दीपावली पूजन मुहूर्त
दीपावली पूजन मुहूर्त

दीपावली पूजन मुहूर्त  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8153 | नवेम्बर 2012

दीपावली पूजन मुहूर्त इस वर्ष 2012 में दीपावली 13 नवंबर को मंगलवार के दिन है। इस दिन चित्रा नक्षत्र, परंतु प्रदोषकाल के बाद स्वाति नक्षत्र का काल रहेगा, इस दिन प्रीति योग तथा चंद्रमा तुला राशि में संचार करेगा। मंगलवार की दीवाली मंत्र-जाप एवं तांत्रिक प्रयोगों के लिए विशेष ग्राह्य मानी जाती है।

भविष्य पुराण के अनुसार-

कार्तिके प्रदोषे तु विशेषन अमावस्या निशावाध्र्के।

तस्यां संपूजयेत देवीं भोगामोक्ष प्रयिनीम।।

अर्थात- श्रीमहालक्ष्मी पूजन एवं दीपावली का महापर्व कार्तिक कृष्ण अमावस्या में प्रदोष काल एवं अर्द्धरात्रि व्यापिनी में मनाना विशेष रूप से शुभ होता है। दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोषकाल, स्थिर लग्न व चैघड़िया मुहूर्त विशेष महत्व रखते हैं, लक्ष्मी जी का पूजन व्यवसायी, गृहस्थ एवं साधक सभी करते हैं। लेकिन उनके लिए अलग-अलग मुहूर्त बताए गये हैं।

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व्यवसायी को व्यवसाय स्थल पर दिन में कुंभ लग्न में लक्ष्मी पूजन करना चाहिए। गृहस्थ के लिए प्रदोष काल उŸाम है अतः घर में लक्ष्मी पूजन वृष लग्न में प्रदोष काल में करना चाहिए। साधकों के लिए महानिशीथ काल अर्थात अर्द्धरात्रि में सिंह लग्न में लक्ष्मी साधना करना उŸाम है। ऐसे में शुभ चैघड़िया का मेल मुहूर्त को अतिउŸाम बना देता है।

मंगलवार के दिन दिल्ली तथा आसपास के इलाकों में सूर्यास्त पर होगा। इस अवधि से लेकर घंटे मिनट तक प्रदोष काल रहेगा। इसे प्रदोषकाल का समय कहा जाता है। प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न समय सबसे उŸाम रहता है। इस दिन प्रदोष काल व स्थिर लग्न दोनों से लेकर का समय रहेगा।

साथ ही इस मुहूर्त में शुभ चैघड़िया से तक रहेगा। अतः स्थिर लग्न, प्रदोष काल व शुभ चैघड़िया सहित दीपावली पूजन के लिए सर्वोत्तम निशा काल से तक रहेगा। इस समय घर पर लक्ष्मी जी के सम्मुख दीप जलाकर उनका आह्वान व पूजन करें।

विभिन्न शहरों के लिए लक्ष्मी पूजन का शुभ समय निम्न सारिणी में दिया गया है- मुख्य स्थानों में दीपावली पूजन का समय 13.11.2012 शहर व्यावसायिक स्थल में पूजन का समय घर में पूजन का समय साधना व सिद्धि समय कुंभ लग्न वृष लग्न सिंह लग्न सूर्यास्त प्रारंभ समाप्त प्रारंभ समाप्त प्रारंभ समाप्त समय दिल्ली 14ः33 15ः58 17ः32 19ः28 24ः03 26ः24 17ः27 चैन्नई 14ः18 15ः57 17ः45 19ः47 24ः12 26ः15 17ः38 काले काता 14ः35 15ः37 16ः59 18ः57 23ः26 25ः41 16ः52 मुंबई 14ः48 16ः23 18ः06 20ः06 24ः31 26ः43 18ः00 लखनऊ 14ः18 15ः45 17ः21 19ः17 23ः50 26ः10 17ः15 पटना 14ः00 15ः28 17ः06 19ः03 23ः35 25ः53 17ः00 भोपाल 14ः31 16ः01 17ः41 19ः39 24ः08 26ः24 17ः35 देहरादून 14ः30 15ः53 17ः26 19ः21 23ः57 26ः20 17ः21 अहमदाबाद 14ः50 16ः21 18ः00 19ः58 24ः28 26ः43 17ः54 बेंगलूरू 14ः28 16ः08 17ः56 19ः58 24ः23 26ः26 17ः49 रांची 13ः59 15ः30 17ः09 19ः07 23ः37 25ः53 17ः03 गुवाहाटी 13ः34 15ः02 16ः39 18ः35 23ः08 25ः27 16ः33 रायपुर 14ः15 15ः44 17ः27 19ः26 23ः54 26ः08 17ः21 जयपुर 14ः38 16ः05 17ः41 19ः37 24ः10 26ः30 17ः35 जम्मू 14ः43 16ः04 17ः34 19ः28 24ः07 26ः33 17ः29 काठमांडू 14ः16 15ः43 17ः19 19ः15 23ः48 26ः08 17ः13

इसी प्रकार दिन में व्यवसाय स्थल पर कुंभ लग्न में पूजन करना श्रेष्ठ है। दिल्ली में शुभ का चैघड़िया से तक रहेगा व कुंभ लग्न से तक होने के कारण श्रेष्ठतम समय से तक होगा। साधना के लिए महानिशीथ काल सिंह लग्न से तक होगा व अमृत चैघड़िया से तक रहेगी। अतः सर्वोत्तम समय से का ही होगा।

लक्ष्मी-गणेश मूर्तियां, शिवलिंग, श्री यंत्र, कलावा, नारियल, नारियल गरी, कच्चे चावल, लाल कपड़ा, फूल, 15 सुपारी, लौंग, 13 पान के पŸो, घी, 5-7 आम के पŸो, कलश, चैकी, समिधा, हवन कुंड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत, फल, मेवे, मिठाई, आसन, आटा, हल्दी, अगरबŸाी, कुमकुम, इत्र, 1 बड़ा दीपक व रूई। पूजा करने के लिए उŸार अथवा पूर्व दिशा में मुख होना चाहिए।

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पूजा की जगह को अच्छी तरह से साफ करें। द्वार पर रंगोली बनाएं। पूजन करने की जगह पर आटे और रोली से अष्ट दल कमल और स्वास्तिक बनाएं। उसके ऊपर चैकी रखकर लाल कपड़ा बिछाएं। कलश में जल भरकर उसमें गंगाजल, थोड़े से चावल और सिक्का डालें। चैकी की दायीं तरफ चावल के ऊपर इस कलश की स्थापना करें। आम के 5 अथवा 7 पŸो रखें।

नारियल पर तीन चक्र कलावा बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें। श्री गणेश, देवी लक्ष्मी और श्री यंत्र की चैकी पर पूरे मनोयोग से स्थापना करें व लक्ष्मी जी को गणेश जी के दायें स्थापित करें। तेल के 21 दीपक व एक चारमुखी दीपक जलाएं। एक दूसरे को तिलक लगाकर कलावा बांधे। स्त्रियां अपने बायें हाथ एवं पुरुष अपने दायें हाथ पर बांधें। गणेश जी का ध्यान और आह्वान करें।

इसके उपरांत उन्हें चावल, पान, सुपारी, लौंग, फूल कलावा रूपी वस्त्र, धूप फल और भोग समर्पित करें। नवग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु), कुबेर देवता, स्थान देवता और वास्तु देवता का 24ः03 26ः24 24ः05 25ः45 24ः05 25ः45 पूजन सामग्रीः क्रम से आह्वान कर सभी का विधिवत पूजन करें तथा पान, चावल, सुपारी, लौंग, कलावा, फूल और फल उन्हें समर्पित करें।

लक्ष्मी जी के मंत्र से हवन करते समय कमलगट्टे के बीज हवन सामग्री में मिला लें और 108 बार मंत्र का उच्चारण करते हुए हवन करें। लक्ष्मी और गणेश जी की आरती करें। अपनी जन्म राशि या कुंडली के योगकारक ग्रहों के अनुसार विशेष धातु निर्मित लक्ष्मी-गणेश का प्रयोग करना सर्वश्रेष्ठ फल देता है।

राशि - धातु विशेष लक्ष्मी-गणेश मेष, वृश्चिक - लाल मूंगा वृष, तुला - स्फटिक मिथुन, कन्या - मरगज कर्क - चांदी धनु, मीन - गुलाबी बिल्लौर (त्वेम फनंतज्रद्ध सिंह - संगसितारा मकर, कुंभ - पारद संसार में शक्ति साधना के पश्चात् लक्ष्मी साधना ही मुख्य है। दीपावली के शुभ मुहूर्तों का उपयोग कर आप अपने परिवार और शुभचितंकों की दरिद्रता का निवारण कर सकते हैं।

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