शासक ग्रह और अंक शास्त्र के समन्वय से फलादेश निर्मल कोठारी अं क शास्त्र अर्थात् ‘न्यूमेरोलाॅजी’ भविष्य कथन की एक पद्धति है। ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान के बिना भी कई लोग इस शास्त्र का प्रयोग करते हैं। जन्मतिथि अथवा किसी खास अंक के ‘भाग्यशाली’ या लाभदायक सिद्ध होने पर लोग उसी तिथि को या अंक के आधार पर हर महत्वपूर्ण कार्य करने का प्रयास करते हैं ताकि उनका कार्य निर्विघ्न पूरा हो सके। शासक ग्रह अर्थात् प्रश्न के समय के कार्येश ग्रह के साथ अंकों का मेल करके उस प्रश्न का जो, ज्यादा गंभीर नहीं हो, का सही उŸार दिया जा सकता है। इस संबंध में काफी प्रयोग किए गए और उनके परिणाम भी सकारात्मक प्राप्त हुए। इस संदर्भ मंे एक उदाहरण प्रस्तुत है। एक दिन शाम को लगभग 5ः30 बजे एक ज्योतिषी अपने चेंबर में बैठे थे। तभी पसीने से तर- ब-तर एक व्यक्ति उनके चेंबर में दाखिल हुआ और अपने किसी मित्र शर्माजी के दफ्तर के बारे में पूछने लगा। ज्योतिषी ने उससे शर्माजी के आॅफिस का नाम पूछा तो उसने अनभिज्ञता जाहिर की। शर्माजी का आॅफिस किस मंजिल पर थी, इसकी जानकारी उसे नहीं थी। उस 9 मंजिली बिल्ंिडग में लगभग 200 दफ्तर थे। इतनी बड़ी बिल्डिंग में केवल एक उपनाम से किसी को खोजना असंभव सा था। लेकिन उस व्यक्ति को कोई जरूरी काम था, इसलिए उसने ज्योतिषी से मदद का निवेदन किया। उस व्यक्ति की मजबूरी को देखते हुए ज्योतिषी ने शर्माजी के दफ्तर का पता लगाने के लिए शासक ग्रह की विधि का प्रयोग किया। वह तारीख थी 14 जून 2008 और शाम के 5ः40 बज रहे थे। लग्न वृश्चिक, नक्षत्र स्वाति, राशि तुला और दिन शनिवार था। प्रश्न के समय कार्येश ग्रह में से कोई ग्रह वक्री नहीं था। अतः ज्योतिषी ने लग्न के स्वामी मंगल, नक्षत्र के स्वामी राहु, राशि के स्वामी शुक्र और वार के स्वामी शनि का विश्लेषण किया। उन्होंने मंगल की राशि 1,8, राहु के मकर में होने के कारण उसकी राशि 10,11, शुक्र की 2,7 और शनि की राशि 10,11 का इस प्रकार योग किया-1$8$10$11$2$7$10$11=60। योगफल के दोनों अंकों का योग 6 हुआ। बिल्ंिडग की कुल मंजिलें 9 थीं। ज्योतिषी ने उस व्यक्ति से कहा कि उसके दोस्त शर्माजी का आॅफिस छठी मंजिल पर है। ज्योतिषी की बात सुनकर वह छठी मंजिल पर गया, जहां उसे शर्माजी मिल गए। इस प्रकार, शासक ग्रह और अंक शास्त्र के समन्वय से हम किसी प्रश्न का तत्काल एवं सटीक उŸार पा सकते हैं।