मधुमेह रोग
मधुमेह रोग

मधुमेह रोग  

व्यूस : 10838 | जून 2008
मधुमेह रोग आज हर दस में से चार व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित मिल जाएंगे। ऐसा नहीं है कि यह रोग बड़ी आयु (60-70 वर्ष) के लोगों को ही होता है। यह नवजात शिशु से लेकर छोटे-बड़े, सभी उम्र के लोगों को अपनी चपेट में ले लेता है। इस रोग की वृद्धि दिन प्रतिदिन होती जा रही है। यदि इसका समय पर उपचार नहीं किया जाए तो रोगी अंत में मरणासन्न स्थिति में पहुंच जाता है। दैनिक जीवन में शक्ति पैदा करने के लिए शरीर की कोशिकाओं को ग्लूकोज की आवश्यकता होती है। हम जो भोजन करते हैं वह पचने के बाद ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है। यह ग्लूकोज शरीर की विभिन्न कोशिकाओं में पहुंचने के लिए रक्त प्रवाह में प्रवेश करता है। इंसुलिन पैंक्रियाज द्वारा निर्मित एक हार्मोन है जो शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज पहुंचाने के लिए जरूरी है। पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन के न होने की स्थिति में ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर सकता है और इस तरह रक्त प्रवाह में ही जमा होता जाता है। इस स्थिति को हाइपरग्लाइसेमिया कहा जाता है। यह मधुमेह रोग की एक अवस्था है। इसके अलावा मधुमेह की विभिन्न अवस्थाएं इस प्रकार हैं - ग्लाइकोसूरिया पाॅलीयूरिया पाॅलीडिप्सिया कीटोसिस ऐसिड़ोसिस उक्त सभी अवस्थाएं क्रमानुसार मधुमेह रोग होने से मृत्यु की अवस्था तक की है। अतः पूरी तरह से एहतियात बरतना जरूरी है। कारण मधुमेह रोग आमतौर पर मुख्यतः तीन कारणों से होता है - वंशानुगत या आनुवंशिक अतिविषाद की निरंतरता खान-पान में मिष्ठान की अधिकता इनके अलावा मधुमेह रोग होने के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं जिनमें उच्च रक्तचाप, मोटापा, वसा युक्त एवं तैलीय भोजन का अत्यधिक सेवन तथा खान-पान की गलत आदतें, आरामदायक जीवन शैली आदि प्रमुख हैं। शरीर में जब इंसुलिन की कमी हो जाती है तो यह रोग होता है। शरीर में इंसुलिन को सुरक्षित एवं नियंत्रित रखने का कार्य शुक्र और बुध ग्रह करते हैं। बुध ग्रह अग्नाशय या पैंक्रियाज ग्रंथि पर आधिपत्य रखता है। मधुमेह की स्थिति में यह जरूरी नहीं है कि मूत्र मार्ग से शर्करा ही निकले। कई बार केवल रक्त शर्करा का ही स्तर बढ़ा हुआ पाया जाता है। यह स्थिति भी मधुमेह की स्थिति कहलाती है। मधुमेह के मुख्य लक्षण बहुमूत्र की शिकायत होना अर्थात बार-बार पेशाब जाना। हमेशा भूख लगना। अधिक प्यास लगना। हमेशा थकान ग्रस्त रहना। जख्मों का जल्दी न भरना या ठीक न होना। योनि संक्रमण। लैंगिक समस्याएं। बिना कारण वजन घटना। हाथ-पैरों में सुन्नता और झुनझुनी। धुंधला दिखाई देना। शरीर में अक्सर दर्द रहना। त्वचा का शुष्क होना। कमजोरी और सुस्ती का आभास होना। किसी भी व्यक्ति में यदि उपर्युक्त सभी अथवा इनमें से कुछ लक्षण एक साथ मौजूद हों तो उसको अपनी रक्त शर्करा की जांच अवश्य करवा लेनी चाहिए। मधुमेह से उत्पन्न शारीरिक जटिल समस्याएं या खतरे संवेदनशीलता में कमी। गैंग्रीन होने की संभावना। नेत्र रोग जैसे आंखों की रोशनी कम होना, मोतियाबिंद रोग होना, अंधे होने का खतरा होना। रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी के कारण घाव जल्दी नहीं भरना। एकाग्रता में कमी होना। हृदय रोग, हृदय शूल अथवा हृदयाघात होना। गुर्दे के फेल होने का खतरा। बार-बार फोड़े-फुंसियां होना। डायबेटिक कोमा की स्थिति उत्पन्न होना। मधुमेह रोग होने के ज्योतिषीय कारण एवं योग सामान्यतः किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य लग्न, तृतीय एवं षष्ठ भावों तथा इन सभी के स्वामी की स्थिति, इन सभी पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों की स्थिति आदि पर निर्भर करता है। यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में प्रथम एवं तृतीय भाव बलवान हों तथा छठा भाव कमजोर हो तो उसके रोगी होने की संभावना कम रहती है। इसके विपरीत यदि प्रथम एवं तृतीय भाव या इनमें से एक कमजोर तथा छठा भाव बलवान हो तो रोग बढ़ेंगे। यह एक सामान्य नियम है जो सभी रोगों की गंभीरता पर लागू होता है। किसी जातक को मधुमेह रोग किन कारणों तथा कौन-कौन से योगों के फलस्वरूप होता है, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है। मधुमेह रोग में शुक्र की भूमिका जब शुक्र ग्रह कुंडली के किसी भी भाव में दोषयुक्त हो अर्थात नीच राशि में हो, अस्त, शत्रु राशि में हो या इस पर पाप प्रभाव (सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु का) हो तथा कुंडली के छठे रोग भाव या इसके स्वामी अर्थात षष्ठेश का शुक्र से संबंध हो। उत्तर कालामृत में शुक्र को मूत्र का कारक ग्रह माना गया है। सेक्स का कारक ग्रह भी शुक्र ही है तथा शुक्र एक जलीय तत्व ग्रह है। मधुमेह रोग में शर्करा सेक्स स्थान से मूत्र द्वारा बाहर निकलती है। अतः शुक्र के सहयोग के बिना मधुमेह नहीं हो सकता। कुंडली में शुक्र दोषयुक्त हो तो मूत्र दोष या सेक्स दोष का संकेत देता है। ऐसी स्थिति में छठे भाव या उसके स्वामी का शुक्र से संबंध होने पर मूत्र एवं सेक्स विकारों की संभावना रहती है। मधुमेह रोग में बृहस्पति की भूमिका मधुमेह, शर्करा से संबंधित एक बीमारी है। मीठे रस का कारक बृहस्पति है। अतः शर्करा अथवा चीनी को भी बृहस्पति के कारकत्व में शामिल किया जा सकता है। मधुमेह रोग होने के उपरांत जातक को शक्कर तथा अत्यधिक मिठास वाली वस्तुओं जैसे मिठाई, गुड़ आदि से परहेज रखना पड़ता है। छठे भाव या षष्ठेश का बृहस्पति से संबंध होने पर मधुमेह रोग होता है। बृहस्पति का छठे भाव से संबंध होने पर जातक को मीठे पदार्थों से परहेज रखना चाहिए क्योंकि ये पदार्थ रोग कारक होते हंै। इसके अलावा बृहस्पति लीवर का भी कारक है तथा मधुमेह रोग में लीवर भी प्रभावित हो जाता है। मधुमेह रोग का विचार छठे एवं आठवें भावों से किया जाता है। इस रोग के कारक ग्रह शुक्र, बृहस्पति एवं चंद्र हैं। सूर्य ग्रह आमाशय एवं आंतों का कारक भी है। यदि बृहस्पति, शुक्र, चंद्र एवं सूर्य पर पाप ग्रहों शनि, मंगल, राहु और केतु का पाप प्रभाव हो अथवा छठे, आठवें एवं 12वें दुःख स्थानों के स्वामियों से ये ग्रह योग कर पीड़ित हों या इनसे दृष्ट होकर पाप प्रभाव में हों या उक्त ग्रह छठे, आठवें या 12वें स्थान में स्थित हों तो यह रोग होता है। यदि कन्या राशि या षष्ठेश पाप ग्रहों से पीड़ित अथवा त्रिकेश से युक्त या दृष्ट होकर पीड़ित हो अथवा त्रिकस्थ होकर पीड़ित हो तो यह रोग होता है। यदि जलीय राशियों कर्क, वृश्चिक एवं मीन में तथा शुक्र की राशि तुला में दो या दो से अधिक पाप ग्रह हो तो यह रोग होता है। यदि मीन राशि में बुध (नीच) की सूर्य से युति हो (अर्थात बुधादित्य योग) या बृहस्पति लग्नेश के साथ छठे रोग भाव में हो या फिर दशम भाव में मंगल और शनि की युति हो या मंगल दशम भाव में शनि से दृष्ट हो तो यह रोग होता है। यदि लग्नेश शत्रु राशि में हो या नीच का हो या लग्न व लग्नेश पाप ग्रहों से दृष्ट या युक्त हों और शुक्र अष्टम भाव में स्थित हो तो यह रोग होता है। यदि चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि में शनि व शुक्र की युति हो तो यह रोग होता है। जन्मकुंडली में लग्न पर शनि व केतु की पाप दृष्टि हो, चतुर्थ स्थान में वृश्चिक राशि में शुक्र और शनि की युति हो, मीन राशि पर सूर्य एवं मंगल की दृष्टि हो और तुला राशिस्थ राहु की चंद्र पर दृष्टि हो, तो जातक मधुमेह रोग से ग्रस्त होता है। शरीर में आमाशय वाला स्थान ज्योतिष की दृष्टि से कालपुरुष की कुंडली में पंचम स्थान पर आता है। पंचम भाव यकृत, क्लोम ग्रंथि और शुक्राणुओं का कारक स्थान है और इस स्थान या भाव का कारक ग्रह बृहस्पति है। क्लोम ग्रंथि के कुछ भाग का नेतृत्व शुक्र भी करता है। अतः इस रोग में गुरु और शुक्र के साथ साथ पंचम भाव का भी विचार किया जाता है। यदि अष्टम भाव में मंगल एवं शुक्र तथा बारहवें भाव में पंचमेश हो और बृहस्पति छठे रोग भाव में लग्नेश के साथ हो और शनि से दृष्ट हो तो ऐसी स्थिति में इस रोग की संभावना रहती है। यदि बृहस्पति, शुक्र लग्नेश पंचमेश और पंचम भाव राहु और केतु के पाप प्रभाव में हों तो मधुमेह रोग होता है। यदि बृहस्पति बारहवें और शुक्र छठे भाव में हो, जिससे शुक्र बृहस्पति से दृष्ट हो तो मधुमेह रोग होता है। यदि बृहस्पति नीच राशि का हो या छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होकर अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो मधुमेह रोग हो सकता है। बृहस्पति वक्री होकर लग्न में स्थित हो और शुक्र से दृष्ट हो अर्थात् सप्तम भाव में स्थित हो तथा शुक्र अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो और लग्नेश वक्री होकर छठे, आठवें या 12वें भाव में स्थित हो तो मधुमेह रोग होता है। ऊपर वर्णित ज्योतिषीय विश्लेषण के आधार पर जन्मकुंडली में मधुमेह का पता लगाने के लिए मुख्यतः बृहस्पति, शुक्र एवं चंद्र ग्रह की स्थिति के अतिरिक्त बुध ग्रह की स्थिति भी देखते हैं क्योंकि बुध ग्रह पैंक्रियाज ग्रंथि पर शासन करता है। इसके साथ साथ लग्नेश की स्थिति तथा इन सभी पर पाप व क्रूर ग्रहों सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु की दृष्टि का विचार करते हैं, कि इनका शुभ ग्रहों एवं लग्नेश पर पाप प्रभाव है या नहीं। इसके अलावा त्रिक भाव 6, 8 और 12 तथा इनके स्वामियों का शुभ ग्रहों से संबंध भी देखते हैं। ऊपर वर्णित विश्लेषण के अनुसार इस रोग के होने की कोई निश्चित आयु तो नहीं है, परंतु 40-45 वर्ष के बाद अर्थात अधिक उम्र में इसके होने की संभावना अधिक रहती है क्योंकि अधिक उम्र में पैंक्रियाज ग्रंथि के कार्य करने की क्षमता कम होती जाती है या इसमें कोई खराबी आ जाती है। खराबी किसी भी उम्र में आ सकती है। इसके लिए मुख्यतः बुध ग्रह की स्थिति एवं उस पर पाप प्रभाव का विचार किया जाता है। वैसे यह रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति अर्थात नवजात शिशु से लेकर 70-75 वर्ष के वृद्ध तक को हो सकता है। मधुमेह का ज्योतिषीय उपाय गणपति उपासना शरीर में इंसुलिन को सुरक्षित एवं नियंत्रित रखने का कार्य बुध एवं शुक्र ग्रह करते हैं। बुध ग्रह पैंक्रियाज ग्रंथि पर आधिपत्य रखता है। गणपति पूजन से बुध ग्रह अनुकूल होता है। गणपति पूजन में निम्नलिखित मंत्र का जप करना चाहिए। ध्यान स्तुति मंत्र ”गजाननं भूतगणादिसेवितं, कपित्थ, जम्बूफल चारूभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।“ यदि जन्मपत्री में किसी व्यक्ति का बुध ग्रह खराब हो और वह मधुमेह रोग से ग्रस्त हो तो उसे नियमित रूप से गणपति की उपासना के साथ-साथ उन्हें प्रिय जामुन फल का प्रसाद चढ़ाना चाहिए और यह प्रसाद स्वयं ग्रहण करने के साथ-साथ दूसरे व्यक्तियों को भी बांटना चाहिए। इस प्रसाद रूपी औषधि को ग्रहण करने से सारे विघ्न, संताप नष्ट हो जाते हैं और धीरे-धीरे मधुमेह रोग का प्रभाव क्षीण होने लगता है। गजानन को जामुन फल का प्रसाद शुक्ल पक्ष बुधवार को पुष्य नक्षत्र में चढ़ाने से जल्दी एवं विशेष लाभ होता है। इसके अलावा पुष्य नक्षत्र में संग्रह किए गए जामुन का सेवन भी विशेष लाभदायक होता है। मधुमेह से मुक्ति तथा स्वास्थ्य में लाभ के लिए श्री गणेश यंत्र का प्रयोग करना चाहिए। इस यंत्र का निर्माण भोजपत्र अथवा रजत या स्वर्णपत्र पर करना चाहिए। यंत्र निर्माण के लिए गणेश चतुर्थी या रवि पुष्य या गुरु पुष्य योग का समय शुभ होता है। इस दिन निर्मित यंत्र धारण करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ इस यंत्र का पूजन एवं अभिषेक करना चाहिए। यंत्र निर्माण के पश्चात किसी विद्वान पंडित से इसका शुद्धीकरण (पंचामृत एवं गंगाजल से) एवं प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रीय पद्धति से करवाकर, इसे पूजा स्थल पर लकड़ी की चैकी पर लाल रंग का आसन बिछाकर स्थापित करें। इसके पश्चात इसे ‘¬ गं गणपतये नमः’ मंत्र के 5400 मंत्रों से अभिमंत्रित करें तथा दशांश हवन भी कराएं। नियमित रूप से ऊनी आसन पर पूर्वाभिमुखी या उत्तराभिमुखी बैठकर शुभ मुहूर्त में हाथ जोड़कर (ध्यान स्तुति मंत्र का जप करते हुए) गणपति जी का ध्यान करें। इस यंत्र को विशिष्ट पर्वकाल में शुद्ध करें तथा मंत्रोच्चार से अभिमंत्रित करें ताकि यंत्र की शक्ति बढ़े। रुद्राक्ष या लाल चंदन से मंत्र का जप करें। जप से पूर्व और उसके बाद ध्यान स्तुति (मंत्र) भी कर लेनी चाहिए। यह क्रिया नियमित रूप से करने से गणपति की कृपा प्राप्त होती है और मधुमेह का प्रभाव क्षीण होने लगता है। प्रार्थना मंत्र पूजा प्रारंभ करने से पूर्व निम्नलिखित मंत्र का एक माला जप करना चाहिए। ”वक्रतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा।। सर्वविघ्न विनाशाय, सर्वकल्याण हेतवे। पार्वती प्रिय पुत्राय, गणेशाय नमो नमः।।“ स गणेश चतुर्थी, बुधवार या पुष्य नक्षत्र को गजानन जी का पंचामृत एवं गंगाजल से अभिषेक कर षोडशोपचार पूजन करें। दूर्वा एवं लाल पुष्प चढ़ाएं, बूंदी के लड्डू, मेवे की मिठाई, जामुन आदि का भोग लगाएं। प्रसाद बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें। इसके साथ गणपति चालीसा, गणेश स्तोत्र एवं कवच का पाठ तथा गणेश चतुर्थी का व्रत करें। इस तरह गणपतिजी से संबंधित सारे उपाय करने पर मधुमेह रोग से मुक्ति मिलती है। महामृत्युंजय मंत्र का पाठ स शाम या रात्रि को महामृत्युंजय मंत्र का माला जप करना चाहिए। ”¬ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।“ ¬ हौं ¬ जूं ¬ सः ¬ भू ¬ भुवः ¬ स्वः त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। ¬ स्वः ¬ भुवः ¬ भूः ¬ सः ¬ जूं ¬ हौं ¬।। “ इस मंत्र का जप रुद्राक्ष माला पर करना चाहिए। मंत्र जप प्रतिदिन कम से कम एक माला तथा रोग के गंभीर होने की स्थिति में संकल्प लेकर सवा लाख जप स्वयं करें या किसी विद्वान पंडित से कराएं। ऊपर वर्णित मंत्र का जप महामृत्युंजय यंत्र (अर्थात् शिव का यंत्र) या शिवलिंग (विशेषकर पारद शिवलिंग) के सम्मुख करने पर विशेष लाभ होता है। मार्कण्डेय ऋषि ने इस संबंध में कहा भी है - ”चंद्रशेखराश्रये माम् किम करिश्यति वैः यमः“ अर्थात जब मैं भगवान चंद्रशेखर (मृत्युंजय) की शरण में हूं तो मृत्यु के देवता यम मुझे नुकसान कैसे पहुंचा सकते हैं। महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से पूर्व निम्नलिखित रुद्र सूक्त का पाठ अवश्य करें। ‘तत्पुरुषे विùहे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात। प्रतिदिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर ऊन के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाकर करें। दीपक पूरे जप काल तक जलता रहे। जप प्रातः ही करें, रात्रि में नहीं। गायत्री मंत्र का जप करने से पूर्व प्रार्थना करनी चाहिए - ”देवि प्रपन्नार्ति हरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। साते विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।“ गायत्री मंत्र ”¬ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।“ यज्ञोपचार यज्ञ विज्ञान के अनेक पक्ष हैं। यज्ञ से मानसिक आत्मिक स्वास्थ्य की अभिवृद्धि के साथ-साथ मधुमेह जैसे शारीरिक रोगों के निवारण में भी असाधारण लाभ मिलता है। इस रोग को दूर करने की यज्ञोपचार प्रक्रिया इतनी सरल है कि इसके सहारे मारक एवं पोषक दोनों ही तत्वों को शरीर के विभिन्न अंगों-उपांगों में आसानी से पहुंचाया जा सकता है। विभिन्न औषधीय वनस्पतियों, पोषक द्रव्यों की हवन सामग्री से हर व्यक्ति बल, पोषण एवं रोग निरोधक शक्ति प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त इस क्रिया से आने वाले रोगों से बचाव होता है और आयु दीर्घ होती है। यज्ञोपचार विधि से मधुमेह जैसे रोगों की चिकित्सा संभव है। यहां इस रोग से मुक्ति हेतु विशिष्ट प्रकार की हवन सामग्री से हवन करने का विधान प्रस्तुत है। हवन सामग्री श्वेत और लाल चंदन, अगर, तगर, देवदार, जायफल, लौंग, गुग्गुल, चिरायता, गिलोय एवं असगंध, हरड़, कैथ का गूदा, कुटकी, भांग, खुशसानी, अजवायन, हल्दी, खस, लाजवंती के बीज, पुनर्नवा, शिलाजीत, बिल्वपत्र, जामुन की गुठली, विजयसार, गुड़मार, करेले का फल एवं पत्तियां, मेढ़ासिंगी, उलट कंबल, गूलर के फल, कूठ कड़वी, कुरज, मेथी दाना, अतीस कड़वी, आम की गुठली की मींगी, दारुहल्दी तथा रसौत को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर कूट, पीसकर और कपड़े से छान कर अलग-अलग रख लें। इस सामग्री से नियमित रूप से सुबह-शाम हवन करें। हवन करते समय निम्नलिखित सूर्य गायत्री मंत्र से कम से कम चैबीस आहुतियां देनी चाहिए। ¬ भूर्भुवः स्वः भास्करायविùहे दिवाकराय धीमहि, तन्नः सूर्य प्रचोदयात्। हवन पुष्य नक्षत्र या अन्य शुभ दिन शुभ मुहूर्त या समय में रोगी के नाम से संकल्प लेकर करवाने से शीघ्र एवं अधिक लाभ मिलता है। ऊपर वर्णित हवन संकल्प लेकर रोगी स्वयं कर सकता है या रोगी के नाम का संकल्प लेकर किसी विद्वान पंडित से भी करवाया जा सकता है। औषधि स्नान बुध पीड़ा निवारण औषधि स्नान मोती, अक्षत, चवला, गोरोचन, जायफल, पीपरमूल और गाय की छाछ से हर बुधवार स्नान करने से बुध जनित पीड़ा का शमन होता है। गुरु पीड़ा निवारण औषधि स्नान गुरुवार को सफेद सरसु, गुलांगी, शहद, चमेली के फूल तथा पत्तों का पानी में डालकर स्नान करने से पीड़ा दूर होती है। शुक्र पीड़ा निवारण औषधि स्नान जायफल, मनोसिल, पीपरमूल, केसर और इलायची मिश्रित जल से हर गुरुवार स्नान करने से शुक्र जनित पीड़ा दूर होती है। मधुमेह बुध, गुरु और शुक्र के पीड़ित होने से होता है। इन उपायों के अतिरिक्त नौ ग्रह शांति यंत्र का भोजपत्र पर केसर की स्याही एवं अनार की कलम से पुष्य नक्षत्र में शुभ मुहूर्त में निर्माण और विधिवत प्राण प्रतिष्ठा कर रोगी को धारण कराना चाहिए। अन्य घरेलू उपाय इस रोग का कोई ठोस इलाज नहीं है परंतु खानपान की आदतें सुधार कर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इस पर नियंत्रण के कुछ घरेलू उपाय यहां प्रस्तुत हैं। चीनी से परहेज करें। सुबह शाम सैर करें। नीम के 5 पत्ते खाली पेट खाएं। सदाबहार के 7 फूल खाली पेट खाएं। जामुन की गुठली का चूर्ण बना कर एक-एक चम्मच सुबह-शाम खाएं। खीरा, करेला और टमाटर बराबर मात्रा में लेकर जूस निकालकर सुबह खाली पेट पीएं। मेथी की सब्जी का सेवन ज्यादा करें। मेथी दाना का चूर्ण बनाकर एक चम्मच हर रोज खाएं। 10 से 20 ग्राम गोमूत्र रोज पीएं। प्रातःकाल 3 से 5 किमी पैदल भ्रमण करें। पपीता, जामुन, टमाटर, सलाद का सेवन करें। जामुन की गुठली का चूर्ण इस रोग के लिए सस्ता उपाय है। ऊँट मंगनी की पत्तियों को घोट कर नित्य सवेरे पीएं। मधुनाशिनी पुष्पी एक आयुर्वेदिक सिद्ध औषधि है। इसे एक कांच के गिलास में 200 मिली लीटर पानी में एक चम्मच (3 ग्रा.) भिगोकर सुबह छानकर खाली पेट पीएं। आलू, गोभी, बैंगन, तली हुई वस्तुओं, चावल, मांस और मदिरा से परहेज करें। शाक सब्जियों का सेवन करें और पर्याप्त पानी पीएं, इन्सुलिन की सुई लेने की नौबत नहीं आएगी।



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