मां देवी शारदा का धाम-मैहर
मां देवी शारदा का धाम-मैहर

मां देवी शारदा का धाम-मैहर  

व्यूस : 18290 | सितम्बर 2008
मां देवी शारदा का धाम-मैहर डाॅ. अंजुला राजवंशी प्राचीन काल से ही भारत अपनी धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्वविख्यात रहा है। माना भी जाता है कि ‘चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस पे वाणी, भारत में विभिन्न धर्मों के मानने वाले हैं और उनके अलग-अलग आराध्य देव और प्रतीक हैं। हिंदुओं के देवी-देवताओं में एक हैं- मां शारदा या मां सरस्वती। मैहर, मां शारदा देवी का धाम है, जो मध्य प्रदेश के सतना जिले में, तहसील मैहर, ग्राम पंचायत आरकंडी के परिक्षेत्र में त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों से भरपूर यह धाम बाघेल खंड और बुंदेल खंड की संस्कृति का सदा से ही केंद्र बिंदु रहा है। मान्यता है कि जब शंकर जी सती के पार्थिव शरीर को लेकर विलाप करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान विचरण कर रहे थे, तब इस स्थान पर मां के गले का हार गिरा था। इसी कारण इस स्थान का नाम ‘माईहार’ पड़ा जो बाद में बिगड़ते-बिगड़ते ‘मैहर’ हो गया। शक्ति के बिना देवता भी कुछ नहीं कर सकते। मां शारदा उस आदि शक्ति के ही रूप हैं जिनकी शक्ति और साथ प्राप्त करके ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण कार्य, विष्णु जी पालन कार्य और शिवजी संहार का कार्य करते हैं। भगवती मां शारदा को विद्यादात्री माना जाता है। ब्रह्म परमेश्वरी मां शारदा के शरीर का रंग कुंद पुष्प तथा चंद्रमा के समान धवल है और उनका वाहन हंस है। वे चार भुजाओं वाली हैं, जिनके एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला है। उनका चैथा हाथ वरदान देने की मुद्रा में है। वे सदा श्वेत वस्त्र धारण करती हैं व श्वेत कमल पर निवास करती हैं। उनकी कृपा से ही व्यक्ति परम विद्वान बनता है। हिंदू धर्म में तो यह भी मान्यता है कि मां शारदा दिन में एक बार हर व्यक्ति की जिह्वा पर जरूर विराजती हैं और उस समय कही गई बात सिद्ध हो जाती है। धार्मिक साहित्य में मां शारदा की महिमा का वर्णन विस्तृत रूप से किया गया है। ‘ललिता सहस्रनामस्तोत्र’ में मां के एक हजार नामों का वर्णन किया गया है तो ‘श्री दुर्गा सप्तशती’ व ‘देवी भागवत् पुराण’ में उनकी लीलाओं का वर्णन प्राप्त होता है। त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से छह सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। समतल स्थान से मां मैहर देवी तक पहंुचने के लिए भक्त जनों को 1051 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। मंदिर तक जाने वाले मार्ग में तीन सौ फीट तक की यात्रा गाड़ी वगैरह से भी की जा सकती है। मंदिर के प्रांगण में नीम, पीपल व आम के पेड़ हैं, जो सर्वत्र छाया किए रहते हैं। मैहर देवी मां शारदा तक पहुंचने की यात्रा को चार खंडों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम खंड की यात्रा में चार सौ अस्सी सीढ़ियों को पार करना होता है। मंदिर के सबसे निकट त्रिकूट पर्वत से सटी मंगल निकेतन बिड़ला धर्मशाला है। इसके पास से ही येलजी नदी बहती है। द्वितीय खंड दो सौ अट्ठाइस सीढ़ियों का है। इस यात्रा खंड में पानी व अन्य पेय पदार्थों का प्रबंध है। यहां पर आदीश्वरी माई का प्राचीन मंदिर है। यात्रा के तृतीय खंड में एक सौ सैंतालीस सीढ़ियां चढ़नी होती हैं चैथे और अंतिम खंड में 196 सीढ़ियां पार करनी होती हैं और तब मां शारदा का मंदिर आता है। इस चार खंडों की यात्रा का संबंध मां द्वारा की गई यात्रा से है। मान्यता है कि मां शारदा चार पगों में ही त्रिकूट पर्वत पर जाकर बैठ गई थीं। 1051 सीढ़ियां चढ़कर भक्तजन मां के दर्शनों को पहुंच जाते हैं व उनकी प्रार्थना और वंदना करते हैं। मैहर मंदिर के मुख्य दरवाजे पर सिंह की विशाल मूर्ति है। मां की मूर्ति के चारों ओर चांदी से जड़ी आकर्षक छतरी, चैमुख व चैबारे बने हुए हैं। इसके बगल में ही दरवाजे से सटी नृसिंह भगवान की प्राचीन मूर्ति है, जबकि दूसरी तरफ भैरव की प्राचीन मूर्तियां हैं। मंदिर के पीछे वाली दीवार कालिका माई के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि अगर भक्तजन अपने हाथों में चंदन लगाकर कालिका माई की दीवार पर स्पर्श करते हैं, तो मां उनकी मन्न्ातें पूरी करती हैं। मंदिर में बिल्कुल पीछे एक नीम के पेड़ के नीचे बिल्कुल ही अलग रूप में शारदा माई विराजमान हैं। उनकी आंखें व मुकुट बेहद दर्शनीय हैं। मंदिर के प्रांगण में ही बेल के वृक्ष के नीचे शेषनाग व भैरव की मूर्तियां हैं। इस मूर्ति के ऊपर का चांदी का मुकुट मूर्ति की शोभा को और बढ़ा देता है। नीम, शिरीष व बड़ के पेड़ के नीचे मां दुर्गा जी विराजमान हैं। मंदिर के बायीं तरफ के चबूतरे पर भक्तगण पूजा का नारियल तोड़ते हैं, व उसके जल से मां का पूजन कर नारियल की गिरी को प्रसाद के रूप में प्राप्त करते हैं। देश की राजधानी दिल्ली से मैहर तक की सड़क से दूरी लगभग 1000 किलोमीटर है। ट्रेन से जाने के लिए महाकौशल व रीवा एक्सप्रेस उपयुक्त हैं। दिल्ली से चलने वाली महाकौशल एक्सप्रेस सीधे मैहर ही पहंुचती है। स्टेशन से उतरने के बाद किसी धर्मशाला या होटल में थोड़ा विश्राम करने के बाद चढ़ाई आरंभ की जा सकती है। रीवा एक्सप्रेस से यात्रा करने वाले भक्तजनों को मजगांवां पर उतरना चाहिए, वहां से मैहर लगभग 15 किलोमीटर दूर है। संगम एक्सप्रेस से भी यात्रा की जा सकती है। इलाहबाद उतरने के बाद रीवा के लिए या तो रीवा एक्सप्रेस को पकड़ा जा सकता है या फिर सुविधा की दृष्टि स े टकु डा़ ं े म ंे यात्रा की जा सकती है। मैहर स्टेशन या बस स्टैंड से मंदिर की दूरी पांच किलोमीटर है। मैहर में मां शारदा का विशेष उत्सव व पूजन साल में दो बार चैत्र व आश्विन माह में होता है। यह उत्सव पंद्रह दिन तक चलता है, जो बैठकी नवरात्रि से प्रारंभ होकर पूर्णमासी को समाप्त हो जाता है। मां के दर्शन व पूजन के लिए वैसे तो हर दिन शुभ होता है, लेकिन इस समय लोग मन की मुरादें शीघ्र पूर्ण होने की आस लिए समूह में मां के दर्शनों का लाभ लेने के लिए आते हंै। किंवदंती बन चुके वीर आल्हा की आराध्य देवी भी मां शारदा रही हंै। मान्यता है कि आज भी मां की पहली पूजा आल्हा ही करते हैं। मंदिर के कार्यकर्तागण व पुजारी भी कहते हंै कि वे जब भी प्रातःकाल की यात्रा करने जाते हैं, मां शारदा के चरण कमलों में फूल पहले से ही चढ़े मिलते हैं। मां के यों तो भक्त असंख्य हैं, लेकिन आल्हा-ऊदल, मछला, ईदल उनमें भी प्रमुख हैं। कलियुग के भक्तजनों में भाई रैदास और मंदिर के प्रधान पुजारी देवी प्रसाद पांडे प्रमुख रहे हैं। भाई रैदास ने मनमांगी मुराद पूरी होने पर मां द्वारा प्रदŸा जीवन मां को समर्पित कर दिया था। उन्होंने अपने पिता से अपना सिर कटवाकर मां के चरणों में चढ़वा दिया था। मंदिर के प्रधान पुजारी देवी प्रसाद जी ने अपनी जीभ काटकर देवी को चढ़ा दी थी। बाद में मां के आशीर्वाद से उन्हें नई जीभ प्राप्त हुई। ऐसी घटनाओं और भक्तों के कारण इस तीर्थस्थान का महत्व और बढ़ जाता है। मैहर में मां शारदा के दर्शन के अतिरिक्त ‘जवा’ नामक सांस्कृतिक व पारंपरिक उत्सव भी देखने को मिलता है। यह अष्टमी व नवमी को विशेष रूप से माना जाता है। इस उत्सव में गांव की औरतें और बच्चियां अपने सिर पर एक विशेष प्रकार का घड़ा, जिसे वहां के लोग जवा कहते हैं, लेकर चलती हैं और पुरुष व लड़के मां काली का रूप धारण किए हाथ में खप्पर लिए ढोल-मजीरे की थाप पर गाते -नाचते चलते हैं। मान्यता है कि जिस भक्त की मनोकामना मां शारदा पूरी करती हैं, वह मां काली का वेश धारण कर इस कार्यक्रम में भाग लेता है। पावन स्थल मां शारदा की पौराणिक कथा लगभग 200 वर्ष पुरानी है। मैहर पर महाराजा दुर्जन सिंह जूदेव का आधिपत्य था। उनके शासन काल में उनके ही राज्य का एक ग्वाला यहां के घनघोर और भयानक जंगल में अपनी गाय चराने आया करता था। जंगल में दिन में भी घनघोर अंधेरा छाया रहता था और तरह-तरह की डरावनी आवाजें आती थीं। एक दिन उस ग्वाले की गायांे के साथ एक सुनहरी गाय भी चरने लगी, जो शाम होते ही अचानक कहीं चली गई। दूसरे दिन भी उसके साथ ऐसा ही हुआ। तब ग्वाले ने निश्चय किया कि वह आज सुनहरी गाय के पीछे जाएगा और उसके मालिक से गाय की चरवाई मांगेगा। शाम होते ही वह गाय के पीछे चलने लगा। उसने देखा कि गाय एक गुफा में चली गई। गाय के अंदर जाते ही उस गुफा का द्वार बंद हो गया। काफी समय बीतने पर जब गुफा का द्वार खुला तो उसमें से एक बूढ़ी स्त्री बाहर आई। ग्वाले ने उस बूढ़ी स्त्री से गाय की चरवाई मांगी तो उसने लकड़ी के सूप में से जौ के दाने निकालकर उसे देते हुए उस भयानक जंगल में अकेले न आने की सलाह दी। जब ग्वाले ने उस घने जंगल में उसके अकेले रहने की वजह पूछी तो वह पर्वत शृंखला, पेड़ों और जंगलों को अपना घर बताते हुए अंतर्धान हो गई। बाद में घर आकर उस ग्वाल ने खाने के लिए जौ के दाने निकाले तो वे हीरे-मोती बन चुके थे। आश्चर्यचकित ग्वाला अगले दिन महाराज के दरबार में पहंुचा और संपूर्ण घटना सुनाई । उसी रात मां शारदा ने महाराज को स्वप्न में अपना परिचय दिया व पहाड़ी पर मूर्ति स्थापना और यात्रियों के वहां तक पहंुचने के लिए रास्ता बनवाने का आदेश दिया। प्रातः उठते ही महाराज उस ग्वाले को लेकर उस स्थान पर गए, जहां बूढ़ी स्त्री मिली थी। महाराज ने वहां सीढ़ियों व सड़क के साथ-साथ भव्य मंदिर बनवा दिया। आज मैहर मंदिर की पूरी देखभाल मां शारदा समिति करती है। समिति के नियमानुसार मंदिर में प्रातः छह बजे आरती होती है और पट खुलकर दोपहर एक बजे बंद हो जाता है। दो बजे पट पुनः खुलता है और फिर शाम छः बजे बंद हो जाता है। मंदिर में बंदरों से विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। इस ऐतिहासिक मंदिर में दो शिलालेख अंकित हैं। पहला शिलालेख मां शारदा के चरणों के नीचे है, जिसकी लंबाई पंद्रह इंच और चैड़ाई साढ़े तीन इंच है। इस पर नागरी लिपि में संस्कृत की चार पंक्तियां लिखी हुई हैं। इस शिलालेख में मां की मूर्ति को शारदा के रूप में दर्शाया गया है तथा उन्हें कलियुग का व्यास तथा वेदन्यास सांख्यनीति व मीमांसा का पंडित कहा गया है। दूसरे शिलालेख की लंबाई 34 इंच व चैड़ाई 31 इंच है, जिसके चारों ओर दो इंच की किनारी बनी हुई है। इस शिलालेख में 39 पंक्तियां हैं। नागदेव के चित्र युक्त इस शिलालेख का कुछ हिस्सा हालांकि समय के साथ-साथ खराब हो गया है, लेकिन बाकी बचे हिस्से से कलियुग के व्यास दामोदर की जानकारी प्राप्त होती है। दामोदर को साक्षात सरस्वती का पुत्र बताया गया है। काफी समय तक यहां बकरे की बलि देने का रिवाज था, लेकिन सन् 1910 में मां के आदेश का पालन करते हुए महाराज बृजनाथ सिंह जूदेव ने बलि प्रथा पर रोक लगा दी। मैहर देवी के दर्शन करने आए लोग यहां के आस-पास की जगह भी घूम सकते हैं। दूल्हादेव, आल्हा तालाब, आल्हा अखाड़ा, अमर गुफा, रामपुर का विशाल मंदिर, गणेश घाटी, भगवान शिव का प्राचीन मंदिर, गोला मठ, श्री श्री 1008 सुखेन्द्र निध्याचार्य जी महाराज की तपोभूमि, बड़ा अखाड़ा, शक्तिपीठ, हनुमान मंदिर, राम मंदिर (कटरा मंदिर), चण्डी माता का प्राचीन मंदिर, स्वामी नीलकण्ठ जी महाराज की तपोभूमि, ओडला का विशाल मंदिर आदि ऐसी ही जगहें हैं जहां आकर आप आनंद उठा सकते हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.