भृगु संहिता फोरकास्ट सूत्र
भृगु संहिता फोरकास्ट सूत्र

भृगु संहिता फोरकास्ट सूत्र  

नंद किशोर पुरोहित
व्यूस : 20857 | जनवरी 2004

ईश्वरीय विद्या कहलाने वाले ज्योतिष से आज संपूर्ण मानव जगत में कोई अछूता नहीं है। ब्रह्मांड में गतिशील ग्रह, नक्षत्र, सितारों के प्रभाव में आज ही नहीं, वरन जबसे सृष्टि की रचना हुई, उसी समय से पृथ्वीवासी इनके प्रभाव में है। मानव जगत ने इनका ज्ञान समय-समय पर ले कर अपने जीवन को काफी उच्चस्तरीयता प्रदान की है

तथा जीवन को काफी सरल बनाया है। मनुष्य को अपने भविष्य के गर्भ में छुपे रहस्यों को जानने की जिज्ञासा आदि काल से ही रही है। इन्हीं जिज्ञासाओं के कारण ही मनुष्य को ऐसे ज्ञान की आवश्यकता पड़ी, जो उसके जीवन को मार्गदर्शन प्रदान कर सके तथा उनके जीवन को गतिशील बना सके। इसी कड़ी में मानव ने आकाश में विचरण कर रहे तारे, आकाशीय ग्रह, धूमकेतुओं आदि का अध्ययन आरंभ किया। सृष्टि के निर्माण के साथ ही मानव मस्तिष्क में इस तरीके के ख्याल पैदा होते गये कि ईश्वर ने मनुष्य को क्यों बनाया है और मनुष्य के जीवन का उद्देश्य क्या है? उसका जीवन कितना है?

इन बातों का अध्ययन करने के लिए उसने खगोलीय गणनाओं, ग्रह-नक्षत्रों, नीहारिकाओं, उल्काओं, धूमकेतुओं आदि की गति का अध्ययन किया, उसे लगा कि ये मानव के जीवन पर गहरा असर छोड़ते हैं। इसके लिए उसने कई तरीके की भविष्य जानने संबंधी विधियों का विकास किया। इस कड़ी में ज्योतिष ज्ञान उसे सर्वदा उचित लगा। प्राचीन काल में भविष्य संबंधी इस ज्ञान को, परम ईश्वर ब्रह्मा के द्वारा, तीनों लोकों तक पहुंचाया जाता था। फिर भारतीय प्राचीन शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा से यह विद्या सनकादि ऋषि के पास पहुंची। सनकादि ऋषि के पश्चात यह, नारद, भृगु तथा अन्य अनेकानेक ऋषियों से होते हुए, आज आधुनिक मनुष्य के पास पहुंची, जिसने इसे कंप्यूटर तक पहुंचाया।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


किंतु फिर भी आज ज्योतिषियों तथा आम व्यक्ति की यही परेशानी होती है कि भूत काल तो मिल जाता है, वर्तमान भी कुछ सीमा तक मिल जाता है, किंतु भविष्य संबंधित गणनाएं सही होने पर भी, व्यक्ति के भविष्य संबंधी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती है। वैसे तो ज्योतिष में कई विधियां हैं, किंतु सभी में, सूक्ष्म गणनाओं के बावजूद भी, भविष्य कथन सही नहीं उतरता है, तो उसे आज तक भृगु संहिता का रहस्यमय गणनाओं से परिचय नहीं हुआ।

भृगु ऋषि द्वारा रचित भृगु संहिता में भूत काल, भविष्य काल एवं वर्तमान काल की सही घटनाओं का विवरण लिखा हुआ होता है। वह जिनके प्राचीन भृगु संहिता से लिये गये हैं। इन सूत्रों को काफी भली भांति जांचा और परखा गया है। 10वें घर में सूर्य, या शनि, या राहु, या मंगल होने पर जातक का पिता के साथ मतैक्य नहीं होता, अर्थात वैचारिक मतभेद होते हैं। मकर और कुंभ राशि में अगर सूर्य हो, तो वह व्यक्ति, अपने परिवार की योजनाओं, या कार्यों पर अमल नहीं कर के, अपना रास्ता स्वयं ढ़ूढ़ता है। वह अपने जीवन में संघर्ष करता है। उसके पश्चात् उसे सफलता मिलती है।

पिता को शुरुआती दौर में परिवर्तनशील बनाता है, अर्थात पिता के लिए कष्टकारक होता है। तृतीय भाव में मंगल, शनि, अथवा राहु होने पर भाइयों से नहीं बनती। भाईयों में मतभेद होते रहते हैं। धनु राशि का शुक्र होने पर जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता। वह जातक के सहज सुख में, किसी भी कारण से, कमी लाता है; कारण चाहे कुछ भी हो।

द्वितीय, अथवा अष्टम स्थान का बृहस्पति जातक के कार्यों में एकरूपता नहीं लाता। ऐसा जातक एक से अधिक कार्य करता है तथा व्यापार के प्रति उसका लगाव अधिक रहता है। ऐसे जातक का स्वयं का व्यापार भी करीब 13 माह तक अच्छा चलने पर, उसके उपरांत वह व्यापार पर अधिक ध्यान नहीं देता, पर वह व्यापार को करीब साढ़े 3 साल चलाने और अंत में बंद करने को विवश हो जाता है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


ऐसा जातक स्वयं कमाई न कर के बल्कि दूसरे व्यक्तियों के लिए कमाता है; अर्थात वह दूसरे व्यक्तियों को कमा कर देता है। कन्या राशि में बृहस्पति के साथ केतु होने पर जातक में काफी हद तक एकरूपता, अर्थात स्थिरता होती है। जातक यशस्वी बनता है और रंक से राजा बन जाता है। लेकिन अंत इनका बुरा होता है। उदाहरण है हिटलर की जन्मपत्रिका। बृहस्पति के साथ चंद्रमा होने पर जातक को प्रत्येक क्षेत्र में धोखा खाना पड़ता है।

प्रथम, द्वितीय, या 12वें घर में केतु होने पर पितृ दोष होता है। इस कारण घर के पास में एक मकान का बंद होना, मकान में कोई नहीं रहना, विधवा औरत रहना अथवा मकान की जर्जर स्थिति होना, मकान के पास कचरे का ढेर (उभरा हुआ ऊंचाई तक) होना, दरवाजे के पास, या सामने बिजली, या टेलिफोन का खंभा होना, या घर के एक व्यक्ति को रात में नींद नहीं आना, या उस व्यक्ति को भय महसूस होना, इन में से कोई एक या अधिक भी हो सकते हैं और आजकल कुत्ता पालते हुए भी देखा गया है।

मंगल छठे, या दूसरे घर में होने पर जातक 28 से 32 साल और 51 से 54 साल के मध्य जमीन-जायदाद संबंधी स्थायी संपत्ति लेता है। चंद्रमा 12वें घर में होने पर व्यक्ति मानसिक चिंताओं से ग्रसित रहता है। बृहस्पति उच्च का (कर्क राशि में) होने पर नकारात्मक परिणाम देगा। अगर कोई ग्रह वक्री होगा, तो अपने से 7वें घर का फल देगा। लड़के की कुंडली में तीसरे घर का केतु हो, तो जातक भाइयों में और अगर लड़की की कुंडली में हो, तो वह बहनों से सबसे छोटा होगा, बशर्ते केतु अपनी राशि का न हो तथा अपने साथ में किसी अन्य ग्रहों को नहीं बैठा, रखा हो और उच्च, या नीच का न हो। केतु (उपर्युक्त से) के विपरीत राहु होने पर जातक बड़ा होगा।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


केतु बृहस्पति की राशि (धनु,मीन) का नहीं होना चाहिए तथा राहु शनि की राशि (मकर, कुंभ) का भी नहीं होना चाहिए। पांचवें घर में मंगल, शनि, अथवा राहु होने पर शादी के पूर्व की स्थिति दर्शाता है। इसमें ‘प्रथम प्रेम’ या सगाई छूटती है तथा चमक-दमक के जीवन में असफलता मिलती है। इंटरव्यू, या प्रतिस्पद्र्धा में उपाय नहीं किया जाए, तो असफलता हाथ लगती है। लग्न में बृहस्पति उच्च का (यानी कर्क राशि का) होने पर वह जातक के चरित्र का हनन कराता है। ऐसा जातक बहन के समकक्ष औरत के साथ व्यभिचार कर्म करता है, या फिर जिससे शादी होती है,

उसे बहनतुल्य मानता है। उच्च का बृहस्पति जिस भाव में बैठा हो, तो उससे नौवें भाव को खराब करता है। सूर्य और शनि एक साथ बैठने पर शुक्र को हानि पहुंचाते हैं। सप्तमेश का बुध एजेंटस्वरूप कार्य देता है; अर्थात ऐसा जातक कमीशन, या एजेंट शब्द का उपयोग करें। शनि और राहु पहले, दूसरे, या बारहवें घर में हो, तो जातक तांत्रिक व्यभिचार कर्म करता है।

वर्ष कुंडली, या गोचर में भी यदि पहले, दूसरे और बारहवें भाव में शनि और राहु हों, अथवा राहु की दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर, या सूक्ष्मांतर में शनि की युक्ति हो, तो भी जातक तांत्रिक व्यभिचार कर्म करता है। सूर्य के साथ केतु होने पर भी पितर दोष होता है। कर्क राशि का बुध आयु के 32 से 36 वर्ष के मध्य कर्जदार बनाता है तथा आर्थिक रूप से हानि पहुंचाता है।

कर्क का सूर्य और 12वें घर का बृहस्पति वैवाहिक जीवन को कष्टप्रद बनाएगा। केंद्र में मंगल, या अन्य स्थान में स्वराशि, या उच्च का होने पर क्रोधी स्वभाव होता है। दूसरे घर में मंगल, शनि, या राहु हो, तो शिक्षा (डिग्री स्तर पर) में रुकावट करता है।

चैथे घर में चंद्रमा, या द्वादश भाव का चंद्रमा विदेश यात्रा के योग बनाता है। सप्तम भाव में सूर्य और बुध होने पर विवाह में देरी होती है, या फिर सगाई लंबी अवधि तक चलती है। पंचम भाव, या एकादश भाव में बृहस्पति होने पर या तो 3 लड़के, या 3 लड़कियां होंगे।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.