राहु-केतु द्वारा निर्मित कुछ योग हेमन्त कुमार शर्मा/सविता शर्मा, सामान्यतः राहु-केतु का नाम सुनकर ही लोग भयभीत हो जाते हैं। यह सही है कि किसी की जन्मकुंडली में राहु-केतु अशुभ प्रभाव में हों तो अपनी दशा-भुक्ति में कष्ट देते हैं, लेकिन शुभ प्रभाव में होने पर ये दोनों छाया ग्रह जातक को बुलंदियों तक ले जाते हैं। विशेष परिस्थतियों में ये पाप ग्रह भी योगकारक बन जाते हैं। तथा कई स्थितियों में ये अनिष्ट प्रभावों का परिहार भी कर लेते हैं। लग्नकारक योग: मेष, वृष या कर्क लग्न में राहु द्वितीय, नवम या दशम के अतिरिक्त कहीं भी हो तो लग्नकारक योग का निर्माण कर जातक को शुभ फल प्रदान करता है। यह योग सभी अरिष्टों का निवारक होता है। परिभाषा योग: लग्नस्थ, तृतीय, षष्ठ या एकादश भावस्थ राहु परिभाषा योग का निर्माण करता है। इस स्थिति में राहु यदि किसी शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। अरिष्टभंग योग: मेष, वृष या कर्क लग्न में राहु नवम, दशम या एकादश भाव में हो तो अरिष्टभंग योग बनाता है। यह एक शुभ योग है। अष्टलक्ष्मी योग: राहु षष्ठ भावस्थ हो और गुरु भाव 1, 4, 7 या 10 में हो तो राहु को अष्टलक्ष्मी योग का सृजनकर्Ÿाा कहा जाता है। कुंडली में केतु और शनि का योग फलदायक होता है। यदि लग्न में मेष, कर्क, तुला या मकर हांे और केंद्र में राहु और चंद्र की युति या योग हो तो यह स्थिति शुभ फलदायक होती है। वृष, सिंह, वृश्चिक तथा कुंभ लग्नों में त्रिकोण में (5/9) सूर्य और राहु का योग हो तो अत्यंत शुभ फलदायी होता है। राहु व लग्नेश दशम भाव में हांे तो शुभ फल प्रदान करते हैं, जातक भाग्यवान होता है। वृश्चिक अथवा मीन लग्न हो और 5वें या 8वें भाव में पंचमेश या नवमेश चंद्र और राहु की युति हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं। लग्न में राहु व शनि की युति हो तो यह स्थिति रोग कारक होती है, परंतु यही युति यदि केंद-त्रिकोण में मकर राशि में हो तो शुभ फलदायी होती है। वस्तुतः राहु और केतु विशेष स्थितियों तथा स्वनिर्मित योगों के फलस्वरूप स्वयं शुभ फलदायक हो जाते हैं। कहीं-कहीं अन्य ग्रहों के अनिष्ट फल का निवारण भी करते हैं। यह सत्य है कि यदि राहु और केतु कुंडली में अनिष्ट फल प्रदान करने की स्थिति में हों तो जातक को अन्य सुयोगों का फल मिलने में संदेह ही रहता है। ज्योतिष के विद्वान मानते हैं कि शुभ स्थिति में राहु भाग्यकारक व केतु मोक्षकारक होता है।