हमारे धर्मषास्त्रों में उल्लिखित है, कि हवन में प्रयुक्त गाय का घी, गौमय, यज्ञ में उपयोग की गई लकड़ियां तथा शर्करा आदि से ‘मार्षफिल्ड’ तथा ‘फाॅर्मिक एल्डीहाइड’ जैसी विषुद्ध गैसें निकलती हैं जो कीटाणु शोधन कर पर्यावरण को विषुद्ध बनाती हैं, जिससे ओजोन जैसी सुरक्षा परतें छिद्र रहित व पुष्ट होती हैं। ओजोन की सुरक्षा तथा हानिकारक गैसों के अंधाधुंध प्रवाह के कारण ग्लोबल वार्मिंग, पूरे विष्व के लिए चिंता का कारण बन गई है। अतः यह आवष्यक हो गया है कि हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों एवं ऋषि-मुनियों द्वारा सुझाए गए मार्गों का अनुसरण करने की चेष्टा की जाय ताकि हमारा पर्यावरण विषुद्ध रहे तथा मानव जाति सुखी एवं समृद्ध हो। गोरखपुर में आयोजित गायत्री अष्वमेध यज्ञ में हवन के लाभों की सत्यता की जांच करने के लिए डाॅमनोज गर्ग के निर्देषन में एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण संपादित किया गया। इन्होंने अपने सर्वेक्षण को तीन भागों में विभाजित किया- पहला, यज्ञ प्रारंभ होने के पूर्व वायुमंडल में हानिकारक गैसों, बैक्टीरिया आदि की स्थिति, यज्ञ के बीच की अवधि में वायुमंडल की स्थिति तथा यज्ञ संपन्न होने के तुरंत बाद की स्थिति। नमूने यज्ञषाला से 20 मीटर की परिधि तक के लिये गये। यज्ञ प्रारंभ होने के पूर्व 100 मि.लीजल में 4500 बैक्टीरिया उपस्थित पाए गये। यज्ञ के बीच की अवधि में किए सवक्षर्ण म बक्टीरिया की सख्ं या 2470 र्पाइ र्गइ जबकि यज्ञ क उपरात किए गय सवक्षर्ण म यह सख्ं या 1250 र्पाइ गइर्। वातावरण में हवा की गुणव की जांच करने के लिए हवा में विद्यमान हानिकारक गैसों का नमूना लिया गया। यज्ञ प्रारंभ होने के पूर्व सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा 3.36 मिली. तथा नाइट्रोजन डाई आक्साइड की मात्रा 1.16 मि.ली. मापी गई। यज्ञ के बीच में सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा 2.86 मि.ली. तथा नाइट्रोजन डाई आक्साइड की मात्रा 1.14 मिली. मापी गई जबकि यज्ञ समाप्ति के उपरांत सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा 0.80 मि.ली. तथा नाइट्रोजन डाई आक्साइड की मात्रा 1.02 मि.ली. ही पायी गई। इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि यज्ञ एवं हवन केवल चतुर्मुखी सुख-समृद्धि का द्योतक ही नहीं है बल्कि यह पर्यावरण को विषुद्ध करके प्रदूषण को भी कम करने में सहायक है। हमारे प्राचीन धर्मषास्त्र शतपथ ब्राह्मण पुराण में भी यज्ञ एवं हवन के असंख्य लाभों का वर्णन मिलता है। उनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:- जहां यज्ञ एवं हवन होता है, वहां के लोग विभूतिवान् बनते हैं। - ‘‘वहां के लोगों के इच्छित प्रयोजन पूर्ण होते हैं। - ‘‘वहां सघन वन संपदा का विकास होता है। - ‘‘वहां के लोग अपने व्यवसायों में कुषल होते हैं। जहां यज्ञ एवं हवन संपन्न होता है, वहां के लोग स्वस्थ तथा बलवान होते हैं। - ‘‘वहां के लोगों का दुनिया में यष फैलता है। - ‘‘वहां के निवासी प्रभुता संपन्न होते हैं। - ‘‘वहां मधुर रस वाले फल पैदा होते हैं। - ‘‘वहा की सने सषक्त, विजते तथा दुर्लभ आयुधों से संपन्न होती है। - ‘‘वहां के लोग ब्राह्मी शक्ति अर्थात परमात्मा की शक्ति से ओत-प्रोत ब्रह्मवर्चसी होते हैं। अतः यह स्पष्ट है कि जहां यज्ञ एवं हवन होते हैं वहां सर्वत्र सुख, शांति, समृद्धि एवं संपन्नता का संचार होता है।