रुद्राक्ष कैसे फलदायी सिद्ध हो....? गोपाल राजू रुद्राक्ष भगवान षिव का प्रिय आभूषण है। यह उपाय इसी पर आधारित है। रुद्राक्ष धन-ध् ाान्य, सुख-आनन्द आदि से लेकर धर्म एवं मोक्षदाता माना गया है। इसीलिए यह भौतिकवादी लोगों सहित योगी, सन्यासी, तपस्वी, यती, ऋषि-महर्षियों आदि सबका प्रिय है। यदि कहें कि इसमें दैहिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार के सुखों को प्राप्त करवाने की अदभुत् क्षमता छुपी हुई है तो अतिषयोक्ति नहीं होगी। रुद्राक्ष के दर्षन मात्र से समस्त पापों का तथा दारिद्रय का नाष हो जाता है। आज हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इस छोटे फल की विलक्षणता को परखने के लिए हमारे पास पैनी दृष्टि का सर्वथा अभाव है। यदि ठीक-ठीक हम यह सुनिष्चित भी कर लें कि अमुख मुख वाला रुद्राक्ष हमें रास आएगा तो उसको सुलभ करवाना सरल नहीं है क्योंकि इनसे ही मिलते-जुलते नकली रुद्राक्ष की बाजार में भरमार है। अपने इस उपाय के प्रयोजन के लिए आपको आवले के आकार के तथा कत्थई रंग के रुद्राक्ष लेने है। ये सूखे नहीं होने चाहिए। देख लें कि ये सूख कर चटख तो नहीं गए हैं। प्रायः प्रत्येक रुद्राक्ष अपने में धन-धान्य तथा सुख-सम्पत्ति कारक है परन्तु यहां यह उपाय एक, छः, आठ, बारह और चैदहमुखी तथा गौरी शंकर रुद्राक्ष के लिए लिखा जा रहा है क्योंकि इनमें लक्ष्मी को रिझाने का विषेष गुणधर्म छिपा है। सर्वप्रथम अपनी सामथ्र्य-सुविधानुसार इनमें से एक अथवा अधिक रुद्राक्ष उपलब्ध करें। वैसे तो कोई भी रुद्राक्ष अथवा उसकी माला प्रयोग करने से पूर्व उसकी प्राण प्रतिष्ठा, उसके मंत्र अथवा बीज मंत्र के जप का विध् ाान है। यह प्रक्रिया जटिल, लंबी तथा सर्वसाधारण की समझ व पहुॅच से सर्वथा दूर है। अभी तक कहीं भी अप्रकाशित सरलतम उपाय पूरे विधि-विधान के साथ यहां अंतः प्रेरणा से तथा साधु-साधकों के आदेषानुसार प्रसाद स्वरुप प्रस्तुत है। किसी भी दिन रुद्राक्ष को सरसों के तेल में डुबोकर रखें। तीसरे दिन इसे निकाल कर तेल साफ करके इसे एक दिन के लिए पंचामृत में डुबोंकर रखें। अगले दिन पंचामृत से निकाल कर साफ करके निम्न प्रकार से पूजा कर सिद्ध करने के उपरांत प्रयोग करें। जो भी एक अथवा अधिक रुद्राक्ष आपने शुद्ध किया है उसे योग्य व्यक्ति से प्राण-प्रतिष्ठित करवा लें। यदि स्वयं कर सकते हैं तो सबसे संुदर है। इस उपाय के लिए वैसे तो अमावस्या की कोई भी काल रात्रि चुनी जाती है परन्तु दीपावली की महानिषा इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। तकली से कता हुआ कच्चा सूत तथा चुना हुआ रुद्राक्ष लेकर आप किसी एकांत स्थान में किसी घने पीपल अथवा बड़ के वृक्ष के नीचे जाएं। उसके नीचे जड़ में यह रुद्राक्ष रख दें। इसके चारों ओर 7 बर्फी के टुकड़े तथा एक मुट्ठी साबुत उड़द की काली दाल सजा दें। मन में निरन्तर लक्ष्मी जी का ध्यान बनाएं रखें। अब निम्न लिखित मंत्र का जप करते हुए तथा हाथ से धीरे-धीरे कच्चा सूत वृक्ष पर लपेटते हुए वृक्ष की सात बार उल्टी प्रदक्षिणा करें अर्थात् अपने दाएं हाथ से बाएं हाथ की ओर - ‘‘रमन्ता पुण्या लक्ष्मीर्या पापीस्ता अनीनषम्’’ (अथर्व 7/115/4) अर्थात्-पुण्या लक्ष्मी हमारे घर में रमण करे और जो अनर्थमूल पापिनी है वह विनष्ट हो जाए। इस प्रकार मंत्र जपते हुए वृक्ष पर आप सात बार कच्चा सूत लपेट दें। उल्टी प्रदक्षिणा का तात्पर्य है प्रायष्चित स्वरुप आप वृक्ष को साक्षी मानकर अपना माजी सुधार रहे हैं। यह उपाय पित्र जनों की शान्ति स्वरुप भी समझा जा सकता है। उपाय के अंत में मिटटी के पात्र से श्रद्धा पूर्वक वृक्ष को अघ्र्य दें और जल से भर कर पात्र को बर्फी के पास ही रख दें। रुद्राक्ष को उठाकर उक्त मंत्र जपते हुए तथा यह भावना निरंतर बनाते हुए कि लक्ष्मी जी को आप घर में प्रवेष करवाने जा रहे हैं। अब रुद्राक्ष या तो धारण कर लें अथवा इसे लाल कपड़े में लपेटकर अपने पूजा स्थल अथवा अन्य पवित्र स्थान पर स्थापित कर दें। नित्य एक नियम बनाकर मंत्र का नियमित जाप करते रहें।