लाल किताब के द्वादश भावों में शनि के उपाय निर्मल कोठारी शनि को काल भैरव अर्थात् न्याय का स्वामी माना गया है। इसे सूर्य पुत्र भी कहा गया है। इसके प्रभाव अन्य ग्रहों की तुलना में दीर्घकालिक होते हैं, क्योंकि बहुत मंद गति से चलने वाला ग्रह है। इसका घनत्व भी अन्य ग्रहों की तुलना में अधिक है। कुछ लोग मानते हैं कि यह राहु एवं केतु की मदद से पापियों को दंड देता है। शनि कोई दुष्टग्रह नहीं बल्कि एक तपस्वी ग्रह है। शनि के दुष्प्रभावों से बचने एवं उसकी कृपा की प्राप्ति हेतु नीचे दिए गए विशेष उपाय करने चाहिए। लग्न स्थित शनि अशुभ फल देता हो, तो उसे बंदरों की सेवा करनी चाहिए तथा चीनी मिला हुआ दूध बरगद के पेड़ की जड़ में डालकर वहां गीली मिट्टी से तिलक करना चाहिए। झूठ नहीं बोलना चाहिए और दूसरों की वस्तुओं पर बुरी दृष्टि नहीं डालनी चाहिए। शनि द्वितीय भावस्थ अशुभ फल देता हो, तो जातक को अपने माथे पर दूध या दही का तिलक लगाना चाहिए, भैंस की सेवा करनी चाहिए तथा सापों को दूध पिलाना चाहिए। शनि तीसरे भाव में स्थित शनि अशुभ फल देता हो, तो जातक को मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए और घर के किनारे वाले कमरे में अंधेरा नहीं रखना चाहिए। घर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में ही रखते हुए गणेश जी की उपासना करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त ऐसे शनि से पीड़ित जातको को तिल, नींबू व केले का दान करना चाहिए। काले तिल को पानी में प्रवाहित करने से भी लाभ होगा। नौ वर्ष से कम आयु की कन्याओं को यदि ऐसा जातक खट्टा भोजन दे, घर में काला कुŸाा पाले और उसकी सेवा करें और व्यवहार और चाल-चलन अच्छा रखे तो परेशानी कम हो जाएगी। चतुर्थ भावस्थ शनि अशुभ फल दे रहा हो, तो जातक कुएं में दूध डालकर, सांपों को दूध पिलाकर और बहते पानी में शराब डालकर लाभ उठा सकता है। उसे हरे रंग की वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए, न हीं काले कपड़े पहनने चाहिए। मजदूरों की सहायता करने और भैंस व कौओं को भोजन देने से भी शनि की पीड़ा कम हो सकती है। पंचम भाव में स्थित शनि अशुभ फल दे रहा हो तो जातक को अपने पास सोना एवं केसर रखना चाहिए। कभी-कभी मंदिर में कुछ अखरोट ले जाए, फिर उनमें से आधे वापस लाकर सफेद कपड़े में लपेट कर घर में रखे तो लाभ मिलेगा। उसे अड़तालीस वर्ष की आयु से पहले अपने लिए मकान नहीं बनाना चाहिए। साथ ही, नाक व दांतों को साफ रखना चाहिए। बहन, साली और मौसी की सेवा ऐसे जातकों को विशेष रूप से करनी चाहिए। लोहे का छल्ला पहनने साबुत हरी मूंग मंदिर में दान करने एवं दुर्गा की पूजा करने से शनि की पीड़ा कम होगी। षष्ठ भावस्थ शनि अशुभ फल देता हो, तो जातक को चमड़े तथा लोहे की बनी वस्तुएं छोड़कर पुरानी वस्तुएं खरीदनी चाहिए। सप्तम भावस्थ शनि अशुभ फल देता हो, तो जातक को शहद से भरा हुआ मिट्टी का बर्तन किसी निर्जन स्थान में रखना चाहिए। बांस या बांसुरी में चीनी या शक्कर भरकर किसी निर्जन स्थान में गाड़ देने से भी लाभ मिलता है। अष्टमस्थ भाव शनि अशुभ फल देता हो, तो जातक को अपने पास चांदी का टुकड़ा रखना तथा सापों को दूध पिलाना चाहिए। नवम् भावस्थ शनि अशुभ फल देता हो, तो अपने घर की छत पर ईंधन आदि नहीं रखना चाहिए, हरि की पूजा करनी चाहिए, चांदी के टुकड़े में हल्दी का तिलक लगाकर उसे अपने पास रखना चाहिए तथा घर के किसी किनारे के कमरे में अंधेरा रखना चाहिए। पीपल में जल देने के साथ-साथ गुरुवार का व्रत भी करना चाहिए। ब्राह्मण, साधु एवं कुल गुरु की सेवा करने, पीले धागे में हल्दी का टुकड़ा लपेट कर अपनी भुजा में बांधने चने की दाल और केले मंदिर में दान करने से शनि की पीड़ा क्षीण होती है। दशम (कर्म) भाव में स्थित शनि अशुभ फल देता हो, तो जातक को मांस, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। उसे अड़तालीस वर्ष की आयु से पहले मकान बना लेना चाहिए और चने की दाल तथा केले मंदिर में चढ़ाने चाहिए। एकादश भाव में स्थित शनि अशुभ फल देता हो, तो जातक को अपने घर में चांदी की ईंट रखनी चाहिए। उसे मांस, मदिरा आदि का सेवन और दक्षिणमुखी मकान में वास नहीं करना चाहिए। बारहवें (व्यय) भाव में स्थित शनि अशुभ फल देता हो, तो झूठ नहीं बोलना चाहिए। मांस, मदिरा, अंडे आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए। साथ ही, घर की अंतिम (बाहरी) दीवार में खिड़की या दरवाजा हो तो भी हटा देना चाहिए। उपर्युक्त बातों को अपनी जीवन शैली में लाकर शनि से पीड़ित कोई उसे व्यक्ति अपनी परेशानियों को कम करके लाभ उठा सकता है।