व्यवसाय, नौकरी, प्रसिद्धि एवं संपन्नता
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व्यवसाय, नौकरी, प्रसिद्धि एवं संपन्नता  

व्यूस : 10168 | अकतूबर 2009
व्यवसाय, नौकरी, प्रसिद्धि एवं संपन्नता आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति के लिये यह जानना कि उसकी संतान क्या नौकरी अथवा व्यवसाय करेगी? जीवन में व्यक्ति को कितना धन लाभ एवं प्रसिद्धि मिलेगी? यह जाना बहुत आवश्यक हो गया है। प्रत्येक जीवधारी मनुष्य अपने जन्म के साथ अपने पूर्व संचति कर्मों का एक संग्रह साथ लाता है, जिसके अनुसार उसका जीवन, नौकरी या व्यवसाय निर्धारित होता है। कोई भी दैवज्ञ मनुष्य की सही जन्मकुंडली का अध्ययन कर इस विषय में भली भांति प्रकाश डाल सकता है। प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति अपने खानदानी पेशे से ही जुड़ा रहता था। लेकिन आज के युग में इस परंपरा में बहुत अधिक परिवर्तन हो चुका है। अब पूरा संसार विज्ञान व टैक्नोलोजी से हुड़ा हुआ है। अनेक प्रकार के धंधे व नौकरियां दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। श्रम विशिष्टीकरण व विभिन्न देशों के आपसी व्यापारिक लेन-देन के कारण इस क्षेत्र में बहुत विविधता आ गई है। ज्योतिषीय आधार के अनुसार लग्न, चंद्रमा एवं सूर्य इन तीनों में जो बली हो उससे दशमेश जिस ग्रह के नवांश में हो उस नवांश का जो स्वामी हो उसके अनुसार मनुष्य की जीविका का निर्धारण होता है। प्रत्येक ग्रह की विशेषता के अनुसार जीविका का निर्धारण होता है। यदि दशमेश सूर्य के नवांश में हो तो औषध, ऊनी वस्त्र, जल, धान्य, सुवर्ण, मोती का व्यापार, फल वाले वृक्षों व घास, लकड़ी अनाज का व्यापार, मंत्र, जप या मिथ्या आभूषण से भी जीविका हो सकती है। आने-जाने से अथवा बड़े आदमी की दूत-वृत्ति से भी जीविका जानी जाती है। 2. यदि दशमेश चंद्रमा के नवांश में हो, तो जल से उत्पन्न होने वाली वस्तुएं जैसे शंख, सिंघाड़ा, सब्जी का व्यापार, खेती, मिट्टी के खिलौने, मिट्टी के बर्तन, बाजा, विनोद, सूती वस्त्रों के क्रय-विक्रय से, रानी व धनाढ्य स्त्री के आश्रय से धन लाभ व जीविका होती है। जल के पतले पदार्थ, शरबत सोडा आदि पेय-पदार्थ, खोंड, शक्कर के व्यापार, पशु-व्यापार अथवा तीर्थाटन से जीविका होती है। 3. लग्न से व सूर्य से दशमेश यदि मंगल के नवांश में हो धातु, सोना, चांदी, पीतल, स्टील का काम, लड़ाई फौजी काम, पुलिस, कोयला या अग्नि कर्म हलवाई, होटल, बिजली का काम या लड़ाई झगड़े मुकदमें के द्वारा या डाॅक्टरी के व्यवसाय में सर्जरी के द्वारा जहां मरीजों की चीर-फाड़, रक्त बहाना आदि कार्यों से जीविका का विचार किया जाता है। 4. यदि दशमेश बुध के नवांश में हो शिल्प, कर्म, कारीगरी, काव्य शास्त्र के ज्ञान से ज्योतिष शास्त्र, लिखाई-पढ़ाई, गणित तथा कामर्स विषय जैसे कंपनी सैक्रेटरी चार्टड एकाउन्टस, पुरोहित, ग्रंथी यज्ञ हवन कराने से, बैंक बीमा कंपनी व धन-उधार लेन-देन के हिसाब खाते से जीविका का विचार किया जाता है। 5. दशमेश यदि गुरु के नवांश में हो तो ब्राह्मणों व देवताओं के आश्रय से अध्यापक वृत्ति से, पुराण धर्म ग्रंथ, नीति मार्ग, उपासना, धर्मोपदेश से जीविका का ज्ञान होता है। दान-पुण्य, न्यायधीशत्व या ब्याज लेने से जीविका चलती है। 6. यदि दशमेश शुक्र के नवांश में हो नाटक, गायन, नृत्य, सिनेमा में काम करने से मद्य के व्यापार व सुगंधी अथवा परफ्यूमस के व्यापार व उत्पादन से, नमक, दही, सफेद वस्तुएं सूती वस्त्र, हीरे जवाहरात, औषधि व दूध के व्यापार से, दलाली व बड़े आदमी की ए. डी. सी. पने से भी जीविका चलती है। 7. यदि शनिश्चर नवांश में हो तो निन्दित मार्ग से, जेत्व व अपराधियों को दंडित करने से, नीच जति की स्त्री के आधीन काम करने से। लकड़ी के शिल्प, बध-कृत्य, लोगों के ठगने से (जीवन-बीमा) आदि, मृत्यु का भय दिखाकर अथवा परस्पर झगड़ा-वैर मुकदमे से जीविका चलती है। आधुनिक युग में शस्त्र निर्माण, कम्प्यूटर इंजिनियरिंग भी इसके अंतर्गत समझे जाते हैं। मजदूरी, खेती का काम, खान-खोदना, बाग-बगीचे अथवा सेल्समैन का काम भी इसी के अंर्तगत समझा जाता है। नवांशेष को उच्च नीच राशिगत अथवा शत्रु-मित्र स्थिति व देश-काल, जाति परंपरा, खानदानी पेशा आदि का भी ध्यान अवश्य रखकर भविष्य कथन किया जाना चाहिए। जन्म व नवांश दोनों कुंडलियों के दशम् स्थान में बैठे ग्रहों एवं वहां स्थित राशियों के आधार पर पर भी तथा ग्रहों के परिभ्रमण के अनुसार भी परिवर्तन आता जायेगा। वृत्तिदाता नवांशेष के बलवान होने पर थोड़े परिश्रम से तथा कमजोर होने पर अत्यधिक परिश्रम के पश्चात् स्वल्प लाभ की संभावना रहती है। वृहत् पराशर होरा शास्त्र के कर्मभाव फल के अध्याय 23 श्लोक 4 के अनुसार:- कर्मेशे शुभ संयुक्ते शुभस्थानगते तथा। राजद्वारे च वाणिज्ये सदालाभोऽन्यथान्यथा।। अर्थात् दशमेश शुभ ग्रह है तथा शुभ ग्रह से युत अथवा दृष्ट है, एवं शुभ स्थान (केंद्र त्रिकोण) में स्थित है, ऐसा जिस व्यक्ति की कुंडली में हो वह सदैव राज्य कृपा प्राप्त, उच्च किस्म का व्यापारी होगा। इसके विपरीत होने पर फल भी विपरीत विचारना चाहिये। वृहत् पराशर होरा शास्त्र अध्याय 23 के अनुसार कर्मस्थान गते चन्द्रे तदीशे तत्रिकोणगे। लग्नेशे केन्द्रभावस्थे सत्कीर्तिसहितो भवेत् ।। 19 ।ं लाभेशे कर्मभावस्थे कर्मेशे बल संयुते। देवेन्द्र गुरुणा दृष्टिे सत्कीर्तिसहितो भवेत्।। 20 ।। कर्म स्थानधिपे भाग्ये लग्नेशे कर्म संयुते। लग्नात पंचमगे चन्द्रे ख्यातनामा नरो भवेत्।। 21 ।। अर्थात् - कर्म स्थान में चंद्रमा तथा कर्मेश त्रिकोण स्थित हो, (लग्न, पंचम व नवम भाव की त्रिकोण संज्ञा है) तथा लग्नेश केंद्र में हो, (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम केंद्र स्थान है) ऐसा व्यक्ति कीर्तिसहित होता है। आज के युग में उच्च पद व धन सम्पदावान ही कीर्तियुक्त होता है। एकादशेश अथवा लाभेश दशम में हो एवं कर्मेश के बलवान होने पर एवं बृहस्पति से दृष्ट होने पर जातक सत्कीर्तिसहित होता है। कर्मेश (दशमेश) नवम भाव में हो तथा लग्नेश दशमेश का संबंध एवं लग्न से पंचम में चंद्रमा होने पर व्यक्ति अत्यंत विख्यात होता है। नवमेश, दशमेश की नवम् अथवा दशम भाव में युति, अथवा स्थान परिवर्तन से भी विशेष योग बनता है। इसे धर्मकर्माधियोग भी कहा जाता है। किसी कुंडली में यह योग विद्यमान होने पर लघुपराशरी के अनुसार व्यक्ति अत्यंत भाग्यवान, लक्ष्मीवान्, एवं शुभ कर्म करने वाला होता है। यह एक प्रसिद्ध राजयोग माना गया है। यदि दोनों ग्रह बलवान हो एवं शुभ ग्रह दृष्ट हो तो यह विशेष फलदायक माना जाता है। हमारा देश विशाल है व जनसंख्या की दृष्टि से भी संसार में दूसरे नंबर पर है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी के कारण सरकारी नौकरी को अच्छा माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की अभिलाषा होती है कि उच्च पद पर सरकारी कर्मचारी का पद प्राप्त हो जहां धन और सम्मान दोनों ही मिलें। ऐसे कुछ योग ग्रहों के अनुसार होते हैं तथा कुछ योग राशियों के आधार पर होते हैं। कुंडली में ग्रहों की स्थिति जितनी प्रबल होगी योग भी उतना ही अधिक प्रभावकारी होगा। अच्छे योगों के साथ-साथ कुंडली में विद्यमान विपरीत राजयोग भी पाये जाते हैं, जिनका अध्ययन सही भविष्यकथन में बहुत सहायक होता है। ऐसे कुछ विशिष्ट योग यहां बताये जा रहे हैं। 1. कुंडली में स्थिर लग्न हो एवं लग्न में शुक्र हो। 2. कुंडली में चर लग्न हो एवं केंद्र में गुरु स्थित होने पर उच्च पदाधिकारी का पद प्राप्त होता है। 3. कुंडली में द्विस्वभाव लग्न हो तथा लग्न से त्रिकोण में मंगल हो। यह तीनों स्थितियां लग्न के अनुसार उच्च पदाधिकारी बनाती हैं। इसके अतिरिक्त (क) कुंडली में दशम् भाव में चंद्रमा स्थित हो, दशमेश उच्च राशि में हो, भाग्येश लग्न से द्वितीय भाव में हो। (ख) यदि लग्न से दशम् भाव में सूर्य स्थित हो तथा दशमेश लग्न से तीसरे भाव में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति उच्च पदाधिकारी होता है। (ग) यदि चंद्रमा व बृहस्पति दोनों लग्न से द्वितीय भाव में हों तथा द्वितीयेश लाभ भाव में हो एवं लग्नेश शुभ ग्रह से युत हो तो ऐसा व्यक्ति भी उच्च पदाधिकारी होता है। (घ) कुंडली में लग्नेश तथा चंद्र राशीष केंद्र में, अपने मित्र की राशि में युंत हो व लग्न बलवान हो तो इस योग के प्रभाव से व्यक्ति उच्च पदाधिकारी होता है। (ड़) कुंडली मंे मंगल अपनी उच्च राशि अथवा स्व राशि में दशम् भाव में हो तथा लग्नेश की दृष्टि उस पर हो तब भी व्यक्ति उच्च पदाधिकारी होता है। किसी भी कुंडली में मंगल, सूर्य, बुध, वृहस्पति, शनि, दशम् भाव व दशमेश इन सबकी स्थिति जितनी अच्छी होगी, उसी के अनुसार जातक को उच्च अधिकार प्राप्त होगा। दशमांश कुंडली का अध्ययन भी लग्न कुंडली के समान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अनुसार द्वितीय, षष्ठ एवं दशम् भाव को अर्थ-त्रिकोण माना जाता है। किसी भी जातक का कार्य-क्षेत्र, प्रगति धनागम आदि पर इन भावों का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। दशम भाव में कोई भी उत्तम स्थिति व बलानुसार स्थित ग्रह किसी जातक के जीवन में शुभ प्रभाव, शक्तिशाली व उच्च पद तथा जीवन में उन्नति के अवसर प्रदान करने के लिये पर्याप्त होता है। साथ ही साथ सप्तम भाव का भी अध्ययन आवश्यक होता है। इन भावों में सूर्य की प्रधानता होने पर राजनेता अथवा सरकारी उच्च पद पर कार्यरत अधिकारी होने की संभावना होती है। मंगल की प्रधानता होने पर पुलिस, खुफिया विभाग अथवा सेना में उच्च पद होने की संभावना होती है। गुरु की अच्छी स्थिति जातक को अच्छा वकील, जज, धार्मिक प्रवक्ता अथवा बहुत ख्याति प्राप्त ज्योतिर्विद बनाता है। बुध से अच्छा व्यापारी, लेखक, एकाउन्टेंट, लेखन एवं प्रकाशन संबंधी कार्यों में अग्रगण्य व्यक्ति होने की संभावना बताई जाती है। शुक्र की उच्च स्थिति फिल्मी कलाकार, उच्च कोटि का गायक, सौंदर्य संबंधी प्रतियोगिता अथवा सौंदर्य सामग्री का उत्पादक होने की क्षमता व्यक्त करती है। शनि के द्वारा भारी व निम्न कोटी के शारीरिक कार्य की संभावना रहती है। राहु से आयात व्यापार एवं केतु से निर्यात व्यापार को समझा जाता है। छठे भाव का बलवान होना तथा अधिक ग्रहों की स्थिति नौकरी की संभावना दर्शाती है, जबकि सप्तम भाव का बलवान होना या अधिक ग्रहों की स्थिति उच्च कोटि के व्यापारी होने का योग दर्शाती है। लग्नेश की स्थिति नवम भाव में होने पर व्यक्ति को पूर्णतया स्वतंत्र, इच्छा-शक्ति का धनी बनाती है। ऐसे जातकों के लिये अपना स्वतंत्र व्यवसाय करना उत्तम होता है। यदि सप्तम में नीच, गत, शत्रु राशिगत अथवा निर्बल ग्रहों के स्थिति व्यापार में हानि की संभावना बनाती है। ऐसे जातकों को किसी व्यापारी के अधीन कार्य करना ही अधिक उपयुक्त होता है। दशमेश की विभिन्न भावों में स्थिति भी महत्वपूर्ण एवं निर्णायक होती है। दशमेश के लग्न में होने पर यदि कारक बुध है तो जातक चंचल प्रकृति का होगा। शनि है तो बाल्यावस्था में बीमार होगा, सूर्य है तो स्वतंत्र व्यवसाय करेगा एवं बृहस्पति है तो प्रसिद्धि, उच्च-पद व मान-सम्मान प्राप्त करेगा। दशमेश के द्वारा कार्य की दिशा का भी ज्ञान होता है। दशमेश के बलानुसार प्रसिद्धि, उच्च-पद, धन, सम्मान व पदवी का भी पता चलता है। दशमेश द्वितीय भाव में हो अथवा द्वितीयेश से युत होने पर खानदानी व्यवसाय से व्यक्ति धन अर्जित करेगा। दशमेश पर विपरीत प्रभाव होने पर व्यक्ति के व्यवसाय में हानि उठाने की संभावना रहती है। ज्योतिष शास्त्र में प्रसिद्ध पंच महापुरूष योग भी व्यक्ति के जीवन में सफलता एवं उसके कार्य क्षेत्र के निर्धारण में महत्वपूर्ण समझे जाते हैं। पंचमहापुरूष योग कुंडली में मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि अपनी स्वराशि अथवा उच्च राशि का होकर केंद्र में स्थित होने पर महापुरुष योग बनता है। यदि कुंडली में केंद्र स्थान में मंगल स्व राशि (मेष-वृश्चिक) अथवा उच्च राशि मकर में स्थित हो तो रूचक योग का निर्माण होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग विद्यमान हो वह आकर्षक व्यक्तित्व वाला, प्रसिद्ध, प्रभावशाली तथा कीर्तिवान होता है। मंगल के दशम् भाव में होने पर सेना, पुलिस अथवा राज्य में उच्च पदाधिकारी हो सकता है। कुंडली में केंद्र स्थान में बुध अपनी स्वराशि अथवा उच्च राशि में हो तो भद्र योग का सृजन होता है। ऐसा जातक अत्यंत पराक्रमी, तीव्र बुद्धि वाला, बौद्धिक कार्यों में अत्यंत सफल, व्यापारिक कार्यों में अत्यंत प्रगति करने वाला, धनवान, वैभवशाली व उच्च पदाधिकारी होता है। कुंडली में केंद्र स्थान में बृहस्पति होने पर हंस योग का सृजन होता है। ऐसा जातक सुंदर, मधुरभाषी, बुद्धिमान, दूसरों की भलाई करने वाला, लोकप्रिय, प्रशंसित एवं दीर्घायु होता है। केंद्र स्थान में शुक्र अपनी स्व राशि अथवा उच्च राशि का होने पर मालव्य योग का निर्माण होता है। ऐसा जातक सुंदर, संतुलित शरीर का, आकर्षक एवं कान्तियुक्त होता है। वह बुद्धिमान, धनवान्, प्रसिद्ध, उत्तम वाहन युक्त, उच्च शिक्षा प्राप्त, सुसंस्कृत, दीर्घायु एवं ख्यातिवान होता है। केंद्र स्थान में स्व-राशि या उच्च राशि का शनि स्थित होने पर शश-योग होता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक अत्यंत प्रभावशाली, प्रभुता संपन्न, नीति-निपुण, किसी वर्ग का मुखिया होता है। स्वयं कम पढ़ा-लिखा होने पर भी अच्छे लोग उसकी मातहती में काम करते हैं। प्रायः ट्रेड-यूनियन लीडर तथा पिछड़ी जाति व वर्ग का नेतृत्व करने वाले राजनेताओं की कुंडली में यह योग पाया जाता है। यदि शनि उच्च राशि का हो किंतु वक्री या अस्त न हो तब इस योग का विशेष फल मिलता है। नीच का अथवा अस्त होने पर यह योग निष्फल हो जाते हैं। इन सबके अतिरिक्त महाभाग्य योग का भी शास्त्रों में वर्णन मिलता है। इस योग में उत्पन्न जातक उदार, विख्यात, चरित्रवान, धनवान, भूमि स्वामी एवं ऐश्वर्यशाली होता है। इस योग वाली महिलाएं दीर्घ काल तक सभी प्रकार के सुख ऐश्वर्य तथा पति, पुत्र, पौत्रों का सुख भोगती हैं।



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