण करना होता है। सर्वप्रथम व्यक्ति जिस घर में रह रहा होता है, उसका वास्तु परीक्षण करके वहां की स्थितियों और परिस्थितियों के दोष या लाभ का आकलन करते हुए वास्तु दोषों का निराकरण व प्रभावों का वर्णन करना होता है। इनमें से कुछ दोष ऐसे होते हैं, जिनका हम तोड़-फोड़ किए बिना काफी हद तक उपाय कर सकते हैं, किंतु कुछ दोष ऐसे होते हैं, जिनका सुधार तोड़-फोड़ के बिना संभव नहीं होता है। ठीक उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति को जुकाम-खांसी हो, तो दवाई देकर ठीक किया जा सकता है, परंतु यदि उसका कोई अंग सड़ कर बेकार हो जाए, तो उसे दवाइयों के द्वारा ठीक कर पाना संभव नहीं होता और यदि उस अंग को काटकर निकाल न दिया जाए, तो वह शरीर के बाकी अंगों को भी हानि पहुंचाकर व्यक्ति को मृत्यु के दरवाजे तक पहुंचा सकता है। ऐसी स्थिति में उस अंग को शरीर से अलग निकालने में ही भलाई होती है। इसी प्रकार वास्तु दोष का कभी-कभी तोड़-फोड़ किए बिना उपाय नहीं किया जा सकता है। दूसरी स्थिति होती है कि व्यक्ति कोई नया मकान खरीदना चाहता है, तो उसके मकान खरीदने के कई विकल्प होते हैं। तब वास्तुकार को वास्तु नियमों को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम मकान का चयन करना होता है। ऐसी स्थिति में वास्तु का तुलनात्मक अध्ययन करना पड़ता है। इसके लिए वास्तु निरीक्षण तुलनात्मक अधिक गंभीर हो जाता है तथा वास्तुकार को निर्णय बहुत ही समझ बूझ से लेना पड़ता है। तीसरी स्थिति में व्यक्ति नई जमीन खरीदना चाहता है, जिस पर उसे मकान बनाना होता है। उसका विश्लेषण करने के लिए तथ्य निम्न हो जाते हैं। इसमें वास्तुकार को सर्वप्रथम भूखंड की दिशा देखनी होती है। इसके पश्चात वहां की मिट्टी की गुणवत्ता की जांच करनी होती है। साथ ही आसपास के मार्गों पर विचार करना होता है तथा देखना होता है कि कहीं किसी मार्ग द्वारा भूखंड का वेध तो नहीं हो रहा है। इसके अतिरिक्त भूखंड की आकृति पर विचार करना होता है कि वह कैसी है? विषम संख्या वाले साइड के प्लाॅट अशुभ और सम संख्या वाले साइड के प्लाॅट शुभ माने जाते हैं। साथ ही प्लाॅट की लंबाई और चैड़ाई का अनुपात भी देखना होता है कि यह समान है या नहीं। इसे 1ः3 से अधिक बिल्कुल नहीं होना चाहिए। यह इसलिए देखना आवश्यक होता है क्योंकि सम संख्या वाली साइड के भूखंडों में बना मकान मजबूती और भार वितरण की दृष्टि से अधिक परिपक्व होता है। यदि हम ध्यान दें तो हम पाएंगे कि संकरे प्लाॅट में कमरों का आपसी संबंध ठीक नहीं हो पाएगा, क्योंकि हो सकता है कि कमरों के मुख्य द्वार की दिशा एक ही हो जाए। ऐसी स्थिति में कमरों में रहने वालों का आपसी मेल नहीं हो पाएगा, आपस में सहयोग की भावना भी कम रहेगी और घर के सदस्य स्वार्थी और अपने तक ही सीमित रह जाएंगे। चैथी स्थिति में वास्तुकार को किसी कमर्शियल प्राॅपर्टी का निरीक्षण करना पड़ सकता है। इस स्थिति में सर्वप्रथम ऐसे वास्तु का मुख्य उद्देश्य उस व्यापार से संबंधित धन कमाना ही होता है तथा कर्मचारियों के बीच सहयोग व सहभागिता की भावना होनी चाहिए। व्यवसाय का उत्पाद ऐसी जगह रखा जाना चाहिए कि जिसमें उसकी बिक्री निरंतर होती रहे अर्थात उसकी बिक्री में किसी प्रकार की रुकावट न आने पाए और ग्राहक की संतुष्टि भी बनी रहे। उत्पाद से संबंधित कच्चे माल के गोदाम सदैव भरे रहें तथा व्यवसाय के स्वामी को आर्थिक/मानसिक शांति और लाभ कमाने की प्रवृत्ति बनी रहे। बने बनाए मकान में, जिसमें व्यक्ति रह रहा हो, यदि उसका वास्तु निरीक्षण करना हो, तो उसके लिए निम्न तथ्यों को ध्यान रखना चाहिए। 1. मुख्य द्वार की दिशा उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में होना चाहिए। 2. यदि उपर्युक्त दिशा में मुख्य द्वार न हो, तो घर के मुखिया की जन्मकुंडली के आधार पर भी घर की मुख्य दिशा के चुनाव हेतु दिशाओं पर भी विचार किया जा सकता है। जैसे अन्य वृष, कन्या, मकर राशि वालों के लिए दक्षिण दिशा के द्वार का तथा मिथुन, तुला, कुंभ राशि वालों के लिए पश्चिम द्वार का चयन भी किया जा सकता है, जबकि ये दिशाएं वास्तु के आधार पर अशुभ मानी जाती हैं। लेकिन मुख्य द्वार का पद निम्न आधार पर किया जाना चाहिए। 3. यदि मुख्य द्वार सही दिशा में नहीं बन पा रहा हो, तो आप घर के अंदर प्रवेश हेतु ऐसे द्वार का प्रयोग कर सकते हैं, जिसकी दिशा वास्तुसम्मत हो। 4. मोटे तौर पर निरीक्षण करें कि ईशान दिशा में भारी भरकम निर्माण न हुआ हो, बल्कि नीचा, हल्का और रोशनी और हवा से भरपूर, बगीचा या कार रखने की जगह के कारण खुला हुआ हो। 5. घर में ऊपरी मंजिल पर जाने की सीढ़ियां उत्तर से दक्षिण की ओर चढ़ते हुए क्रम में पूर्व से पश्चिम की ओर चढ़ते हुए क्रम में हों। सीढ़ियों की पद संख्या विषम हो। 6. घर में एक साथ एक सीध में तीन या तीन से अधिक दरवाजे न हों। अगर हों, तो बीच वाले दरवाजे पर पर्दा डालकर या अधिकतम बंद रखा जाना चाहिए। ऐसा होने से घर की सकारात्मक ऊर्जा को बाहर जाने से तथा नकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने से रोका जा सकता है। 7. घर के बीचोबीच का स्थान ब्रह्मस्थान कहलाता है। इसे घर की लंबाई और चैड़ाई के केंद्र देखकर जाना जा सकता है। यह घर के अन्य भागों से नीचा नहीं होना चाहिए, न ही यहां पर कोई खंभा या दीवार होनी चाहिए। जहां तक संभव हो भाररहित होना चाहिए। 8. घर का मास्टर बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। यदि घर के इस भाग में घर का मुखिया नहीं सोएगा, तो इस भाग में रहने वाला व्यक्ति घर में शासन करता होगा। 9. उत्तर पश्चिम में कोई महत्वपूर्ण वस्तु नहीं रखी जानी चाहिए। जो भी कीमती वस्तु या महत्वपूर्ण व्यक्ति इस दिशा में रहेगा वह जल्द ही बीमार हो जाएगा या वस्तु है तो वह अक्सर खराब पड़ी रहेगी। अतः प्रयास करें कि ऐसी जगह पर स्नानागार या शौचालय रहे। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा तुरंत घर से बाहर निकल जाएगी। क्योंकि इस दिशा का दूसरा नाम वायव्य कोण भी है, अतः इस कोण में जो भी वस्तु होगी वह वायु के समान चली जाएगी। 10. रसोईघर या घर का ड्राइंगरूम दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें, क्योंकि यह शुक्र की दिशा है और शुक्र का संबंध कलात्मक व वैभवपूर्ण वस्तु और क्षेत्र से होता है। इस दिशा का दूसरा नाम आग्नेय कोण भी है, अतः रसोईघर में अग्नि का वास होता है। यही कारण है कि इस जगह पर रसोई घर का प्रावधान किया जाता है। 11. दक्षिण-पूर्व दिशा में पृथ्वी तत्व होता है। अतः इस दिशा में स्थायित्व अधिक रहता है तथा घर के मुखिया को स्थिरता व स्थायित्व देने के लिए उसे इस दिशा में रहने की सलाह दी जाती है तथा भारी सामान व निर्माण की सलाह भी इस दिशा में रखने की सलाह भी इसीलिए दी जाती है। 12. उत्तर-पूर्व दिशा को जल तत्व का स्थान माना जाता है। अतः इस स्थान पर स्थायित्व नहीं होता है। इसलिए ऐसी जगह पर भारी निर्माण करने व वस्तुओं को रखने की सलाह नहीं दी जाती है। 13. घर का खजाना, सेफ, आलमारी इत्यादि को घर के उत्तर में रखना चाहिए क्योंकि यह दिशा कुबेर की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में धन रखने से उसकी वृद्धि निरंतर होती रहती है। 14. टी. वी. या मनोरंजन की कोई भी वस्तु र्नैत्य कोण में नहीं रखनी चाहिए अन्यथा घर में रहने वाले व्यक्ति इन चीजों का प्रयोग अधिक करेंगे तथा अन्य महत्वपूर्ण कार्यों से उनका मन हट जाएगा। जैसे घर के बच्चे पढ़ाई में मन न लगाकर अधिकतर टी. वी. ही देखते रहेंगे। 15. बच्चों का कमरा उत्तर दिशा में होना चाहिए क्योंकि उत्तर दिशा में बुध की होती है और बुध का संबंध बुद्धि और विद्या से होता है। अतः यदि बच्चे इस दिशा में रहेंगे तो उनकी बुद्धि और विद्या का विकास निरंतर होता रहेगा। 16. उत्तर-पूर्व दिशा का दूसरा नाम ईशान कोण है। जैसा कि नाम से भी पता चलता है, यह दिशा ईश्वर के लिए अर्थात पूजा स्थल से है। यदि घर में अध्यात्म या ईश्वर का स्थान नहीं होगा, तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का हमेशा अभाव रहेगा, जिससे वहां रहने वालों की सुख-समृद्धि, भाग्य, विकास और सात्विकता में कमी होकर घर में क्लेश का वातावरण व्याप्त रहेगा, प्रत्येक कार्य में बाधाएं आएंगी व दुर्भाग्य का वास होगा। 17. घर में खिड़की और दरवाजे इस प्रकार होने चाहिए कि प्राकृतिक रोशनी व हवा का कभी भी अभाव न रहे। साथ ही अप्राकृतिक रोशनी जैसे बहुत तेज रोशनी घर में नहीं होनी चाहिए क्योंकि घर आराम करने की जगह होती है तथा मानसिक शांति की आवश्यकता रहती है। दूसरी तरफ, रेस्टोरेंट व होटलों आदि में अधिक चकाचैंध, ग्लेमर व क्रियाशीलता की आवश्यकता होती है, अतः इन स्थानों पर तेज रोशनी का होना आवश्यक माना जाता है। 18. जब घर के आसपास बाहर की ओर देखें तो ऐसा कोई बिजली का तार आदि घर के आगे से नहीं गुजरना चाहिए जो घर की ऊर्जा को विचलित करता हो। साथ ही घर के सामने कोई धार्मिक स्थल, अस्पताल या कोई अन्य सार्वजनिक स्थल नहीं होना चाहिए, ताकि घर में रहने वालों की मानसिक शांति व एकाग्रता बनी रहे। यदि ऐसी कोई जगह हो, तो घर के मुख्य द्वार पर पाकुआ दर्पण लगाना चाहिए जिससे वेध करने वाली वस्तुओं से घर को बचाया जा सके। 19. घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने बाहर या अंदर जल, नाली या सीवर का ढक्कन नहीं होना चाहिए। 20. सीढ़ियों के नीचे का स्थान खुला, निर्माण रहित व साफ सुथरा होना चाहिए। 21. सेप्टिक टैंक को नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) से बचाएं तथा वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में बनाएं। 22. ओवर हेड टैंक ईशान कोण में न बनाएं। बोरिंग, कुआं आदि यथासंभव ईशान कोण के नजदीक ही बनाएं। 23. उत्तर दिशा में जल स्रोत आदि के चित्र लगाएं। 24. किसी दिशा विशेष में दोष होने पर उस दिशा में दिग्दोष निवारक यंत्र या उस दिशा से संबंधित ग्रह का यंत्र लगाएं। 25. जल संबंधी दोषों को दूर करने के लिए मत्स्य यंत्र लगाएं। 26. घर में किसी भी प्रकार का ऐसा वास्तु दोष हो, जो किसी उपाय से न सुधारा जा सके या जाने-अनजाने में कोई वास्तु दोष रह गया हो, तो इसके निवारण के लिए पूजा स्थल में वास्तु दोषनाशक यंत्र या 81 देवताओं के चित्रों वाले वास्तु महायंत्र की स्थापना कर नियमित रूप से उसकी धूप, दीप, अगरबत्ती जलाकर पूजा करें। कंपास से कैसे देखें दिशाएं घर में किसी भी स्थान की दिशा देखने के लिए उस प्राॅपर्टी का केंद्र बिंदु खोजें और फ्लोटिंग कंपास लेकर उस पर खड़े हो जाएं तथा जिस स्थान की दिशा ज्ञात करनी हो, उस ओर कंपास करके उसमें दिशा देख सकते हैं। यदि उत्तर दिशा से किसी स्थान का कोण नापना हो, तो साधारण कंपास में लाल सुंई को उत्तर दिशा के ऊपर स्थित कर दें। फिर जिस स्थान की दिशा ज्ञात करनी हो, उसका कोण कंपास में देखें। सोसाइटी फ्लैट में कैसे जानें अपने घर की दिशा का प्रभाव सोसाइटी के मुख्य द्वार का प्रभाव फ्लैट मालिक के लिए नगण्य के समान होता है, क्योंकि उस द्वार का प्रभाव उस सोसाइटी में रहने वाले सभी फ्लैट मालिकों के बीच समान अनुपात में विभाजित हो जाता है। उदाहरण के लिए, किसी सोसाइटी में 100 फ्लैट हों, तो उस सोसाइटी में रहने वाले 100 लोगों पर उस सोसाइटी के मुख्य द्वार का शुभ या अशुभ प्रभाव विभाजित होकर मात्र 1 प्रतिशत ही पड़ेगा। लेकिन फ्लैट के मुख्य द्वार का शुभ या अशुभ प्रभाव उस फ्लैट मालिक पर 100 प्रतिशत पड़ेगा, क्योंकि वह व्यक्ति उस फ्लैट का अकेला मालिक होता है। इसी प्रकार, यदि कोई तीन मंजिल का भवन हो और उसकी अपनी फ्लोर में कोई दोष न हो तथा अन्य फ्लोर में दोष हों, तो उसका प्रभाव मकान मालिक पर नहीं पड़ता है, क्योंकि फ्लैट मालिक मात्र अपनी ही फ्लोर का मालिक होता है। उदाहरण के लिए, किसी प्लाॅट पर तीन फ्लोर बने हों और उस बिल्डिंग में सीढ़ियां उचित दिशा में न बनी हों, तो सबसे ऊपर फ्लोर पर रहने वाले व्यक्ति को सीढ़ियों का दोष नहीं लगेगा। मध्य फ्लोर पर रहने वाले वह भी 50 प्रतिशत ही दोष लगेगा परंतु सबसे नीचे फ्लोर पर रहने वाले को 100 प्रतिशत वास्तु दोष लगेगा। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति के पास दो या दो से अधिक मकान हों तथा किसी भवन विशेष में वास्तु दोष हो, तो उस मकान को किराये पर देकर और स्वयं दोष रहित मकान में रहे तो वह व्यक्ति वास्तु दोष से बच सकता है।



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