शनि खगोलीय और पौराणिक, ज्योतिषीय दृष्टिकोण
शनि खगोलीय और पौराणिक, ज्योतिषीय दृष्टिकोण

शनि खगोलीय और पौराणिक, ज्योतिषीय दृष्टिकोण  

व्यूस : 5868 | आगस्त 2008
शनि खगोलीय और पौराणिक, ज्योतिषीय दृष्टिकोण आचार्य अविनाश सिंह सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रहों में शनि की कक्षा षष्ठ है। सूर्य से शनि की औसत दूरी 8860 लाख मील है तथा इसका व्यास 14000 मील है। इसका घनत्व पानी से कम है। यह आकार में बहुत बड़ा है। इसका द्रव्यमान बृहस्पति को छोड़कर अन्य ग्रहों से अधिक है। इसकी परिक्रमा कक्षा लगभग वृŸााकार है और यह क्रांतिवृŸा से लगभग 2)0 का कोण बनता है। इसके चारांे ओर गोलाकार वृत्त (वलय) हैं जो ग्रह को नहीं छूते। जब शनि उŸारी गोलार्द्ध में होता है तब वलय का दक्षिणी भाग और जब दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है तब उŸारी भाग दिखाई देता है। वलय को देख पाना इतना आसान नहीं, सिर्फ कृष्ण पक्ष को अमावस्या या अंधेरी रातों में ही इसे देख पाना संभव होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शनि के 20 उपग्रह हैं, जबकि पहले के खगोलशास्त्रियों के अनुसार इसके केवल 9 उपग्रह हैं। उपग्रहों की सही संख्या का पता लगाना इतना आसान नहीं, क्योंकि पृथ्वी से शनि के एक तरफ के ही उपग्रह देखे जा सकते हैं। जो शनि के पीछे छिपे हैं, उन्हें एक ही बारी में नहीं जाना जा सकता। शनि के नक्षत्र की परिक्रमा अवधि 29. 5 वर्ष है। इसका संयुतिकाल 378 दिन है। शनि का वातावरण वायु रूप है, प्राणियों के रहने के अनुकूल नहीं है। शनि पर नाना प्रकार के रंग चमकते हैं। इसके वृत्त की ओर नीली, मध्य में पीली और शेष भाग में सफेद रेत के कणों का पट्टा तथा बीच-बीच में चमत्कारी बिंदु दिखाई पड़ते हैं। शनि का पूरा वातावरण धूल के कणों और गैस के बादलों से भरा है। शनि अस्त होने के सवा मास बाद उदित, उसके साढ़े तीन मास बाद वक्री, उसके साढ़े चार मास बाद मार्गी और उसके साढ़े तीन मास बाद फिर अस्त होता है। शनि एक सेकेंड में छः मील चलता है, पर उसकी कक्षा बहुत बड़ी है। उसका व्यास एक करोड़ साठ लाख मील से अधिक है, इसीलिए एक परिक्रमा में उसे साढ़े उन्तीस वर्ष लग जाते हैं। पौराणिक दृष्टिकोण: मत्स्य पुराण के अनुसार शनि की शरीर की कांति इंद्रनील मणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। ये गिद्ध पर सवार रहते हैं। हाथों में क्रमशः धनुष, बाण, त्रिशूल और वर मुद्रा धारण करते हैं। शनि के पिता सूर्य और माता छाया हैं। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्म पुराण में इनकी कथा इस प्रकार है। बचपन से शनि भगवान श्री कृष्ण के अनुराग में रत रहा करते थे। बड़े होने पर उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से कर दिया गया। उनकी पत्नी सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु-स्नान करके पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से उनके पास पहुंची, पर शनि श्री कृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतु-काल निष्फल हो गया। इसलिए क्रुद्ध होकर उसने शनि देव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर शनि देव ने पत्नी को मनाया। पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। किंतु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी। तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे ताकि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट न हो। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा दशरथ के ज्योतिषियों ने उनसे कहा कि शनि ग्रह रोहिणी शक्ति के पास पहुंच गया है। यदि उसने शकट का भेदन कर दिया तो बारह वर्षों का अकाल पड़ेगा। वशिष्ठ ने कहा कि यह प्रजापति का नक्षत्र है, उसका भेद होने से प्रजा जीवित नहीं रहेगी। यह सुनकर दशरथ महाराज रथ पर बैठकर रोहिणी पुंज के पास पहुंच गए, जो पृथ्वी से अरबों योजन दूर है। सोने के रथ पर बैठे दशरथ ने जब धनुष पर संहारक अस्त्र चढ़ाया, तब भयभीत शनि उनके पुरुषार्थ की भूरि-भूरि प्रशंसा करने के बाद बोला कि आप वर मांगंे। राजा ने कहा कि जब तक सूर्य, चंद्र और सागर विद्यमान हैं, आप रोहिणी शकट का भेदन न करें। शनि ने बात मान ली और उन्हें वर देकर संतुष्ट किया। ज्योतिषीय दृष्टिकोण: शनि एक पापी ग्रह है। यह शूद्र और नपुंसक है। यह स्वभाव से आलसी, चुगलखोर, निर्दयी, मलिन वेशधारी, चेष्टाहीन, अपवित्र, भयानक और क्रोधी है। इसके वस्त्र काले हैं। शनि से प्रभावित जातक शारीरिक तौर पर लंबे, पतले तथा नसों से युक्त होते हैं। उनकी आंखें भूरी और गहरी तथा स्नायुएं पुष्ट होती हैं। उनका रंग काला होता है। जातक की कुंडली में आयु, मृत्यु भय, अपवित्रता, दुःख, अपमान, रोग, दरिद्रता बदनामी, निंदित कार्य, कर्ज, दासता, कृषि के उपकरणों, जेल यात्रा व बंधन का विचार शनि से किया जाता है। कुंडली में शनि के बली होने पर चीजें प्रतिकूल तथा निर्बल होने पर अनुकूल होती हैं। शनि कुंडली में भाव 3,6,7,10 या 11 में स्थित हो तो शुभ फल देता है। तुला राशि में शनि 200 पर उच्च का और मेष में 200 पर नीच का होता है। बुध, शुक्र और राहु इसके मित्र हैं। कुंभ राशि के 00 से 200 के बीच यह मूल त्रिकोण में कहलाता है। वृष और तुला लग्न की कुंडली में यह योगकारक माना जाता है जो शुभ है। योगकारक होकर शनि जिस भाव में स्थित होता है और जिस भाव को देखता है उसका शुभ फल प्रदान करता है। यदि कुंडली में शनि शुभस्थ हो तो जातक को उच्च पदों और ऊंचाइयों पर ले जाता है। वह न्यायाधीश तक हो सकता है। व्यवसायी होने की स्थिति में वह बड़ी-बड़ी मिलों का मालिक भी हो सकता है। शुभ शनि से प्रभावित जातक दीर्घायु, प्रतिष्ठित, धनवान और विशाल जमीन-जायदाद के मालिक होते हैं। सामाजिक और कल्याणकारी कार्यों में उनकी गहरी रुचि होती है। कुंडली में अष्टम और द्वादश भावों का स्थिर कारक ग्रह शनि है। इन भावांे में स्थित होने पर यह शुभ और अशुभ दोनों फल देता है। इसके अशुभ होने से जातक को कई प्रकार के संकटों का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़े साती में जातक को विशेष कष्ट होता है। धन-संपŸिा की हानि, विभिन्न प्रकार के रोग आदि के कारण गृहस्थ जीवन कष्टमय होता है। यहां तक कि जातक को मृत्यु तुल्य कष्टों का भी सामना करना पड़ सकता है। जन्म राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भावों में शनि के गोचर के समय को साढ़े साती और शनि की ढैया माना जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों के शमन के लिए मृत्युंजय का जप करना और नीलम धारण करना चाहिए। ब्राह्मणों को तिल, उड़द, लोहे, तेल, काले वस्त्र, नीलम, काली गौ, भैंस, जूते, कस्तूरी और स्वर्ण का दान करना चाहिए। इन उपायों के अतिरिक्त शनि के बीज मंत्र ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः या सामान्य मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नमः का जप करना चाहिए।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.