महामृत्ृत्युंुंजंजय साधना हेतु विचारणीय तथ्य निर्मल कोठारी मत्यु एक ऐसा भयावह शब्द है, जिसका नाम सुनते ही शरीर में सिहरन दौड़ जाती है, किंतु यह भी एक शाश्वत सत्य है कि मृत्यु एक दिन सभी की आनी है। लेकिन दुखद स्थिति तब उत्पन्न हो जाती है जब किसी की अकालमृत्यु होती है। यह अकालमृत्यु किसी घातक रोग या दुर्घटना के कारण होती है। इससे बचने का एक ही उपाय है - महामृत्युंजय साधना। यमराज के मृत्युपाश से छुड़ाने वाले केवल भगवान मृत्युंजय शिव हैं जो अपने साधक को दीर्घायु देते हैं। इनकी साधना एक ऐसी प्रक्रिया है जो कठिन कार्यों को सरल बनाने की क्षमता के साथ-साथ विशेष शक्ति भी प्रदान करती है। यह साधना श्रद्धा एवं निष्ठापूर्वक करनी चाहिए। इसके कुछ प्रमुख तथ्य यहां प्रस्तुत हैं, जिनका साधना काल में ध्यान रखना परमावश्यक है। अनुष्ठान शुभ दिन, शुभ पर्व, शुभ काल अथवा शुभ मुहूर्त में संपन्न करना चाहिए। मंत्रानुष्ठान प्रारंभ करते समय सामने भगवान शंकर का शक्ति सहित चित्र एवं महामृत्युंजय यंत्र स्थापित कर लेना चाहिए। जिस स्थल पर मंत्रानुष्ठान करना हो, वहां का वातावरण पूर्णतः सात्विक होना चाहिए। जप पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। साधना काल में शुद्ध घी का दीपक निरंतर प्रज्वलित रहना चाहिए। मंत्र का जप ऊन के आसन पर बैठकर चंदन या रुद्राक्ष की माला पर करना चाहिए। साधना काल में ब्रह्मचर्य का पूर्णरूप से पालन करना चाहिए और मन की एकाग्रता बनाए रखनी चाहिए। साधना काल में यथासंभव एक समय ही भोजन करना चाहिए। संध्या के समय दाढ़ी या सिर के बाल नहीं काटने चाहिए। अनुष्ठान आरंभ करने से पूर्व मंत्र को संस्कारित कर लेना चाहिए। जितने समय तक जितनी संख्या में जप करना हो, उसे विधिपूर्वक करना चाहिए। समय में परिवर्तन नहीं होना चाहिए। तथा संकल्प के समय निर्धारित संख्या से कम संख्या में जप नहीं करना चाहिए। वस्त्र धुले हुए, स्वच्छ, पवित्र व बिना सिले धारण करने चाहिए। जब तक साधना चले, तब तक अभक्ष्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए। सात्विक जीवन बिताना चाहिए। मंत्रों का उच्चारण शुद्ध व स्वर बहुत धीमा होना चाहिए। सबसे अच्छा है मानस जप करें। अनुष्ठान से संबंधित सभी क्रियाएं श्रद्धा, विश्वासपूर्वक करनी चाहिए। साधना काल में नीच व्यक्तियों के साथ वर्तालाप और उनका स्पर्श नहीं करना चाहिए। असत्य नहीं बोलना चाहिए। क्रोध नहीं करना चाहिए। इस बात का ध्यान रहे कि साधना काल में कोई आपके समक्ष न हो। चित्त स्थिर एवं मौन बनाए रखना चाहिए। शयन भूमि पर करना चाहिए। मंत्रा जप संख्या शास्त्रों में अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग संख्याओं में मंत्र के जप का विधान है। किस कार्य के लिए कितनी संख्या में जप करना चाहिए इसका विवरण यहां प्रस्तुत है। 1. भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है। 2. रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है। 3. पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है। मंत्रानुष्ठान के लिए शास्त्र के विधान का पालन करना परम आवश्यक है अन्यथा लाभ के बदले हानि की संभावना अधिक रहती है। इसलिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक कार्य शास्त्रसम्मत ही किया जाए। इस हेतु किसी योग्य और विद्वान व्यक्ति का मार्गदर्शन लेना चाहिए। यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करे, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है। इसका सामान्य मंत्र निम्नलिखित है, किंतु साधक को बीजमंत्र का ही जप करना चाहिए। ¬ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। महामृत्युंजय मंत्रा के जप हेतु ध्यान देने योग्य कुछ अन्य बातें महामृत्युंजय मंत्र के जप के लिए निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। महामृत्युंजय जप अनुष्ठान शास्त्रीय विधि-विधान से करना चाहिए। मनमाने ढंग से करना या कराना हानिप्रद हो सकता है। मंत्र का जप शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करना चाहिए जैसे महाशिवरात्रि, श्रावणी सोमवार, प्रदोष (सोम प्रदोष अधिक शुभ है), सर्वार्थ या अमृत सिद्धि योग, मासिक शिवरात्रि (कृष्ण पक्ष चतुर्दशी) अथवा अति आवश्यक होने पर शुभ लाभ या अमृत चैघड़िया में किसी भी दिन। जिस जातक के हेतु इस मंत्र का प्रयोग करना हो, उसके लिए शुक्ल पक्ष में चंद्र शुभ तथा कृष्ण पक्ष में तारा (नक्षत्र) बलवान होना चाहिए। जप के लिए साधक या ब्राह्मण को कुश या कंबल के आसन पर पूर्व या उŸार दिशा में मुख करके बैठना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र की जप संख्या की गणना के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए। मंत्र जप करते समय माला गौमुखी के अंदर रखनी चाहिए। जिस रोगी के लिए अनुष्ठान करना हो, ‘¬ सर्वं विष्णुमयं जगत्’ का उच्चारण कर उसके नाम और गोत्र का उच्चारण कर ‘ममाभिष्ट शुभफल प्राप्त्यर्थं श्री महामृत्युंजय रुद्र देवता प्रीत्यर्थं महामृत्युंजय मंत्र जपं करिष्ये।’ कहते हुए अंजलि से जल छोड़ें। महामृत्युंजय मंत्र की जप संख्या सवा लाख है। एक दिन में इतनी संख्या में जप करना संभव नहीं है। अतः प्रतिदिन प्रति व्यक्ति एक हजार की संख्या में जप करते हुए 125 दिन में जप अनुष्ठान् पूर्ण किया जा सकता है। आवश्यक होने पर 5 या 11 ब्राह्मणों से इसका जप कराएं तो ऊपर वर्णित जप संख्या शीघ्र पूर्ण हो जाएगी। सामान्यतः यह जप संख्या कम से कम 45 और अधिकतम 84 दिनों में पूर्ण हो जानी चाहिए। प्रतिदिन की जप संख्या समान अथवा बढ़ते हुए क्रम में होनी चाहिए। जप संख्या पूर्ण होने पर उसका दशांश हवन करना चाहिए अर्थात 1,25,000 मंत्रों के जप के लिए 12, 500 मंत्रों का हवन करना चाहिए और यथा शक्ति पांच ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। महामृत्युंजय जप के लिए पार्थिवेश्वर की पूजा का विधान है। यह सभी कार्यों के लिए प्रशस्त है। रोग से मुक्ति के लिए तांबे के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पारद शिवलिंग की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।