प्रश्न: क्या अंकशास्त्र में ज्योतिष के समान दशा पद्धति एवं अन्य विधाओं की तरह फलादेश करने की क्षमता है, यदि हां तो अपने की पुष्टि में यथोचित उदाहरण के साथ फलादेश विधि का भी विस्तृत वर्णन करें। हां अंकशास्त्र में भी ज्योतिष के समान दशा पद्धति एवं अन्य विधाओं की तरह फलादेश करने की क्षमता है, इनकी फलादेश विधि उदाहरण सहित निम्न हैं- भूमिका: जिस प्रकार ज्योतिष एवं अन्य विद्या ‘‘शब्दों’’ से जुड़ा विज्ञान है, ठीक उसी प्रकार अंक ज्योतिष भी ‘‘अंकों’’ से जुड़ा विज्ञान है अर्थात् शब्द एवं अंक एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिन्हें एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता है। इन दोनों के बिना ही दैनिक जीवन का कार्य असंभव है, अतः दोनों ही उपयोगी/ महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इसका प्रचार- प्रसार विदेशों में हुआ है। अंकों के बिना ज्योतिष, यंत्र-मंत्र-तंत्र, ग्रहों व नक्षत्रों तथा राशियों की संख्या, मंत्र जप संख्या, शब्द संख्या, माला में मनकों की संख्या, मंत्र में शून्य, निश्चित आकृतियां एवं अंक तथा विभिन्न ज्योतिषीय गणनाएं, तिथि, दिनांक, माह, वर्ष आदि जो अंकों पर निर्भर हैं, महत्वहीन हो जायेगी। वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व की गतिविधियां भी घड़ी की सूइयों के अनुसार सेकेंड, मिनट, घंटे आदि पर संचालित हैं, ये भी अंकों से जुड़ी हैं, अतः बिना अंकों के यह भी फलादेश में अंकशास्त्र की भूमिका अस्तित्वहीन हो जायंगी। विधियां: यदि अंक ज्योतिष को विधिवत रूप में देखा जाये तो यह निम्न तीन पद्धतियों में प्रचलित हैं- - मलूकं - भाग्याकं (सयंक्तुताकं ) - नामाकं मूलांक: ‘‘मूलांक’’ शब्द मूल+अंक, दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है- मूल अंक, (मूलांक)। मूलांक का मुख्य आधार जन्म तारीख है। यह एक डिजिट में ही होता है। अर्थात् मूलांक = जन्म तारीख। ‘मूलांक’/‘अंक’, मूलतः निम्न 9 होते हैं, जिनका संबंध ग्रह एवं वार से है। 1 से 31 तारीख के मूलांक की सारणी मूलांक जन्म तारीख ग्रह 1 1, 10, 19, 28 सूर्य 2 2, 11, 20, 29 चंद्र 3 3, 12, 21, 30 गुरु 4 4, 13, 22, 31 राहु 5 5, 14, 23 बुध 6 6, 15, 24 शुक्र 7 7, 16, 25 केतु 8 8, 17, 26 शनि 9 9, 18, 27 मंगल यदि किसी व्यक्ति या अन्य के तारीख या अंक अधिक डिजिट जैसे-2 या 3 आदि होने पर इन्हें जोड़ द्वारा एक डिजिट में परिवर्तित कर मूलांक रूप में लाते हैं। इससे व्यक्ति की प्रकृति, व्यवहार, प्रवृति व भाग्य आदि के बारे में पता लगा सकते हैं। इस विश्व में जितने भी व्यक्तियों का जन्म हुआ है या आगे होगा, उनकी जन्म तारीख, तिथि उपर्युक्त 9 अंकों के अंतर्गत ही आती है, चाहे वह किसी भी माह में क्यों न हो। भाग्यांक/संयुक्तांक: भाग्यांक का मूल आधार, जन्मतिथि होता है, जो जन्म तारीख, जन्म मास, और जन्म वर्ष के अंकों का योग कर, एक डिजिट में उपर्युक्त की तरह मूल अंक निकालते हैं, जो भाग्यांक या संयुक्तांक होता है। अर्थात् भाग्यांक/संयुक्तांक = जन्मतिथि (= मूलांक)+जन्म मास+जन्म वर्ष। व्यक्ति के जीवन में मूलांक से ज्यादा भाग्यांक या संयुक्तांक प्रभावशाली होता है। इससे व्यक्ति के चरित्र, स्वभाव, भाग्य, उन्नति, अवनति आदि के बारे में पता लगा सकते हैं। नामांक: नामांक का अर्थ व्यक्ति के नाम विशेष से होता है। एक व्यक्ति का श्रेष्ठ नाम ही उसकी श्रेष्ठता को दर्शाता है। एक व्यक्ति के नाम (नामकरण संस्कार) का उसके जीवन, कार्य-कलाप एवं चरित्र आदि पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः व्यक्ति को श्रेष्ठ या शुभ नाम का चयन करना चाहिए ताकि जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़े। इसमें व्यक्ति के भाग्यांक या संयुक्तांक अर्थात् जन्मतिथि (= जन्म तारीख (मूलांक)+ जन्ममास+जन्मवर्ष) के साथ-साथ व्यक्ति के नाम के ‘‘वर्गों’’ को भी महत्वपूर्ण माना गया है जिसमें प्रत्येक वर्णों के अपने-अपने अंक निर्धारित होते हैं, उनके योग से उस व्यक्ति के नामांक का निर्धारण किया जाता है। जो मुख्यतः निम्न तीन पद्धतियों- - कीरो - सेफेरियल - पाइथोगोरस में प्रचलित है। (नामांक = भाग्यांक + वर्ण) जातक के नाम के वर्णों/अक्षरों के मान के योग (एक डिजिट में) को नामांक कहते हैं। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि मूलांक, भाग्यांक व नामांक का आपस में गहरा संबंध है। उपर्युक्त तीनों पद्धतियों में कीरो की पद्धति को प्राथमिकता देकर प्रभावशाली माना गया है, जो वर्तमान में देश-विदेश में काफी प्रचलित भी हैं। कीरो पद्धति: कीरो की इस पद्धति में उपर्युक्त मूलांक, भाग्यांक व नामांक तीनों का उपयोग फलादेश के लिए किया जाता है। इसी के आधार पर व्यक्ति का शुभाशुभ फलकथन किया जाता है। इसमें कीरो ने प्रत्येक वर्णों के साथ अंकों का निर्धारण अपने सिद्धांतों के आधार पर किया तथा संबंधित वर्णों के योग से व्यक्ति के नामांक का पता लगाया जाता है। कीरो ने अपनी तालिका में 9 अंक का प्रयोग नहीं किया। व्यक्ति के मूलांक व भाग्यांक को तो बदला नहीं जा सकता क्योंकि ये प्रारब्ध के अनुसार ही व्यक्ति को प्राप्त होते हैं तथा परमात्माकृत प्राकृतिक भी हैं। लेकिन नामांक को बदल सकते हैं अर्थात् नामांक में परिवर्तन कर नाम को शुभ बना सकते हैं, जिससे पूरे जीवन भर सकारात्मक प्रभाव मिल सकें। सेफेरियल पद्धति: यह पद्धति हिब्रू यानी यहूदी की परंपरागत पद्धति है। सेफेरियल, हिब्रू अर्थात् यहूदी कबाला पद्धति के अंक शास्त्री माने जाते हैं। इस पद्धति में प्रत्येक वर्ष के साथ-साथ अपने परंपरागत अंकों का भी निर्धारण किया गया है। इसने भी कीरो की भांति अंक 9 का चयन नहीं किया है। लेकिन यह पद्धति कीरो की पद्धति से थोड़ी सी भिन्न है। इसमें ग्रहों के आपसी संबंधों की भी गणना की जाती है। इसमें जातक की जन्मतिथि के अंकों को एक सारणी के निर्धारित खानों में लिखकर उसके आत्मिक, मानसिक एवं व्यावहारिक तीनों गुणों के बारे में जान सकते हैं। लेकिन जन्मवर्ष के चारों अंकों/अक्षरों में अंतिम 2 ही लिए जाते हैं। पाइथागोरस पद्धति: पाइथागोरस को पश्चिमी जगत में अंकशास्त्र का जनक माना जाता है। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘दुर्लभ परिसंवाद’’ में यह उल्लेख किया है कि व्यक्ति के विचार, व्यवहार व आकृति, अंकों द्वारा ही नियंत्रित होती हैं। अर्थात् सभी के मूल में अंक ही उरदायी होते हैं। इसमें प्रत्येक वर्ण के साथ-साथ अंकों का निर्धारण किया गया है, जो कीरो और सेफेरियल पद्धति से थोड़ा अलग है। इन्होंने तालिका में 9 अंकों को भी गणना में लिया है। इसमें भी पहले नामांक ज्ञात किया जाता है। अंकों की मित्रता और शत्रुता : जिस प्रकार ग्रहों की आपस में मित्रता, शत्रुता होती है, ठीक उसी तरह अंकों में भी आपस में मित्रता एवं शत्रुता का संबंध है। ग्रहों के आपसी मित्रता-शत्रुता के आधार पर अंकों की मित्रता-शत्रुता निर्धारित की जाती है, क्योंकि प्रत्येक अंक का एक स्वामी ग्रह निर्धारित है। ग्रहों को निम्न दो समूहों में बांटा गया है- ग्रुप-1. सूर्य, चंद्र, बृहस्पति, मंगल। गु्रप-2. बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु। ग्रुप-1 चारों ग्रह आपस में मित्रता एव अति मित्रता रखत ह तथा गपु्र -1 के चारों ग्रह ग्रुप-2 के पांचों ग्रहों से शत्रुता एवं अति शत्रुता रखते हैं। ठीक इसी प्रकार इसका विलोम भी सत्य है अर्थात् ग्रुप-2 के पांचों ग्रह आपस में मित्रता व अति मित्रता रखते हैं तथा ग्रुप-2के सभी ग्रह, ग्रुप-1 के सभी ग्रहों से शत्रुता व अति शत्रुता रखते हैं। इनमें कुछ ग्रह सम स्वभाव भी रखते हैं। ये पंचधा मैत्री चक्र के अंतर्गत आता है। अंकशास्त्र के सभी अंक, इन्हीं ग्रहों से नियंत्रित रहते हैं तथा जिनके गुण, व्यावहारिकताएं, दिशाएं, लिंग, प्रकृति आदि व्यक्ति के जीवन को सदा प्रभावित करते हैं। इनमें मूलांक का संबंध तन एवं मन से, भाग्यांकका संबंध भाग्य व सफलता से तथा नामांक का संबंध चरित्र, प्रकृति व व्यक्तित्व से होता है। अंक ज्योतिष के उपयोग अर्थात् फलादेश विधि का उदाहरण सहित प्रमाण: जीवन-साथी के चयन में: इसमें लड़का, लड़की दोनों की जन्मतिथि व नाम के आधार पर मूलांक, भाग्यांक एवं नामांक निकालकर मैचिंग सही आने पर इसको अंतिम रूप विवाह के लिए देते हैं ताकि जीवन सुखमय रहे। यदि नामांक में कुछ कमी है तो पद्धतियों द्वारा नाम में कुछ परिवर्तन कर लेते हैं। इस तरह से जीवन साथी का चुनाव करके श्रेष्ठ जीवन का सुख भोगते हैं।