संजीवनी विद्द्या महामृत्युंजय मंत्र प्रयोग
संजीवनी विद्द्या महामृत्युंजय मंत्र प्रयोग

संजीवनी विद्द्या महामृत्युंजय मंत्र प्रयोग  

व्यूस : 6906 | मई 2009
मृत संजीवनी विद्या महामृत्युंजय मंत्र के तांत्रिक प्रयोग डाॅ. अशोक शर्मा जन्मकुंडली में बालारिष्ट या मारकेश की महादशा या अंतर्दशा हो और इन कारकों का संबंध शुक्र से हो अर्थात शुक्र मारकेश हो व दशा भी शुक्र की हो तथा रोग या दुर्घटना की आशंका हो, तो शुक्रोपासना महामृत्यंुजय के तंत्र का प्रयोग कराने से आशंका को टाला जा सकता है। यह शाश्वत सत्य है कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। किंतु हमें वेद, पुराण तथा अन्य शास्त्रों में मृत्यु के पश्चात पुनः जीवित होने के वृत्तांत मिलते हैं। गणेश का सिर काट कर हाथी का सिर लगा कर शिव ने गणेश को पुनः जीवित कर दिया। भगवान शंकर ने ही दक्ष प्रजापति का शिरोच्छेदन कर वध कर दिया था और पुनः अज (बकरे) का सिर लगा कर उन्हें जीवन दान दे दिया। सगर राजा के साठ हजार पुत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए राजा भगीरथ सैकड़ों वर्ष तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए और सागर पुत्रों को जीवन प्राप्त हुआ। उक्त समस्त वृत्तांतों का प्रत्यक्ष संबंध शिव से है। ऐसे अनगिनत वृत्तांत शास्त्रों में मिलते हैं जिससे स्पष्ट होता है कि भगवान शिव, जो महामृत्युंजय भगवन भी कहलाते हैं, रोग, संकट, दारिद्र्य, शत्रु आदि का शमन तो करते ही हैं, जीवन तक प्रदान कर देते हैं। महर्षि वशिष्ठ, मार्कंडेय और शुक्राचार्य महामृत्युंजय मंत्र के साधक और प्रयोगकर्ता हुए हैं। ऋषि मार्कंडेय ने महामृत्यंुजय मंत्र के बल पर अपनी मृत्यु को टाल दिया था, यमराज को खाली हाथ वापस यमलोक जाना पड़ा था। लंकापति रावण भी महामृत्युंजय मंत्र का साधक था। इसी मंत्र के प्रभाव से उसने दस बार अपने नौ सिर काट कर उन्हें अर्पित कर दिए थे। शुक्राचार्य के पास दिव्य महामृत्युंजय मंत्र था जिसके प्रभाव से वह युद्ध में आहत सैनिकों को स्वस्थ कर देते थे और मृतकों को तुरंत पुनर्जीवित कर देते थे। शुक्राचार्य ने रक्तबीज नामक राक्षस को महामृत्युंजय सिद्धि प्रदान कर युद्धभूमि में रक्त की बूंद से संपूर्ण देह की उत्पत्ति कराई थी। महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से गुरु द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई थी, जिसके बारे में धारणा है कि वह आज भी जीवित है तथा उसे उसी देह में नर्मदा नदी के किनारे घूमते कई लोगों ने देखा है। महामृत्युंजय के विभिन्न मंत्र प्रचलन में हैं। महामृत्युंजय तंत्र नामक शास्त्र में कुल 13220 श्लोकों में महामृत्युंजय के यंत्र, मंत्र तथा तंत्र के प्रयोग का वर्णन है। यहां महामृत्युंजय मंत्र के कुछ प्रयोगों का विवरण प्रस्तुत है, जिनकी ‘महामृत्युंजय यंत्र’ तथा पारद शिवलिंग की पूजा में आवश्यकता होती है। जन्मकुंडली में बालारिष्ट या मारकेश की महादशा या अंतर्दशा हो और इन कारकों का संबंध शुक्र से हो अर्थात शुक्र मारकेश हो व दशा भी शुक्र की हो तथा रोग या दुर्घटना की आशंका हो, तो शुक्रोपासना महामृत्यंुजय के तंत्र का प्रयोग कराने से आशंका को टाला जा सकता है। शुक्रोपासना मृतसंजीवनी विद्या ‘‘¬ हौं जूँ सः ¬ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं, त्रयम्बकं यजामहे, भर्गो देवस्य धीमहि सुगन्धिंपुष्टिवर्धनं धियो योनः प्रचोदयात्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्, ¬ स्वः भुवः भूः ¬ सः जूँ हौं ¬ ।।’’ संजीवनी विद्या की प्राप्ति व प्रयोग सौभाग्य से ही संभव है। इसका तांत्रिक प्रयोग करने के पूर्व इस बात की जानकारी आवश्यक है कि अरिष्टकारी ग्रह किस नक्षत्र में है। उस नक्षत्र के वृक्ष के पंचांग तथा पूजन सामग्री से पारद शिवलिंग तथा शुद्ध धातु पर निर्मित महामृत्युंजय यंत्र का विधिवत पूजन अभिषेक उक्त संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र बोलते हुए करना चाहिए। गंभीर रूप से बीमार कोई रोगी पूजन, जप आदि प्रयोग नहीं कर सकता अतः उसके लिए किसी योग्य पंडित से उक्त कार्य कराया जा सकता है। रोग की स्थिति के अनुसार अभिषेक की सामग्री में भी परिवर्तन किया जा सकता है। रोगी की स्थिति मरणासन्न हो, तो मृत्योच्चाटन के संकल्प के साथ सरसों के तेल से अभिषेक करना चाहिए। मस्तिष्क रोग से मुक्ति के लिए शंखपुष्पी एवं ब्राह्मी तथा भांग के मिश्रण को दूध व जल में छान कर अभिषेक करना चाहिए। मधुमेह से मुक्ति के लिए काले जीरे, मेथी और काली मिर्च का चूर्ण जल में मिलाकर अभिषेक करना चाहिए। हड्डियों के रोग से मुक्ति के लिए आम्बा हल्दी से और आंखों की रक्षा के लिए बादाम, सौंफ तथा काली मिर्च के शर्बत से पूजा अभिषेक करना चाहिए। रोगी को अभिषेक के निर्माल्य का प्रसाद स्वरूप सेवन करना चाहिए। ऊपर वर्णित प्रयोगों के अतिरिक्त और भी कई गुप्त प्रयोग हैं जिनसे कई रोगों से रक्षा, ऋण से मुक्ति, दाम्पत्य सुख, संतान सुख, समृद्धि, यश, और विजय की प्राप्ति तथा दारिद्र्य का शमन हो सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि ये सारे प्रयोग निष्ठा और नियमपूर्वक किए जाएं।



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