सम्मोहन उपचार
सम्मोहन उपचार

सम्मोहन उपचार  

व्यूस : 8734 | जुलाई 2013
कई पाठकों ने ईच्छा जताई है कि सम्मोहन के बारे में कुछ मूल भूत बातें और बताई जायें तथा कोई बीमारी केवल सम्मोहन से ठीक कैसे हो सकती है इसपर भी विस्तार से प्रकाश डालें । अतः इस अंक में सम्मोहन कालान्तर से कैसे प्रचलित रहा है और इसका उपचार में क्या योगदान होता है इस विषय पर चर्चा की जा रही है। सम्मोहन और लोगों की धारणाएं जब भी सम्मोहन षब्द का प्रयोग होता है तो लोग इसका कई प्रकार से अर्थ निकालते हैं। कुछ लोग इसे बेहोष करने की कला समझते हैं, कुछ लोग इसे वष में करने की कला मानते हैं, कुछ लोग इसे काला जादू समझ लेते हैं, कुछ अन्य लोग इसे मन पढ़ने की कला समझते हैं। उपरोक्त बातें वो लोग करते हैं जिन्हें या तो सम्मोहन की समझ नहीं हैं या गलत समझ है या अधूरी समझ है। दुर्भाग्य की बात यह है कि मार्केट में सम्मोहन पर जितनी किताबें मिलती हैं उनमें से चन्द किताबें छोड़ बाकी केवल गुमराह ही करती हैं। सम्मोहन संबंधी कुछ तथ्य सम्मोहन तो मनोविज्ञान की एक विधि है जो कि अवचेतन मन से जुड़ कर हमारे व्यवहार या विचारों को प्रभावित करने के लिए प्रयोग की जाती है। यह न तो कोई जादू है और न ही काला जादू। इसमें ना तो किसी को बेहोष किया जाता है, ना ही वष में किया जाता है और न ही मन को पढ़ा जाता है। सम्मोहन जानने के लिए मन के बारे में जानना आवष्यक है। अक्सर कहा जाता है मैं तन, मन और धन से आपके साथ हँ । इस वाक्य से लगता है कि तन, मन और धन तीनों अलग-अलग हैं जो कि सही भी है। हमारा तन विभिन्न अंगों का एक मिला जुला रूप है। इसमें हमारे अंग, हमारे षरीर की क्रियायें, मांसपेषियाँ, हड्डियां नस, नाड़ी, त्वचा, बाल इत्यादि सब कुछ आ जाता है। अर्थात् यह हमारा भौतिक स्वरूप है। हर इंसान की षक्ल-सूरत, आंखें, हाथों की रेखाएं, लिखावट, चाल, स्वभाव इत्यादि अनेक विषिष्ट पहचान होती हैं जो दूसरों से हूबहू नहीं मिलती हैं। हमारे षरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां होती हैं जो कि वातावरण से ज्ञान अर्जित करती हैं। हमारा मस्तिष्क एक महत्वपूर्ण अंग है जो कि ज्ञान का प्रयोग करने में एक बड़ा योगदान देता है। मन एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है जिसका कोई अपना स्वरूप नहीं होता। मन के मुख्य रूप से दो धरातल होते हैं चेतन मन व अवचेतन मन। इन धरातलों को अलग-अलग नाम से लोग जानते हैं। चेतन मन हमारी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता है तथा अवचेतन मन उस ज्ञान को संग्रह करता है और प्रयोग करता है। चेतन मन अपनी तर्कषक्ति का प्रयोग करता है जबकि अवचेतन मन केवल स्वीकार करना जानता है और उस ज्ञान को प्रयोग करता है। अर्थात् अवचेतन मन एक भण्डार या स्टोर या पुस्तकालय की तरह होता है। मन मात्र एक अमौलिक अवधारणा है जिसको षरीर के अंग के रूप में नहीं मानना चाहिए। सभी जानते हैं कि धन एक भौतिक मुद्रा है। कुछ लोग षिक्षा को भी धन कहते हैं। लेकिन यहां पर इसको एक भौतिक पदार्थ के रूप में समझना अधिक उचित है। सम्मोहन अवचेतन मन से जुड़ने की प्रक्रिया है ताकि चेतन मन की तर्क शक्ति अवरोधक न बने। अवचेतन मन बिना तर्क के स्वीकर करने की क्षमता रखता है तथा परिस्थिति अनुसार उस स्वीकार किये गये ज्ञान का प्रयोग भी बिना किसी पूर्व सोच के करता है। चेतन मन और अवचेतन मन दोनों एक दूसरे को हमेषा सहयोग देते हैं। चेतन मन के अपने कुछ विषिष्ट गुण हैं जिनके आधार पर वह कार्य करता है। उन गुणों के बाहर वह कार्य करने में असमर्थ रहता है। उस असमर्थता की दषा में अवचेतन मन कार्य भार को संभाल लेता है। यह अवस्था सम्मोहन का आधार है सम्मोहन क्रिया के अंश सम्मोहन क्रिया के मुख्य अंषों के बारे में चर्चा करने से पहले पाठकों से यह प्रार्थना है कि कृपया पूरी तरह सीखे बगैर इन अंषों का स्वयं प्रयोग न करें। यहां पर जानकारी इसलिए दी जा रही है ताकि आप सम्मोहन की अवधारणा को समझ जायें तथा पथभ्रमित न हों। सम्मोहन प्रक्रिया के तीन मुख्य भाग होते हैं। 1. ध्यान 2. विश्राम 3. निदान। अब इन तीनों भागों को समझने की कोषिष करते हैं। ध्यान ध्यान शब्द हमारे समाज और संस्कृति में काफी प्रचलित है। हम सभी इसको काफी या कुछ हद तक समझते हैं। हमारा मन स्वभाव से चंचल होता है, इसमें विचार आते रहते हैं और जाते रहते हैं। एक रोज में लगभग 60000 विचार हमारे मन में आते हैं। हर विचार मन में अपना प्रभाव छोड़ता है। कुछ विचार हमारे मन में बार-बार आते हैं। कुछ विचार नये होते हैं। जब हम अपना ध्यान किसी एक स्थान, एक क्रिया या एक विचार पर जानबूझ कर लगाते हैं तो विचारों की संख्या पर प्रभाव पड़ता है तथा एक विषिष्ट दषा बन जाती है जो कि चेतन मन के अनुकूल नहीं होती। अतः अवचेतन मन सक्रिय हो जाता है और व्यक्ति सम्मोहन की दषा में चला जाता है। ध्यान के लिए अनेकों विधियां सुझाई जाती हैं। इन सब से प्रमुख या जिसे लोग ज्यादा जानते हैं वह त्राटक है। त्राटक के लिए बिन्दु या शक्ति चक्र का प्रयोग प्रचलित है इसके अतिरिक्त भी अनेकों ढंग से त्राटक किया जा सकता है। कुछ व्यक्ति त्राटक को ही सम्मोहन का नाम देते हैं जो कि सही नहीं है। त्राटक तो एक विधि है, एक माध्यम है जो कि सम्मोहन में सहायक है। यह एक प्राचीन विधि है इस विधि का विस्तार से अगले अंकों में वर्णन किया जायेगा। ध्यान लगाने की दूसरी प्रमुख विधि श्वांस है। श्वांस को आत्मा का वाहन माना जाता है। सांस हमारे शरीर को जीवन शक्ति देता है। हर आते और जाते सांस पर ध्यान लगाना आसान है। इनके अतिरक्ति ध्यान लगाने के लिए लोग आंखों का, शरीर के अंगों का, पैंडुलम का तथा मन की आंखों का भी प्रयोग करते हैं। ध्यान की सभी प्रक्रियाओं का उद्देष्य मात्र मस्तिष्क की तरंगों को प्रभावित करना होता है। विश्राम सम्मोहन का दूसरा कदम विश्राम है। कष्ट और विश्राम एक-दूसरे के विरोधी हैं। अगर आप विश्राम की स्थिति में हैं तो आप पर कष्ट का प्रभाव घट जाता है। ध्यान का चरण पूरा करने के बाद विश्राम की दषा लाई जाती है। जब ध्यान की दषा प्राप्त हो जाती है तो अवचेतन मन का प्रभाव बढ़ जाता है और व्यक्ति सुझाव स्वीकार करना आरम्भ कर देता है। अवचेतन मन में यह शक्ति होती है कि वह शरीर में प्रभाव पैदा कर सकता है। विश्राम शरीर के हर अंग में तथा हर क्रिया में पैदा किया जाता है। विश्राम का प्रभाव बढ़ाने के लिए शरीर की कुछ क्रियाओं के साथ इसे जोड़ा जाता है जैसे श्वांस क्रिया। कल्पना शक्ति को भी विश्राम बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है। विश्राम का उद्देष्य एक ऐसा धरातल बनाना होता है जहां से अपचार किया जा सके। निदान निदान अर्थात उपचार सम्मोहन क्रिया का उद्देष्य होता है। जैसे किसी आदत को बदलना, विचारों को प्रभावित करना इत्यादि। हमारा अवचेतन मन स्टोर की भांति कार्य करता है। इसमें सभी पुराने विचार, अनुभव, आदतें इत्यादि जमा रहते हैं। निदान करते वक्त जिस व्यवहार या आदत को ठीक करना हो उस पर प्रोग्राम किया जाता है। यह कम्प्यूटर की तरह कार्य करता है। प्रस्तावित व्यवहार मन को पहले बताया जाता है, फिर दिखाया जाता है तथा फिर जोड़ा जाता है। इन तीनों भागों को पूरा करने पर एक सम्मोहन की प्रक्रिया हो जाती है जो कि आवष्यकतानुसार दोहराई जाती है। इस प्रक्रिया से पहले, मध्य में तथा अन्त में कई लघु चरण होते हैं जो यहां बताना आवष्यक है। मन और बीमारियां बीमारियां तो तन को होती हैं इसमें मन का क्या काम और इसी प्रकार ईलाज जो तन का होता है इसमें मन को क्यों षामिल करना इत्यादि कुछ बहुत ही प्रमुख सवाल हैं जिनको समझना अति आवष्यक है। भगवान बुद्ध ने कहा था कि मनुष्य मन की ही रचना है। अर्थात मनुष्य जो भी करता है वह मन द्वारा संचालित होता है। इसका अर्थ हुआ तन तो मात्र करने वाला है कराने वाला तो मन है। इसी प्रकार कहा जाता है ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत।’ यहां पर मन का प्रभाव दर्षाया गया है। मन का सम्बन्ध विचार से है। हमारे मन में जो विचार स्वीकार कर लिये जाते हैं वह तन द्वारा क्रियान्वित किये जाते हैं। पहला बदलाव विचार से होता है फिर वह व्यवहार में आता है। हम अपने बचपन से सारी उम्रभर अनेकों कार्य सीखते हैं, बातें जानते हैं, आदतें पालते हैं लेकिन वो सभी हमारे शरीर के हित में हो ये आवष्यक नहीं है। जो भी हम कार्य करते हैं या सोचते हैं उसके प्रभाव हमारे मस्तिष्क में पड़ जाते हैं जो कि हमारी संवेदनाओं को प्रभावित करते हैं। फिर यह प्रभाव हमारी ऊर्जा पर पड़ता है तथा शरीर में बीमारी के लक्षण पैदा हो जाते हैं। सम्मोहन उपचार में मस्तिष्क पर बने प्रभाव को प्रभावित किया जाता है तथा व्यवहार में बदलाव लाया जाता है। यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो कि मनोवैज्ञानिक ढंग से सम्मोहन का प्रयोग करके की जाती है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.