वास्तु देवता एवं पूजन स्तु प्राप्ति के लिए अनुष्ठान, भूमि पूजन, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, वाद्वार स्थापन व गृह प्रवेश आदि अवसरो पर वास्तु देव पूजा का विधान है। घर के किसी भी भाग को तोड़ कर दुबारा बनाने से वास्तु भंग दोष लग जाता है। इसकी शांति के लिए भी वास्तु देव पूजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त भी यदि आप किसी फ्लैट या कोठी में रहते है और आपको लगता है कि किसी वास्तु दोष के कारण आपके घर में कलह, धन हानि व रोग आदि हो रहे है तो आपको नवग्रह शांति व वास्तुदेव पूजन करवा लेना चाहिए। किसी शुभ दिन या रवि पुष्य योग में वास्तु पूजन कराना चाहिए। वास्तु देव पूजन के लिए आवश्यक सामग्री इस प्रकार हैः रोली, मौली, पान के पत्ते, लौंग, इलाइची, साबुत सुपारी, जौ, कपूर, चावल, आटा, काले तिल, पीली सरसों, धूप, हवन सामग्री, पंचमेवा (काजू, बादाम, पिस्ता, किशमिश, अखरोट), शुद्ध घी, ताँबे का लोटा, नारियल, सफेद वस्त्र, लाल वस्त्र, 2 पटरे लकड़ी के, फूल, फूलमाला, रूई, दीपक, आम के पत्ते, आम की लकड़ी, पंचामृत (गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर), माचिस, स्वर्ण शलाखा। नींव स्थापन के लिए अतिरिक्त सामग्री-ताँबे का लोटा, चावल, हल्दी, सरसांे, चाँदी का नाग-नागिन का जोड़ा, अष्टधातु कच्छप, 5 कौडियाँ, 5 सुपारी, सिंदूर, नारियल, लाल वस्त्र, घास, रेजगारी, बताशे, पंच रत्न, पाँच नई ईंटें। पूजन वाले दिन प्रातः काल उठकर प्लाॅट या घर की सफाई करके साफ व शुद्ध कर लेना चाहिए। जातक को पूर्व मुखी बैठकर अपनी बायंे तरफ धर्म पत्नी को बैठाना चाहिए। पूजा के लिए किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण की सहायता लेनी चाहिए। ब्राह्मण को उत्तर मुखी होकर पालथी मार कर बैठना चाहिए। मंत्रोच्चारण द्वारा शरीर शुद्धि, स्थान शुद्धि व आसन शुद्धि की जाती है। सर्वप्रथम गणेश जी की आराधना करनी चाहिए। तत्पश्चात् नवग्रह पूजन करना चाहिए। वास्तु पूजन के लिए गृह वास्तु में 81 पद के वास्तु चक्र का निर्माण किया जाता है। 81 पदों में 45 देवताओं का निवास होता है। ब्रह्माजी को मध्य में 9 पद दिये गये है। चारों दिशाओं में 32 देवता व मध्य में 13 देवता स्थापित होते हैं। इनके नाम व मंत्र इस प्रकार हैंः इसके पश्चात् आठों दिशाओं, पृथ्वी व आकाश की पूजा की जाती है। हवन सामग्री में तिल, जौ, चावल, घी, बताशे मिलाकर वास्तु देव को निम्न मंत्र पढ़ते हुए 108 आहुतियाँ दें। ¬ नमो नारायणाय वास्तुरूपाय भूर्भुवस्य पतये भूपतित्व मे देहि ददापय स्वाहा। तत्पश्चात् आरती करके श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को भोजन करावें। क्रम नाम मंत्र 1. शिखी (ईश) ¬ शिख्ये नमः 2. पर्जन्य ¬ पर्जन्यै नमः 3. जयन्त ¬ जयन्ताय नमः 4. इन्द्र ¬ कुलिशायुधाय नमः 5. सूर्य ¬ सूर्याय नमः 6. सत्य ¬ सत्याय नमः 7 भृश ¬ भृशसे नमः 8. अंतरिक्ष (आकाश) ¬ आकाशाये नमः 9. अनिल (वायु) ¬ वायवे नमः 10. पूषा ¬ पूषाय नमः 11. वितथ ¬ वितथाय नमः 12. बृहत्क्षत ¬ बूहत्क्षताय नमः 13. यम ¬ यमाय नमः 14. गन्धर्व ¬ गन्धर्वाय नमः 15. भृंगराज ¬ भृंगराजाय नमः 16. मृग ¬ मृगाय नमः 17. पितृ ¬ पित्रे नमः 18. दौवारिक ¬ दौवारिकाय नमः 19. सुग्रीव ¬ सुग्रीवाय नमः 20. पुष्पदंत ¬ पुष्पदन्ताय नमः 21. वरुण ¬ वरुणाय नमः 22. असुर ¬ असुराय नमः 23. शेष ¬ शेषाय नमः 24. पापयक्ष्मा ¬ पापहाराय नमः 25. रोग ¬ रोगहाराय नमः 26. नाग (अहि) ¬ अहिये नमः 27. मुख्य ¬ मुख्यै नमः 28. भल्लाट ¬ भल्लाटाय नमः 29. सोम (कुबेर) ¬ सोमाय नमः 30. भुजंग (सर्प) ¬ सर्पाय नमः 31. अदिति ¬ अदितये नमः 32. दिति ¬ दितये नमः 33. आप ¬ आप्यै नमः 34. सावित्री ¬ सावित्रे नमः 35. जय ¬ जयाय नमः 36. रूद्र ¬ रूद्राय नमः 37. अर्यमा ¬ अर्यमाय नमः 38. सविता ¬ सविताय नमः 39. विवस्वान् ¬ विवस्वते नमः 40. विबुधाधिप ¬ विबुधाधिपाय नमः 41. मित्र ¬ मित्राय नमः 42. राजयक्ष्मा ¬ राजयक्ष्म्यै नमः 43. पृथ्वीधर ¬ पृथ्वीधराय नमः 44. आपवत्स ¬ आपवत्साय नमः 45. ब्रह्मा ¬ ब्रह्माय नमः