शनि का यथार्थ
शनि का यथार्थ

शनि का यथार्थ  

व्यूस : 6730 | जुलाई 2008
शनि का यथार्थ अंजलि गिरधर शनैश्चर की शरीर-कांति इंद्रनील मणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। ये गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में क्रमशः धनुष, बाण, त्रिशूल और वर मुद्रा हैं। शनि भगवान सूर्य तथा छाया (संर्वण) के पुत्र हंै। इन्हें क्रूर ग्रह माना जाता है। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्म पुराण में इनकी कथा इस प्रकार है- बचपन से ही शनि देवता भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे। वे श्री कृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थीं। वे एक रात ऋतु-स्नान करके पुत्र प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर वे श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। उन्हें बाहरी संसार की सुध ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गईं। उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया। पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे आप देख लेंगे, वह नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। पत्नी को भी अपनी भूल पर पश्चात्ताप हुआ, किंतु शाप के प्रतिकार की शक्ति उनमें न थी। तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि उनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो। साधारणतः शनि की ढैया या साढ़ेसाती का नाम लेते ही लोग डर जाते हैं जो गलत है। शनि की सही स्थिति का अवलोकन करने के बाद ही निष्कर्ष निकालना चाहिए कि शनि की साढ़ेसाती या ढैया का फल क्या होगा। शनि की ढैया या साढ़ेसाती का फल कई बातों पर निर्भर करता है जैसे- जन्म-पत्रिका में शनि की चंद्र से सापेक्ष दूरी पर। जन्म-पत्रिका में शनि की स्थिति पर। जन्म-पत्रिका व गोचर में ग्रहों की तुलनात्मक स्थिति। पाद, वेध और प्रतिवेध पर। शनि अष्टकवर्ग में विभिन्न भावों को मिली रेखाओं एवं अशुभ बिंदुओं पर। जातक की दशा-अंतर्दशा पर। जन्म-कुंडली में शनि की नवांश में स्थिति पर। जन्म-कुंडली में शनि के षड्बल में बल पर। पूर्व जन्म व वर्तमान जन्म के कर्मों के फल पर। निम्न-वर्ग के साथ व्यवहार पर। दैनिक जीवन में सत्य व न्याय रत्न की धारण स्थिति पर। ऊपर वर्णित स्थितियों का अच्छी तरह विश्लेषण करने के बाद ही शनि की ढैया व साढ़ेसाती के फलित का विचार करना चाहिए, क्योंकि शनि न्यायाधीश है, कभी भी अकारण किसी को कष्ट नहीं देता। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण और वाहन गिद्ध है। इनका रथ लोहे का है। यह एक राशि में तीस महीने रहते हैं। यह मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। इनकी शांति के लिए मृत्युंजय का जप, नीलम धारण करना तथा ब्राह्मण को तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काले वस्त्र, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी, स्वर्ण आदि का दान करना चाहिए। चीनी पद्धति में एक सूत्र है जिससे हम शनि का वार्षिक फल जान सकते हैं। इस पद्धति में शनि के अलग-अलग वाहनों के अनुसार फलों का निर्धारण होता है। इसके लिए अपने जन्म-नक्षत्र से शनि के गोचरस्थ नक्षत्र तक गिनें। योग 9 से अधिक हो तो 9 से भाग दें। जो संख्या शेष बचे उसके अनुसार शनि का वाहन होगा। यदि शेष शून्य हो तो उसे 9 मानें। वाहन और उनके अनुसार फल निम्नलिखित हैं। 1 गधा: दुःख, वाद-विवाद 2 घोड़ा: सुख, संपŸिा, यात्रा 3 हाथी: उŸाम भोजन, सुख, लाभ 4 बकरा: विपरीत, असफलता, रोग 5 सियार: भय, कष्ट 6 शेर: विजय, लाभ, सफलता 7 कौआ: चिंता, मानसिक कष्ट 8 हंस: लाभ, जय, सफलता 9 मयूर: सुख एवं लाभ उदाहरणस्वरूप, मान लें, गोचर में शनि उŸारा फाल्गुनी नक्षत्र पर सिंह राशि में चल रहा है और किसी का जन्म पत्रिका में अश्विन नक्षत्र है। तो अश्विन नक्षत्र से उŸारा फाल्गुनी नक्षत्र तक गिनने पर 12 संख्या आई। अब नौ से अधिक होने के कारण हम बारह को नौ से भाग दें। शेष तीन आया जिसके अनुसार हाथी वाहन हुआ। इससे फल मिला- उŸाम भोजन, सुख, लाभ। इस प्रकार शनि की प्रकृति और गोचर में स्थिति देखकर समझकर समय रहते शनि प्रकोप के निवारण का यथोचित उपाय कर सकते हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.