वास्तु शास्त्र का वैज्ञानिक दृष्टिकोण डाॅ. सुलतान फैज ‘‘टीपू’’ वावैज्ञानिक तरीके से वास्तुशास्त्र के नियमों का अनुपालन करके किया गया भवन निर्माण हमेशा समृद्धि एवं उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। वैज्ञानिक तरीके से तात्पर्य पंच महाभूतों एवं दिशाओं का ध्यान रखकर भवन निर्माण से है। यदि भवन में किसी प्रकार का वास्तु दोष हो तो उसका निवारण भी पांच तत्वों एवं दिशाओं को निर्देशित करने वाले यंत्रों एवं वस्तुओं को भवन के निर्दिष्ट स्थानों पर स्थापित करके किया जा सकता है। स्तु शास्त्र पृथ्वी व उसके प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष बल, घूर्णन, चुंबकीय आकर्षण, प्रवाह, धु्रवों की दिशा, जल, अग्नि, शीत, ताप, वायु बहाव की दिशा, सूर्य के उदित व अस्त होने की गतिविधियां, प्रभाव आदि जैसी ब्रह्मांडीय व्यवस्थाओं के साथ भवन अथवा गृह निर्माण की अवस्थाओं को संतुलन प्रदान करने की एक प्रक्रिया है जो हजारों वर्षों पूर्व प्राचीन भारतीय शोधकत्र्ताओं व यौगिकीय साधकों द्वारा फलित हुआ, वो भी उस युग में जब सारा विश्व ज्ञान के आधुनिक परिप्रेक्ष्य से पूर्ण रूपेण अनभिज्ञ था। ऋग्वेद तथा मत्स्य पुराण जैसे प्राचीनतम ग्रंथों से भी इस विद्या के व्यावहारिक स्वरूपों की पूर्ण पुष्टि होती है। ऐसा विदित होता है कि प्राचीन गुरुकुल की चैसठ कलाओं अर्थात विद्याओं में एक अनोखी, चमत्कारी, गहन व विस्तृत विद्या के रूप में वास्तु शास्त्र की विद्या भी सम्मिलित थी। भवन आदि क