वास्तु शास्त्र में शकुन-अपशकुन की भूमिका एवं महत्व नवीन चितलांगिया सभ्यता के प्रारंभ से ही शकुन-अपशकुन की अवधारणा किसी न किसी रूप में विद्यमान रही है। पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ सभी किसी न किसी रूप में इसको मानते हैं। ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र में भी इसको महत्व प्रदान किया गया है। उदाहरण स्वरूप यात्रा पर जाते समय यदि बिल्ली रास्ता काट दे तो ऐसी मान्यता है कि काम बिगड़ जाता है, अतः कुछ समय के लिए लोग अपना जाना स्थगित कर देते हैं। उसी प्रकार यदि गाय बछड़े को दूध पिला रही हो और आप किसी शुभ काम पर जाते हुए देख लें तो वह काम बन जाएगा ऐसी धारणा है। वास्स्तु शास्त्र क¢ दृष्टिक¨ण से शकुन-अपशकुन की भूमिका एवं महत्व क¨ समझने हेतु इन्हें सुविधानुसार निम्न प्रकार से बाँटा जा सकता है - Û भूमि चयन से जुडे़ शकुन । Û वेध शकुन (भवन क¢ निर्माण से जुडे़ शकुन)। Û नींव-खुदाई से जुडे़ शकुन-अपशकुन । Û जीव-जन्तुअ¨ं से जुडे़ शकुन-अपशकुन । भूमि चयन से जुडे़ शकुन यद्यपि वास्तु शास्त्र में भूमि का चयन करते समय भूमि लक्षण, भूमिष्श¨धन, भूमिस्तर, भूमि परीक्षा इत्यादि क¢ दृष्टिक¨ण से भूमि क¢ दिशा, क¨ण, आकार, रंग, गंध, स्वाद, स्पर्श, सघनता, रंध्रता एवं तल का विचार किया जाना अनिवार्य माना गया है। तथापि भूमि का चुनाव करते समय यदि भूमि में़ तुलसी, नीम, अनार, अश¨क, चमेली, बकूल, चंदन, साल, चम्पा, गुलाब, नारियल, सुपारी, फणस, क¢तकी, जवाकुसुम, मालती आदि का वृक्ष पाया जाता है तो शुभ शकुन है। यदि वृक्ष¨ं की संख्या सम ह¨ त¨ उत्तम है । इसक¢ विपरीत काँटेदार-दूध युक्त विषम संख्या क¢ वृक्ष¨ं का पाया जाना अशुभ संक¢त है। वेध शकुन (भवन क¢ निर्माण से जुडे़ शकुन) यदि भवन क¢ मुख्य-द्वार क¢ सामने क¨ई ऐसी चीज उपस्थित ह¨ जिससे कि मुख्य-द्वार में प्रवेश करने वाली वायु का प्रवाह अवरुद्ध ह¨ जाय, त¨ उसे वेध कहा जाता है। भवन में द्वार-वेध अशुभ शकुन माना गया है। यदि भवन क¢ मुख्य-द्वार पर आकर क¨ई मार्ग समाप्त ह¨ जाये त¨ यह स्थिति मार्ग-वेध कहलाती है। मार्ग-वेध ह¨ने पर कुल-परिवार नष्ट ह¨ जाता है, कुटुम्बजन¨ं की हानि ह¨ती है। यदि मुख्य-द्वार क¢ सामने क¨ई खम्भा या स्तम्भ ह¨ त¨ भवन-स्वामी की अवनति ह¨ती है। यदि खम्भा ल¨हे का ह¨ त¨ अग्नि-दुर्घटना की संभावना ह¨ती है। यदि मुख्य-द्वार के सामने क¨ई वृक्ष उपस्थित ह¨ जिसकी छाया भवन पर पड़ती ह¨ त¨ भवन में रहने वाले व्यक्तिय¨ं में वैचारिक मतभेद एवं वैमनस्य ह¨ता है तथा संबंध¨ं मंे कटुता उत्पन्न ह¨ती है । द्वार-वेध क¢ द¨ष निवारणार्थ मुख्य-द्वार क¢ द¨न¨ं अ¨र शुभ एवं मांगलिक चिह्न जैसे ऊँ, स्वास्तिक, त्रिशूल आदि क¨ अंकित किए जाने का विधान है । यदि मुख्य-द्वार ऊपर से ढंका हुआ है त¨ भगवान गणपति का चित्र या प्रतिमा स्थापित करना चाहिए। नींव-खुदाई से जुडे़ शकुन-अपशकुन भूमि की नींव या खुदाई में बाल निकलना अशुभ शकुन है, इससे उस भूमि में निवास करने वाले ल¨ग¨ं में तनाव एवं द्वेष उत्पन्न ह¨ता है । सर्प, क¢कडा़, बिच्छू आदि जहरीले जानवर¨ं का निकलना अशुभ है तथा भवन क¢ निवासिय¨ं की दुर्घटना का सूचक है । इंसान अथवा जीव-जन्तुअ¨ं की अस्थियाँ निकलना महाअशुभ ह¨ता हैं। इससे अनेक प्रकार की विपत्तियाँ आती हैं। सर्वप्रथम अस्थियों क¨ भूमि से दूर दूसरे नगर, ग्राम या अन्यत्र स्थान पर दफन करना चाहिए अथवा पवित्र नदी में प्रवाहित करना चाहिए। त़त्पश्चात भूमि क¨ यज्ञादि से शुद्ध करक¢ कार्य आरंभ करना चाहिए । भूमि की नींव या खुदाई में शंख या अनुपय¨गी मिट्टी का निकलना भवन क¢ निवासिय¨ं क¢ र¨ग-पीड़ा का सूचक है । जीव-जन्तुअ¨ं से जुडे़ शकुन-अपशकुन घर में गाय का प्रसव ह¨ना शुभ एवं वंश वृद्धि का सूचक है। कुत्ते एवं बिल्लिय¨ं क¢ बच्च¨ं का जन्म अशुभ शकुन है। घर में छछुन्दर¨ं का विचरण करना शुभ एवं समृद्धिदायक है। घर में चमगादड़ एवं सर्पादि का रहना अशुभ है । मधुमक्खिय¨ं या बर्र का छत्ता ह¨ना निवासिय¨ं क¨ र¨गी बनाता है। जिस भवन क¢ मुख्यद्वार पर गाय रंभाए त¨ उस भवन क¢ निवासिय¨ं की सुख-समृद्धि में वृद्धि ह¨ती है। जिस घर में बिल्लियाँ परस्पर लडंे़ त¨ उस घर का विघटन ह¨ जाता है ।