कैसे बने वास्तु अनुरूप विद्यालय डाॅ. संजय बु(िराजा विद्यालय का निर्माण वास्तु के सिंद्धांतों के अनुरूप करना चाहिए ताकि छात्र मेधावी तथा सफल हों। किंतु खेदजनक बात यह है कि आजकल इस दिशा में बहुधा इन सिद्धांतों की अनदेखी की जाती है। फलतः अच्छे परिणाम नहीं मिल पाते हैं। विद्यालय के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण वास्तु नियम इस प्रकार हैं: भूमि विद्यालय खुले व पवित्र भूखंड पर बनाना चाहिए। आस पास का वातावरण शुद्ध, पवित्र व शांत होना चाहिए। शुभ वातावरण का प्रभाव विद्यार्थियों के समग्र विकास पर पड़ता है। भूमि वर्गाकार या आयताकार होनी चाहिए। उत्तर-दक्षिण के चुंबकीय ध्रुव भूमि की लंबाई के समानांतर होने चाहिए। दिशा विद्यालय निर्माण में दिशा का विश्लेषण अति आवश्यक है। विद्यालय पूर्वाभिमुख होना चाहिए अर्थात् उसका मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए क्योंकि पूर्व दिशा से ही सूर्य निकलता है जो ज्ञान रूपी प्रकाश देकर अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करता है। उत्तर दिशा भी विद्यालय के लिए उपयुक्त होती है। पूर्व व उत्तरमुखी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी योग्य व बुद्धिमान होते हैं। ऐसे विद्यालयों का शैक्षणिक स्तर अच्छा और परीक्षाओं के परिणाम प्रशंसनीय होते हैं। मुख्य इमारत विद्यालय की मुख्य इमारत, विद्यालय की भूमि के र्नैत्य कोण की ओर बननी चाहिए। मुख्य इमारत की ऊंचाई र्नैत्य में अधिक व ईशान में कम होनी चाहिए। विद्यालय की चारदीवारी की ऊंचाई भी दक्षिण-पश्चिम दिशा में अधिक व पूर्व-उत्तर दिशा की ओर कम होनी चाहिए। विद्यालय की सबसे उपयुक्त दिशा पूर्व-उत्तर है और हल्का पीला, सफेद व हल्का हरा इस दिशा के रंग हैं। अतः मुख्य इमारत इन्हीं रंगों की होनी चाहिए। कक्षाओं की दीवारों का रंग पीला या हल्का हरा होना चाहिए। पीला रंग गुरु अर्थात् मस्तिष्क का और हरा बुध अर्थात् विद्या और लेखन का प्रतीक है। संपूर्ण विद्यालय की भूमि व छत की ढलान पूर्व व उत्तर दिशा की ओर होनी चाहिए मुख्य द्वार विद्यालय का मुख्य द्वार पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। पश्चिम दिशा का द्वार मध्यम फलदायी और दक्षिण दिशा का अशुभ होता है। मुख्य द्वार हमेशा साफ-सुथरा रहना चाहिए। मुख्य द्वार की ऊंचाई चैड़ाई से दोगुनी होनी चाहिए। मुख्य द्वार के सामने कोई वेध नहीं होना चाहिए। जल व्यवस्था उद्यान, फव्वारे, तरणताल, भूमिगत टैंक आदि विद्यालय के भूखंड के ईशानकोण की तरफ होने चाहिए। ओवरहेड पानी का टैंक इमारत के दक्षिण-र्नैत्य की ओर होना चाहिए। विद्यार्थियों के जल पीने की व्यवस्था मुख्य इमारत के पूर्व या उत्तर दिशा की ओर की जा सकती है। बिजली उपकरण आदि जेनरेटर, मीटर, मेनस्विच, फ्यूज आदि की व्यवस्था अग्निकोण की तरफ होनी चाहिए। आपात स्थिति से बचने के लिए अग्निशामक उपकरणों की भी उचित व्यवस्था अग्निकोण में ही होनी चाहिए। शौचालय व प्रसाधन शौचालय विद्यालय के भूखंड के वायव्य-पश्चिम की ओर होना चाहिए। प्रसाधन व सुविधाकक्ष उत्तर-पश्चिम या पश्चिम में बनवाने चाहिए। शौचालय व प्रसाधन कक्ष हवादार व खुले होने चाहिए। शौचालय या प्रसाधन कक्ष का प्रयोग करते समय विद्यार्थी का मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। स्वागत कक्ष: स्वागतकक्ष मुख्य इमारत के ईशानकोण की ओर बनाया जाना चाहिए। स्वागतकक्ष के प्रवेश द्वार की बनावट ऐसी हो कि आगंतुक का प्रवेश पूर्व या उत्तर की तरफ से हो। स्वागतकक्ष में रिसेप्शनिस्ट की डेस्क व कुर्सी की सजावट ऐसी हो कि उसका मुख पूर्व या उत्तर की ओर हो। प्रधानाध्यापक कक्ष प्रधानाध्यापक का कक्ष मुख्य इमारत के र्नैत्यकोण की ओर होना चाहिए ताकि उनका नियंत्रण सभी कार्यों व कर्मचारियों पर बना रहे। प्रधानाध्यापक को अपने कक्ष में पूर्व, उत्तर या ईशानकोण की ओर मुख करके बैठना चाहिए। त्र प्रधानाध्यापक की कुर्सी के पीछे कोई दरवाजा या खिड़की नहीं होनी चाहिए। प्रधानाध्यापक की उपाधियों, पुरस्कारों आदि को दक्षिण दिशा में स्थान देना चाहिए। कक्षा विद्या के कारक ग्रह गुरु का वास ईशान कोण में होता है, अतः कक्षाओं का निर्माण विद्यालय की मुख्य इमारत के पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की तरफ होना चाहिए। यदि कक्षाएं उत्तर की ओर ही बनवानी हों तो उनका द्वार पूर्वमुखी होना चाहिए। कक्षा में विद्यार्थियों के बैठने की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि उनका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो अर्थात् ब्लैकबोर्ड पूर्व या उत्तर की दीवार पर लगाना चाहिए। कक्षा की खिड़कियां चैड़ी व हवादार होनी चाहिए। कक्षा में किसी आदर्श व्यक्ति, राष्ट्रपुरुष या धर्म गुरु का चित्र लगाना चाहिए। स्टाफरूम या शिक्षक कक्ष शिक्षकों का कक्ष मुख्य इमारत के वायव्य या उत्तर-पश्चिम कोण की ओर होना चाहिए। शिक्षकों का कक्ष वातानुकूलित होना चाहिए ताकि वे तरोताजा रह सकें और पूरी ऊर्जा से अध्यापन कर सकें। त्र यदि रसोई की व्यवस्था हो तो यह शिक्षक कक्ष के अग्निकोण की ओर होनी चाहिए। पुस्तकालय पुस्तकालय का निर्माण विद्यालय की मुख्य इमारत के ईशान कोण की तरफ होना चाहिए। पुस्तकालय में बैठने की व्यवस्था इस प्रकार से होनी चाहिए कि अध् ययन करते समय छात्र का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहे। पुस्तकों का संग्रह पश्चिम व दक्षिण की दीवारों पर होना चाहिए। पुस्तकालय प्रमुख की कुर्सी पुस्तकालय के दक्षिण-पश्चिम की ओर होनी चाहिए। प्रयोगशाला प्रयोगशाला मुख्य इमारत के अग्निकोण की ओर बनानी चाहिए। प्रयोग करते समय विद्यार्थियों का मुख पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। प्रयोगशाला प्रमुख का मुख समझाते समय उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। वाहन स्थल वाहन स्थल के लिए विद्यालय वायव्य या अग्निकोण उपयुक्त होता है। सभी वाहनों को कतारबद्ध खड़े करना चाहिए। सभागार सभा स्थल विद्यालय के उत्तर-पश्चिम या पश्चिम की ओर होना चाहिए। सभागार के पश्चिम में मंच होना चाहिए। संगीत की व्यवस्था सभागार के वायव्य कोण की ओर की जा सकती है। अन्य विद्यालय के सम्मुख कोई अन्य ऊंची इमारत नहीं होनी चाहिए। विवाह समारोह आदि विद्यालय के अंदर नहीं होने चाहिए। विद्यालय का निर्माण सरस्वती को अर्पित करना चाहिए न कि लक्ष्मी को, क्योंकि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी अवश्य वास करती हैं।