शुभ मुहूर्त में कार्य करने से क्या भविष्य बदल सकता है ? मानव सदैव, अपने जीवन को सुखमय बनाने हेतु, कार्य आरंभ करने से पूर्व एक अच्छे समय, या अवसर का चयन करता है, ताकि, बिना किसी परेशानी के सफलता प्राप्त कर, जीवन को उन्नति के मार्ग में अग्रसर करने के साथ-साथ, मान-सम्मान भी प्राप्त कर सके। समय चयन की प्रक्रिया ही ‘मुहूर्त’ कहलाती है। मुहूर्त के चयन में हम, पंचांग, तिथि, वार, नक्षत्र, कर्ण और योग का उपयोग करते हुए, हर कार्य के लिए अलग-अलग समय का निर्धारण करते हैं, ताकि मनवांछित फल की प्राप्ति की जा सके। समय किसी को भी बलवान और निर्बल बनाने का सामथ्र्य रखता है। एक मुहूर्त किसी के लिए लाभकारी तो किसी और के लिए विनाशकारी हो सकता है। इसका सबसे उत्तम उदाहरण हमें महाभारत के समय में प्राप्त होता है। महाभारत के युद्ध में स्वयं विजय प्राप्त करने और पांडवों की पराजय सुनिष्चित करने की कामना से धृतराष्ट्र ने युद्ध आरंभ करने के लिए मुहूर्त निकलवाया। इस तथ्य का पता श्री कृष्ण को था। अतः श्री कृष्ण अर्जुन को, मोह के वश कर, स्वयं ही उसे ज्ञान देने लगे। जैसे ही कौरवों के पक्ष का समय समाप्त हुआ तथा पाडंवों के लिए उत्तम समय आया, युद्ध का श्री गणेश कर दिया गया। जो उत्तम समय धृतराष्ट्र ने युद्ध के लिए चुना था, वह समय श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देने में व्यतीत कर दिया। इस उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न जातकों के लिए एक ही समय, विभिन्न-विभिन्न कार्यों हेतु उपयुक्त हो सकता है। इस प्रकरण में जातक, या घटना के लिए, पंचांग द्वारा, लग्न और चंद्र लग्न का उपयोग कर, उचित मुहूर्त का चयन किया जा सकता है। इस तरह स्पष्ट है कि शुभ मुहूर्त में कार्य करने से भविष्य को बदला जा सकता है। जन्म समय को एक मुहूर्त माना जा सकता है, क्योंकि जन्म समय और चंद्र के उदय होने के समय की स्थिति पर षिषु का भविष्य आधारित होता है। इस संदर्भ में अकबर के जन्म का उदाहरण सर्वचर्चित है। कहा जाता है कि अकबर की माता को जिस समय प्रसव पीड़ा शुरू हुई, उस समय के अनुसार भविष्य उत्तम नहीं था। परंतु प्रसव पीड़ा रुक गई (या रोकी गई यह तर्क का विषय है)। फिर कुछ समय उपरांत जब पीड़ा फिर शुरू हुई, तब ग्रह लग्न की स्थिति में आ कर उज्ज्वल भविष्य को दिखा रहे थे। अकबर मुगल साम्राज्य के महान शासक सिद्ध हुए। तात्पर्य यह कि शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य जीवन को उत्तम पथ पर ले जाता है। मुहूर्त का अर्थ है किसी कार्य को आरंभ करने का फलित ज्योतिष के अनुसार निकाला गया शुभ काल।श्इस तरह शुभ मुहूर्त में आरंभ किए जाने वाले कार्य की सफलता की संभावना प्रबल हो जाती है। सच्चा मुहूर्त एक है, जब आये हरि नाम। लग्न, मुहूर्त झूठ संग, और बिगाड़े काम।। ज्योतिषीय मुहूर्त विधाता के विधान को नहीं टाल सकते। हां, उसमें सकारात्मक बदलाव अवश्य कर सकते हैं। ज्योतिष के प्रकांड पंडित मुनि वशिष्ठ ने प्रभु श्री राम के राज्य तिलक का मुहूर्त निकाला। लेकिन ठीक उसी समय राम को बनवास में जाना पड़ा। वशिष्ठ के मुहूर्त का सकारात्मक परिणाम यह निकला कि श्री राम का वन गमन लोक कल्याणकारी एवं धर्मरक्षक सिद्ध हुआ। मुहूर्त परिस्थितियां नहीं बदल सकते, पर उनकी दिशा अवश्य बदल सकते हैं। इस दृष्टि से मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। जीवन में ऐसे कई आकस्मिक कार्य होते हंै, जब मुहूर्त देखा ही नहीं जा सकता। क्या सिपाही युद्ध क्षेत्र में मुहूर्त देख कर जाते हंै ? अगर किसी को हृदयाघात हो गया हो, अथवा उसके साथ कोई दुर्घटना हो गई हो, तो क्या मुहूर्त देख कर उसे डाक्टर के पास ले जाया जाए ? आवश्यकता है मुहूर्त के सारगर्भित अर्थ को समझने की, न कि उसके अंधानुकरण की। सभी विवाह शुभ मुहूर्त में ही होते हैं। परंतु अनेकानेक असफल होते हैं। सफलता की कुंजी शुद्ध भावना से कार्य को प्रारंभ कर उसके निष्पादन में छिपी है। इन्हीं भावनाओं के साथ मुहूर्त प्रभावी होते हैं। मुहूर्त के बारे में कुछ कहना वैसे ही है जैसे कि किसी कार के बारे में कहें कि क्या यह कार सही सलामत चल कर हमें हमारे गंतव्य स्थान तक पहुंचा देगी? यह बात निर्भर करती है उस कार की हर मशीन की अच्छी हालत पर, पहियों में उचित मात्रा में हवा होने पर, उसमें उचित मात्रा में सही माप का पेट्रोल या डीजल होने पर और सही दक्ष चालक पर। इनमें से किसी के भी सही नहीं होने पर कार गंतव्य स्थान तक सकुशल एवं समय पर नहीं पहुंचा सकती। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त भी हमारे, अथवा किए गए कार्य के भविष्य को पूर्ण रूप से नहीं बदल सकता। अशुभ मुहूर्त, अर्थात तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण और घटी, चैघड़िया, होरा आदि के संयोग से होने वाले अशुभ फल से शुभ संयोग वाले शुभ मुहूर्त में कार्य कर के शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है तथा तिथि, नक्षत्रादि से होने वाले बुरे फल से बचा जा सकता है। शुभ मुहूर्त अन्य बातों से होने वाले कुफलों को नहीं हटा सकता, जैसे कार की जो चीज ठीक होगी, केवल उससे होने वाली रुकावट, या परेशानी ही दूर होगी, अन्य चीजों की खराबी दूर नहीं हो सकती। मुहूर्त का महत्व एक छोटा सा बच्चा भी जानता है। वह जानता है कि माता-पिता से यदि उचित समय पर, अर्थात जब उनका मिजाज अच्छा हो, कोई मांग की जाए, तो उसके पूरे होने की संभावना अधिक होती है, बशर्ते मांग ऐसी हो, जिसे पूरा करने में माता-पिता समर्थ तथा सक्षम हों। अथर्व वेद में शुभ मुहूर्त में कार्य प्रारंभ करने के विभिन्न सूत्र बिखरे पड़े हैं। इस वेद में आरोग्य, दीर्घायु, धन-समृद्धि, व्यवसाय में उन्नति, राजपक्ष से अनुकूलता, पदोन्नति, विद्या, बुद्धि में प्रगति, शत्रु पर विजय, दाम्पत्य एवं संतान सुख आदि की प्राप्ति के लिए विभिन्न कार्यों को शुभ मुहूर्त में आरंभ करने का विधान स्पष्ट रूप से मिलता है। वैदिक-पौराणिक कथाओं के अनुसार शुभ मुहूर्त मंे कार्य आरंभ करने का महत्व दुर्योधन बहुत अच्छी तरह से जानता था। शुभ मुहूर्त की जानकारी पंच पांडवों में सहदेव को थी। युद्ध प्रारंभ हेतु मुहूर्त निकालने के लिए दुर्योधन सहदेव के पास गया। सहदेव ने शुभ मुहूर्त निकाल कर अमावस्या का दिन बताया। दुर्योधन के वापस जाने के बाद श्री कृष्ण ने सहदेव से उसके आने का कारण पूछा। सहदेव ने उन्हें सारी बात बता दी। तब श्री कृष्ण ने कहा कि जो शुभ मुहूर्त निकाल कर दिया है, उस मुहूर्त में युद्ध प्रारंभ होने से तुम्हारी पराजय निश्चित है। तब पांडवों ने श्री कृष्ण से इस संकट से बचाने की प्रार्थना की। तब श्री कृष्ण ने कुछ उपाय किया। अमावस्या से एक दिन पहले ही अपने सब शिष्यों को ले कर श्री कृष्ण नदी के घाट पर गए और ‘आज ही अमावस्या है’ बोल कर तर्पण आदि करने का स्वांग किया। इसका समाचार जब दुर्योधन को मिला, तो दुर्योधन के मन में संशय हुआ कि क्या आज, एक दिन पहले ही अमावस्या है ? गलत सोच कर दुर्योधन ने अमावस्या से पहले दिन को अमावस्या समझ कर युद्ध प्रारंभ कर दिया। फलस्वरूप युद्ध में कौरवों की हार और पांडवों की जीत हुई। इस तरह से शुभ-अशुभ मुहूर्त में कार्य प्रारंभ करने से भविष्य बदल जाता है। कृषक द्वारा शुभ मुहूर्त में अक्तूबर-नवंबर में बीज बोए जाने से अच्छी फसल होती है। यदि कृषक सितंबर या अगस्त के मुहूर्त में बीज बोए, तो फसल कम होगी। यदि अशुभ मुहूर्त, या सोई हुई जमीन पर बीज बोएगा, तो फसल नहीं उठेगी। भविष्य परिवर्तन का भावार्थ ऊध्र्वमुखी भविष्य परिवर्तन से है, जिससे अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो। शुभ मुहूर्त में कार्य करने से कार्य में सफलता की संभावना प्रबल होती है, जो ऊध्र्वमुखी भविष्य परिवर्तन का कारण बनती है। इस प्रसंग में कश्यप एवं वशिष्ठ जी का वचन उल्लेखनीय है: ‘सिद्धा तिथि सिद्धिदा स्यात्सर्वकार्येषु सर्वदा’ मनोनुकूल कार्य निष्पादन से संकल्प शक्ति की दृढ़ता में वृद्धि होती है एवं दृढ़ संकल्प शक्ति कार्यक्षमता वृद्धि की सेतु है। आचार्य के अधोलिखित वचनों से स्पष्ट होगा कि शुभ मुहूर्त में कार्य करने से जातक विद्वान, धनी, यशस्वी और शुभ कर्मी तो होता है और उसके कार्य की सफलता सुनिश्चित होती है। व्ययाष्ट शुद्धोपचये लग्नके शुभदृग्युते। चन्द्रे त्रिषड्दशायस्थे सर्वारम्भः प्रसिद्धयति।। अर्थात द्वादश एवं अष्टम भाव शुद्ध हो, उपचय की किसी राशि में लग्न हो, जो शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र भाव 3, 6, 10 या 11 में हो, तो उस मुहूर्त में आरंभ किए हुए सभी कार्य सफल होते हैं। ‘सूर्ये शुक्रे कुजे राहौ मन्दे चन्द्रे बुधे गुरौ। अग्रतः शोभना यात्रा पृष्ठतो मरणं भवेत्।। यात्रा के संबंध में उपर्युक्त वचन स्वयं स्थिति बोधक है। जन्मक्र्षमास लग्नादौ व्रते विद्याधिको भवेत्। अर्थात जन्म नक्षत्र, जन्म मास, जन्म लग्न, जन्म तिथि एवं जन्म दिन में उपनयन संस्कार होने से जातक प्रसिद्ध विद्वान होता है। अशुभरवगैरनवाष्टमपदस्थै हिबुक सहोदरलाभ गृहस्थः। कविरिह केन्द्रगेगीष्पति दृष्टो वसुचय लाभकरःखलुयोगः।। अर्थात भाव 6, 8 और 9 को छोड़ कर अन्य भावों में यदि पाप ग्रह हों तथा भाव 4, 3 या 11 में शुक्र हो, जिस पर केंद्रस्थ बृहस्पति की दृष्टि हो, तो यह योग यात्रा करने वालों को धन दिलाने वाला होता है। अन्योऽन्य मित्रत्ववशेन सा वधूर्भवेत्सुतायगृहसौख्यभागिनी। अर्थात ग्रहों में परस्पर मैत्री होने पर वर-वधू पुत्र, आयु एवं गृहस्थाश्रम के सुख के भागी होते हैं। इन वचनों से स्पष्ट हो जाता है कि शुभ मुहूर्त में कार्य करने से भविष्य बदल जाता है। मुहूर्त की गणना के लिए निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। घड़ी का समय सही होना चाहिए, ताकि मुहूर्त की गणना एवं मुहूर्त पर संपन्न कार्य सही फलित हो। जिस स्थान के लिए मुहूर्त निकालना हो, उस स्थान के अक्षांश और रेखांश की गणना करनी चाहिए। ऐसा मुहूर्त नहीं चुनना चाहिए कि मुहूर्त के समय लग्न एवं चंद्र वक्री ग्रह के नक्षत्र, या नक्षत्रांश पर पारगमन कर रहे हांे। शनि-चंद्र की युति भी नहीं होनी चाहिए, अन्यथा कार्यों में रुकावटें आएंगी, या कार्य सही फलित नहीं होंगे। सूचक ग्रहों पर दूसरे ग्रहों की कोणीय दृष्टि नहीं होनी चाहिए। कार्य शुभ मुहूर्त में ही संपन्न करना देना चाहिए; चाहे आपके मुख्य अतिथि, या अन्य गणमान्य व्यक्ति समय पर पधारे न हों।