वास्तु शास्त्र के 51महत्वपूर्ण सूत्र सफेद रंग की सुगंधित मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणों के निवास के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। 2. लाल रंग की कसैले स्वाद वाली भूमि क्षत्रिय, राजनेता, सेना व पुलिस के अधिकारियों के लिए शुभ मानी गई है। 3. हरे या पीले रंग की खट्टे स्वाद वाली भूमि व्यापारियों, व्यापारिक स्थलों तथा वित्तीय संस्थानों के लिए शुभ मानी गई है। 4. काले रंग की कड़वे स्वाद वाली भूमि अच्छी नहीं मानी जाती। यह भूमि शूद्रों के योग्य है। 5. मधुर, समतल व सुगंधित व ठोस भूमि भवन बनाने के लिए उपयुक्त है। 6. खुदाई में चींटी, दीमक, अजगर, साँप, हड्डी, कपड़े, राख, कौड़ी, जली लकड़ी व लोहा मिलना शुभ नहीं माना जाता। 7. भूमि की ढलान उत्तर और पूर्व की ओर हो तो शुभ होती है। छत की ढलान ईशान कोण में होनी चाहिए। 8. भूखंड के दक्षिण या पश्चिम में ऊँचे भवन, पहाड़, टीले या पेड़ शुभ माने जाते हैं। 9. भूखंड से पूर्व या उत्तर की ओर कोई नदी या नहर हो और उसका प्रवाह उत्तर या पूर्व की ओर हो तो शुभ होता है। 10. भूखंड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत कुँआ, तालाब एवं बावड़ी शुभ माना जाता है। 11. किसी भूखंड व दो बड़े भूखंडों के बीच होना शुभ नहीं होता। 12. किसी भवन के दो बड़े भवनों के बीच होना भी शुभ नहीं होता। 13. आयताकार, वृताकार व गोमुखी भूखंड गृह वास्तु में शुभ होता है। वृताकार भूखंड में निर्माण भी वृताकार ही होना चाहिए। 14. सिंह मुखी भूखंड व्यावसायिक वास्तु के लिए शुभ होता है। 15. भूखंड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ माना जाता है। 16. भूखंड के उत्तर और पूर्व में मार्ग शुभ माने जाते हैं। 17. व्यापारिक स्थल के दक्षिण और पश्चिम में मार्ग लाभदायक माने जाते हैं। 18. भवन के द्वार के सामने मन्दिर, खंभा व गड्ढा शुभ नहीं माने जाते। 19. आवासीय भूखंड में बेसमेन्ट नहीं बनानी चाहिए। 20. बेसमेन्ट बनानी आवश्यक हो तो उत्तर और पूर्व में ब्रह्म स्थान को बचाते हुए बनानी चाहिए। 21. बेसमेन्ट की ऊँचाई कम से कम 9 फीट हो और 3 फीट तल से ऊपर हो ताकि प्रकाश और हवा आ जा सके। 22. कुँआ, बोरिंग व भूमिगत टंकी उत्तर, पूर्व या ईशान में बना सकते हैं पर वास्तु पुरुष के अतिमर्म स्थानों को छोड़ कर। 23. भवन की प्रत्येक मंजिल में छत की ऊँचाई 12 फुट रखनी चाहिए। 10 फुट से कम तो नहीं होनी चाहिए। 24. भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊँचा होना चाहिए। 25. भवन का पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊँचा होना चाहिए। 26. भवन में र्नैत्य सबसे ऊँचा और ईशान सबसे नीचा होना चाहिए। 27. भवन का मुख्य द्वार ब्राह्मणों को पूर्व में, क्षत्रियों की उत्तर में, वैश्य को दक्षिण में तथा शुद्रों को पश्चिम में बनाना चाहिए। इसके लिए 81 पदों का वास्तु चक्र बना कर निर्णय करना चाहिए। 28. द्वार की चैड़ाई उसकी ऊँचाई से आधी होनी चाहिए। 29. बरामदा घर के उत्तर या पूर्व में ही बनाना चाहिए। 30. खिड़कियाँ घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम बनानी चाहिए। 31. ब्रह्म स्थान को खुला, साफ तथा हवादार रखना चाहिए। 32. गृह निर्माण में 81 पद वाले वास्तु चक्र में 9 स्थान ब्रह्म स्थान के लिए नियत किए गये हंै। 33. चार दीवारी के अन्दर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में छोड़ें। उससे कम उत्तर में, उससे कम पश्चिम में, सबसे कम दक्षिण में छोड़ें। 34. दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में, सबसे कम पूर्व में रखें। 35. घर के ईशान कोण में पूजा घर, कँुआ, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राईंग रूम, व बेसमेंट बनाई जा सकती है। 36. घर की पूर्व दिशा में स्नान घर, तहखाना, बरामदा, कुँआ, बगीचा व पूजा घर बनाया जा सकता है। 37. घर के आग्नेय कोण में रसोई घर, बिजली के मीटर, जेनरेटर, इन्वर्टर व मेन स्विच लगाए जा सकते हैं। 38. घर की दक्षिण दिशा में मुख्य शयन कक्ष, भण्डार, सीढ़ियाँ व ऊँचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं। 39. घर के र्नैत्य कोण में शयन कक्ष, भारी व कम उपयोगी सामान का स्टोर, सीढ़ियाँ, ओवर हैड वाटर टैंक व शौचालय बनाये जा सकते हैं। 40. घर की पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष, सीढ़ियाँ, अध्ययन कक्ष, शयन कक्ष, शौचालय व ऊँचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं। 41. घर के वायव्य कोण में अतिथि घर, कंुवारी कन्याओं का शयन कक्ष, रोदन कक्ष, लिविंग रूम, ड्राईंग रूम, सीढ़ियाँ, अन्न भण्डार, व शौचालय बनाये जा सकते हैं। 42. घर की उत्तर दिशा में कुँआ, तालाब, बगीचा, पूजा घर, तहखाना, स्वागत कक्ष, कोषागार व लिविंग रूम बनाये जा सकते हैं। 43. घर का भारी सामान र्नैत्य कोण, दक्षिण या पश्चिम में रखना चाहिए। 44. घर का हल्का सामान उत्तर, पूर्व व ईशान में रखना चाहिए। 45. घर के र्नैत्य भाग में किरायेदार या अतिथि को नहीं ठहराना चाहिए। 46. सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिए। (मतान्तर से अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिए, ससुराल में दक्षिण सिर करके, परदेश में पश्चिम सिर करके सोना चाहिए और उत्तर दिशा में सिर करके कभी नहीं सोना चाहिए।) 47. दिन में उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मल मूत्र का त्याग करना चाहिए। 48. घर के पूजा गृह में बड़ी मूर्तियाँ नहीं होनी चाहिएं। दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र, व दो शलिग्राम नहीं रखने चाहिए। 49. भोजन सदा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके ही करना चाहिए। 50. सीढ़ियों के नीचे पूजा घर, शौचालय व रसोई घर नहीं बनाना चाहिए। 51. धन की तिजोरी का मुँह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।