वास्तु दोष एंव रोग
वास्तु दोष एंव रोग

वास्तु दोष एंव रोग  

व्यूस : 6042 | दिसम्बर 2008
वास्तु दोष एवं रोग बाबू लाल शास्त्राी आवास के उŸार पश्चिम भाग (वायव्य कोण) का संबंध वायु तत्व से होता है। वायु का प्राण से सीधा संबंध है, अतः इस स्थान को खुला रखना शुभ है। इस स्थान पर भारी सामान नहीं रखना चाहिए एवं न ही भारी निर्माण कराना चाहिए, अन्यथा वायु वायु विकार तथा मानसिक रोगों की संभावना रहती है। इसके धरातल का उŸार-पूर्व की अपेक्षा थोड़ा ऊंचा तथा दक्षिण पश्चिम से कुछ नीचा होना शुभ होता है। उŸार का स्थान अधिक बड़ा होने से परिवार की स्त्रियों को त्वचा संबंधी रोग एक्जिमा एलर्जी आदि होने का भय रहता है। उŸार की अपेक्षा पश्चिम का स्थान अधिक बड़ा होने से पुरुषों को शारीरिक व्याधियां होने की संभावना रहती है। भवन के उŸार पूर्वी भाग ईशान कोण का संबंध जल तत्व से है। यह स्थान ज्यादा भारी होने से भवन के निवासियों के शरीर में जल तत्व का संतुलन बिगड़ जाता है एवं अनेक प्रकार की व्याधियां होती हैं। अतः उŸार पूर्व भाग को जितना हल्का एवं खुला रखें, उतना शुभ है। इस स्थान पर रसोई निर्माण नहीं करना चाहिए, अन्यथा उदर रोगों एवं परिवार के सदस्यों में तनाव की संभावना रहती है। इस स्थान पर भूमिगत जल भंडारण हो या घर में होने वाली जल पूर्ति की पाइप लाइन इसी दिशा में हो तो शुभ है। यदि परिवार में कोई सदस्य बीमार हो तो उसे ईशान कोण की ओर मुंह करके औषधि का सेवन कराने से जल्दी ठीक होता है। भवन का ईशान कोण कटा हुआ नहीं होना चाहिए, वरना भवन में रहने वालों को रक्त विकार से ग्रसित होना पड़ता है। स्त्रियों को यौन रोग भी हो सकता है, प्रजनन क्षमता भी दुष्प्रभावित हो सकती है। ईशान कोण में यदि उŸार का भाग ऊंचा हो तो उस परिवार की स्त्रियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। ईशान के पूर्व का स्थान ऊंचा होने पर पुरुषों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। भवन के पूर्वी-दक्षिण भाग अग्नि कोण का संबंध अग्नि तत्व से होता है। इस स्थान पर रसोई निर्माण करना शुभ हैं किंतु जल स्तोत्र या जल भंडारण करने से उदर रोग व पित विकार आदि होने की संभावना रहती है। दक्षिण पूर्व दिशा में यदि दक्षिण का स्थान अधिक बढ़ा हुआ हो तो परिवार के पुरुषों को शारीरिक व मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन के मध्य केंद्र स्थान को ब्रह्म स्थान को अति महत्वपूर्ण माना गया है जिसका संबंध आकाश तत्व से होता है। वास्तु में ब्रह्म स्थान का वही महत्व है जो मानव के शरीर में नाभि का होता है। आकाश तत्व से संबंधित होने से इसे खुला रखना परिवार के विकास व स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इस स्थान पर किसी प्रकार की गंदगी होने से परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां होती हैं। इस स्थान पर शौचालय सीढ़ियां गटर सेप्टिक टैंक आदि का निर्माण करने से अपयश, हानि और श्रवण दोष आदि पैदा होते हैं। इससे परिवार में विकास में रुकावट भी होती हैं। अतः इस स्थान को खुला रखना आवश्यक है। इस स्थान पर तुलसी का पौधा लगाने से अनेक व्याधियों व दोषों से मुक्ति मिलती है।



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