वर-कन्या के चयन में नामांक की भूमिका रामप्रवेश मिश्र आ काश में मौजूद नौ ग्रहों के बीच ही संसार का सारा रहस्य छिपा है। मनुष्य के स्वभाव एवं व्यवहार को यही नौ ग्रह प्रभावित करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रधान ग्रह की अवधि में जन्म लेता है और उसी के प्रभाव में सारा जीवन व्यतीत करता है। अंक ज्योतिष के अनुसार अंक 1 से 9 में ही वर्तमान और भविष्य का रहस्य छुपा हुआ है। भारतीय ज्योतिष एवं विश्व के अन्य ग्रंथों में संख्या तथा शब्द का आपस में घनिष्ठ संबंध दर्शाया गया है। ज्योतिर्मनीषियों ने देवताओं तथा ग्रहों के मंत्रों के जप की संख्या निश्चित की है। किस अनुष्ठान में कितने मानक हों और उनकी संख्या कितनी हो, इसकी व्यवस्था भी की गई है। जिस प्रकार चिकित्सक बताते हैं कि कौन सा पदार्थ कितना शक्तिवर्द्धक है, उसी प्रकार अंक शास्त्र के विशेषज्ञ किसी का नाम, जन्म तारीख आदि देखकर बताते हैं कि वह कितना शक्तिशाली, गुणवान एवं बुद्धिमान है या होगा। नाम व तारीख का आपस में घनिष्ठ संबंध होता है। किसी व्यक्ति की जीवनचर्या, उसके व्यक्तित्व निर्माण, उसके आचरण आदि में अंकों की भूमिका अहम होती है। गीता में 18 अध्याय ही क्यों? महाभारत में 18 पर्व ही क्यों हैं? पुराणों की संख्या 18 ही क्यों है? श्री गणेश की चतुर्थी, दुर्गा माता की अष्टमी, सूर्य देव की सप्तमी, श्री विष्णु जी, एकादशी और महादेव का विशेष पूजन त्रयोदशी को ही क्यों किया जाता है? सही विश्लेषण से इन प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं। इन सबका वैज्ञानिक आधार है। अंक और उनका मान: कीरो ने अंक शास्त्र में अंग्रेजी के वर्ण के हर अक्षर का मान निर्धारित किया है। उसके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर यहां वर्णों के मान दिए जा रहे हैं- इस प्रकार वर्णों के मान को जोड़कर किसी भी व्यक्ति, स्थान आदि का नामांक प्राप्त कर सकते हैं। जन्मतिथि से नामांक और जन्मतिथि, माह व वर्ष के योग से भाग्यांक निकाल सकते हैं। ज्योतिष में जिस तरह अतिमित्र, मित्र, सम, शत्रु और अतिशत्रु होते हैं, उसी तरह अंक ज्योतिष में भी विभिन्न अंकों के मित्र, शत्रु तथा सम अंक निर्धारित हैं। विवाह, प्रेम या दाम्पत्य सुख के दृष्टिकोण से प्रेमिका, वर-कन्या आदि के नामांक, नामांक व भाग्यांक आदि का विश्लेषण करें तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि प्रेम या दाम्पत्य जीवन कैसा होगा। मित्र व शत्रु अंकों की तालिका यहां प्रस्तुत है- मनुष्य के जीवन में प्रेम का बड़ा महत्व है। जिससे हम प्रेम करते हैं उसे तन, मन और धन सब कुछ अर्पण कर देत हैं। इसी प्रकार जीवन में विवाह का स्थान भी महत्वपूर्ण है। सच्चरित्र पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति समर्पित होकर जीवन-यापन करते हैं। जब दोनों के स्वभाव एवं आपसी व्यवहार में पे्रम होता है तो जीवन सुखमय बना रहता है, पर इस प्रेम में जरा भी कमी आ जाए, तो जीवन के दुखमय होने में देर नहीं लगती। इसलिए किसी विषम स्थिति से बचने के लिए अंकशास्त्र की मदद से विवाह के पूर्व ही दाम्पत्य जीवन का आकलन कर लाभ उठाया जा सकता है। ज्योतिष की प्राचीन भारतीय पद्धति में ग्रह-मिलाप में नवम राशि, वर्ण, योनि तथा नाड़ी का विचार किया जाता है। साथ ही मंगली स्थिति का भी विचार किया जाता है। लेकिन अंकशास्त्र में नामांक, भाग्यांक व नामांक का विचार किया जाता है, यहां नामांक से जुड़े कुछ उदाहरण प्रस्तुत है- मूलांक 1: लड़के का नाम देवेश और लड़की का दीना है। देखें कि दोनों का संबंध कैसा रहेगा।