कुर्बानी के बकरे
कुर्बानी के बकरे

कुर्बानी के बकरे  

व्यूस : 10184 | आगस्त 2011
कुर्बानी के बकरे पं. उमेश शर्मा कुर्बानी के बकरे यह लाल-किताब पद्धति का एक अनूठा सूत्र है। इसका अर्थ यह है कि जब कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह से पीड़ित होता है तो वह अपना कष्ट दूसरे ग्रह के फल के अशुभ हो जाने से प्रदर्शित करता है एवं जिस ग्रह के द्वारा वह अपना अशुभ फल प्रकट करता है उसे कुर्बानी का बकरा कहा जाता है। उदाहरणार्थ : जिस कुंडली में शनि सूर्य से पीड़ित हो तो उस कुंडली में शुक्र के फल अशुभ मिलेगें अर्थात जातक की पत्नी (लाल-किताब में शुक्र को पति/पत्नी का कारक ग्रह माना है) का स्वास्थ्य अच्छा न होगा या संबंध अच्छे न रहेगें अर्थात शुक्र कुर्बानी का बकरा माना जायेगा। उदाहरण : सूर्य खाना नं0 6 और शनि खाना नं0 12 में हो तो औरत पर औरत मरती जाये। इसी प्रकार अन्य ग्रहो ने भी अपने बचाव के लिए किसी न किसी ग्रह का सहारा लिया हुआ है। जैसे- अ. बुधः बुध ने अपने बचाव के लिए शुक्र से दोस्ती कर रखी है। वह अपने दोस्त शुक्र पर ही अपनी बलाऐं डाला करता है। ब. मंगल : मंगल पीड़ित होने पर अपना अशुभ फल केतु के द्वारा प्रकट करता है। स. शुक्र : शुक्र पीड़ित होने पर अपना अशुभ फल चन्द्र के द्वारा प्रकट करता है। उदाहरणार्थ : अगर चन्द्र व शुक्र बामुकाबिल अर्थात टकराव पर हों तो जातक की माता की नज़र कमजोर होगी या माता का स्वास्थ्य ठीक न होगा या दोनो में वैचारिक मतभेद रहेगा। द. बृहस्पति : बृहस्पति भी पीड़ित होने पर अपना अशुभ फल केतु के द्वारा प्रकट करता है। उदाहरण : माना कि बृहस्पति खाना नं0 5 में हो व केतु किसी भी खाना में हो तो बृहस्पति के पीड़ित होने पर संतान जो कि खाना नं0 5 की कारक है पर कोई अशुभ असर न होगा वरन् खाना नं0 6 जो कि केतु का पक्का खाना है से संबंधित वस्तु रिश्तेदार आदि पर अपना अशुभ फल प्रकट करेगा अर्थात इस स्थिति में जातक के मामा को परेशानी रहेगी। य. सूर्यः सूर्य अपनी मुसीबत के समय अपना अशुभ असर केतु के द्वारा प्रकट करेगा। र. चन्द्रः अपना अशुभ असर अपने दोस्त ग्रहों( बृहस्पति, सूर्य, मंगल) के द्वारा प्रकट करेगा। ल. शनिः दुश्मन से बचाव के लिए शनि ने राहु-केतु एजेन्ट बनाये हैं। ये शनि की जगह फौरन किसी दूसरे की कुबार्नी देते हैं। व. राहु-केतुः राहु-केतु अपवाद हैं अर्थात ये अपना अशुभ असर स्वयं अपने से संबंधित वस्तुओं या रिश्तेदारों द्वारा प्रकट करते हैं। जन्मदिन का ग्रह व जन्म समय का ग्रह जिस दिन जातक का जन्म हो उस दिन के ग्रह को जन्मदिन का ग्रह कहेगें और जिस समय जन्म हो उसे जन्मसमय का ग्रह कहेगें। ऊपर दी गयी तालिका में बताया गया है कि सप्ताह में कौन सा दिन व दिन में कौन सा समय किस ग्रह का है जन्मदिन के ग्रह को किस्मत जगाने वाला ग्रह यानि कि राशि फल का ग्रह अर्थात जिसका उपाय हो सके कहेगें। जन्म समय का ग्रह किस्मत का ग्रह यानि ग्रहफल का ग्रह अर्थात जिसका उपाय न हो सके कहलाता है। जन्मदिन और जन्मसमय का ग्रह जब एक ही हो जाये तो ऐसा ग्रह कुंडली वाले पर कभी बुरा असर न देगा व उस दिन व वक्त मौत भी न आयेगी। उदाहरण : माना कि किसी जातक का जन्म बृहस्पतिवार को सुबह 07:00 बजे हुआ तो उसका जन्मदिन एवं जन्म समय दोनो का ग्रह बृहस्पति होगा। नियम के अनुसार अब जन्मदिन व समय का ग्रह बृहस्पति कुंडलीे में कभी अशुभ फल न देगा। परन्तु अगर जातक का जन्म सोमवार को दोपहर 12 बजे का हो तो जन्म दिन का ग्रह चन्द्र व जन्म समय का ग्रह मंगल को लेगें। इस स्थिति में चन्द्र जो जन्मदिन का ग्रह है राशिफल का होगा कि जिसका उपाय हो सके और जन्म समय का ग्रह मंगल है वह ग्रहफल का होगा यानि जिसका शुभ या अशुभ असर अटल हो और कोई उपाय न हो सके। 2. जन्मसमय के ग्रह को जन्मदिन के ग्रह के पक्के घर का मानें अर्थात अब जन्मसमय का ग्रह मंगल चन्द्र के पक्के घर नं0 4 में होगा चूंकि जन्मदिन का ग्रह राशिफल या उपाय के काबिल माना है अतः मंगल खाना नं 4 से संबंधित वस्तुओं, रिश्तेदारों व खाना नं 4 से संबंधित व्यवसाय पर अपना बुरा असर कभी नही देगा। अगर कभी बुरा असर दे भी तो चन्द्र के उपाय से उसके अशुभ असर से बचा जा सकेगा।



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