मनुष्य और कुत्ते के प्रेम का कोई सानी नहीं है। सदियों से हम ऐसी कहानियां सुनते आ रहे हैं। जिसमें कुत्ते ने अपने मालिक के प्रति वफादारी दिखाते हुए अपने प्राण दे दिए अथवा मालिक की मृत्यु के पश्चात् स्वयं भी खाना-पीना छोड़ दिया और अन्ततः मृत्यु को प्राप्त हो गया। मेरी मित्र ने अपने घर तीन मादा कुत्ते पाले हुए हैं और उनसे वह अपनी बेटियों की तरह प्यार करती है। अपने साथ बिस्तर पर सुलाती है उनके नाम भी बच्चों के नाम की तरह हैं और उन्हें बेटी कह कर ही पुकारती है। देखने वाले को थोड़ा अजीब लग सकता है। पर इस बेजुबान जानवर का प्यार सब कुछ कह देता है और सामने वाला भी उसे उसी तरह प्यार करने को बेबश हो जाता है। ऐसा ही बेबाक प्यार असीम को अपने कुत्ते से था। वह विप्रो कम्पनी में एक बड़े पद पर नौकरी करता था जिससे उसकी व्यस्तता काफी रहती थी। शाम को जब घर पहुंचता तो पत्नी तो अक्सर अपनी किसी पार्टी या किसी सहेली के घर होती। उसका कुत्ता एलेक्जेण्डर ही उसके अकेलेपन का साथी होता। वह असीम का साथ एक पल के लिए भी नहीं छोड़ता था और जब तक असीम उसके साथ कुछ देर खेल न ले उसे चैन नहीं पड़ता था। असीम की पत्नी नेहा को एलेक्जेण्डर बिल्कुल पसंद नहीं था इसलिए असीम ही एलेक्जेण्डर का सारा काम करता था। असीम को अपने काम के सिलसिले मंे अक्सर बाहर जाना पड़ता था तो उसे एलेक्जेण्डर की विशेष चिन्ता रहती थी और वह अपने नौकर को खास हिदायत देकर जाता था ताकि एलेक्जेण्डर को कोई दिक्कत का सामना न करना पड़े। एक दिन जब असीम बाहर गया हुआ था तो नौकर को भी किसी आवश्यक काम से अपने घर जाना पड़ा और वह एलेक्जेण्डर की जिम्मेदारी नेहा पर छोड़कर चला गया। नेहा एक नम्बर की काम चोर थी। उसने एलेक्जेण् डर को खाना तक नहीं दिया और उसके भौंकने पर भी उसे डांट-डपट दिया। प्यार और डांट दोनों ही भाषा जानवर अच्छी तरह समझते हैं। शायद वह उसकी डांट व बेरुखी को सहन नहीं कर पाया और असीम की अनुपस्थिति में वह घर से चला गया। नेहा ने तो उसे ढूंढ़ने की भी कोशिश नहीं की और मन ही मन बड़ी खुश हुई कि अच्छा हुआ बला टली। असीम जब टूर से लौटकर आया तो आते ही एलेक्जेण्डर के बारे में पूछा और नेहा के यह बताने पर कि वह कहीं खो गया है तो वह आपे से बाहर हो गया कि उसने उसका ख्याल क्यों नहीं रखा। बाहर तेज बारिश हो रही थी पर उसने बारिश का भी ख्याल नहीं किया और ऐसे ही उसे ढंूढ़ने निकल गया। तीन-चार घंटे तक वह उसे ढूंढ़ता रहा और थक हार कर पुलिस में रिपोर्ट कर घर आ गया। ये सिलसिला कई दिन चला। वह रोज एलेक्जेण्डर को दूर-दूर तक ढूंढता रहा पर एलेक्जेण्डर नहीं मिला। अन्ततः असीम उसकी याद में इतना टूट गया था कि उसकी भूख-प्यास बंद हो गई और वह बिल्कुल हताश हो गया था इसी बीच उसे बुखार रहने लगा। उसकी पत्नी ने उसको समझने की जरा भी कोशिश नहीं की और उसको दिन-रात जली-कटी सुनाती रहती और न ही उसके खाने का ध्यान रखती। एक ओर एलेक्जेण्डर की याद और दूसरी ओर तन्हाई और पत्नी की बेरूखी सब ने असीम को तोड़ दिया और एक दिन वह आॅफिस में ही बेहोश होकर गिर पड़ा। आॅफिस वाले उसे हाॅस्पीटल ले गये लेकिन असीम होश में नहीं आया और कौमा में चला गया। डाॅक्टरों ने भरसक प्रयत्न किये पर जब असीम कौमा से बाहर नहीं आया तो उन्होंने सब ईश्वर पर छोड़ दिया। असीम की पत्नी की बेरूखी अभी भी वैसी ही थी। उसने असीम के भाई और बुआ को बुला लिया और उनसे असीम की देखभाल करने को कहा। असीम की बुआ असीम से बेहद प्यार करती थी। वह उसकी सलामती के लिए एक ज्योतिषाचार्य के पास गईं तो उसने उन्हें बताया कि अगले 15 दिन तक का समय भारी है और 10 सितम्बर 2009 को असीम को होश आ सकता है। इसके साथ-साथ उसने ग्रहों की सामग्री का दान और सवा लाख महामृत्यंजय मंत्र का जप करने की हिदायत दी। बुआ जी ने सारी पूजा और दान अत्यन्त श्रद्धा से नियमानुसार किये और यह ईश्वरीय चमत्कार ही था कि 10 सितंबर को असीम ने अपनी आंखंे खोल लीं। डाॅक्टर भी यह चमत्कार देख कर अचम्भित रह गये और उन्होंने ईश्वर के साथ-साथ उस ज्योतिषी को भी धन्यवाद दिया जिसने असीम के ठीक होने के उपाय बताए थे। आइये देखें असीम की कुंडली के ग्रहों का खेल और क्या कारण था कि जहां एक ओर असीम अपने कुत्ते को इतना प्यार करता था कि उसने उसे ढूंढ़ने के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं की और उसकी याद में कौमा में चला गया वहीं उसकी पत्नी न सिर्फ कुत्ते बल्कि असीम की तीमारदारी के लिए आए रिश्तेदारों को भी नहीं पूछती थी और उनके लिए खाने तक का इंतजाम नहीं करती थी। असीम की कुण्डली में लग्नेश चन्द्रमा व्यय भाव में स्थित है तथा लग्न भाव में नीचस्थ मंगल है जिसके कारण असीम अत्यन्त भावुक प्रकृति का व्यक्ति है। ज्योतिष के अनुसार मंगल की मूल त्रिकोण राशि मेष है तथा वह पशु स्वभाव की राशि है। इनकी कुण्डली में मंगल पंचम भाव का स्वामी भी है और उसका लग्न में चन्द्रमा की राशि में होने से असीम की पशु जाति रूपी कुत्ते के प्रति अपनी सन्तान से भी बढ़कर प्रेम की भावना उत्पन्न हुई कुण्डली में सप्तम तथा अष्टम भाव का स्वामी शनि अकारक होकर अपनी नीच राशि में वक्री होकर स्थित है जिसके कारण इनकी पत्नी क्रूर स्वभाव की कठोर व निर्दयी महिला थी। शनि की नीच दृष्टि इनके लग्नेश चन्द्रमा पर भी पड़ रही है जिसके फलस्वरूप इनकी पत्नी के गलत बर्ताव के कारण ही इनको इतनी बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा और इनकी पत्नी का व्यवहार इनके लिए कभी भी सकारात्मक नहीं हो पाया। असीम की सूक्ष्म रूप से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि इनकी कुण्डली में अधिकांश ग्रह पशु स्वभाव की राशियों मं स्थित हैं। पशु स्वभाव की सिंह राशि में भी चार ग्रह दूसरे भाव यानि मारक भाव में स्थित हैं जिसके फलस्वरूप ये अपने कुत्ते का दुःख सहन नहीं कर सके एवं अन्ततः मरणासन्न अवस्था (मारक जैसी स्थिति) में पहुंच गये। कुण्डली में लग्नेश और धनेश की युति दूसरे भाव में बन रही है तथा चन्द्रमा से तीसरे भाव में तीन शुभ ग्रह स्थित होने से शुभ लक्ष्मी योग भी बन रहा है जिससे इनकी नौकरी ऊंची कम्पनी में ऊंचे पद की थी तथा आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध थे। मृत्यु स्थान का स्वामी तथा मृत्यु कारक शनि नवमांश कुण्डली में उसी राशि में होने से वर्गोत्तमी है जिसके कारण असीम ग्रह शान्ति उपाय करने से मृत्यु तुल्य कष्ट से बच गये और उन्हें दोबारा जीवन दान प्राप्त हुआ। इनकी कुण्डली में पूर्ण काल सर्प भी घटित हो रहा है जिससे जीवन में इतने उतार-चढ़ाव भी आए। इस घटना क्रम पर विचार करें तो यह पूरा घटना चक्र शनि की महादशा में ही घटित हुआ और गोचर में भी शनि उस समय सिंह राशि में गोचर कर रहे थे और बुध,सूर्य,गुरु एवं शुक्र सभी ग्रहों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहे थे। चंकि सिंह राशि शनि की शत्रु राशि है और पशु जाति को भी दर्शाती है इसलिए शनि में सिंह के गोचर में असीम को पशु यानि कुत्ते से इतना कष्ट प्राप्त हुआ और कौमा की स्थिति तक पहंच गये। सभी ग्रहों यानि सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र व शनि के नित्य प्रतिदिन दान द्वारा इन ग्रहों को बल मिला और 10 सितम्बर 2009 को जैसे ही शनि देव ने कन्या राशि में प्रवेश किया सभी शुभ ग्रहों के शुभ प्रभाव से असीम कौमा से बाहर आ गये और ज्योतिषाचार्य का कथन भी सत्य हो गया।