तंत्र व टोटकों के गुण-विशेष डॉ. टीपू सुलतान ''फैज'' जब व्यक्ति को कोई राह नहीं मिलती और विभिन्न क्षेत्रों के परामर्शदाता पीड़ित की वेदना को कम करते हुए स्वयं फंस जाते हैं। ऐसी कठिन परिस्थितियों में तंत्र एवं टोटकों की प्रक्रिया अपनी सूक्ष्म शक्ति से प्रकृति को अपने अनुकूल ढाल लेती है क्योंकि इन क्रियाओं के गुण-विशेष अपने प्रभाव को सूक्ष्म रूप से प्रकट करते हैं। उच्च से उच्च शिखर से कहे गए हर कथन अर्थात उच्चस्तर से प्रसारित हर बात को बंद आंखों से स्वीकार लेना किसी सकारात्मक सोच का परिचायक नही होता। उसी प्रकार धरातल से जुड़ी हर धारणा या क्रियात्मकता को बग़ैर अनुभव अंधविश्वास की संज्ञा दे देना बहुत बड़ी बुद्धिमानी नही कही जा सकती। अतः प्रकृति की काया में छुपे सूक्ष्म से सूक्ष्म कणों में रहस्यमय विशेषताओं से भरी लोक- धारणाओं या परम्पंरागत प्रवृत्तियों में विद्यमान असंखय ऐसी विद्याएं हैं, जिन्हें विडंबना स्वरूप वैसा मुकाम या प्रचार-प्रसार का वैसा संसाधन न मिल सके जो कि आधुनिकता के मनोविज्ञान से ग्रस्त अर्थात भौतिकतावादी समाज को समझा पाने के लिए पर्याप्त होते। परिणाम स्वरूप लोक-मानस अथवा ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान ऐसी अनेक प्राचीन विद्याएं है जिनमें असाध्य व अनिष्टकारी समस्याओं को बड़ी ही सरलता से व चमत्कारपूर्ण ढंग से निराकरण करने वाली तंत्र व टोटके की विद्या भी शामिल है। ये विद्यायें एक सीमित परिधि में सिमटकर रह गई। वस्तुतः छोटी से छोटी इन वस्तुओं में छुपी सिद्धि व उपयोगिताओं के स्रोतों को यदि केवल अनुभवों की कसौटियों पर ही उतार लिया गया होता तो शायद इस विद्या का आयाम और अध्ि ाक विस्तृत होता। अतः जिस प्रकार विगत कुछ वर्षों में इस परिप्रेक्ष्य से संबंधित विषयों को हमारे ज्योतिर्विदों ने उजागर करने का प्रयास किया है, उस के लिए वे सर्वदा धन्यवाद के पात्र हैं। तंत्र व टोटकों की क्रियात्मकताः- मुखयतः ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक विकसित हुई तंत्र व टोटकों की यह प्रक्रिया, प्रकृति की अनुकूलताओं के आधार पर वस्तु, काल व क्रियाओं को संग्रहीत कर वस्तु-स्थिति के अनुसार अर्थात कार्यों के अनुरूप बड़ी ही सूक्ष्मता से एक ऐसी संतुलित व सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति को संचालित करती है, जो कार्यों की आकांक्षाओं व आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप से सहायक होती हैं। वस्तुतः साधारण तौर पर हर किसी के लिए इस प्रकरण की सारी क्रियात्मकता को समझ पाना इतना आसान नही होता परन्तु स्वंय में यदि ध्यान, योग आदि की अनुभूतियां विद्यमान हों तो इस कार्य की व्यवहारिकता बड़ी ही सरलता से स्पष्ट हो सकती हैं। प्रयोग हेतु आवश्यक निर्देशः- तंत्र, टोटका आदि के प्रयोगों में स्वयं के आचरण अर्थात मन, वचन, पवित्र विचार, श्रद्धा, विवेक आदि गुणों को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। कर्मों को प्रधानता देते हुए इस कार्य को उन लोगों के लिए अधिक विचारण् ाीय कहा गया है, जो सर्वगुणों से सम्पन्न होते हुए भी व दृढ़ प्रयासों के बावजूद भी सौभाग्य के अवसरों से वंचित रह जाते हैं। इस के अतिरिक्त इस प्रकार के किसी भी प्रयोग के क्रम में समय, काल या अनुकूल मुहूर्तों का चयन, विधिवत नियमावली का पालन तथा मन में आध्यात्मिक आस्था का होना अत्यन्त आवश्यक है। स्वार्थ, सीमा से अधिक लाभ, छल, ईर्ष्या व दूसरों के अहित के लिए किए गए इस प्रकार के प्रायोगिक कार्य, आने वाले समय में स्वयं इस कार्य को प्रारूप देने वालों के लिए ही हानिकारक सिद्ध होते हैं। अतः जीवन के भिन्न-भिन्न पहलुओं से संबंधित कुछ कल्याणकारी तंत्र व टोटके प्रस्तुत हैं:- धन समृद्धिः- शनिवार के दिन नींबू को अपने व्यावसायिक स्थल की दीवारों व दरवाजों अर्थात् चारों ओर स्पर्श करा कर चार टुकड़ों में काट लें तथा फिर 'उसे चारों दिशाओं की ओर फेंक दें। व्यावसायिक स्थल की नकारात्मक ऊर्जा शीध्र ही समाप्त हो जाएगी तथा धन-समृद्धि का विकास होने लगेगा। तीन गुरुवार, तीन रोटियों के साथ गुड़ मिलाकर गायं को खिलाएं, ऐसा करना व्यवसायिक उन्नति के लिए अत्यन्त लाभप्रद होगा। धन-कोष में कुबेर यंत्र अथवा श्री यंत्र को प्रतिष्ठापित करें तथा प्रत्येक शुक्रवार को उसे इत्र या सुगंधित वस्तु दिखाएं, धन-कोष कभी खाली नही रहेगा। धन व समृद्धि की वृद्धि हेतु हल्दी की गाँठ व दाल चीनी की छाल को पीले कपड़े में लपेटकर धन-कोष या तिजोरी में रखें। इस कार्य को करने के लिए गुरुवार का दिन अति उत्तम माना गया है। गुरुवार के दिन प्रातः तुलसी के पौधे पर गाय का दूध अर्पित करने से आर्थिक-समृद्धि का क्रम बना रहता है। नौ गुरुवार, उदित सूर्य के समक्ष दरिया की बहती जलधारा में गुड़ प्रवाहित करने से धन के आगमन का क्रम सर्वदा बरकरार रहता है। बुधवार के दिन किसी हिजड़े को भोजन या कुछ समाग्री देकर प्रसन्न करें तथा फिर उससे एक सिक्का प्रसाद स्वरूप मांग कर उस सिक्के को अपने धन-कोष या तिजोरी में रखदें, वह सर्वदा भरा रहेगा। पारिवारिक सुख : घर में ''अपराजिता'' की बेल लगाने से घर परिवार की सुख-समृद्धि का सर्वदा विकास होता रहता है। नित्य सात दिन तक प्रातः पुष्प, कुकुंम व थोड़े अरवा चावल को किसी जल से भरे पात्र में डालकर बरगद के वृ़क्ष पर अर्पित करने से पारिवारिक सुख समृद्धि का क्रम बना रहता है। इस कार्य को प्रारम्भ करने हेतु बुधवार का दिन सबसे अनुकूल माना गया है। जिस घर में अंजीर, जैतून व छुआरे उपलब्ध हों उस घर की सुख-समृद्धि कभी समाप्त नही होती। प्रत्येक शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को पीपल के वृक्ष के समक्ष सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करने से घर में सुख-समृद्धि की निरंतरता बनी रहती है। विवाह सुख :- सात गुरुवार गुड़, थोड़ी हल्दी, दो आटे के पेड़े को भीगी हुई दाल के साथ मिश्रित करके पीली या सफेद गाय को खिलाएं, विवाह कार्य में आ रही बाधाएं शीध्र ही समाप्त होने लगेंगी। यदि कोई अविवाहित व्यक्ति शुक्ल पक्ष के इक्कीस गुरुवार को जल में एक चुटकी हल्दी डालकर स्नान करे तो अवश्य ही उसे वैवाहिक कार्य में सफलता मिलेगी। विवाहित व्यक्ति शुक्रवार के दिन किसी अंधे व्यक्ति को इत्र या सुगंधित वस्तु का दान करें, तो उसे शीध्र ही विवाह-कार्य का सौभाग्य प्राप्त होगा। सात शुक्रवार की रात्रि सौ ग्राम छुआरे व एक खुले ताले को यदि अविवाहित अपने शरीर के ऊपर सात बार घुमा कर किसी चौराहे पर रख आएं तो विवाह की सम्भावनाएं अवश्य ही उत्पन्न होने लगेंगी। दाम्पत्य सुखः- सिद्धि युक्त चन्द्र यंत्र, एक मुट्ठी गेहँू, गुड़ व नमक की एक डली को सफेद कपड़े में बांधकर विवाहित व्यक्ति अपने बेडरूम में स्थापित करें तथा प्रत्येक रवि, सोम, बुध, गुरु व शुक्रवार को उसे लोहबान की धूनी दिखाएं। दाम्पत्य प्रेम में सर्वदा वृद्धि होती रहेगी। ''हर सिंगार'' की बूटी को चाँदी के ताबीज में भरकर विवाहित व्यक्ति अपने गले में धारण करें, तो उनमें आपसी प्रेम सर्वदा बढ़ता रहेगा। संतान सुखः- किसी भी मंगलवार को मृगशिरा नक्षत्र में निःसंतान स्त्री पीली कौड़ी को लाल डोरे में डालकर अपनी कमर में बाधें। संतान प्राप्ति में आ रही बाधांए समाप्त होने लगेंगी। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के दिन ''बरगद वृक्ष'' की जड़ को निःसंतान स्त्री लाल डोरे में डालकर अपनी कमर या बाईं भुजा में बाधें। अवश्य ही संतान का सौभाग्य मिलेगा। रोग निवारणः- पिरामिड के समान निर्मित कक्ष में रोगी को रखकर यदि उसकी चिकित्सा की जाए तो रोगी की सकारात्मक ऊर्जा की शक्ति तथा उस को दी गयी दवाओं की प्रभावकारिता कई गुना बढ़ जाती है तथा रोगी को शीध्र ही स्वास्थ्य-लाभ मिलने लगता है। ''बहेड़े'' की गुठली को सफेद डोरे में डालकर चेचक से पीड़ित रोगी के गले में डाल दें तो इस रोग से उत्पन्न कष्ट शीध्र ही कम होने लगते हैं। हर तरह के इलाज के बाद भी दाद-खाज, फोड़े-फुन्सी आदि जैसे चर्म रोग ठीक नही हो रहें हों तो चिकित्सा के दौरान ही रोगी शनिवार के दिन ''वाकुची'' के इक्कीस बीजों को काले डोरे में डालकर अपने गले में धारण कर लें, शीध्र ही लाभ मिलने लगेगा। दवाओं के बार-बार प्रयोग के बाद भी यदि नींद न आए तो पीड़ित व्यक्ति ''काक जंघा'' की जड़ को काले डोरे में डालकर अपने सिर में बांधें, अवश्य ही नींद आएगी। ऊपरी दोष से रक्षाः- धूप, लोहबान, एक लौंग, लाल चंदन, बसलोचन, कस्तूरी, केसर, समुद्र्र-सोख, जई, अरवा चावल, नाग केसर, सुई, भालू व बाघ के बाल को भोज पत्र में रखकर अपनी राशि व लग्न के अनुकूल धातु के तावीज में डालकर मंगलवार या शनिवार को गले में धारण करें। शरीर ऊपरी दोष या प्रेत आदि से सर्वदा सुरक्षित रहेगा। नजर दोष निवारणः- अजवाइन, हींग, सात लाल मिर्च, लहसुन व प्यज़् के छिलके को बुरी नज़्र दोष से पीड़ित के सिर के ऊपर से सात बार धुमाकर जलती आग में डाल दें। इस प्रयोग को सात दिनों तक दोहराएं, अवश्य ही नजर दोष का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।