वास्तु-मानव व विज्ञान गीता मन्नयम वास्तु का अर्थ: वास्तु अर्थात् किसी घर या स्थान में किसी भी वस्तु का उसके सही स्थान पर चयन करना। फेंगशुई भी वास्तु में इन्ही चीजों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। वास्तु का वैज्ञानिक कारण यह है कि उŸार से दक्षिण की तरफ चुंबकीय रेखा जा रही है तथा पूर्व से पश्चिम की तरफ सूर्य की किरणें जा रही है जब ये दो ऊर्जाएं आपस में टकराती हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप जो ऊर्जा निकलती है वह विकर्ण की दिशा में जाती है। इसके कारण यह ऊर्जा ईशान कोण से नैत्य कोण की तरफ जाती है इसलिए वास्तु में घर के मुख्य द्वार या सिंह द्वार को ईशान कोण में बनाने पर महत्व दिया जाता है और घर के मास्टर बेडरूम को नैत्य कोण में बनाते हैं या घर को दक्षिण की तरफ ऊंचा या भारी बनाना चाहिए जिससे यह आती हुई सकारात्मक ऊर्जा को रोक सके और वह घर में चारों तरफ घूमती रहे। इसकी चैतन्य शक्ति जितनी अधिक घर में प्राप्त होती है उतना ही उस घर के मालिक व अन्य सदस्यों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है। वास्तु का अर्थ यह भी है कि किसी घर या स्थान में पांचों तत्व (भूमि, जल, अग्नि, वायु व गगन) की ऊर्जा का सही संतुलन में होना। यदि किसी घर में ये पंचभूत या पंचत्व सही संतुलन में नहीं होते हैं तो उस घर के सदस्यों को स्वास्थ्य या अन्य प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऋषियों के द्वारा भी कहा गया है- अण्ड, पिण्ड और ब्रह्मांड, अर्थात जो मनुष्य के एक कण में है वही ब्रह्मांड में भी है। मानव शरीर भी उन्हीं पांच तत्वों से मिलकर बना है जिन पांच तत्वों से मिलकर ब्रह्मांड का निर्माण होता है। यदि ब्रह्मांड में किसी भी तत्व में असंतुलन आता है तो वह विभिन्न प्रकार से अपने आपको संतुलित कर लेता है। हम देखते हैं कि ब्रह्मांड किस प्रकार अपने पंच तत्वों में असंतुलन होने पर अपने आपको संतुलित करता है। भूमि: (भूतत्व) यदि हमारी पृथ्वी के अंदर भूतत्व में केाई असंतुलन उत्पन्न होता है तो वह भूकंप आदि लाकर अपनी भूतत्व की ऊर्जा को संतुलित कर लेती है। इसी प्रकार मनुष्य के शरीर का (मूलाधार) चक्र भी भूतत्व से संबंधित है। यदि इस तत्व की ऊर्जा में कोई असंतुलन उत्पन्न होता है तो मनुष्य में आलस्य, हाथ, पैरों तथा घुटनों में दर्द रहना, पीठ तथा रीढ की हड्डी में दर्द आदि की समस्याएं सामने आती हैं। आजकल इन समस्याओं के बढ़ने का कारण यह भी है कि पुराने समय में हम मिट्टी के घरों में रहते थे जिनकी छतें पिरामिड आकार की होती थीं तथा फर्श कच्चा व गोबर से लिपा हुआ होता था जिसके कारण घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश अधिक होता था जो हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को भूमि से चुंबकीय ऊर्जा के रूप में मिलती थी इसीलिए उस समय मनुष्य बिना किसी दर्द के 100 साल तक जीवित रहता था। लेकिन आजकल सीमेंट और कंकरीट से बने घर में रहने के कारण यह ऊर्जा हमें पूर्णरूप से नहीं मिल पा रही है क्योंकि कंकरीट आदि में लोहे की मात्रा अधिक होती है जिससे लोहा इस ऊर्जा की अर्थिंग कर लेता है। इस ऊर्जा की कमी से हमारा मूलाधार चक्र प्रभावित होता है और हमें इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जल तत्व: पृथ्वी पर जल तत्व में कोई भी असंतुलन उत्पन्न होने पर सुनामी, बाढ़ या सूखा लाकर पृथ्वी अपने आपको संतुलित कर लेती है। मनुष्य का स्वाधिष्ठाना चक्र जल तत्व से संबंधित है इस चक्र में असंतुलन होने पर मूत्राशय व जेनीटल सिस्टम को प्रभावित करता है। इससे किसी स्त्री का गर्भधारण न करना, बार-बार गर्भपात होना, किसी बच्चे का शारीरिक व मानसिक अपंगता के साथ जन्म होना, किडनी फेल हो जाना या मनुष्य में किसी प्रकार के भय का होना आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। नकारात्मक भावनाओं का उदय होना भी पाया जाता है। अग्नि तत्व: पृथ्वी पर अग्नि तत्व में असंतुलन होने पर ज्वालामुखी फटना व पानी के गरम-गरम भँवर आदि निकालकर यह अपने अग्नि तत्व को संतुलित कर लेती है। मनुष्य का मणिपुरा चक्र अग्नि तत्व से संबंधित होता है। इस तत्व में कोई कमी या अधिकता से मनुष्य को डायबिटीज, डिप्रेशन, लीवर में परेशानी, तिल्ली व पाचन तंत्र में परेशानी हो जाती है। मनुष्य में भावनात्मक असंतुलन को भी इस ऊर्जा की कमी या अधिकता प्रभावित करती है। इसीलिए रामदेव महाराज जी का कहना है कि कपालभाति करने से मणिपूरा चक्र नकारात्मक ऊर्जा को निकाल सकते हैं जिससे मणिपूरा चक्र से संबंधित बीमारियां ठीक हो जाती हैं। वायु तत्व: यदि ब्रह्मांड या पृथ्वी में वायु तत्व में असंतुलन होता है तो वह तूफान व टौरनेडो आदि लाकर अपने इस तत्व को संतुलित कर लेती है। शरीर में वायु तत्व असंतुलन होने पर हमारा अनाहत चक्र प्रभावित होता है जिससे रक्तचाप में अस्थिरता, हृदय रोग व हार्टअटैक होना तथा फेंफड़ों की समस्या से जैसे अस्थमा का सामना करना पड़ सकता है। गगन तत्व: यदि ब्रह्मांड में गगन तत्व में कोई असंतुलन उत्पन्न होता है तो वह आकाशीय पिण्ड गिराकर, उल्कापात द्वारा व बिजली गिराकर अपने आपको संतुलित कर लेता है। शरीर में यह तत्व हमारे विशुद्धि चक्र को प्रभावित करता है। इससे गले व थाइराइड आदि की समस्या से मनुष्य पीड़ित हो जाता है तथा मनुष्य की क्रियाशीलता भी इस तत्व और इस चक्र से संबंधित होती है जैसे घर में रहने वाली स्त्रियों की बोलने की क्षमता खत्म हो जाती है। पहले के वास्तु में गगन को इतना महत्व नहीं दिया जा था क्योंकि पहले के घरों में बीच का स्थान जिसको ब्रह्मस्थान भी कहा जाता है, खुला रहता था। चारों तरफ कमरे व बरामदे तथा बीच में खुला आंगन और उस आंगन में तुलसी का पौधा लगाते थे। जिससे हमें गगन से मिलने वाली काॅस्मिक किरणें पर्याप्त मात्रा मंे मिलती थी लेकिन आजकल के घरों में ब्रह्मस्थान को खुला रखना संभव ही नहीं है जिसके कारण सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसी प्रकार घर व स्थान के वास्तु में रेखागणित को बहुत महत्व दिया गया है जैसे- भूमि का प्रतीक है, अग्नि का प्रतीक है, जल का प्रतीक है, वायु का प्रतीक है तथा गगन को कोई आकार नहीं दिया गया है इसीलिए विद्वानों ने हमें आयताकार घरों में रहने के लिए कहा है क्योंकि इसमें भूमि तत्व की ऊर्जा अधिक होती है तथा ऊर्जा का बहाव भी ऐसे घरों में ठीक प्रकार से होता है, गोलाकार घरों में ऊर्जा के बिना रोक-टोक के घूमती रहती है इसीलिए वहां मनुष्यों का रहना ठीक है तथा त्रिकोणीय घरों में अग्नि की ऊर्जा अधिक प्रवाहित होती है जिससे उसमें रहने वाले सदस्यों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। हमारे ब्रह्मांड में प्रत्येक वस्तु का निर्माण अंकगणित के अनुसार एक अनुपात में हुआ है जिसे गोल्डन प्रोपोर्शन या फाई रेशो कहा जाता है उदाहरण के लिए यदि किसी भी मनुष्य की सर से लेकर पैर के अंगूठे तक की लंबाई तथा नाभि से लेकर पैर के अंगूठे तक की लंबाई माप कर विभाजित किया जाय तो 1.618 उŸार आता है जिसे गोल्डन प्रोपोर्शन या फाई रेशो कहते हैं। यदि आप प्रकृति द्वारा निर्मित किसी भी वस्तु (सजीव व निर्जीव) का माप ले तो आपको यही अनुपात प्राप्त होगा। हमारे ऊँ चिह्न व ईसाई धर्म के क्राॅस चिह्न भी इसी अनुपात में बने होते हैं जिसके कारण उसमें 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा रहती है। यदि हम अपने किसी भवन या मंदिर का निर्माण गोल्डन प्रोपोर्शन अर्थात उसकी लंबाई और चैड़ाई का अनुपात फाई रेशो में रखें तो वहां की ऊर्जा बहुत प्रभावशाली होगी। हमारे वास्तु में रंगों का भी बहुत महत्व है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक इंद्र धनुष के सात रंग और राहू और केतु की कंपन-शक्ति घर के अलग-अलग हिस्सों पर निश्चित समय पर प्रभाव डालती है, अगर घर का कोई हिस्सा में नहीं है तो कटे हुई हिस्से में जो कंपनशक्ति प्रभाव डालती है उस कंपन शक्ति की उस घर के सदस्यांे में कमी पायी जाती है तथा इस कंपन शक्ति की कमी के कारण जो समस्याएं उत्पन्न होती हैं उस घर के सारे सदस्यों में उससे संबंधित बीमारी आती है। एक मनुष्य के चारों तरफ भी यही नौ कंपन शक्तियां काम करती हैं। उसे स्वस्थ व अस्वस्थ रखने के लिए जन्म से किसी भी मनुष्य में एक कंपन शक्ति की कमी होती है उसके ग्रहों के अनुसार और जो कंपन शक्ति उसको नहीं मिल रही है और उसी कंपन शक्ति का हिस्सा घर से कटा हुआ है तो समस्या दो गुनी हो जाती है। इसलिए हमारे शरीर का दूसरा शरीर उसका घर है। यदि घर में कोई समस्या उत्पन्न होती है तो वह हमारे शरीर पर अवश्य प्रभाव डालती है। घर की परिस्थिति का हमारे शारीरिक व मानसिक परिस्थिति से सीधा संबंध है। उदाहरण के लिए यदि घर में बहुत गंदगी इकट्ठी हो गयी है तो वहां के सदस्यों को मानसिक स्थिरता नहीं होती है। क्रमश...