प्रश्न: दैनिक, मासिक, वार्षिक तथा आजीवन फलित करने के लिये ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं जैसे- दशा, योग, गोचर, अष्टकवर्ग, के. पी. पद्धति, जैमिनी, वर्षफल, लाल किताब या अन्य किसी पद्धति का प्रयोग किस प्रकार किया जाना चाहिए, उदाहरण सहित विस्तृत विधि का वर्णन करें। आज का दिन ज्योतिष शास्त्र के माध्यम द्वारा कैसा रहेगा यह ज्ञात करने हेतु उस रोज का वर्तमान नक्षत्र देखें। उस नक्षत्र से अपने जन्म नक्षत्र के नाम के आधार पर जो नाम रखा गया है, अब वर्तमान यानि जिस रोज प्रश्न पूछा गया है। उस दिन के नक्षत्र से अपने जन्म नक्षत्र की संख्या अंकों में 4-5-11-12-18-19-25-26 आती हो तो समझ लें कि आज का दिन आपके लिए उत्तम है। उस दिन आपका चित्त प्रसन्न रहेगा। शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक, व्यावसायिक आदि क्षेत्रों में शुभ परिणामदायी तथा यदि आपके वर्तमान नक्षत्र से संख्या 2-3-7-6- 9-10-13-14-16-17-20-21-2 3-24-27 हो तब आपका आधा दिन शुभ तथा आधा दिन अशुभ होगा तथा 1/8 (1-8-15-22 यानी 1-8-15-22 के अंक आ जायें तो जान लेना चाहिए कि आज का पूरा दिन अशुभ रहेगा। दैनिक फलादेश जानने की दूसरी विधि अपने जन्म नक्षत्र से लेकर नौ नक्षत्र तक अलग नक्षत्रों के भाव फल दर्शाए गये हैं। प्रथम नक्षत्र जन्म नक्षत्र हर शुभ कार्यों में त्याज्य बताया गया है। जन्म तिथि, जन्म नक्षत्र, जन्म पक्ष, जन्म माह ऐसे संयोग शुभ कार्यों में लेना त्याज्य है। फिर दूसरे नक्षत्र की श्रेणी संपत, तीसरा नक्षत्र विपत, चैथा नक्षत्र क्षेम, पांचवां प्रत्यारि, छठा नक्षत्र साधक, सातवां वध, आठवां मित्र, नौवां नक्षत्र अतिमित्र माना गया है। फिर दसवां नक्षत्र जन्म नक्षत्र जैसा फल देता है। फिर 11 वां सम्पत 12 विपत, 13 क्षेम, ऐसे नौ-नौ नक्षत्रों की तीन श्रेणी बनती है। और इस नक्षत्र अनुसार उसका नाम ऐसा फल देता है यानी ‘वथो नाम तथो फलम्।’ अब अपने जन्म नक्षत्र से प्रश्न काल की तिथि को जो नक्षत्र हो वह फल उस रोज की यथावत वैसा ही रहेगा। जैसे कि क्षेम नाम की श्रेणी का नक्षत्र है तो उस रोज का फल कुशल क्षेम के साथ पूरा दिन व्यतीत होगा तथा प्रत्यारि नाम का नक्षत्र है तो उस दिन दुश्मनी होगी या दुश्मन से हानि पहुंचेगी। अथवा विपत श्रेणी का नक्षत्र है, तो उस रोज कोई नई या पुरानी विपत्ति आएगी। इस प्रकार फलादेश शास्त्र में बताया गया है। उसके अलावा स्वयं के लिए उस दिन का चंद्र कैसा है। जो 4, 8 या 12 चंद्र हो अथवा घातक वार घातक तिथि, घातक नक्षत्र अथवा घातक योग हो तो भी उस प्रश्न काल का दिन साधारण माना जाता है। उसके उपरांत जो उस दिन कोई शुभ योग आता है तो वह उत्तम फल देगा। शुभ में जैसे कि अपना दैनिक नक्षत्र संपत है, सिद्धि योग आ गया। तब विशेष उत्तम योग बन जाता है। वह दिन अपने लिये ज्यादा शुभकारी माना जाता है। यदि नक्षत्र वध है और पंचांग में उस रोज मृत्यु योग आता हो, अथवा पात या महापात योग, या अन्य अनिष्ट उस रोज के योग हों तो वह दिन अपने लिये हानिकारक है। अनेक आवर्ण आते हैं ताकि उस दिन को कोई भी कार्य सावधानी से करना चाहिये। जो प्रतिदिन का कार्य है, वह ध्यान पूर्वक करें। परंतु कोई नया निर्माण किसी भी क्षेत्र का हो वह उस रोज करना उचित नहीं है। ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के लिये अथवा जन समाज हेतु प्रतिरोज घंटांे तक का शुभ अशुभ समय की जानकारी का काल दर्शन बताया हुआ है। जैसे कि उदाहरण के तौर पर सिद्धकाल होरा तथा रात्रि दिन के चैघड़िये, अभिजित मुहूर्त और वार वेला अनुसार राहुकाल वेला, समय के उपयोगी गुलिक काल वेला, यमघंटक वेला, विषघटी आदि कई नित्य उपयोगी समय के शुभ अशुभ पथ दर्शाये गये हैं। उसके अलावा दैनिक शुभाशुभ प्रतिफल परिज्ञान यंत्र, चंद्रकालानक का भी भाव बताते हैं। मासिक दिनमान का ज्ञान तथा शुभ अशुभ समय के फलादेश का निर्णय लेने के लिये भी शास्त्रों में स्थूल पद्धतियां बतलायी गयी हैं। गणित फलित दोनों मार्गों की जानकारी दी गई है। समय का शुभ-अशुभ फल दर्शाते समय प्रथम जिस ग्रह की दशा चलती हो वह ग्रह वर्तमान में क्रूर ग्रह की दशा है कि पाप ग्रह या सौम्य ग्रह कि दशा है तथा वर्तमान समय के ग्रह की अवस्था कैसी है। वह ग्रह यदि सौम्य ग्रह की दशा है लेकिन वह अस्त या वक्री या गति में शीघ्र गामी, या मंद गति का ग्रह है अथवा गोचर में किस राशि में बैठा है। व्यक्ति की राशि शत्रु भाव का या केंद्र त्रिकोण का है या त्रिक भाव का है। अथवा कोई युति,या दृष्टि है तो कैसी है। उसका यथावत प्रभाव कैसा रहेगा। स्थूल फल में मासफल के लिये मासदशा के द्वारा भी फल दिया जाता है। जातक की राशि से। 20-20 दिन तक सूर्यदशा, फिर तृतीयेश 10-10 चंद्रमा।। चतुर्थे चाष्टमे 8 भौमेः षष्टे वेदो। 4 बुध स्तया।। सप्तमे 10-10 मंदस्य नवमेश 8 बृहस्पतोः। दशमे विंशति 20 राहोः शेष भृगुदशा स्मृता।। इस सूत्र के आधार पर तिथि व तारीख भी दी जाती है। इसका शुभाशुभ फल वर्तमान वर्ष के प्रतिमासिक एवं इष्ट दिन-पंचांग गोचर राशि ग्रह गणना नियमानुसार समझें। क्रमशः प्रवास - सुख - दुख-पीड़ा-धनहानि-शोक इत्यादि 8 फल तथा गोचर ग्रह चलन कलन अनुसार फल करना चाहिए। सूर्य-मंगल-शनि-राहु-केतु आदि का फल अशुभ होता है तथा शुभ ग्रह चंद्र-बुध-गुरु-शुक्र की दशा शुभदायक होती है। उसके अलावा अपनी जन्म राशि लग्न की तरह 12 भावों को मानकर शुभ भाव के स्वामी की दशा में शुभ प्रतिफल तथा अशुभ भाव में अशुभ ग्रहों का फल देता है। उसके उपरांत सूक्ष्म भाव से मासिक फल देखना हो तो जो जन्मपत्रिका के द्वारा अपनी आजीवन गणित बनी हुई हो तो उसमें से वर्तमान वर्ष के भाव फल में मासशुभ करने हेतु जैमिनी मत द्वारा ताजिक विधि से वर्षफल करवाना मासफल के लिये श्रेष्ठ पथ है। उमसें 12 मास शुद्ध गणित ताजिक, नीलकंठी द्वारा करवा कर मासिक फल की सही सनद जानकारी अवगत होती है। मासफल हेतु तथा स्थूल हेतु ज्योतिष मत की काफी विधियां आती हंै। सही (सच) भविष्य अखबार पत्रिका में कहां मिलती है? मूल कारण एक राशि में नौ अक्षर होते हैं। जबकि नक्षत्र आधार पर राशि निर्धारित होती है। प्रायः बहुत कम लोग कुंडली आधार पर नाम अक्षर रखते हैं। दैनिक भविष्य चंद्रमा से की जाती है। जबकि लग्न कुंडली की राशियां 12 होती है। नक्षत्र आधार एवं 12 सुबह। शाम अलग-अलग लग्न बदलते हैं। सूर्य दिन का कारक है। वही चंद्रमा रात्रि बली होता है। अच्छा ज्योतिष लग्न। दैनिक चंद्रमा के आधार भविष्य करता है। वह सत्य बात करने में सफलता प्राप्त करता है। जो ज्योतिष - 5 अंगों आधार पर भविष्यकथन सफल होता है। जो प्रश्न कत्र्ता तथा कुंडली आधार देखता है। परंतु अच्छा ज्योतिष जानकर प्रश्न, समय अंक/वार समझकर सटीक उत्तर देगा। नहीं असफल कहलाता है। कई बार नदी, फूल, देवता का नाम पूछकर भविष्य कथन कहते हैं। अंक आधार पर भी ज्योतिषी भविष्य कथन करने लगे हैं। रमल विद्या, कहीं ताश के पत्ते से भविष्य बताने लगे। मासिक भविष्य सूर्य के आधार पर करते हैं जो कि अलग-अलग लग्न कहते हैं जैमिनी, लाल किताब, के. पी. मत आधार समाचार पत्रिका में छपते हैं जो पत्रिका मासिक भविष्य छापती है। जिसमें कई मतों का प्रयोग करते हैं। ज्यादातर चित्रापक्ष सूर्य को लेते है। जो सूर्य-चंद्र लेकर चलते हैं उसकी भविष्य वाणी सत्य मिलती है। वार्षिक फल में हमें वेद वेदांग पराक्षर ऋषि ज्यादा सहारा लेते हैं। कई लाल किताब, अंक ज्योतिष चित्रापक्ष के. पी. मत, लहरी पक्ष। कई भृगु संहिता से फल कहते बताते हैं। वेद ज्योतिष के नेत्र कहे गए हंै। ‘‘यथा शिखा मयूराणा, नागाणा मणयों यथा। तद्वद वेदांग शास्त्राणां, ज्योतिष मूधति स्थित।। मयूर की सुंदरता सिर है। नागर सिर मणि है। उसी प्रकार वेद-ज्योतिष से मान सम्मान मिलता है। वर्ष कुंडली और जन्मकुंडली के बीच संबंध जरूरी है। दोनों संबंध जरूरी हैै। वर्ष कुंडली सूर्य पर आधारित तैयार करना पड़ता है उसमें जन्मांक कुंडली रखकर सारे भाव रखे जाते हैं। पताकी शुभ/अशुभ दोनों प्रकार के ग्रहों और लग्न के साथ चंद्रमा के वेध को दर्शाता है। मुद्दा दशा- विंशोत्तरी दशा गणना जन्म कुंडली चंद्रमा नक्षत्र राशि के आधार पर की जाती है।