तीर्थराज मनिकर्ण
तीर्थराज मनिकर्ण

तीर्थराज मनिकर्ण  

व्यूस : 6375 | आगस्त 2008
तीर्थराज मणिकर्ण डा. भगवान सहाय श्रीवास्तव देवभूमि हिमाचल प्रदेश में कुल्लू घाटी और कुल्लू शहर का सौंदर्य अप्रतिम है। व्यास व विपाशा नदियों के किनारे बसे इस क्षेत्र का मनभावन वातावरण, झरनों से फूटता संगीत, प्राकृतिक फलों से लदे वृक्ष, भिन्न-भिन्न प्रकार के पहाड़ी फूलों से सजी क्यारियां, घास के हरे-भरे मैदान आदि देखकर यहां बार-बार आने को मन करता है। भारत में असंख्य तीर्थ स्थान व प्राचीन मंदिर आदि हैं जिनका विशेष महत्व है। उन्हीं में एक तीर्थराज मणिकर्ण है जो कुल्लू के निकट स्थित है। धार्मिक पक्ष तथा नामकरण: ब्रह्म पुराण के तीसरे अध्याय के अनुसार एक दिन माता पार्वती इस स्थान पर जल क्रीड़ा कर रही थीं। इस जल क्रीड़ा में उनके कान की मणि गिर गई। अपने तेज प्रभाव के कारण वह मणि पृथ्वी पर न टिकी और पाताल लोक में मण्ंिायों के स्वामी शेष नाग के पास पहंुच गई। शेषनाग ने इसे अपने पास रख लिया। शिवजी के गणों ने सब ओर ढ़ूंढ़ा, परंतु उन्हें मणि नहीं मिली। इससे क्रोधित हो शिवजी ने तीसरा नेत्र खोला, जिसके कारण प्रलय आने लगी। सब ओर त्राहि-त्राहि मच गई। शेष नाग घबरा गया। उसने फुफकार मारी और पार्वती की कर्णमणि को जल के साथ पृथ्वी की ओर फेंक दिया। इसी कर्णमणि के प्रकरण के कारण इस स्थान का नाम मणिकर्ण पड़ा। इसी स्थान पर किरात रूप में शंकर ने अर्जुन से युद्ध कर उसकी परीक्षा ली। और उसे पाशुपत अस्त्र दिया। इस स्थान को हरिहर तीर्थ, अर्धनारीश्वर क्षेत्रम्, सर्वसिद्धि प्रदायकम् आदि भी कहा गया है। यहां शिवजी ने पार्वती के साथ निवास कर तप किया था। यह भी कहा जाता है कि श्री रामचंद्र और लक्ष्मण ने वशिष्ठ मुनि के आश्रम में शिक्षा-दीक्षा लेने के पश्चात् यहीं पर शिव आराधना की थी। पहले कभी यहां नौ शिव मंदिर हुआ करते थे। मान्यता है कि यहां के जल में विष्णु एवं शिव दोनों का वास है। अतः यहां का स्नान परम सिद्धि तथा मुक्तिदायक माना गया है। गर्म पानी के स्रोत: मणिकर्ण घाटी में गर्म पानी के चश्मे कसोल से रूपगंगा (7 कि. मी.) के क्षेत्र में पार्वती नदी के दाहिने किनारे पर पाए जाते हैं। मणिकर्ण में ये स्रोत स्थान-स्थान पर निकलते हैं। यहां चश्मे अधिक गर्म हैं जो चट्टानों के नीचे से निकलते हैं और भारी दबाव के कारण ऊपर की ओर आते हैं। यहां पानी का तापमान 880 से 940 सेल्सियस तक रहता है। जर्मनी के एक वैज्ञानिक के अनुसार इस क्षेत्र में रेडियम की उपस्थिति के कारण जल में उष्णता रहती है। जल का स्वाद भी अच्छा है। जल में कैल्सियम कार्बोनेट भी पाया जाता है। जिसकी परत आसानी से देखी जा सकती है। यह गर्म जल स्वास्थ्य लाभ देने वाला है। इस जल में स्नान से गठिया, जोड़ों के दर्द, पेट की गैस आदि के उपचार में लाभ मिलता है। अन्य मंदिर हनुमान मंदिर: हनुमान मंदिर राम मंदिर के सामने स्थित है। यह मंदिर पूर्वोन्मुख है। राम मंदिर का प्रवेश द्वार उŸार की ओर है। यहां हनुमान जी सेवक के रूप में विद्यमान हैं। इसी मंदिर में राजा जगत सिंह की मूर्ति भी है, जिसकी मृत्यु मणिकर्ण में हुई। राम मंदिर: यह शिखर शैली का मंदिर है जिसके ऊपर स्लेट की छत भी है। राजा जगत सिंह ने इसे सन् 1653 ई. में अर्धनारीश्वर मंदिर के स्थान पर बनाया था। इसके परिसर में ही स्नान की व्यवस्था है स्त्रियों के लिए सीता कुंड तथा पुरुषों के लिए राम कुंड बने हैं। यहां पहले 12 फीट ऊपर उठने वाले गर्म जल स्रोत भी थे, जो 1905 ई. के भूचाल में लुप्त हो गए। इस मंदिर की ध्वजा न्योली माता लगाती है जब वह मणिकर्ण की यात्रा करती है, ज्वाणी महादेव इस समय उसके साथ होते हैं। नयना भगवती मंदिर: मणिकर्ण में शिवजी ने तीसरा नेत्र खोला था जिससे नयना देवी प्रकट हुई थीं, इसलिए इसे नयना भगवती का जन्म स्थान भी माना गया है। यहां नयना देवी का खश शैली का मंदिर है। यहां नयना देवी का रथ भी है। देवी के सभी गहने ऊच की खान से निकली चंादी के बने हैं। श्री कृष्ण मंदिर: राजा जगत सिंह ने वैष्णव धर्म अपनाया था। उसके बाद वैरागियों का कुल्लू में विशेष प्रभाव रहा। यहां वैरागियों का कृष्ण मंदिर है, जिसके पास ही सूरजकुंड है। रघुुनाथ मंदिर: मणिकर्ण के ठीक मध्य में साफ-सुथरा रघुनाथ मंदिर है जिसमें मंडप नहीं है। मंदिर में कमलासन पर विष्णु की मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर पार्वती नदी में आई बाढ़ की मिट्टी मंे दब गया था। इस बाढ़ के फलस्वरूप मणिकर्ण का स्थान ऊंचा हो गया, इसीलिए यह मंदिर शेष स्थानों से नीचा है। यह शिखर शैली का मंदिर है जिस पर स्लेट की छत भी है। शिव मंदिर: यह मंदिर नारायण हरि गुरुद्वारे के पास स्थित है। इसके एक किनारे पर उबलते हुए पानी का छोटा-सा कुंड है। प्रायः इसी पानी के कुंड में भोजन पकाया जाता है और श्रद्धालुगण यहां के पके भोजन को प्रसाद के रूप में घर ले जाते हैं। अन्य दर्शनीय व रमणीक स्थल: मणिकर्ण के 50-60 किलोमीटर के इर्द-गिर्द प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण कई ऐतिहासिक स्थान हैं। ब्रह्म गंगा संगम: यह नदी हरिंद्र पर्वत पर स्थित ब्रह्म सरोवर से निकलती है। ब्रह्मा जी ने इसी सरोवर के पास पर्वत पर तप किया था । अन्य महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थलों में ऊच, रूपगंगा, पुलगा, वरशैणी रुद्रनाग, खीरगंगा, मलाणा मानतलाई आदि प्रमुख हैं। वैशाखी पर कुल्लू में बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस अवसर पर यहां स्नान के लिए आते हैं। बीस भादों का मेला: भादांे मास के बीस प्रविष्टे के दिन इस तीर्थ पर किए गए स्नान को विशिष्ट मानते हैं। कहते हैं इस दिन इस तीर्थ स्नान से आरोग्य प्राप्त होता है। वस्तुतः इस समय तक यहां की जड़ी-बूटियां पककर तैयार हो जाती हैं और अपने गुणों को प्राप्त कर लेती हैं। इसी कारण जड़ी-बूटियों से निहित जल में स्नान करना स्वास्थ्यवर्धक होता है। पार्वती घाटी: इस घाटी के मध्य में पार्वती नदी बहती है। यह घाटी भून्तर से सोमाजोत (मानतलाई) तक फैली है। इसकी लंबाई लगभग 90 कि. मीहै। यह एक तंग घाटी है जिसके चारों ओर सीधे उठते हुए पहाड़ हैं जिनकी हिमाच्छादित चोटियां तथा हरे-भरे सदाबहार देवदार के वन प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाते हैं। पार्वती घाटी को ही रूपी घाटी कहते हैं, क्योंकि यहां रूपा अर्थात चांदी की खानें हैं। कैसे पहुंचें: दिल्ली, चंडीगढ़, पठानकोट आदि शहरों से बसों अथवा निजी वाहनों से इस दर्शनीय स्थल तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। बसें लगभग हर थोड़े अंतराल पर उपलब्ध हो जाती हैं। कार से मणिकर्ण की यात्रा अति आनंददायक होती है। दिल्ली से सोलह घंटों में यहां पहंुचा जा सकता है। वायुयान द्वारा: वायुयान की यात्रा सुविधाजनक तथा कम समय लेने वाली होती है। दिल्ली से इस घाटी की एक मात्र हवाई पट्टी भून्तर तक पहुंचने में डेढ़ घंटे का समय लगता है। चंडीगढ़ व दिल्ली से सीधी हवाई सेवा उपलब्ध है। सुविधाएं: ठहरने के लिए यहां पर्यटन विभाग का पार्वती होटल है। इसके अतिरिक्त वन विभाग का एक छोटा विश्राम गृह, गुरुद्वारा और कुछ अतिथिगृह व छोटे होटल भी हैं।



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