शनि ग्रह की शुभता के लिए उपाय
शनि ग्रह की शुभता के लिए उपाय

शनि ग्रह की शुभता के लिए उपाय  

व्यूस : 11908 | जुलाई 2008
शनि ग्रह की शुभता के लिए उपाय आचार्य रमेश शास्त्राी जन्मकुंडली अथवा गोचर के अशुभ शनि या शनि की दशा-अंतर्दशा की पीड़ा से प्रभावित जनों को तात्कालिक लाभ एवं प्रगति के लिए सदाचार, सद्व्यवहार व धर्म आदि को अपनी दिनचर्या में आवश्यक रूप से शामिल करना चाहिए। शनि की साढ़ेसाती, ढैया, विंशोत्तरी महादशा। आदि की अशुभता के प्रभाव को समाप्त करने के लिए शनि के तन्त्रोक्त अथवा वेदोक्त मंत्र का जप आदि भी लाभदायक होता है। किसी भी रूप में शनि से प्रभावित लोग जीवन में शनि की अनुकूलता व कृपा प्राप्त करने के लिए निम्न रत्न, यंत्र, मंत्र आदि उपाय करके सुख-समृद्धि हासिल कर सकते हैं। शनि यंत्र: यह यंत्र ताम्रपत्र निर्मित होता है। यदि शनि ग्रह की अशुभता के कारण अनावश्यक उपद्रव, धन खर्च, आदि हो रहा हो ऐसी परिस्थितियों में इस यंत्र की विधिपूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करके नित्य धूप-दीप दिखाएं व पूजन करें। फिर रुद्राक्ष की माला पर शनि बीज मंत्र का 108 बार जप करें। यदि यंत्र की पूजा न कर सकें तो शनि ग्रह का लाॅकेट धारण कर सकते हैं। शनि रत्न नीलम यह रत्न शनि ग्रह की शुभता के लिए धारण किया जाता है। इसे शनि ग्रह की महादशा या अंतर्दशा में धारण कर सकते हैं, परंतु इसे धारण करने से पूर्व किसी सुयोग्य अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श जरूर लें। शनि उपरत्न नीली: यह रत्न शनि ग्रह का उपरत्न माना जाता है। यदि आप नीलम धारण करने में असमर्थ हांे तो इस रत्न की अंगूठी अथवा लाॅकेट शनिवार को धारण कर सकते हैं। इसे धारण करने से शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों का शमन होता है। शनि कवच: यह कवच सात मुखी रुद्राक्ष एवं शनि ग्रह के उपरत्न नीली के संयुक्त मेल से बना होता है। शनि की साढ़ेसाती, ढैया, महादशा, अंतर्दशा से स आचार्य रमेश शास्त्राी, दिल्ली पीड़ित अथवा कुंभ एवं मकर राशि वाले व्यक्ति इस कवच को धारण कर सकते हैं। इस कवच को धारण करने से शनि जन्य अशुभ फलों में न्यूनता आती है। लोहे का छल्ला ः यह छल्ला शनि ग्रह की अनुकूलता के लिए शनिवार को स ा य ं क ा ल गंगाजल, धूप, दीप आदि से पूजन व शनि मंत्र का 108 बार उच्चारण करके दायें हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए। आप निम्न शनि मंत्रों में किसी भी मंत्र का अपनी सुविधा अनुसार जप कर सकते हैं- 1. वैदिक शनि मंत्र: शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शं योरभि स्रवन्तु नः।। 2. शनि तत्रोक्त मंत्र: ¬ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः। 3. शनि लघु बीज: ¬ शं शनैश्चराय नमः।



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