राहु-केतु जनित योग एवं उपाय डाॅ. महेश मोहन झा ज्यातिष में एक मान्यता के अनुसार राहु को सर्प और केतु सर्प की पूंछ कहा गया है। जो सर्पाकार है और जिसके अंग मुख और पुच्छ दो भागों में विभक्त है, वही राहु का आकार है। यदि किसी की कुंडली में राहु और केतु के मध्य अन्य ग्रह हों तो वह जीवनपर्यंत परेशान रहता है। यद्यपि ग्रहों एवं भावों की विभिन्न स्थितियों के कारण विभन्न जातकों के कष्ट अलग-अलग हो सकते हंै। इसी कारण ज्योतिष में राहु से बनने वाले अशुभ योग सर्प योग या काल सर्प योग के नामों से जाने जाते हंै। यदि लग्न से पंचम भाव में राहु हो तो व्यक्ति को सर्प के शाप से पुत्र का अभाव रहता है तथा नाग की प्रतिष्ठा करने से पुत्र की प्राप्ति होती है। इसी तरह ज्योतिष शास्त्र में राहु से बनने वाले अनेकानेक सर्प शाप योगों का उल्लेख है जिनमें से कुछ यहां प्रस्तुत हैं। पंचम भाव में राहु हो और मंगल उसे देखता हो। पंचम स्थान में शनि हो, पंचमेश राहु से युत हो तथा चंद्र उसे देखता हो। पंचमेश मंगल हो, पंचम भाव में राहु हो, पर शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो। पंचमेश मंगल हो जो अपने ही नवांश में हो, राहु पंचमस्थ हो। पुत्रकारक गुरु मंगल से और लग्नेश राहु से युत हो या लग्न में राहु हो तथा पंचमेश सप्तम, अष्टम या द्वादश में हो। पुत्रकारक ग्रह राहु से युत तथा पंचम भाव शनि से दृष्ट हो। कर्क या धनु लग्न में पंचमस्थ राहु बुध से युत या दृष्ट हो। पंचम स्थान में सूर्य, मंगल शनि एवं राहु हों तथा पंचमेश और लग्नेश दोनों बलहीन हों। लग्नेश राहु से और पंचमेश मंगल से युत हो तथा गुरु राहु से दृष्ट हो। उपर्युक्त स्थितियों में जातक को संतान सुख में कमी रहती है। राहु व गुरु की युति जन्म पत्रिका में कहीं भी हो, सर्प के शाप से संतान जीवित नहीं रहती। जिस पत्रिका में चंद्र से राहु आरै कते ु 8व ंे स्थान म ंे हा,ंे वह सपशर्् ाापित होती है। ऐसे में जातक को राहु की शांति से लाभ मिलता है। राहु निर्मित अन्य योग- कपट योग- जन्मांग में चैथे घर में शनि और 12वें घर में राहु हो तो कपट योग बनता है। जिस जातक के जन्मांग में यह योग होता है उसकी कथनी और करनी में अंतर होता है। क्रोध योग- राहु या केतु के साथ सूर्य, बुध या शुक्र की युति लग्न में हो, तो क्रोध योग बनता है। यह योग लड़ाई-झगड़े तथा विवाद का कारक होता है। और इससे प्रभावित जातक को नुकसान और दुःख उठाने पड़ते हैं। अष्टलक्ष्मी योग- जन्मांग में राहु छठे स्थान में और गुरु केंद्र में हो, तो अष्टलक्ष्मी योग बनता है। इस योग के कारण जातक शांति के साथ यशस्वी जीवन जीता है। पिशाच योग- लग्न में राहु और चंद्र की युति होने पर पिशाच योग बनता है। इस योग के कारण जातक बाहरी हवा आदि से प्रभावित रहता है। वह निराशावादी और आत्मघाती स्वभाव वाला होता है। चांडाल योग- जन्मांग में किसी भी स्थान में राहु और गुरु की युति हो, तो चांडाल योग बनता है। इस योग के कारण जातक नास्तिक एवं पाखंडी होता है। यह दरिद्र सूचक योग है। मोक्ष योग- जन्मांग में केतु और गुरु की युति हो तो मोक्ष योग बनता है। इस योग से प्रभावित जातक उपासक होता है, किंतु हमेशा शंकाओं से ग्रस्त रहता है। उसे किसी पर भी भरोसा नहीं होता। सर्प शाप योग- मेष या वृश्चिक राशि का राहु पंचम स्थान में हो, पंचम स्थान या लग्न में मंगल और गुरु हांे या पंचम स्थान में स्थित राहु पर बुध, केतु या मंगल की दृष्टि हो या वह मंगल से युत हो तो सर्पशाप योग बनता है। इस योग के कारण जातक की संतानें विभिन्न मुसीबतों में फंसती हंै। परिभाषा योग- लग्न, तृतीय, षष्ठ या एकादश में राहु हो, तो परिभाषा योग बनता है। इस राहु पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो शुभ फल मिलता है। अरिष्टभंग योग- मेष, वृष या कर्क राशि का लग्न हो और राहु नवम, दशम या एकादश में हो तो अरिष्टभंग योग बनता है। यह योग शुभफलदायक होता है। राहु व केतु जनित दोषों के निवारण के उपाय- कुंडली में किसी भी रूप मंे कालसर्प योग बनता हो तो श्रावण शुक्ल पक्ष में उसकी शांति विध-विधान से करवानी चाहिए। प्रत्येक पंचमी को चंादी के सर्प-सर्पणी की पूजा करके बहते जल में प्रवाहित करें। जटा वाला नारियल बुधवार को समुद्र या बहते पानी में प्रवाहित करें। नागपंचमी का व्रत एवं नवनाग स्तोत्र का पाठ करें। राहु के मंत्र ‘ऊँ रां राहवे नमः’ का 72000 बार जप एवं उसके दशांश का दूर्वा, घृत, मधु मिसरी आदि से हवन करें। केतु के लिए ‘ऊँ कें केतवे नमः’ मंत्र का 28000 बार जप एवं उसके दशांश का कुश, घृत, मधु, मिसरी आदि से हवन करें। गोमेद, काले तिल, नीले वस्त्र, नीले फूल, तिल के तेल, सप्तधान्य, लोहा, कंबल और शस्त्र का बुधवार या शनिवार को दान करें। पलाश के पुष्प गोमूत्र में कूटकर छांव में सुखाएं। फिर उसका चूर्ण बनाकर नित्य स्नान के पानी में डालकर डेढ़ वर्ष तक स्नान करें। प्रत्येक बुधवार को नीले या काले वस्त्र में एक मुट्ठी उड़द डालकर राहु के मंत्र का 1008 बार जप करें और फिर वह उड़द भिक्षुक को दें। ऐसा 72 बुधवार तक करें। स्त्री की कुंडली में राहु की प्रतिकूल स्थिति के कारण संतान का अभाव हो तो वट के वृक्ष की लगातार 300 दिनों तक नित्य 108 बार प्रदक्षिणा कराएं।