शनि के बारे में आप क्या जानते हैं पं. सुनील जोशी जुन्नरकर सौरमंडल में गुरु के बाद शनि ग्रह स्थित है, जो भूमि से एक तारे के समान दिखाई देता है, परंतु उसका रंग काला सा है। शनि के पूर्वी पश्चिमी व्यास की अपेक्षा दक्षिणोत्तर व्यास लगभग 12,000 किमी कम है अर्थात् शनि पूर्णतः गोल न होकर चपटा है। इसके समान चपटा अन्य कोई ग्रह नहीं है। शनि के पिंड का व्यास 120000 किमी से भी ज्यादा है जो पृथ्वी के व्यास से 9 गुना अधिक है, इसका पृष्ठ भाग पृथ्वी की अपेक्षा 81 गुना और आकार 700 गुना अधिक है, परंतु इसके आकार के हिसाब से वहां द्रव नहीं है। शनि का प्राकृतिक वातावरण: शनि का घनत्व सभी ग्रहों से कम है, जो पृथ्वी के घनत्व का सातवां हिस्सा है। शनि पर द्रव पदार्थ पृथ्वी के पानी से भी पतला है, क्योंकि वहां उष्णता अधिक है। इस कारण वहां भाप उठती है। उसका वातावरण वायुरूप होने के कारण प्रवाही है। यह वातावरण प्राणियों के लिए अनुकूल नहीं है, इसलिए वहां जीवन नहीं है। शनि के पृष्ठ भाग पर नाना प्रकार के रंग चमकते हैं। इसके ध्रुव की ओर नीली, मध्य में पीली और शेष भाग में सफेद रेत का पट्टा तथा बीच-बीच में चमत्कारी बिंदु दिखाई देते हैं। शनि पृथ्वी से बिल्कुल भिन्न है। इसका वातावरण धूल के कणों और गैस के बादलों से भरा है। इन अपारदर्शी बादलों के कारण ही उसके स्वयं का जो थोड़ा सा प्रकाश है, वह बाहर नहीं आ पाता है, इसलिए वह निस्तेज दिखाई देता है। सूर्य पुत्र शनि: शनि अपने पिता सूर्य से 140 करोड़ 80 लाख किमी की दूरी पर स्थित है। इस अत्यधिक दूरी के कारण ही सूर्य का बहुत कम प्रकाश उस तक पहुंच पाता है, इसलिए वहां अंधेरा रहता है। सूर्य से चंद्र को जितना प्रकाश मिलता है उसका केवल 90वां हिस्सा ही शनि को मिल पाता है। चंद्र से जो प्रकाश हमें मिलता है, उसका केवल 16वां भाग ही शनि को उसके 7 प्रकाशित चंद्रों से मिल पाता है। इन कारणों से वहां ज्यादातर अंधेरा ही छाया रहता है। लेकिन, शनि की उष्णता उसके घटक द्रव्यों को ऊर्जा देने के लिए काफी है, यही कारण है कि वह निस्तेज होकर भी तेजस्वी है। शनि का कैलेंडर: शनि का एक दिन पृथ्वी के एक सौर मास के बराबर होता है और पृथ्वी के ढाई वर्ष के बराबर शनि का एक सौर मास होता है। लगभग इतने समय तक शनि एक राशि में भ्रमण करता है। इस दौरान वह कई बार वक्री और मार्गी हो जाता है, इस कारण उसका प्रभाव पिछली और अगली राशियों में भी बराबर बना रहता है। पृथ्वी के साढ़े 29 वर्षों के बराबर शनि का एक सौर वर्ष होता है। इतने ही वर्षों में शनि सूर्य की सिर्फ एक परिक्रमा पूर्ण कर पाता है। इसकी मंद गति के कारण ही शास्त्रों में इसे शनैश्चर कहते हैं। शनि के वलय: शनि के पृष्ठ भाग के चारों ओर 16000 किमी का स्थान खाली है। शनि के भव्य पिंड के चारों ओर दो छल्ले दिखाई देते हैं। ये उसके वलय हैं। इन वलयों के कारण ही शनि की आकृति पार्थिव शिवलिंग की भांति दिखाई देती है। ये वलय शनि के विषुवृत्त के चारों ओर पूर्व से पश्चिम में फैले हुए हैं। शनि की कक्षा अपने विषुवत वृत्त से 27 अंश का कोण बनाती है। इसके विषुववृत्त पर सूर्य साढ़े 29 वर्ष में दो बार आता है। जब शनि उत्तरी गोलार्द्ध में होता है तब वलय का दक्षिणी भाग और जब दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है तब उत्तरी भाग दिखाई देता है। कृष्ण पक्ष की अंधेरी रात में ही इसे देख पाना संभव है। इसके आंतरिक वलय का व्यास 2,33,000 किमी तथा बाहरी का 2,81,000 किमी है। कैसिनी उपग्रह द्वारा भेजी गई तस्वीरों का अध्ययन करने पर जेट प्रोपल्शन लेब के प्रमुख डोनाल्ड शेमानस्की ने पाया कि शनि के वलयों का क्षरण हो रहा है और अगले 10 अरब वर्षों में वलयों का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। ग्रहों की ज्योतिषीय गणना के आधार पर हम कह सकते हैं कि दो अरब चैंतीस करोड़ वर्ष बाद शनि की वलयों के साथ-साथ शनि और संपूर्ण ब्रह्मांड का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा अर्थात् संपूर्ण ब्रह्मांड शून्य में विलीन हो जाएगा। धर्मशास्त्रों में इसे जगत का परमात्मा में विलय कहा गया है। प्राचीन भारतीय खगोलविदों के अनुसार शनि का वलय चक्र बढ़ते-बढ़ते शनि के पृष्ठभाग के चारों ओर फैलती जा रहा है। 60 नहीं 8 चंद्रमा: शनि के 8 उपग्रह हैं, जो उसके चारों ओर घूमते हैं। इनमें से 7 उपग्रहों की कक्षा वलयांतर्गत ही है। इन 7 प्रकाशित चंद्रों के कारण ही शनि को सप्त नेत्रों वाला कहा गया है। ये उपग्रह ही उसके चंद्रमा हैं। शनि के अंदर का चंद्रमा शनि से मात्र 1,92,000 कि.मी. की दूरी पर है, जबकि पृथ्वी का चंद्रमा पृथ्वी से इसकी अपेक्षा दोगुनी दूरी पर स्थित है। वलय पर स्थित 7 चंद्रमाओं में से एक चंद्रमा बुध से भी बड़ा है। हो सकता है वह मंगल के बराबर हो। वैज्ञानिकों ने इसका नाम टाइटन रख दिया है। करोड़ों वर्षों की अवधि में शनि के इन चंद्रमाओं के योग से ही वलय बन गये हैं। ये चंद्रमा परस्पर निकट होने से अलग-अलग दृश्यमान नहीं होते। वैसे प्रत्येक चंद्रमा स्वतंत्र रूप से शनि के चारों ओर घूमते हैं। शनि के चारों ओर वलय में चमकते हुए चंद्रमा ऐसे लगते हैं, जैसे मानों शनि ने अपने कंठ में चमकते हुए सफेद मोतियों का हार पहन लिया हो। यह चंद्र हार ही शनि को सभी ग्रहों से अनूठा बनाता है। शनि के चंद्र पृथ्वी से अधिक दूरी पर होने के कारण बारीक तारों के समान नजर आते हैं। इन चंद्रों की कक्षा के मध्य 28 अंश का कोण है, इस कारण ग्रहण आदि कम ही होते हैं। शनि का वातावरण प्राणियों के रहने योग्य नहीं है, किंतु उसके चंद्रों पर सूक्ष्म जीवों के लिए वातावरण अनुकूल है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की पहले मान्यता थी कि शनि के 42 चंद्र हैं, किंतु आजकल वैज्ञानिक कह रहे हैं कि शनि पर 60 चंद्र है।। यह मान्यता इस संबंध में वैज्ञानिकों की अनिश्चितता को उजागर करती है। भारतीय खगोलविदों ने शनि के सिर्फ 8 चंद्र बताए थे। वस्तुतः किसी भी ग्रह के चंद्र न तो नष्ट होते हैं और न ही बढ़ते हैं। यदि ऐसा होता तो पृथ्वी के भी एक-दो चंद्र और उत्पन्न हो चुके होते। इस प्रकार, 8 और 60 में 52 चंद्रों का अंतर है जो बहुत बड़ा है। ये बाकी 23 शनि के चंद्र नहीं, बल्कि कोई खंडग्रह या क्षुद्रग्रह होंगे, जिन्हें वैज्ञानिक भ्रमवश चंद्र मान बैठे हैं। अभी थोड़े दिनों पहले, जब शनि पृथ्वी के करीब आया था, उसके सिर्फ 4 चंद्र ही देखे गए। इसका तात्पर्य यह हुआ कि बाकी 4 चंद्रमा शनि-पिंड के पीछे होने के कारण दिखाई नहीं दिए। निष्कर्ष यह कि शनि के 8 ही चंद्र हैं।