संत एवं राजनेता कारक ग्रह राहु राम प्रवेश मिश्र कुंडली में यदि राहु कमजोर और धनु राशि या वृश्चिक राशि का हो तो जातक छल, प्रपंच, फरेब आदि से दूर रहता है। उसका विचार एवं कार्य स्पष्ट होता है। उसे संत श्रेणी में गिना जाता है। इसके विपरीत यदि राहु बलवान हो तो जातक को छली और फरेबी बनाता है। ऐसा राहु अक्सर राज योग देता है एवं जातक को राजनेता बनाता है। आइए कुछ विशिष्ट कुंडलियों में राहु की स्थिति का आकलन करें। धर्मराज युधिष्ठिर की जन्मकुंडली में सूर्य उच्चस्थ दशम भाव में, गुरु स्वगृही, शुक्र उच्चस्थ भाग्य भाव में, योगकारक मंगल उच्चस्थ एवं अकारक ग्रह शनि स्वगृही है। इन सभी ग्रहों ने उन्हें चक्रवर्ती बनाया, लेकिन नीचस्थ राहु के कारण कौरवों से जुआ खेलने में चालाकी नहीं कर सके। उनके शत्रु ने छल-प्रपंच का सहारा लिया और धर्मराज हार गए। फलतः उन्हें तेरह वर्षों तक भटकना पड़ा। इसी राहु के कारण महाभारत युद्ध क्षेत्र मंे द्रोणाचार्य की मृत्यु हेतु भगवान के कहने पर युधिष्ठिर झूठ बोले, किंतु पूर्ण झूठ नहीं बोल सके। उन्होंने कहा, ‘अश्वत्थामा हतो, नरोवा कुंजरोवा’’ अर्थात् हाथी अथवा मानव जिसका नाम अश्वत्थामा था मारा गया। श्री जवाहर लाल नेहरु की कुंडली में राहु-केतु उच्चस्थ हैं। गुरु के साथ अगर केतु हो तो गुरु की शक्ति काफी बढ़ जाती है। उच्चस्थ राहु ने नेहरू को विश्व स्तर का नेता बनाया। जगजीवन बाबू की कुंडली में मिथुन का राहु एवं धनु का केतु है। दोनों ाुउच्चस्थ हैं। स्नातक की परीक्षा गांधी जी के साथ दी। ये हरिजनों के सहायक एवं उन्नति चाहने वाले थे। राहु ने ही इन्हें भी सफल राजनेता बनाया। महात्मा गांधी की कुंडली में जिस तरह कर्क राशि का शनि दशम भाव में है, उसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कुंडली में राहु है। राहु की इस स्थित ने इन्हें राजनीति से जोड़ा और देश का प्रधानमंत्री बनाया।