इतिहास गवाह है लाल किताब की भविष्यवाणियों का
इतिहास गवाह है लाल किताब की भविष्यवाणियों का

इतिहास गवाह है लाल किताब की भविष्यवाणियों का  

व्यूस : 9783 | जून 2008
इतिहास गवाह है लाल किताब की भविष्यवाणियों का अशोक सक्सेना ज्योतिष शास्त्र ‘‘तीसरी आंख’’ के रूप में आज भी अपना महत्व बनाए हुए है। इस सदी के महान वैज्ञानिक न्यूटन ने लाल किताब के आधार पर अपनी कुंडली स्वयं निर्मित की थी। न्यूटन को अनुभव हुआ कि हस्तरेखा के आधार पर निर्मित कुंडली व्यक्ति के कारनामे की पोल पलक झपकते ही खोलने में सक्षम होती है। ज्योतिष मूलतः भविष्य की तलाश करता है, जबकि विज्ञान इस बात की तलाश करता है कि आज क्या है? कारण क्या है? संसार की सारी प्राचीन सभ्यताओं में ज्योतिष एवं खगोल की परंपरा रही है और इस ज्ञान का आदान प्रदान भी होता रहा है। मानव सभ्यता के लिखित इतिहास में दो समानांतर धाराएं अविरल चलती रही हंै। प्रथम धारा थी विशुद्ध ग्रहों, घटनाओं की जिसे गणित ज्योतिष कहते हैं। द्वितीय धारा थी फलादेश करने वाले ज्योतिष की जो फलित ज्योतिष कहलाता है। कालांतर में गणित ज्योतिष की तुलना में फलित ज्योतिष अर्थात् लाल किताब खूब फैली व 12वीं सदी के बाद ज्योतिष के सिद्धांत की मात्र टीकाएं लिखी जाने लगीं जबकि गणित ज्योतिष पन्नों में ही सिमट कर रह गया। फलित ज्योतिष के कई स्वरूप हैं जैसे हस्तरेखा शास्त्र, मुखाकृति विज्ञान, हस्ताक्षर विज्ञान, प्रश्न कंुडली विज्ञान, अंकशास्त्र विज्ञान, तांत्रिक होरा शास्त्र आदि। ध्यान देने योग्य बात यह है कि आजकल लाल किताब भी प्रचलन में आ गई है। प्राचीन काल में दुर्लभ साहित्यों एवं ज्योतिषियों की भविष्य कथन की प्रक्रिया पहेलीनुमा उलझी हुई भाषाओं में होती थी जैसा कि लाल किताब पर दृष्टि डालने से प्रतीत होता है। उलझी हुई होने पर दिया ‘‘सूरज की अग्नि जैसा प्रखर व बंकर जैसा सुरक्षित।’’ इतिहास साक्षी है कि 29 अप्रैल 1945 को बार्लिन के एक बंकर में हिटलर ने अपनी प्रेमिका (ईवा ब्राउन) से विवाह किया और अगले दिन आत्महत्या करने से पूर्व अपने अनुचरों को यह आदेश दिया कि इवा व मेरी लाशों को पेट्रोल से जला दिया जाए। कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य वर्तमान में जो अच्छे व बुरे कर्म करता है उसका प्रभाव उसके जीवन पर अवश्य पड़ता है। ज्योतिष के लौकिक पक्ष में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रह फलाफल में नियामक नहीं अपितु सूचक होते हंै। अर्थात् ग्रह किसी को सुख-दुख नहीं देते बल्कि आने वाले सुख-दुख की सूचना देते हैं। यूनान में पूर्व में सागर तटीय क्षेत्र में एंजैस के पास डेल्फी नामक पर्वतीय अंचल में अपोलो का मंदिर था जिसके भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं। ईसा पूर्व की चैथी सदी में डेल्फी की पुजारिनें विशेष दिनों में लाल किताब के अनुसार भविष्य कथन का कार्य करती थीं, इन पुजारियों को पायथिया कहा जाता था। वे हाथ की रेखाओं के आधार पर निर्मित जन्मकुंडली से भविष्यवाणी करती थीं। उन्हीं दिनों रोम के सम्राट नीरो ने डेल्फी के पायथिया से अपना भविष्य जानना चाहा। वह काफी प्रयास के बाद लंबी यात्रा करके डेल्फी पहुंचा। अपोलो के पवित्र मंदिर में उसे घुसते देखकर वहां उपस्थित पायथिया ने चीखते हुए कहा ‘‘जा भाग जा माता के हत्यारे, और 73 से बचकर रह।’’ इस अपमान से नीरो आपे से बाहर हो गया। उसने भी भविष्यवाणियां अक्सर सही हो जाती थी। संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं में मंदिरों के पुजारी एवं पुजारिन भविष्य अध्ययन व भविष्य कथन लाल किताब के अनुसार करते थे। पुरोहित भी इस कर्म को करते थे। वर्तमान समय में भी कमोबेश इस परंपरा के अवशेष विद्यमान हैं। सन् 1942 में हिटलर ने अपने ज्योतिषी एवं आध्यात्मिक सलाहकार क्राफ्ट से पूछा था ’’जर्मनी की किस्मत में युद्ध का धुआं कब तक बदा है?’’ क्राफ्ट ने कहा, ‘‘मई 1945’’ तक। ‘‘और मेरा भविष्य?’’ क्राफ्ट ने उत्तर डेल्फी की उस पुजारिन के साथ-साथ अन्य सारी पुजारिनों के हाथ पैर काट कर उन्हंे जिंदा ही जमीन में दफनाने का हुक्म दे दिया। उसके अंगरक्षकों ने मंदिरों को तहस नहस कर डाला। नीरो ने सोचा कि पुजारिन ने उसकी उम्र 73 साल बताई है। लेकिन पुजारिन का आशय कुछ और था। आगे चलकर गलब नामक व्यक्ति ने नीरो की हत्या कर दी तथा उसका राज्य हथिया लिया तब नीरो की उम्र 73 वर्ष की थी। उस गलबा ने 73 वर्ष पूर्ण होने के पूर्व ही नीरो की हत्या कर दी। इसी तरह की एक और घटना है। कहते हैं कि ईसा से 6 सदी पूर्व लीडिया के सम्राट क्रोइसिस ने फारस पर आक्रमण करने की योजना बनाई थी क्योंकि उसकी उससे दुश्मनी थी। वह अपने उद्देश्य में कामयाब होगा या नहीं यह जानने के लिए उसने अपना दूत डेल्फी भेजा। तत्कालीन पायथिया ने उत्तर दिया, ‘‘पार अगर की नदी हेलायस तो सुन सम्राट क्रोइसिस, शबू बड़ा साम्राज्य बनेगा।’’ क्रोइसिस ने यह भी जानना चाहा कि उसका शासन कब तक चलेगा? उसका उत्तराधिकारी कौन होगा? क्या गूंगा राजकुमार भी बोल पाएगा? तब पायथिया ने उसे पहेलीनुमा भविष्य कथन सुनाया था। शासन तब तक चले जब तक खच्चर न पाये शासन गूंगा राजकुमार जो बोले आये आफत जाये शासन।। हो संबंध घने रण पहले ग्रीक राष्ट्रो में जो है। सबलतम यह है सच बिल्कुल सच क्रोइसिस।। आग से भी जीवित निकलेगा एक बड़ा साम्राज्य मिटेगा।। हालांकि क्रोइसिस ने इस भविष्यवाणी को अपने पक्ष में ही माना था, लेकिन ऐसा नहीं था। उसने ग्रीक राष्ट्रांे में सबलतम ‘स्पार्टा’ के समर्थन से फारस पर आक्रमण कर दिया। हेलायस नदी पार करते ही उसका पतन प्रारंभ हो गया। फारसी फौजों ने उसके सैनिकों को नेस्तनाबूद कर दिया। इस प्रकार लीडिया साम्राज्य का पतन होते देर नहीं लगी। विजयी बादशाह सामरस को लोग पीठ पीछे दोगला खच्चर भी कहते थे क्योंकि उसका पिता फारसी तथा मां मिस्री थी। लीडिया नगर पर कब्जा होते ही सम्राट क्रोइसिस तथा 14 अन्य भक्तों को जिंदा जलाने का आदेश दे दिया गया। अंतिम क्षणों में यद्यपि सामरस ने क्रोइसिस को क्षमादान दे दिया लेकिन उसके सैनिक आग पर काबू न पा सके। तभी चमत्कारिक रूप से आसमान में बादल घिर आए और मूसलाधार बारिश हुई और धधकती अग्नि शांत हो गई। भविष्यवाणी के अनुसार क्रोइसिस जलती आग से बाहर निकल आया। एक अंतिम भविष्यवाणी सन् 362 में की गई। रोम के एक व्यक्ति हेड्रियन ने एक मंदिर को तहस नहस करवा कर बंद करवा दिया क्योंकि उसे सम्राट बनने की लालसा थी। फिर उसने सोचा कि सम्राट बनने की बजाय पायथिया से कोई दूसरा आशीर्वाद ले ले। उसकी इच्छा थी कि सम्राट जूलियन को उतारकर खुद सम्राट बने। इस दौरान सम्राट जूलियन ने अपने निजी चिकित्सक को डेल्फी भेजा। वहां पुजारिन ने उसको मंदिर का भग्नावशेष दिखाते हुए कहा कि डेल्फी की पायथिया और उसकी भविष्यवाणी को सभी याद रखेंगे मगर रोमन साम्राज्य धूल धूसरित होने को है। डेल्फी की उस पुजारिन की भविष्यवाणी सत्य हुई। ऊपर वर्णित तथ्यों एवं प्रकरणों के आधार पर यह सत्य प्रतीत होता है कि दिव्य दृष्टि से लिखी लाल किताब के पन्ने गूढ़ व रहस्यमय विद्याओं एवं अतीदिं्रय शक्तियों के स्वामी हैं जो मानव की आत्माआंे में झांक कर विभिन्न गोपनीय रहस्यों को उजागर करते हैं। किंवदंती है कि लंकाधिपति रावण ने सूर्य के सारथी अरुण से इस इल्म का सामुद्रिक ज्ञान संस्कृत में ग्रंथ के रूप में ग्रहण किया था। रावण की तिलिस्मी दुनिया समाप्त होने के पश्चात् यह ग्रंथ किसी प्रकार आद नामक एक स्थान पर पहुंच गया जहां इसका अनुवाद अरबी और फारसी भाषा में किया गया। आज भी कुछ लोग मानते हैं कि यह पुस्तक फारसी में उपलब्ध है जबकि सच्चाई कुछ और है। यह ग्रंथ उर्दू अनुवाद में पाकिस्तान के पुस्तकालय में सुरक्षित है। लेकिन काल वश इस ग्रंथ अरुण संहिता बनाम लाल किताब का कुछ हिस्सा लुप्त हो चुका है। बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज है, मगर मौत का कोई इलाज नहीं । ज्योतिष दुनियाबी हिसाब-किताब है, कोई दवाए खुदाई नहीं।। इसका तात्पर्य यह है कि लाल किताब कोई जादू नहीं है अपितु बचाव व रूह शांति के उपायों का एक माध्यम है। दूसरों पर हमला करने का जरिया नहीं। अगर भाग्य के रास्ते में कोई ईंट या पत्थर गिरा कर किसी का मार्ग रोके तो इस किताब की मदद से पत्थर हटा कर उसके मार्ग को आसान करने की कोशिश की जा सकती है।



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