धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष मानव जीवन के मुख्य लक्ष्य कहे गए हैं। हर व्यक्ति इन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु यथासंभव प्रयास करता है। लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु शास्त्रों में विभिन्न ज्योतिषीय सामग्रियों के उपयोग का उल्लेख है, जिनमें रुद्राक्ष का स्थान प्रमुख है। रुद्राक्ष भगवान शिव का अंश है और शिव संहारक हैं, तो कल्याणकारी भी। रुद्राक्ष में भगवान का कल्याणकारी रूप समाहित है। यही कारण है कि इसमें कष्टों से मुक्ति का सामथ्र्य है। रुद्राक्ष धारण से जहां शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है, वहीं विभिन्न रुद्राक्ष विभिन्न कार्यों के संपादन और लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं।
यहां किस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु कौन-सा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसका विवरण प्रस्तुत है। विद्या प्राप्ति में सफलता विद्या प्राप्ति में सफलता के लिए तीन मुखी एवं छह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। तीनमुखी रुद्राक्ष साक्षात अग्निदेव का स्वरूप है। इसके धारण से अनेक विद्याओं की प्राप्ति संभव है। इसे धारण करने से मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि का विकास भी होता देखा गया है। इसे सत्व, रज और तम तीनों गुणों का स्वरूप माना जाता है। छह मुखी रुद्राक्ष भगवान षडानन का प्रतीक है। इसके देवता भगवान कार्तिकेय हैं। यह संकल्प शक्ति और ज्ञान प्रदान करता है। इसी के समान गणेश रुद्राक्ष भी विद्या प्राप्ति में सहायक होता है।
इसे धारण करने से पढ़ाई में मन लगता है और बुद्वि कुशाग्र होती है। जिन विद्यार्थियों को विद्या प्राप्ति मेें बाधाएं आती हों, उनके लिए यह बहुत उपयोगी है। धन प्राप्ति, नौकरी एवं व्यवसाय में सफलता हेतु सात मुखी रुद्राक्ष धन प्राप्ति एवं व्यापार वृद्धि में विशेष सहायक माना जाता है। इस रुद्राक्ष के देवता सप्तऋषि हैं। वृष, कन्या और कुंभ लग्न के जातकों के लिए यह रुद्राक्ष अत्यंत लाभप्रद होता है। इसके अतिरिक्त बारहमुखी रुद्राक्ष भी नौकरी में आने वाली सभी कठिनाइयों को दूर करता है। इसे धारण करने से दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। प्रशासनिक अधिकारियों के लिए यह रुद्राक्ष अत्यंत लाभप्रद है। दाम्पत्य सुख में वृद्धि हेतु दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से विवाह योग्य वर या कन्या का विवाह शीघ्र होता है। यह अर्धनारीश्वर का रूप है। इसे धारण करने से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।
इससे मानसिक शांति भी मिलती है। दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाने में गौरी शंकर रुद्राक्ष भी सहायक होता है। यह सभी लग्न के जातकों के लिए शुभ माना गया है। इसे धारण करने से पति-पत्नी के मध्य प्रेम प्रगाढ़ होता है तथा परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। यह तलाक या अलगाव जैसी परिस्थिति का भी शमन करता है। उत्तम संतान की प्राप्ति हेतु संतान प्राप्ति में आने वाले विघ्न को दूर करने में भी रुद्राक्ष सहायक होता है। इस हेतु पति को छह मुखी और पत्नी को ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। गौरी गणेश रुद्राक्ष धारण करने से पुत्र संतान की प्राप्ति होती है और संतान के सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। उन्नति एवं मान-सम्मान की प्राप्ति हेतु उन्नति तथा प्रगति के लिए नौमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसकी देवी भगवती दुर्गा हंै।
इसे धारण करने से साहस एवं कर्मठता में वृद्धि होती है। यह रुद्राक्ष गले में अथवा बायीं भुजा पर धारण करना चाहिए। इससे जातक की कुंडली का नवम भाव बली होता है, जिससे भाग्य हमेशा उसका साथ देता है। जीवनचर्या में आने वाली बाधाओं एवं अन्य कष्टों से मुक्ति हेतु कोर्ट कचहरी के मामलों में सफलता तथा दुर्घटनाओं एवं शत्रुओं से रक्षा के लिए आठमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसे विनायक का रूप माना गया है। विघ्नहर्ता श्री गणेश इसके देवता हैं। इसे धारण करने से सभी प्रकार के कष्टों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
यदि भाग्य साथ न दे रहा हो, तो दसमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यह भगवान विष्णु का स्वरूप है। त्रिजुटी रुद्राक्ष भी सभी प्रकार के कष्टों का निवारण करता है। इसमें तीन रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। उत्तम स्वास्थ्य हेतु अच्छी सेहत हर व्यक्ति की कामना होती है। कहा भी गया है, ‘पहला सुख निरोगी काया।’ स्वास्थ्य को अनुकूल बनाए रखने के लिए चैदह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यह हनुमान जी का स्वरूप है। इसे धारण करने से व्याधियों से मुक्ति मिलती है तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। यह शनि और मंगल के अशुभ प्रभाव से भी जातक की रक्षा करता है।
इस रुद्राक्ष की माला पर भगवान पुरुषोत्तम के मंत्रों का जप करने से स्वास्थ्य अनुकूल और रक्तचाप नियंत्रित रहता है। तीन मुखी रुद्राक्ष हृदय संबंधी रोगों से मुक्ति के लिए, एक मुखी मानसिक परेशानी व सांस की बीमारी से, दो व चार मुखी लीवर के रोग से, पांच मुखी वातज तथा असाध्य रोगों से और सात मुखी तथा नौमुखी शनि दोष के कारण उत्पन्न रोगों से मुक्ति के लिए और आठ मुखी रुद्राक्ष आकस्मिक दुर्घटनाओं से बचाव के लिए धारण करना चाहिए। मानसिक शांति एवं आध्यात्मिक उन्नति हेतु पंद्रहमुखी रुद्राक्ष को पूर्णिमा के दिन धारण करने से मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मनोबल में वृद्धि होती है। यह भगवान पशुपति का स्वरूप है।
इसे धारण करने से जातक पापमुक्त हो जाता है। एकाग्रता में भी यह रुद्राक्ष सहायक होता है। साधु-संन्यासी रुद्राक्ष को कंठ के अतिरिक्त कलाइयों में भी पहनते हैं। बारहमुखी व चैदहमुखी रुद्राक्ष आध्यात्मिक उन्नति हेतु धारण किए जाते हैं। धारण विधि रुद्राक्ष शुभ मुहूर्त में धारण करना चाहिए। इसके लिए सोमवार उत्तम रहता है। बृहस्पतिवार को एवं महाशिवरात्रि के अवसर पर भी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
रुद्राक्ष यथासंभव सोने या चांदी में मढ़वाकर अथवा केवल लाल धागे में धारण करना चाहिए। प्रातः काल स्नानादि के पश्चात रुद्राक्ष को गंगाजल तथा कच्चे दूध से धोकर चंदन, फूल व धूप-दीप से पूजा करें। फिर रुद्राक्ष के मुख के अनुरूप 108 बार बीज मंत्र का उच्चारण करें अथवा ¬ नमः शिवाय का एक माला जप कर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके श्रद्धापूर्वक धारण करें।