अग्नि तत्व राशि पंचम भाव में सूर्य का फल आचार्य किशोर पं चम भाव को त्रिकोण कहा गया है। लग्न केंद्र से प्रभावित होता है। केंद्र के विश्लेषण से मनुष्य के शारीरिक शक्ति, श्रम की क्षमता, कार्य, बुद्धि एवं ज्ञान के बारे में पता चलता है। त्रिकोणस्थ ग्रह का प्रभाव लग्न के प्रति अधिक हो सकता है। परोक्ष रूप से भाग्य वृद्धि, किए गए कार्यों का फल आदि लग्न को कैसे प्रभावित करता है वह सब त्रिकोण से पता चलता है। मंगल केंद्र में अधिक बलवान होता है। उसकी स्थिति लग्न को अलग तरह से प्रभावित करती है। प्राकृतिक शुभ ग्रह बुध, शुक्र और गुरु त्रिकोण में हों तो सद्बुद्धि देते हैं। इन ग्रहों की इस स्थिति से जातक सतकर्म करता है। सूर्य विज्ञान जगत में समस्त ज्ञान का आधार है। उसके शुभ प्रभाव से मानव स्वतः ज्ञान का लाभ प्राप्त करता है। पाप दृष्टि से रहित पंचमस्थ सूर्य बलवान हो, तो ज्ञान, बुद्धि, विवेक, सौभाग्य, दैवी कृपा आदि का लाभ देता है। पंचम भाव से संतान, ज्ञान, मंत्र, पुण्य, कर्म और प्रज्ञा का विचार किया जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषियों के अनुसार इस भाव से दैहिक सुख, स्नेह, अमोद-प्रमोद, शयनकक्ष आदि का विचार किया जाता है। कालपुरुष की कुंडली में इस भाव से कमर, हृदय आदि का विचार किया जाता है। पंचम भाव मंें सूर्य अक्सर एक पुत्र देता है और प्रायः प्रथम संतान का नाश करता है। परंतु एक पुत्र अवश्य देता है। फिर भी संतान भाव के स्वामी और पंचम स्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टि होने के कारण यह दोष नहीं रहता। कन्या संतान के लिए अशुभ नहीं होता। बलवान बुध से संबंध हो तो जातक की बुद्धि प्रखर होती है। साधारणतया पंचम भावस्थ सूर्य स्नेह, प्रीति, अमोद-प्रमोद एवं सांसारिक सुख के प्रति आकर्षित करता है। किंतु शुक्र और शनि से संबंध होने पर इसके विपरीत फल देता है अर्थात उसमें कमी करता है। इसके फलस्वरूप जुए, सट्टेबाजी, लाॅटरी आदि में नुकसान होता है क्योंकि सूर्य एक सौम्य ग्रह है, इसलिए दूसरे ग्रहों का प्रभाव इस पर अधिक पड़ता है। बुध एवं शुभ ग्रह के संबंध से अधिक शुभ फल की प्राप्ति होती है। पंचम भाव में मेष राशि में सूर्य के होने से जातक भगवान विष्णु का भक्त होता है। उसकी संतान कम होती है। प्रथम संतान के नष्ट होने का भय रहता है। परंतु जो संतान बचती है उसका भविष्य अच्छा रहता है। जातक अनेक शास्त्रों का ज्ञाता होता है। वह महत्वाकांक्षी और परिश्रमी होता है। उसे सिद्धि की प्राप्ति होती है। समाज में सम्मानित पद की प्राप्ति भी होती है। वह वाक्पटफ होता है। मंगल के साथ युति या दृष्टि संबंध हो तो जातक क्षमतावान, धनी व समृद्ध होता है। यदि गुरु से संबंध हो तो धन के साथ-साथ उत्तम संतान की प्राप्ति भी होती है। जातक ज्ञानी और लोकप्रिय होता है तथा संगठन और पुण्य के कार्य करता है। यदि शुक्र का संबंध हो तो वह धनी, भोगी और विषयासक्त होता है। किंतु उसमें प्राकृतिक ज्ञान का अभाव होता है। शनि से युति या दृष्टि संबंध हो तो वह विवाद में उलझा और शारीरिक पीड़ा से ग्रस्त रहता है किंतु सत्कर्म में बाधा आती है। कुंडली सं. 1 भारत के पूर्व रक्षामंत्री स्व. वी. के. कृष्ण मेनन की कुंडली है। इसमें अग्नि तत्व राशि मेष में सूर्य शुक्र के साथ है। धनु लग्न के लिए शुक्र षष्ठ एवं एकादश भाव का स्वामी है और प्राकृतिक शुभ ग्रह होने के कारण अशुभ है। सूर्य और शुक्र दोनों पर शनि की दृष्टि है। मद्रास प्रेसिडेंसी काॅलेज से बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद स्व. मेनन ने स्व. एनी बेसेंट की होम रूल लीग संस्था में कार्य किया। किंतु शनि की दृष्टि ने उन्हें अधिक दिन टिकने नहीं दिया। आगे चलकर विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने ख्याति अर्जित की। चतुर्थ भाव का स्वामी उच्चस्थ होकर चतुर्थ भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। भाग्य भाव के स्वामी सूर्य के पंचम में उच्चस्थ होने के कारण वह तीव्रबुद्धि एवं ज्ञानी थे। परंतु संतान भाव और कमजोर शुक्र पर शनि की दृष्टि के कारण वह अविवाहित रहे। इस कुंडली में सबसे अधिक बलवान ग्रह बृहस्पति है। बृहस्पति लग्नाधिपति है इसलिए लग्न भी बलवान है। परंतु लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम केंद्र स्थान में कोई ग्रह नहीं है। लग्न पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं है इसलिए गुरु लग्न का स्वामी हाते हुए भी बृहस्पति लग्न को अपेक्षित बल नहीं दे सका। किसी ज्योतिषी ने लिखा है कि बलवान लग्न हो या सबसे अधिक बलवान ग्रह या दशम भाव से जातक का कर्म जीवन निर्धारित होता है। स्व. कृष्ण मेनन की कुंडली में पंचम भावस्थ उच्च का सूर्य बलवान है। इसलिए उनके कर्म जीवन में यश, कीर्ति और शक्ति का संबंध देखने को मिलता है। कुंडली में उच्च के सूर्य की स्थिति के अतिरिक्त कई और राजयोग होने के कारण उन्होंने भारत के बाहर भी ख्याति प्राप्त की। चारों चर राशियों में सूर्य, बृहस्पति, शनि एवं चंद्र विद्यमान हैं और सूर्य, बृहस्पति तथा शनि उच्चस्थ हैं। इन योगों के फलस्वरूप जातक को उच्च कोटि का सम्मान एवं पद प्राप्ति हुई और वह भारत के रक्षा मंत्री बने। कुंडली सं. 2 एक स्त्री की कुंडली है जिसमें पंचम भाव में सूर्य और बुध क्रमशः भाग्येश और कर्मेश हैं और उन पर शनि की दृष्टि है। पंचम भाव में उच्चस्थ सूर्य एक पुत्र का संकेत देता है परंतु इस जातका के दो पुत्र हुए और दोनों डाॅक्टर हुए। फिर भी जातका को एक पुत्र से ही सुख मिला। शनि की दृष्टि और पुत्रकारक ग्रह गुरु की पंचम से अष्टम में स्थिति के कारण दूसरे पुत्र ने सुख नहीं दिया। पंचमेश मंगल अपने भाव से द्वादश और वृश्चिक राशि से पंचम भाव में स्थित है, परंतु गुरु एवं मंगल का परिवर्तन योग है। चंद्र कुंडली से सूर्य और बुध सप्तम और पंचमेश शनि दशम भाव में है। नवांश कुंडली में सूर्य के नीच राशि में होने के कारण एक पुत्र का सुख ही उनके कर्म जीवन में यश, कीर्ति और शक्ति का संबंध देखने को मिलता है। कुंडली में उच्च के सूर्य की स्थिति के अतिरिक्त कई और राजयोग होने के कारण उन्होंने भारत के बाहर भी ख्याति प्राप्त की। चारों चर राशियों में सूर्य, बृहस्पति, शनि एवं चंद्र विद्यमान हैं और सूर्य, बृहस्पति तथा शनि उच्चस्थ हैं। इन योगों के फलस्वरूप जातक को उच्च कोटि का सम्मान एवं पद प्राप्ति हुई और वह भारत के रक्षा मंत्री बने। कुंडली सं. 2 एक स्त्री की कुंडली है जिसमें पंचम भाव में सूर्य और बुध क्रमशः भाग्येश और कर्मेश हैं और उन पर शनि की दृष्टि है। पंचम भाव में उच्चस्थ सूर्य एक पुत्र का संकेत देता है परंतु इस जातका के दो पुत्र हुए और दोनों डाॅक्टर हुए। फिर भी जातका को एक पुत्र से ही सुख मिला। शनि की दृष्टि और पुत्रकारक ग्रह गुरु की पंचम से अष्टम में स्थिति के कारण दूसरे पुत्र ने सुख नहीं दिया। पंचमेश मंगल अपने भाव से द्वादश और वृश्चिक राशि से पंचम भाव में स्थित है, परंतु गुरु एवं मंगल का परिवर्तन योग है। चंद्र कुंडली से सूर्य और बुध सप्तम और पंचमेश शनि दशम भाव में है। नवांश कुंडली में सूर्य के नीच राशि में होने के कारण एक पुत्र का सुख ही गुमान- सम्मान सब कुछ मिला। यदि गुरु की दृष्टि पंचम भाव पर होती, नवांश कुंडली में सूर्य नीच का नहीं होता और शनि की दृष्टि पंचम भाव में सूर्य पर नहीं होती, तो जातका को दोनों पुत्रों का सुख मिलता। तात्पर्य यह है कि यदि पंचम भाव में सूर्य बलवान हो और पंचमेश भी बलवान हो तो जातक उच्च पदस्थ होता है। इस योग के कई ऐसे लोग हैं जो मंत्री बने हैं - अधिक पढ़े लिखे न होने पर भी प्रशासक बने हैं। इस जातका की कुंडली में भी यही हुआ है। कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद उन्हें सब सुख प्राप्त हुए। यदि सूर्य पंचम भाव में अग्नि तत्व राशि में हो तो जातक कम संतान वाला होता है। सिंह राशि के स्थिर राशि होने के कारण संतान दीर्घ आयु होती है और उसे ख्याति मिलती है। जातक उच्च पदस्थ होता है और राजकार्य अथवा स्वतंत्र व्यवसाय से धन कमाता है। वह सबसे स्नेह और प्रीति करता है और बदले में उसे भी लोगों से स्नेह और प्रीति मिलती है। वह अमोद-प्रमोद प्रिय और व्यापार में अग्रणी होता है। धर्म अनुष्ठान में उसकी गहरी रुचि होती है। वह आडंबरप्रिय नहीं होता। उसके कार्य से सभी प्रसन्न रहते हैं जिसके फलस्वरूप उसे समाज में मान-सम्मान मिलता है। हर व्यक्ति उसे विशेष व्यक्ति समझता है। पंचम भाव में स्वराशिस्थ सूर्य यदि गुरु से युत या दृष्ट हो, तो जातक भाग्यवान एवं ख्याति प्राप्त होता है। शुक्र की युति पत्नी के स्वास्थ्य को खराब करती है क्योंकि शुक्र के साथ होने से स्त्री को दीर्घ जीवन नहीं मिलता। जातक दूसरी स्त्री के प्रति आकर्षित होता है। यदि बुध से संबंध हो, तो संतान देर से होती है। जातक पढ़ने लिखने में अग्रणी होता है। शनि से संबंध होने पर भी संतान विलंब से होती है या संतान की कमी महसूस करता है। कभी-कभी मूर्ख, विवेकहीन और अपमानित होता है। लोग उसके पीछे उसकी आलोचना करते हैं। मंगल से युत या दृष्ट होने पर संतान पर विपत्ति आती है। अधिक ज्ञान न होने पर भी लोगों के सामने ज्ञानी बन कर रहता है। यदि राहु से संबंध हो, तो संतान मूर्ख या हीन प्रकृति की होती है। चंद्र के साथ युति या दृष्टि संबंध हो तो माता की हानि होती है। जातक धनी, गुणवान, सरल, शांत और नम्र होता है किंतु संतान के लिए यह योग नुकसानदेह हो सकता है। कुंडली सं. 3 में पंचम भाव में सूर्य सिंह राशि में चंद्र, मंगल और बुध के साथ तथा गुरु की दृष्टि में है। इसलिए जातक मातृहीन और कन्याहीन है। परंतु उसके तीन पुत्र हैं। मंगल और बुध संतान के लिए अशुभ होने पर भी स्वगृही सूर्य और गुरु की दृष्टि के कारण शुभ फल दे रहे हैं। इस लग्न के लिए चंद्र कारक है। चतुर्थ का स्वामी होकर पंचम भाव में, मंगल लग्नेश होकर पंचम त्रिकोण में है। पंचमेश सूर्य पंचम भाव में है और बुध नपुंसक ग्रह होने के कारण सूर्य, चंद्र और मंगल के ही फल दे रहा है। गुरु की दृष्टि ने संतान भाव को बलवान बनाया है। किसी पाप ग्रह की दृष्टि नहीं है। इसलिए जातक ज्ञानी, शांत, सरल स्वभाव और लोकप्रिय हुए। लग्न में गुरु और शनि की युति और कई ग्रहों के साथ स्थित सूर्य पर गुरु की दृष्टि के कारण पर्याप्त लोकप्रियता मिली किंतु आध्यात्मिक क्षेत्र बाधित रहा। कुंडली सं. 4 में अग्नि तत्व लग्न मेष और अग्नि तत्व राशि सिंह में सूर्य, बुध और मंगल के कारण पंचम भाव अत्यधिक बलवान है, क्योंकि इस लग्न के लिए लग्नेश मंगल अग्नि तत्व ग्रह होते हुए अग्नि तत्व राशि सिंह में स्थित है। चंद्र भी सिंह राशि में स्थित है जो कारक है। अग्नि तत्व ग्रह सूर्य कारक होकर सिंह राशि में स्थित है अर्थात लग्नेश मंगल, चतुर्थ भाव का स्वामी चंद्र और पंचमेश सूर्य तीनों पंचम भाव में जबरदस्त राजयोग बना कर स्थित हैं। सूर्य, मंगल और अमावस्या के चंद्र तीनों पाप ग्रहों के साथ-साथ बुध भी पापी है और उस भाव पर कोई शुभ दृष्टि भी नहीं है। साथ ही उच्च का शनि कर्मेश होकर दशम से दशम सप्तम भाव में स्थित है। वह गुरु की दृष्टि में है। भाग्येश गुरु की भाग्य भाव पर है। दशम केंद्र स्थान में राहु शनि के घर में बलवान है। सुख भाव का कारक शुक्र सुख भाव में शनि की दृष्टि में स्थित है। कुल मिलाकर कुंडली बलवान है। परंतु अग्नि तत्व राशि पंचम भाव के प्रभाव के कारण जातक को मंत्री पद मिला। वह माॅरिशस में गृह मंत्री रहे और आज भी विरोधी दल के नेता हैं। अग्नि तत्व राशि के अतिरिक्त यदि ये सब ग्रह किसी अन्य राशि में होते तो वह इतने प्रभावशाली व्यक्ति नहीं होते। उनकी विवेक शक्ति, लोक संपर्क और ज्ञान इतना प्रबल है कि लोग उन्हें देखते ही प्रभावित हो जाते हैं। पंचम भाव से ये चार ग्रह एकादश भाव को देख रहे हैं। इसलिए जातक को अत्यधिक धन की प्राप्ति हुई। सूर्य की महादशा में वर्ष 1984 में 31 साल की आयु तक मंत्री पद मिल चुका था और चंद्र की महादशा में वर्ष 1994 तक बराबर राजनीति में सक्रिय मंत्री रहे। परंतु मंगल की महादशा में कुछ उतार-चढ़ाव आया फिर भी लोकसभा में विजयी रहे। राहु की दशा में ही और वर्तमान समय में राहु-शनि की दशा में साढ़े साती शनि के कारण हार हुई। फिर भी जनता की प्रशंसा मिलती रही। जनता के बीच मान-सम्मान मिला। साढ़े साती शनि के पश्चात दशम का राहु उन्हें प्रधानमंत्री बना सकता है क्योंकि 90 का राहु और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में स्वामी सूर्य इस लग्न के लिए कारक होकर अपनी मूल त्रिकोण राशि में अग्नि तत्व राशि में पंचम भाव में स्थित है। इन ग्रहों के अलावा शनि सप्तम केंद्र स्थान में उच्च का पंचमहापुरुष योग बना रहा है और उस पर गुरु की दृष्टि भी है। इस कुंडली में सिंह राशि पंचम भाव में चार ग्रह अग्नि तत्व राशि में बलवान हैं। यह योग उन्हें कभी भी राजनीति से अलग नहीं करवा सकता। राहु और गुरु की महादशा का काल भी जीवन का उत्तम समय साबित होगा। अग्नि तत्व राशि धनु पंचम भाव में सूर्य होने पर संतान का सुख अलग-अलग प्रकार का होता है। यह योग संतान तो देता है परंतु संतान का सुख भी दे यह आवश्यक नहीं क्योंकि सूर्य संतान को खराब भी कर सकता है। किंतु यदि पाप ग्रह की दृष्टि हो, तो उसकी पढ़ाई-लिखाई व प्रज्ञा शक्ति में अत्यधिक वृद्धि करवाता है। वह दूसरों को सलाह देने में प्रवीण होता है क्योंकि यदि धनु राशि में सूर्य हो और पंचम भाव हो तो जातक ज्ञानी, पंडित, स्पष्टवादी, बुद्धिमान, मंत्रियों को उपदेश देने वाला, निष्पक्ष और कर्मयोगी होता है। वह अपने प्रियजनों से घनिष्ठ संबंध बनाए रखने वाला होता है। बाहरी लोगों से भी उसका संबंध अच्छा रहता है। प्रतिष्ठित व्यक्ति उसकी कदर करते हैं। उन लोगों से उसे फायदा भी मिलता है। यदि सूर्य के साथ चंद्र हो, तो जातक गुप्त कर्म में माहिर होता है किंतु अधिक धन कमाने के बावजूद वह कंजूस होता है। यदि मंगल के साथ युति या दृष्टि संबंध हो, तो संतान के लिए हानिप्रद होता है - विशेषकर पुत्र संतान के लिए। जातक को भूसंपत्ति का पर्याप्त लाभ मिलता है। वह भाग्यवान तो होता है परंतु उग्र स्वभाव के कारण उसके बहुत से शत्रु होते हैं। जनता के बीच लोकप्रियता, प्रबल अंतज्र्ञान शक्ति और विलक्षण प्रतिभा के कारण उसके शत्रु उससे जलते हैं। यदि बुध के साथ संबंध हो तो बुद्धि कौशल के कारण वह हर कार्य में सफल होता है। किंतु यदि शनि के साथ संबंध हो तो जीवन शक्ति में ह्रास होता है। जातक निःसंतान होता है या संतान मूर्ख हो सकती है। कुंडली सं. 5 उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह की है। इस कुंडली में अग्नि तत्व राशि धनु में पंचम भाव में सूर्य एवं बुध स्थित हैं। अग्नि तत्व लग्न में अग्नि तत्व ग्रह मंगल के साथ केतु और अग्नि तत्व राशि मेष में चंद्र भी है। इसलिए जातक के स्वभाव में उग्रता है। इस योग का जातक क्रोधी, बदले की भावना वाला, निडर और मंजिल तक पहुंचने वाला होता है। तात्पर्य यह कि अग्नि तत्व राशि में अग्नि तत्व ग्रहों का प्रभाव जितना अधिक होता है उतना दूसरी राशियांे में नहीं होता। इस कुंडली में पंचम भाव में बुधादित्य योग है। चतुर्थ एवं भाग्य का स्वामी मंगल लग्न में चंद्र से त्रिकोण स्थान में सूर्य से भाग्य स्थान में विराजमान है। नवांश कुंडली में मंगल स्वगृही वृश्चिक राशि में, चंद्र सिंह राशि में और अधिक बलवान होकर स्थित हैं। परंतु नवांश में नीचस्थ सूर्य, नीचस्थ गुरु और नीचस्थ शनि ने जातक को जितना ऊपर उठाया, उतना ही नीचे भी गिराया। धनु राशि पंचम भाव में सूर्य लग्नेश होकर विद्या, अंर्तज्ञान शक्ति और परामर्श की पर्याप्त क्षमता दी क्योंकि वह गुरु से केंद्र में है। परंतु पुत्र मोह के कारण कुछ बदनामी भी मिल सकती है क्योंकि भाव चलित में बुध एवं शुक्र पंचम भाव में हैं। सूर्य एवं शनि छठे भाव में हैं। मंगल एवं गुरु द्वितीय भाव में हैं। इन ग्रहों की स्थिति में परिवर्तन के कारण अग्नि तत्व राशि में सूर्य क प्रभाव में काफी कमी आ गई है। इसी तरह लग्न से सप्तम भाव में प्राकृतिक पाप ग्रह राहु और छठे भाव में सप्तमेश शनि की स्थिति के फलस्वरूप पत्नी या दूसरी स्त्री के कारण बदनामी मिली होगी। फिर भी कई राजयोगों के कारण राजनीति में अपना महत्व बनाए हुए हैं। यदि चंद्र लग्न से देखा जाए तो केंद्र त्रिकोण में अधिक ग्रह होने के कारण जातक अंतिम समय तक बलवान रहेंगे। जहां तक अग्नि तत्व राशि में धनु राशि में सूर्य के फल का प्रश्न है, जातक अपने कर्म जीवन में समय-समय पर अपनी शक्ति दिखाते रहेंगे और गिरते भी रहेंगे क्योंकि दशमांश कुंडली में बुध बलवान है। लग्न के दशम भाव का स्वामी तुला राशि में स्वगृही है। दशमंाश में उच्च का है और नवांश में दशम भाव में शुक्र एवं राहु बलवान हैं। जन्म से 23 साल की उम्र तक जातक की विद्या अवश्य अच्छी रही होगी। 1975 से 1993 तक वह राजनीति में काफी ऊंचाई तक पहुंचे। 1993 से 2009 तक गुरु की दशा में काफी उतार-चढ़ाव आए क्योंकि इस लग्न के लिए गुरु पंचमेश के साथ-साथ अष्टमेश भी है और अष्टम भाव को देख भी रहा है। इसलिए बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने के बाद उनका नाम चर्चित रहा। कोर्ट कचहरी में बहुत भागदौड़ रही और बदनामी भी मिली क्योंकि चंद्र कुंडली से गुरु छठे भाव में और राहु प्राकृतिक पाप ग्रह वर्गोत्तम होकर बलवान हो गए हैं। गुरु और मंगल की दशा इस वर्ष नवंबर के मध्य दोबारा राजयोग मिलेगा और वह फिर से उच्च पद प्राप्त करेंगे। यदि अग्नि तत्व राशि धनु में होने के बावजूद सूर्य नवांश में कमजोर नहीं होता तो वह अभी अपने पद पर बने होते। कुंडली सं. 6 एक स्त्री की है। इस कुंडली में लग्नेश सूर्य पंचम भाव में धनु राशि मंे स्थित है। सूर्य के दोनों तरफ प्राकृतिक शुभ ग्रह बुध एवं शुक्र के कारण पंचम भाव शुभ कर्तरी योग में और अधिक शुभ बन गया। सूर्य पर योगकारक ग्रह मंगल की दृष्टि है, इसलिए राजयोग भी है। परंतु नवांश में सूर्य के नीचस्थ होने के कारण उसकी शुभता में कुछ कमी आ गई। जातका एक राजघराने की कन्या है, इसलिए उसे जन्म से सुख मिलता आया है। जन्म के समय गुरु की महादशा 14 वर्ष 9 महीना 18 दिन शेष थी। वर्तमान समय में उस पर शनि की महादशा प्रभावी है जो 24.10.09 तक चलेगी। इस कुंडली में मंगल एवं शुक्र के परिवर्तन योग और गुरु की दृष्टि के चतुर्थ भाव और शुक्र अधिक बलवान हैं। इसलिए जातका को भविष्य में हर प्रकार का सुख तो मिलेगा ही, राजनीति में भी सफलता मिलेगी। जहां तक पंचम भाव सूर्य का संबंध है, उसकी स्थिति के कारण विद्या तो मिली ही, भविष्य में कोई उच्च पद पद मिलने की संभावना भी प्रबल है। जातका की विवेक शक्ति भी प्रखर है। इसलिए परामर्श क्षमता भी प्रबल होगी। जातका की संतान का विचार करते समय पति की कुंडली भी देखनी चाहिए। सूर्य पंचम भाव में एक पुत्र का सुख अवश्य देगा। पंचम से पंचम नवम भाव में स्थित केतु मेष राशि में बैठकर सूर्य को देख रहा है। साथ ही मंगल की दृष्टि भी है। इस तरह पाप ग्रह की दृष्टि के कारण संतान पक्ष में कुछ खराबी भी हो सकती है। बुध की महादशा में जातका वर्ष 2026 तक घर से बाहर रहेगी क्योंकि इस कुंडली में बुध षष्ठ, बृहस्पति अष्टम और शनि द्वादश भाव में है। कुंडली में छठा, आठवां और बारहवां भाव बलवान हों, तो जातक अधिक समय तक विदेश यात्रा भी करता है। इस कुंडली में जब सूर्य की दशा आएगी तब जातका की वृद्धावस्था होगी। वृद्धावस्था में राजयोग मिलेगा। उसके पहले 2032 से शुक्र की महादशा में उसे हर प्रकार का भौतिक सुख मिलेगा। कुंडली में अग्नि तत्व राशि सिंह का स्वामी सूर्य अग्नि तत्व राशि धनु में पंचम त्रिकोण राशि में गुरु से केंद्र में और शुभ कर्तरी में होने के कारण विशेष प्रभावशाली रहेगा। लोग उनसे बात करते समय भयभीत भी होंगे।