दर्शनीय है बोध गया डॉ. राकेश कुमार सिन्हा 'रवि' भारतवर्ष तीर्थों का देश है। यहां उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक कुल कितने तीर्थ हैं यह एक शोधपूर्ण सवाल है। पर इन भारतीय तीर्थों में कुछ ऐसे तीर्थ हैं जो पूरे संसार में प्रसिद्ध हैं। इन्हीं प्रखयात भारतीय तीर्थों में 'बोधगया' विशेष प्रखयात है। तीर्थनगरी गया से लगभग 12 किमी. दक्षिण तथा बिहार की राजधानी पटना से करीब 115 किमीदूरी पर अवस्थित बोधगया में प्राचीन भारतीय गौरवमयी संस्कृति के न जाने कितने ही अध्याय सुशोभित और पुष्पित-पल्लवित हैं, जिन्हें देखकर यहां आने वाले पर्यटक प्राच्यकालीन सदाबहार शुखबू में खो जाते हैं। यह ज्ञातव्य है कि समुद्र तल से 113 मी. की ऊंचाई पर अवस्थित बोधगया तपोनिष्ठ वैष्णव असुर 'गय' का पाद क्षेत्र है जहां प्रकारान्तर से श्राद्ध पिंडदान के तीन स्थलों की महत्ता बनी है। धर्म-इतिहास के पन्नों पर विश्वविश्रुत बोधगया का प्राचीन नाम उरूबिल्व (उरूबेल) था। उस जमाने में यहां जटिल त्रय कश्यपों में एक उरूबेल कश्यप का आधिपत्य था। प्राचीन काल में यह भूमि एकांतिक साधना का दिव्य स्थल था, जहां की प्रकृति-समृद्धि साधनामय तत्व की श्रीवृद्धि में सदा सहायक बने रहे हैं। कहते हैं ज्ञान प्राप्ति की खोज में दर-दर भटकते सिद्धार्थ की जीवन गति में शृंगार जहां हुआ, वहीं बोधगया है। गया से सन्निकट होने के कारण व तथागत को ज्ञानदीप्ति प्राप्त होने के कारण कालांतर में इस पूरे क्षेत्र को 'बोधिगया', 'बुद्धगया', 'संबोधि' आदि कहा गया है। इसी का मूल नाम बोधगया है जो गया जिले का एक पुराना प्रखंड है। तथागत के आगमन के पूर्व बोधगया क्षेत्र में पांडवों का आगमन हुआ था और यहीं धर्मारण्य क्षेत्र में पांडव बंधुओं ने चातुर्मास यज्ञ संपन्न किये थे। वैसे जातक कथाओं से ज्ञात होता है कि यहीं निरंजना (लीलाजन), मुहाने (महाना) और अदृश्य सरस्वती की संगम भूमि 'धर्मारण्य' में बुद्ध में गंध हस्ती के रूप में जन्म लेकर पुत्र कर्तव्यानुसार अपनी अंधी माता का भरण-पोषण किया था। ऐतिहासिक तथ्य संकेत प्रदान करते हैं कि तथागत के पितामह अयोधन का भी यहां गया श्राद्ध संपादन कर्म में आगमन हुआ था। आज भी बोध गया में वह पुण्यमय बोधितरू (अश्वत्थ वृक्ष) मौजूद है जिसकी छांव तले 89 दिन तक समाधिस्थ रहने के बाद सिद्धार्थ को ज्ञान-ज्योति की संप्राप्ति हुई। यही कारण है कि संपूर्ण धराधाम पर अवस्थित बौद्ध स्थलों में बोध गया का विशेष मान है। ज्ञात होता है कि ज्ञान-प्राप्ति के पूर्व तथागत ने सुजाता नामक कृषक मति कन्या से पायस (खीर) ग्रहण किया था और उनके 89 कौर अर्पण के बाद ही ज्ञान प्राप्ति की ओर प्रभूत हुए। यह स्थान यहां से दो किमी. की दूरी पर आज भी देखा जा सकता है जिसे ''सुजाता गढ'' कहा जाता है। सिद्धार्थ गृह-त्याग के उपरांत राजगृह, जेठियन तपोवन, ब्रह्मयोनि व डुगेश्वरी होते हुए बोध गया आए थे। आज भी इन सभी स्थलों पर तथागत से जुड़े स्मृति-अवशेषों का दर्शन सहज में किया जा सकता है। यह गौरव की बात है कि तथागत की इस ज्ञान-भूमि में संपूर्ण वर्ष देशी-विदेशी यात्रियों का आगमन बना रहता है। पर्यटन मौसम कहने का अर्थ है, अक्तूबर से मार्च तक यहां पर्यटकों के आगमन से मेला लग जाता है। ऐसे बोधगया में वैशाख पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसी दिन तथागत को ज्ञान प्राप्ति हुई। और तो और प्रभु कृपा देखें कि इनका जन्म व निर्वाण भी इसी दिन हुआ। बोध गया कोई बहुत बड़ी जगह नहीं है। इसलिए यहां पर्यटकों को कोई परेशानी नहीं होती। नगर भ्रमण हेतु टमटम, रिक्शा, ऑटो, टैक्सी व छोटी-बड़ी गाड़ियां सहज में मिल जाती हैं। यहां हरेक वर्ग की जेब के लायक खाने और ठहरने की भी अच्छी व्यवस्था है। अब तो बोधगया में पर्यटकों के रात्रि विश्राम को देखते हुए कई ठोस कार्य किए गए हैं जिनमें अंतर्राष्ट्रीय साधना कक्ष, स्वीमिंग पूल, वाटर गेम स्टेशन व ध्यान केंद्र का महत्वपूर्ण स्थान है। बोधगया की वर्तमान प्रसिद्धि वर्ष 1956 की वैशाख पूर्णिमा से बढ़ी है क्योंकि इसी वर्ष तथागत के जन्म की 2500 वी वर्षगांठ के उपलक्ष्य में यहां काफी कुछ शृंगार कराया गया। इसी वर्ष यहां ''पुरातत्व संग्रहालय'' की स्थापना की गई जिसमें तथागत के विशिष्टशैली के विग्रह के साथ-साथ शुंगकालीन वेदी का उत्कृष्ट संग्रह दर्शनीय है। जून 2002 में 'विश्व दाय स्मारक' में नामित होने के उपरांत महाबोधि मंदिर की रौनक भी बढ़ी है। बोध गया में दर्शनीय स्थलों की कोई कमी नहीं। यहां देशी विदेशी स्मारकों को देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। न सिर्फ बोध गया वरन् पूरे विहार के श्रेष्ठ प्राच्य स्मारकों में महाबोधि मंदिर की गणना की जाती है जिसे यत्र-तत्र 'महाबोधि महाबिहार' भी कहा जाता है। इसी मंदिर परिसर में सप्त पवित्र स्थान हैं जिनमें वज्रासन, बोधिवृक्ष, अजपाल निग्रोध, पंच पांडव मंदिर व बोधि स्तंभ के साथ मुचलिंद सरोवर दर्शनीय है। इसके अलावा बोधगया में जापान, चीन, थाईलैंड, कोरिया, भूटान, म्यांमार, तिब्बत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया आदि की कला-शैली में बने बौद्ध पैगोड़ाओ, खुले आकाश के नीचे बनी विशाल बुद्ध मूर्ति, माया सरोवर, जय प्रकाश उद्यान, विशाल घंटा, चलेत बुद्ध मूर्ति, अंतर्राष्ट्रीय विपश्यना केंद्र, पुरास्थल ताराडिह, मगध विश्वविद्यालय आदि का दर्शन लाभ भी पर्यटक अवश्य करते हैं। बोधगया के आसपास के परिभ्रमण स्थलों में मातंगी, सरस्वती, दुर्गेश्वरी, मोचारिम व बोधगया मठ का विशेष स्थान है। कुछ ऐसे भी पर्यटक होते हैं जो बोधगया को केंद्र मानकर राजगृह, गया, पटना, नालन्दा व पावापुरी का दर्शन करने जाते हैं। पर्यटन के दृष्टिकोण से बोधगया की विशेष महत्ता है तभी तो इसे बिहार के सर्वप्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। अस्तु ! चतुष्य प्रधान बौद्ध तीर्थ यथा 'जन्म स्थल लुम्बिनी, 'ज्ञान प्राप्ति स्थल बोधगया', 'प्रथम प्रवचन स्थल सारनाथ' और निर्वाण स्थल कुशीनारा में, बोधगया आदि अनादि काल से समृद्ध रहा है। यही कारण है कि बोधगया को ''बौद्धों का प्राणतीर्थ'' कहा जाता है जिसके दर्शन - नमन की अभिलाषा हरेक के जीवन में सर्वोच्च जीवंत रहती है और जहां तक बिहार भ्रमण का सवाल है। कहा गया है कि बिहार घूमने में अगर बोधगया नहीं गए तो समझें कि आपकी यात्रा पूर्ण नहीं हुई। सचमें बोधगया बुद्धि, ज्ञान और विद्या की भूमि है तभी तो चीनी यात्री हवेनसांग ने इसे 'संसार का नामी क्षेत्र' कहा है।