वास्तु एवं भाग्य पं. गोपाल शर्मा, बी. ई हर व्यक्ति का भाग्य उसके पूर्व कर्मों के अनुसार पहले ही निर्धारित अथवा निश्चित होता है। वास्तु भी प्रकृति के नियमों का पालन कर मनुष्य के भाग्य का उदय करता है। यदि वास्तु गलत हो एवं भाग्य अनुकूल तो संघर्ष कम तो होंगे, परंतु समाप्त नहीं होंगे। यदि भाग्य खराब हो एवं वास्तु अनुकूल, तो परेशानियां कम होंगी, लेकिन खत्म नहीं। यदि भाग्य एवं वास्तु दोनों ही खराब हों, तो मनुष्य जीवन भर संघर्षपूर्ण स्थिति से निजात नहीं पा सकता। लक्ष्मी, धन, कारोबार इत्यादि व्यक्ति के भाग्य के अलावा घर, दुकान, फैक्ट्री इत्यादि के आकार, प्रकार एवं आंतरिक विभागों की अवस्था तथा उसके आसपास के वातावरण पर भी निर्भर करते हैं। वास्तुशास्त्र प्रकृति के अनुसंधान पर आधारित वह उच्च कोटि का विज्ञान है, जो हमें पांच भौतिक तत्व जल, वायु, अग्नि, आकाश व भूमि में संतुलन बनाए रखने की शिक्षा देता है। उŸार दिशा से मनुष्य को चुंबकीय या गुरुत्वाकर्षण शक्ति की प्राप्ति होती है जो मस्तिष्क को सजग रखने में हमारी मदद करती है। पूर्व दिशा से सौर ऊर्जा का आगमन होता है जो मनुष्य के शरीर को ऊर्जावान करने में सहायता करती है। उŸार-पूर्वी दिशा मनुष्य को काॅस्मिक ऊर्जा अर्थात् प्राण-ऊर्जा प्रदान करती है जिसके कारण मनुष्य स्वयं को क्रियाशील महसूस करता है। वास्तु द्वारा हम भाग्य को बदल तो नहीं सकते, पर अपने जीवन को सुखमय बनाने और उसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने की चेष्टा जरूर कर सकते हैं। वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप उपाय कर जीवन की अनेक कठिनाइयां कम की जा सकती हैं। उŸार तथा उŸार-पूर्वी दिशा में स्थित भूमिगत जल व्यवस्था से गृहवासियों को धन की प्राप्ति एवं कारोबार में वांछित उन्नति होती है। जिस भवन के चारों तरफ घूमने के लिए पर्याप्त रास्ता होता है, उसमें रहने वाले लोगों को अपार धन-संपदा एवं यश-वैभव की प्राप्ति होती है। उŸार की गली के मकान में उŸार या उŸार-पूर्व में दरवाजा लगवाने से आय के स्रोतों में वृद्धि तथा यश की प्राप्ति हो सकती है। पूर्व दिशा वंश वृद्धि की दिशा कहलाती है, अतः भवन निर्माण के समय भूखंड का कुछ स्थान खुला छोड़ देना चाहिए। इस दिशा में खुशहाली एवं व्यक्तिगत, पारिवारिक व आर्थिक विकास हेतु पेड़-पौधे लगाने चाहिए। घर में इस स्थान को स्वच्छ रखने पर किसी भी कार्य के सफल होने में देर नहीं लगती। दक्षिण-पूर्व दिशा मनुष्य को स्वास्थ्य प्रदान करती है। इस दिशा में किसी भी प्रकार के दोष का होना स्वास्थ्य की हानि, गृह-स्वामी के क्रोधी होने, परिवार में एक दूसरे के वैमनस्यता एवं कारोबार में रुकावट की समस्या का कारक होता है अतः इस स्थान पर किसी भी रूप में जल व्यवस्था नहीं करनी चाहिए। दक्षिण दिशा धन, सफलता, खुशी, संपन्नता और शांति की दात्री है। इसे जितना भारी ऊंचा रखा जाता है यह उतनी ही लाभदायी सिद्ध होती है। किंतु इस दिशा में शीशा हो, तो अनावश्यक व्यय एवं बीमारी की संभावना रहती है। दक्षिण भारत में स्थित तिरुपति मंदिर संपन्नता का खास उदाहरण है। दक्षिण में पहाड़ और उसी दिशा में निर्मित सीढ़ियों, भंडार और शयनकक्ष के कारण यह मंदिर धन-धान्य, समृद्धि, यश आदि से युक्त है। र्नै त्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा व्यक्ति के नम्र एवं चरित्रवान होने में सहायक होती है। अतः भूंखड का यह भाग गृहस्वामी के शयनकक्ष हेतु अति उŸाम होता है, किंतु इसके दोषपूर्ण होने (जैसे इसके बढ़े अथवा कटे होने या इसमें जल की भूमिगत व्यवस्था, बेसमेंट अथवा गड्ढा होने से) गृहस्वामी चिरकालिक रहस्यमयी बीमारी तथा आर्थिक व मानसिक परेशानियों से पीड़ित होता है। पश्चिम दिशा सफलता, कीर्ति, यश एवं ऐश्वर्यदायिनी होती है, किंतु इस दिशा में दोष होने के कारण मनुष्य का जीवन संघर्षमय होता है। वायव्य अर्थात् उŸार-पश्चिम दिशा मित्रता एवं शत्रुता का कारक होती है। यदि यह दिशा दोष रहित हो, तो सुअवसरों की प्राप्ति का योग बनाती है, परंतु इस दिशा में मौजूद कोई भी दोष कार्यों में रुकावट, मुकदमेबाजी, अकारण दुश्मनी आदि विभिन्न समस्याओं का वाहक होता है। इस दिशा के बंद, बढ़े अथवा घटे होने या इसमें गड्ढा या भूमिगत जलाशय होने से गृहस्वामी को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऊपर वर्णित बिंदुओं का ध्यान रखते हुए निम्न बातों को अपनाकर भाग्योन्नति की जा सकती है तथा जीवन में संघर्ष को कम किया जा सकता है। भवन के उŸार-पूर्व या उŸार में भूमिगत टैंक, नल और पानी की व्यवस्था करें। उŸार व पूर्व का ज्यादा से ज्यादा भाग खुला रखें। रसोई दक्षिण-पूर्व, दक्षिण या उŸार-पश्चिम में रखें। छत व फर्श की ढलान उŸार-पूर्व, उŸार व पूर्व में हो। भारी मूर्तियां, फोटो आदि यथासंभव दक्षिण की दीवार पर लगाएं, उŸार की दीवार पर नहीं। हमेशा दक्षिण की ओर सिर करके सोएं-इससे स्वास्थ्य और आयु बढ़ेगी। अधिक श्रम के कारण थकान होने पर पूर्व की ओर सिर करके सोएं। इससे प्रतिकूल शक्तियां और विरोधी पक्ष अनुकूल होंगे और समस्याओं का समाधान भी होता नजर आएगा। भूखंड का उŸार-पूर्वी भाग नीचा हो या उसमें कोई गड्ढा, तालाब, झील, बहता हुआ नाला या नदी हो तो ऐसे स्थान को किसी भी कीमत पर खरीद लें। यह भूखंड लेते ही आपके कारोबार, सुख समृद्धि आदि में चमक आ जाएगी। थोड़े प्रयत्न से ही बड़े काम बन जाएंगे।