वास्तु के अनुसार अस्पताल
वास्तु के अनुसार अस्पताल

वास्तु के अनुसार अस्पताल  

व्यूस : 5868 | नवेम्बर 2012
वास्तु के अनुसार अस्पताल प्रमोद कुमार सिन्हा अस्पताल एक ऐसा स्थल है जो समाज के लिए स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है। अतः ऐसे संस्थानों का निर्माण वास्तु के नियमों के अनुसार होना चाहिए जिससे बीमार व्यक्ति यथाशीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकें। इससे डाॅक्टर और मरीज दोनांे को लाभ होता है। ऐसे अस्पताल काफी लोकप्रिय हो जाते हैं। प्र0-किस तरह के भूखंड अस्पताल के लिये शुभ फलदायक होते हैं? उ0-अस्पताल के लिए भूखंड आयताकार अथवा वर्गाकार होनी चाहिए। वर्गाकार एवं आयताकार भूखंड में चुंबकीय प्रवाह का निर्माण समुचित रूप से होता है। जिस भूखंड इस प्रकार करना चाहिए कि उसका चेहरा अर्थात आगे का हिस्सा पूर्व या उत्तर की तरफ रहे। इससे अस्पताल को शीघ्र प्रसिद्धि मिलती है। प्र0-भूखंड के किस तरफ अस्पताल का होना ज्यादा लाभदायक होता है ? उ0-अस्पताल के भवन का निर्माण दक्षिण से लेकर पश्चिम की तरफ करना लाभदायक होता है। अस्पताल का मध्य भाग खुला और साफ सुथरा रखना चाहिए। अस्पताल में उत्तर-पूर्व की तरफ अधिक से अधिक खुली जगह छोड़ना चाहिए। अस्पताल के उत्तर या पूर्व में फव्वारा, झरना या तालाब की व्यवस्था रखना अस्पताल के प्रगति एवं प्रसिद्धि में चार चाँद लगा देता है। ऐसे अस्पताल राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाते हैं। प्र0-अस्पताल की आंतरिक व्यवस्था कैसी होनी चाहिए ? उ0-मरीजों के लिए स्वागत कक्ष उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में बनाना चाहिए। इसके आंतरिक व्यवस्था को इस तरह व्यवस्थित करना चाहिए कि बैठने पर मरीजों का मुंह उत्तर या पूर्व की तरफ रहे। अस्पताल में मुख्य डाॅक्टर के परीक्षण का कक्ष भवन के दक्षिण-पश्चिम में बनाना चाहिए। डाॅक्टर को कमरे के अंदर दक्षिण-पश्चिम की तरफ उत्तर या पूर्व की ओर मुंह कर मरीजों को स्वास्थ्य संबंधी सलाह देनी चाहिए। डाॅक्टर पूर्व की तरफ चेहरा कर बैठते हों तो मरीज को उनके दायीं तरफ तथा उत्तर की तरफ चेहरा कर बैठते हों तो मरीज को बायीं तरफ बैठाना चाहिए। मरीज को इस तरह लेटाकर परीक्षण या जांच करनी चाहिए जिससे कि मरीज का सिर दक्षिण, पश्चिम या पूर्व की तरफ रहे। अस्पताल में शल्य कक्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण कक्ष होता गहन चिकित्सा कक्ष, कैन्टीन, शल्य चिकित्सा विभाग एवं आॅपरेशन थियेटर, मनोरोग विभाग, आॅखों का विभाग मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी का कार्यालय मुर्दा घर, पोस्टमार्टम कक्ष एक्स-रे, अल्ट्रासाउण्ड,सीटी स्कैन,रेडियोलाॅजी औषधी कक्ष, वाह्य चिकित्सा विभाग (ओ.पी.डी.),हंृदय रोग विभाग स्वागत कक्ष, वार्ता कक्ष, आपातकालीन प्रसुति वार्ड वाह्य चिकित्साविभाग छोटा आॅपरेशनकक्ष पश्चिम पूर्व उतर दक्षिण में सकारात्मक ऊर्जा एवं विद्युत चंुबकीय लहरों का निर्माण होता है वह भूखंड शुभ फलदायी होता है। आयताकार भूखंड का आकार 2ः1 अनुपात से अधिक बड़ा नहीं रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर भूखंड में विद्युत चंुबकीय ऊर्जा का प्रभाव क्षीण हो जाता है। अस्पताल का मुख्य भवन भूखंड के दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए। अस्पताल का निर्माण है। इसे पश्चिम में रखना चाहिए। शल्य कक्ष में आॅपरेशन कराते वक्त मरीज का सिर दक्षिण की तरफ रखना लाभप्रद होता है। डाॅक्टर को आॅपरेशन करते वक्त चेहरा पूर्व, या उत्तर की तरफ रखना चाहिए। दक्षिण की तरफ चेहरा कर आॅपरेशन नहीं करना चाहिए। आॅपरेशन कक्ष में प्रयोग होने वाले उपकरणों एवं संयंत्रांे को दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। मरीज का कमरा वायव्यकोण की तरफ रखना विशेष शुभ फलदायक होता है। इमरजेंसी वार्ड को भवन के वायव्य कोण की तरफ रखना चाहिए। इस स्थान पर अत्यधिक बीमार मरीज को रखने से मरीज अतिशीघ्र स्वस्थ हो जाता है। नर्स या कर्मचारियों के लिए क्वार्टर अस्पताल के दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम की तरफ बनाना चाहिए। सीटी स्कैन, एक्स-रे, इ.सी.जी, अल्ट्रासाउण्ड या अन्य इलेक्ट्रीकल मशीनें भवन के दक्षिण-पूर्व की तरफ वाले कमरे में रखनी चाहिए। अस्पताल में गहन चिकित्सा कक्ष को वायव्य के क्षेत्र में बनाया जाना चाहिए। शल्य चिकित्सा विभाग जहां पर आॅपरेशन की आवश्यकता पड़ती है, हालांकि इसके लिए सर्वश्रेष्ठ क्षेत्र पश्चिम की तरफ है। छोटे आॅपरेशन के लिए उत्तर एवं उत्तर-पूर्व के क्षेत्र में भी आॅपरेशन थियेटर बनाया जा सकता है। मनोरोग विभाग एवं आँखो के विभाग के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान पश्चिम का क्षेत्र है। आँख, नाक, कान के संयुक्त विभाग उत्तर-पूर्व या पूर्व की तरफ रखे जा सकते हंै। बाह्य चिकित्सा विभाग जहां पर मरीज आकर डाॅक्टरों से परामर्श लेते हंै, इसके लिए उत्तर और पूर्व की दिशा श्रेष्ठ मानी जाती है। जहां तक कार्डियोलाॅजी विभाग का सवाल है उसके लिए पूर्व की दिशा लाभप्रद होता है तथा क्षय रोग के लिए पूर्व और वायव्य की दिशा अच्छी होती है। औषधि कक्ष के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान पूर्व और उत्तर-पूर्व की दिशा होती है। मुर्दा घर या पोस्टमाॅर्टम कक्ष मृत्यु के देवता यम् की दिशा यानि दक्षिण में बनाया जाना चाहिए। एक्स-रे, अल्ट्रासाउण्ड, सीटी स्कैन, रेडियोलाॅजी इत्यादि विद्युतीय उपकरणों को आग्नेय दिशा में रखना सर्वश्रेष्ठ होता है। प्रसूति वार्ड उत्तर या पूर्व दिशा में बनाया जा सकता है। आॅपरेशन के बाद स्वास्थ्य लाभ कक्ष उत्तर या उत्तर-पूर्व क्षेत्र में बनाया जा सकता है। प्र0-अस्पताल मंे मरीजों के लिए बेड की व्यवस्था कैसी होनी चाहिए ? उ0-अस्पताल में मरीजों के लिए बेड की व्यवस्था वास्तु के नियमों को ध्यान में रखकर करना लाभप्रद होता है। मरीज को उत्तर की ओर सिर करके नहीं सोना चाहिए क्योंकि सिर को उत्तर की ओर रखने पर पृथ्वी क्षेत्र का उत्तरी ध्रुव मानव के उत्तरी ध्रुव (सिर को उतरी ध्रुव कहा गया है।) से घृणा कर चुंबकीय प्रभाव को अस्वीकार करेगा जिससे शरीर में रक्त संचार हेतु उचित और अनुकूल चुंबकीय क्षेत्र का लाभ नहीं मिल सकेगा। इसके कारण मस्तिष्क में तनाव, छाती में दर्द -जकड़न एवं अच्छी नींद नहीं आने की शिकायत हो सकती है। मरीजों को दक्षिण दिशा में सिर कर सोने से शरीर को शांतिमय निद्रा एवं अनुकूल अवस्था प्राप्त होती है क्योंकि सिर दक्षिण दिशा में रख कर सोने से चुंबकीय परिक्रमा पूरी होने के कारण चुंबकीय तरंगांे के प्रभाव मंे रूकावट नहीं होती जिससे शीघ्र स्वास्थ्य में लाभ मिलता है। इसके अलावा सिर को पश्चिम और पूर्व की ओर करके सुलाना भी लाभप्रद होता है।



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