मंदिर से उत्पन्न वास्तु दोष: कारण और निवारण हेमंत शर्मा भगवान विश्वकर्मा द्वारा प्रतिपादित वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों को राजा भोज ने अपने श्रेष्ठ विद्वानों की सहायता से प्रजा की सुख-समृद्धि की कामना से ‘समरांगन वास्तु शास्त्र’ के रूप में संगृहीत किया। समरांगन वास्तु शास्त्र में एक सफल व्यक्ति, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर तथा राज्य के समग्र विकास के सूक्ष्मतम वास्तु सिद्धांतों का उल्लेख है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत के अनुसार किसी भवन के आस-पास किसी देवी या देवता का मंदिर शुभ नहीं होता। यहां भवन की किस दिशा में किस देवी या देवता के मंदिर का प्रभाव अशुभ होता है, इसका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है। भवन की किसी भी दिशा में तीन सौ कदम की दूरी पर स्थित शिव मंदिर के प्रभाव अशुभ होते हैं। भवन के बायीं ओर स्थित दुर्गा, गायत्री, लक्ष्मी या किसी अन्य देवी का मंदिर अशुभ होता है। यदि उसमें स्थापित प्रतिमा की दृष्टि भी उक्त भवन पर हो, तो यह एक अत्यंत ही गंभीर वास्तु दोष है। भवन के पृष्ठ भाग में भगवान विष्णु या उनके किसी अवतार का मंदिर होना भी गंभीर वास्तु दोष होता है। रुद्रावतार भगवान हनुमान जी का मंदिर भी शिव मंदिर की तरह वास्तु दोष कारक होता है। भगवान भैरव, नाग देवता, सती माता, शीतला माता आदि के मंदिर यदि भूमि से और गृह स्वामी के कद से कुछ छोटे हों, तो उनका वास्तु दोष नहीं होता। मंदिर के परिसर में स्थित किसी वृक्ष की छाया का भवन पर पड़ना भी एक वास्तु दोष माना जाता है। दुष्प्रभावों से मुक्ति के उपाय घर की जिस दिशा में शिव मंदिर हो, उस दिशा की ओर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। यह प्रतिमा गृहस्वामी के दायें हाथ के अंगूठे के आकार की होनी चाहिए। गणेश की आंखें प्रतिमा पर स्पष्ट रूप से उत्कीर्ण की जानी चाहिए। इस तरह स्थापित गणेश प्रतिमा पर सिंदूर और घी अवश्य लगाना चाहिए। शिव मंदिर यदि सामने हो और उसका मुख्य द्वार घर के ठीक सामने हो, तो घर की मुख्य दहलीज में तांबे का सर्प गाड़ देना चाहिए। यह सर्प सामने मंदिर में स्थित शिवलिंग पर स्थापित सर्प की आकृति जैसा होना चाहिए। भगवान भैरवनाथ का मंदिर यदि ठीक सामने हो तो कुŸो को अपने मुख्य द्वार पर रोज रोटी खिलानी चाहिए। किसी देवी मंदिर के कारण उत्पन्न वास्तु दोष के शमन के लिए उस देवी के अस्त्र के प्रतीक की स्थापना प्रमुख द्वार पर करनी चाहिए। यह प्रतीक बांस, लकड़ी, मिट्टी या चांदी, तांबे अथवा मिश्र धातु का होना चाहिए। इसके अभाव में रंगों से प्रतीक की आकृति बनाई जा सकती है अथवा उसका चित्र लगाया जा सकता है। पत्थर तथा लोहे का बना प्रतीक कदापि नहीं लगाना चाहिए। यदि देवी प्रतिमा अस्त्रहीन हो, तो देवी के वाहन का प्रतीक द्वार पर लगाएं। प्रायः माता सीता, राधा, रुक्मिणी, लक्ष्मी आदि की प्रतिमाएं अस्त्रहीन होती हैं। ऐसी देवियों के साथ उनके स्वामी की प्रतिमा भी अस्त्र विहीन होनी चाहिए। अतः उन्हीं का मुख्य मंदिर मान कर ही उपाय करना चाहिए। भगवती लक्ष्मी का मंदिर हो, तो द्वार पर कमल का चित्र बनाएं या भगवान विष्णु का चित्र लगाकर उन्हें नित्य कमलगट्टे की माला पहनाएं या घर के आंगन में नित्य रंगोली बनाएं। भगवान विष्णु और उनके अवतारों के कारण उत्पन्न वास्तु दोषों के शमन के उपाय इस प्रकार हैं। यदि मंदिर भगवान विष्णु का हो और वास्तु दोष उत्पन्न करने वाला हो, तो भवन के ईशान कोण में चांदी या तांबे के आधार पर दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना कर उसमें नियमित जल भरना व उसका पूजन करना चाहिए। प्रातःकाल शंख में भरे जल के घर में सर्वत्र छींटे करने चाहिए। इस शंख को सदैव जल से भर कर रखना चाहिए। यदि प्रतिमा चतुर्भुज की हो, तो मुख्य द्वार पर गृहस्वामी के अंगूठे के बराबर पीतल की गदा भी लगानी चाहिए। भगवान विष्णु के अवतार राम के मंदिर के कारण उत्पन्न वास्तु दोष के शमन के लिए घर के मुख्य द्वार पर तीर विहीन धनुष का दिव्य चित्र बनाना चाहिए। भगवान कृष्ण का मंदिर हो, तो ऐसी स्थिति में एक गोलाकार चुंबक को सुदर्शन चक्र के रूप में प्रतिष्ठित करके स्थापित करना चाहिए। यदि किसी अन्य अवतार का मंदिर हो, तो मुख्य द्वार पर पंचमुखी हनुमान का चित्र लगाना चाहिए। भवन पर मंदिर के परिसर में स्थित वृक्ष की छाया पड़ने के कारण उत्पन्न वास्तु दोष के निवारण के लिए भवन के दक्षिण-पश्चिम के मध्य स्थित र्नैत्य कोण को सबसे ऊंचा करके उस पर त्रिशूल, लाल झंडा या एकाक्षी श्रीफल स्थापित करना चाहिए। घर के समीप स्थित मंदिर में दर्शन हेतु नियमित रूप से जाना चाहिए। इस हेतु पूजन सामग्री दूध, फल, मिठाई, प्रसाद, फूल आदि घर से ही लेकर जाना चाहिए। ध्यान रहे, चरणामृत, प्रसाद, तुलसी पत्र आदि लिए बगैर मंदिर से वापस नहीं आना चाहिए। मंदिर में देवताओं के दायें हाथ की तरफ ही खड़े होकर दर्शन करें तथा बैठकर ही प्रणाम करें।