शनि क्रूर नहीं न्यायाधीश है सीता राम सिंह जनसाधारण में शनि को कष्टप्रदाता के रूप में अधिक जाना जाता है। किसी ज्योतिषाचार्य से अपना अन्य प्रश्न पूछने के पहले व्यक्ति यह अवश्य पूछता है कि शनि उस पर भारी तो नहीं। भारतीय ज्योतिष में शनि को नैसर्गिक अशुभ ग्रह माना गया है। शनि कुंडली के त्रिक (6, 8, 12) भावों का कारक है। पाश्चात्य ज्योतिष भी है। अगर व्यक्ति धार्मिक हो, उसके कर्म अच्छे हों तो शनि से उसे अनिष्ट फल कभी नहीं मिलेगा। शनि से अधर्मियों व अनाचारियों को ही दंड स्वरूप कष्ट मिलते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार शनि की कांति इंद्रनीलमणि जैसी है। कौआ उसका वाहन है। उसके हाथों में धनुष बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा हैं। शनि का विकराल रूप भयानक है। वह पापियों के संहार के लिए उद्यत रहता है। एक बार लक्ष्मी जी ने शनि से प्रश्न किया, ‘‘तुम क्यों मनुष्यों को धन हानि, रोग तथा कष्ट देते हो?’’ शनि ने कहा, ‘‘हे माता ! इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। परमात्मा ने मुझे तीनों लोका का न्यायाधीश नियुक्त किया है। दोषी व्यक्तियों को दंड देकर मैं केवल अपने कर्तव्य का पालन करता हूं।’’ अधिकतर मनुष्य यह सोचकर निश्चित हो जाते हैं कि उन्हें कुकर्म व अनाचार करते किसी ने नहीं देखा। परंतु कर्मफल प्रदाता शनि की दिव्य दृष्टि से कुछ भी नहीं छिप सकता और वह ऐसे दुराचारी व्यक्तियों को विशेष रूप से दंडित करता है। किंतु सत्कर्मी व्यक्ति शनि की कृपा का पात्र बनता है। किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में शनि की स्थिति उसके पिछले जन्मों के कर्मफल के अनुसार ही होती है। वृष और तुला लग्न वालों की कुंडली में शुभ भावस्थ शनि समृद्धि प्रदान करता है। यह मकर और कुंभ लग्न वाले जातकों का लग्नेश हो तो अति शुभ फलदायक होता है। यह मिथुन, कन्या, धनु और मीन लग्न वाले जातकों के लिए मिश्रित तथा शेष लग्नों मेष, कर्क, सिंह और वृश्चिक के लिए अशुभ फलदायक होता है। कुंडली में शनि नीचस्थ, पीड़ित अथवा अस्त होने पर कष्टकारी होता है। सभी ग्रह इस परिस्थिति में अशुभ फलदायक ही होते हैं। कुंडली के जिस भाव में शनि की शुभ या अशुभ स्थिति होती है, उस भाव संबंधी कार्यकत्व की व्यक्ति के जीवन में प्रधानता रहती है। शनि एक राशि का भ्रमण पूर्ण करने में लगभग ढाई वर्ष लेता है, इसलिए हर व्यक्ति पर कुंडली के उस भाव संबंधी दीर्घकालीन अच्छा या बुरा प्रभाव डालता है, जिसमें वह स्थित रहता है। कुंडली में शनि के चंद्र राशि और चंद्र राशि से अगले तथा पिछले भाव में गोचर के साढ़े सात वर्ष के काल को ‘साढ़ेसाती’ से संबोधित किया जाता है। यह कुंडली में चंद्र राशि से चैथे, और आठवें भाव से गोचर अशुभ ढैया कहलाता है। यह केवल चंद्र से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव से गोचर करते समय ही शुभ फल देता है, अन्य भावों में उसका फल मिश्रित होता है। जुलाई, 2007 से शनि सिंह राशि में गोचर कर रहा है इसलिए मिथुन, तुला और मीन राशि वालों के लिए यह अगस्त 2009 तक शुभ फलदायक रहेगा। इस समय कर्क राशि की अंतिम, सिंह राशि की मध्य तथा कन्या राशि वालों की आरंभिक साढ़ेसाती चल रही है। जन्मकुंडली में शनि की अशुभ स्थिति होने पर, साढ़ेसाती और ढैया के समय जातक को असफलता, दुख, धन हानि मानहानि, रोग, चिंता आदि का सामना करना पड़ता है अथवा उसके परिवार के किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है। जब किसी परिवार के कई सदस्य एक साथ साढ़ेसाती या ढैया के प्रभाव में होते हैं तब उसे विशेष कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। किंतु यदि दशा-भुक्ति तथा बृहस्पति का गोचर शुभ हो तो यह काल अधिक कष्टकारी नहीं होता। शनि प्रदत्त कष्टों के निवारण के उपाय साढ़ेसाती अथवा ढैया के समय शिव आराधना तथा ¬ नमः शिवाय मंत्र के यथा शक्ति जप से शनि जन्य कष्टों का निवारण होता है। शनि प्रदत्त कष्टों के निवारण हेतु हनुमान जी की आराधना भी विशेष लाभकारी है। पद्मपुराण में वर्णित दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ उत्तम उपाय माना गया है। बृहत पाराशर होराशास्त्र में उल्लेख है कि जिस समय जो ग्रह प्रतिकूल हो उस समय जातक उस ग्रह का यत्नपूर्वक पूजन करे, क्योंकि ब्रह्मा ने ग्रहों को आदेश दिया है कि जो व्यक्ति उनकी पूजा करे, उसका वे कल्याण करें। इसलिए शनि के कष्टकारक होने पर शनिवार को प्रातः नहा धोकर शनि मंदिर में प्रतिमा का काले तिल के तेल से तैलाभिषेक करें, फिर नीले फूल तथा काली साबुत उड़द, काले तिल, लोहा व गुड़ आदि चढ़ाकार पूजन करें। फिर रुद्राक्ष की माला पर ¬ शं शनैश्चराय नमः अथवा ¬ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः मंत्रा का 23,000 जप कर उसके दशांश का शमी की समिधा, देसी घी व काले तिल से हवन करना चाहिए। शनिवार को सायंकाल पीपल की जड़ में तिल के तेल का दीपक जलाने से भी शनि प्रदत्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। जिनका शनि शुभ हो तथा उसकी दशा, अंतर्दशा, साढ़ेसाती, ढैया आदि नहीं भी चल रही हों, उन्हें भी सुनहरे भविष्य के लिए शनि की उपासना, उसके मंत्रों का जप तथा स्तोत्र का पाठ करते रहना चाहिए। ध्यान रहे कि शनि पीड़ा का पूर्ण निवारण संभव नहीं है, उसे केवल कम किया जा सकता है। इस हेतु पूजा अर्चना के साथ धर्मानुकूल आचरण बनाए रखना भी जरूरी है। क्योंकि शनि क्रूर नहीं न्यायाधीश है। इसलिये यदि आचरण अच्छा रखेंगे तो शनि आपको कष्ट नहीं बल्कि शुभ फल ही देंगे।